अध्यक्ष मेहरबान तो पत्रकार पहलवान! हिंदी पत्रकारिता दिवस की कुछ अश्लील तस्वीरें!

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भगवान पाठक / दिल्ली 

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है। सुबह से तमाम समाचार माध्‍यमों पर पत्रकारिता के कथित स्‍वर्णकाल और इतिहास से जुड़ी बातें की जा रही हैं। कोई उदंत मार्तण्‍ड को याद कर रहा है तो कोई पत्रकारिता के वीर-पुरुषों को। हम ‍जिस दौर में रह रहे हैं उसमें हिंदी पत्रकारिता का जो स्‍याह चेहरा हर दिन सामने आ रहा है, उसे देखते हुए पत्रकारिता के स्‍वर्णिम दिनों की बात करना कुछ अतिशयोक्ति जैसा लगता है। पिछले दिनों कोबरापोस्‍ट ने एक स्‍याह चेहरा दिखाया है पत्रकारिता का। आज हम एक और स्‍याह चेहरा दिखाएंगे। हिंदी पत्रकारिता की जो ज़मीनी स्थिति है हम तस्‍वीरों के माध्‍यम से उससे आपको रूबरू कराएंगे।

कहानी कुछ यूं है कि जिन राज्‍यों में विधानसभा चुनाव हैं, भारतीय जनता पार्टी ने तय कया है ‍कि वहां से पत्रकारों के दल को हवाई जहाज से दिल्‍ली लाया जाएगा, खिलाया-पिलाया जाएगा, लाल किला घुमाया जाएगा और अध्‍यक्षजी के साथ बैठाया जाएगा। अगर संभव हुआ तो अध्‍यक्षजी ही क्‍यों, प्रधानजी के साथ भी बैठाया जाएगा। इसकी पहली कड़ी दिल्‍ली में कल समाप्‍त हुई है।

छत्‍तीसगढ़ से दो दिन पहले कोई 50 पत्रकारों को भाजपा दिल्‍ली लेकर आई। इनमें राज्‍य से निकलने वाले सभी अखबारों के पत्रकार थे सिवाय राजस्‍थान पत्रिका समूह के। इन पत्रकारों को दिल्‍ली के एक पांचसितारा होटल में ठहराया गया। इन्‍हें खिलाया-पिलाया गया। अध्‍यक्षजी अमित शाह के साथ मिलाया गया और लगे हाथ बीजेपी नेता राम माधव की माताजी की शोकसभा में मातमपुरसी के लिए भी ले जाया गया। दिल्‍ली आए पत्रकार फूले नहीं समाए। इतना फूले कि अध्‍यक्षजी के चरणों में बैठकर फोटो भी खिंचवाए और उन्‍हें लगे हाथ देश का महान नेता भी घोषित कर गए। तस्वीरें देखें:

 

क्षेत्रीय पत्रकारों का तो खैर समझ में आता है लेकिन राष्‍ट्रीय पत्रकारों का क्‍या किया जाए जो चार साल से प्रधानजी के साथ सेल्‍फी खिंचवाने के लिए भगदड़ मचाए हुए हैं। अब उनका स्‍तर भी गिर गया है। प्रधानजी तक मामला ठीक था लेकिन इस बार इन्‍हें उनके दर्शन करने को नहीं मिले तो अध्‍यक्षजी से ही काम चला लिया। तस्‍वीरें देखिए- हर रात 9 बजे टीवी पर आग लगाने वाले चेहरे आपको दिख जाएंगे। इन पत्रकारों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर उतने गौरवभाव से तस्‍वीरें नहीं लगाई तो क्‍या, बीजेपी के मीडया प्रभारी ने इन पत्रकारों की तस्‍वीरें अध्‍यक्षजी के साथ खाते-पीते साझा कर दीं।

जिस देश का प्रधानमंत्री चार साल में एक बार भी प्रेस कॉन्‍फ्रेंस न किया हो, वहां सत्‍ताधारी पार्टी का अध्‍यक्ष चार साल का हिसाब देने के लिए संपादकों और पत्रकारों को प्रीतिभोज दे रहा है। क्‍या उनसे किसी ने पूछा होगा कि प्रधानजी से क्‍यों नहीं एक अदद प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करवा देते दादा?

एक बात पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए। हफ्ते भर से कोबरापोस्‍ट के जिस स्टिंग पर कथित भले लोग लहालोट हैं, पूरे मीडिया को कोस रहे हैं, उन्‍हें इस बात का बिलकुल इलहाम नहीं कि अगर कोबरापोस्‍ट के अंडरकवर पत्रकार ने पैसों की पेशकश समाचार प्रतिष्‍ठानों को न की होती तो क्‍या ये प्रतिष्‍ठान हिंदुत्‍व की लाइन टोने से इनकार कर देते? क्‍या आपको नहीं लगता कि कोबरापोस्‍ट ने मीडिया संस्‍थानों और पत्रकारों को पैसे के बदले बिकाऊ दिखाकर इस बात को छुपा लिया है कि हिंदुत्‍व की विचारधारा के साथ इनका कोई पर्सनल लेना-देना है?

जिस तरह ये पत्रकार भाजपा अध्‍यक्ष के साथ तस्‍वीरें साझा कर रहे हैं और जिन विशेषणों का प्रयोग कर के गर्वोन्‍मत्‍त हो रहे हैं, उस हिसाब से तो कोबरापोस्‍ट को पैसे की पेशकश करने की ज़रूरत ही नहीं होनी चाहिए थी। ये तो फोकट में बिकने को तैयार दिख रहे हैं। तो क्‍या कोबरापोस्‍ट ने समाचार संस्‍थानों को सौदे के बदले रियायत दे दी है?

जो तस्‍वीरें आप देख रहे हैं, वे कोबरापोस्‍ट की स्टिंग से ज्‍यादा भयानक, अश्‍लील और उद्घाटक हैं। इन्‍हें किसी ने उजागर नहीं किया है। खुद छापा है पत्रकारों ने। यह मीडिया का सेल्‍फ-स्टिंग है। इसे देखकर अनिरुद्ध बहल को शर्म खाना बनता है कि इतना पैसा, मेहनत और वक्‍त बरबाद कर के भी वे वह नहीं दिखा सके जो खुद पत्रकारों ने दिखा दिया। पढ़ें राजस्थान पत्रिका के समाचार संपादक आवेश तिवारी का पोस्ट जो इकलौते पत्रकार हैं जिन्होंने पत्रकारों की बिकवाली की तरफ अपना ध्यान खींचा है:

 

हिंदी पत्रकारिता दिवस मुबारक!


Note: पत्रकारों की बिकवाली से जुडी खबरें और तस्वीरें आमंत्रित हैं. छपने की गारंटी सौ फीसद.