अमेरिकी कांग्रेस में पेश हिंदूफ़ोबिया से जुड़े प्रस्ताव को लेकर कई मानवाधिकार और नागरिक संगठनों ने चेतावनी जारी की है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका के दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों द्वारा समर्थित इस (हाउस रेजोंल्यूशन 1131) प्रस्ताव को हिंदू राष्ट्रवाद और हिंदुत्ववादी संगठनों के आलोचकों के ख़िलाफ़ हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा।
कांग्रेस में विवादास्पद “धर्म कॉकस” की स्थापना करने वाले सांसद श्री थानेदार द्वारा पेश किए गये इस प्रस्ताव में कहा गया है कि “मंदिरों और व्यक्तियों को निशाना बनाने वाले ‘हिंदू विरोधी घृणा अपराध’ हर साल बढ़ रहे हैं… [जबकि] अमेरिकी समाज में ‘हिंदू भय’ दुर्भाग्य से बढ़ रहा है।” प्रस्ताव आगे “हिंदूफोबिया, हिंदू–विरोधी कट्टरता और नफरत और असहिष्णुता की निंदा करता है।“
अमेरिकी नागरिक अधिकार संगठनों ने कहा है कि जबकि हिंदू विरासत और समाज में योगदान का जश्न स्वागत योग्य है, ‘हिंदूफोबिया‘ के आरोपों का इस्तेमाल हिंदुत्व के फासीवादी आदर्शों और भारत की धुर–दक्षिणपंथी सरकार और अमेरिका स्थित हिंदू धुर–दक्षिणपंथी समूहों के खतरनाक विस्तार और गतिविधियों की आलोचना करने वाले किसी भी व्यक्ति को परेशान करने, डराने, बदनाम करने और अन्यथा नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया है।
इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) के अध्यक्ष मोहम्मद जवाद ने कहा, “यह कहने की जरूरत नहीं है कि आईएएमसी सभी प्रकार की धार्मिक घृणा और कट्टरता की निंदा करता है।हालांकि, किसी को भी इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि इस प्रस्ताव का अमेरिकी उग्र हिंदू समूहों द्वारा समर्थन किया गया है, जिनमें से कुछ का भारत में हिंसक अल्पसंख्यक–विरोधी समूहों से संबंध है। हिंदूफोबिया को हथियार बनाने से न केवल अमेरिकी अल्पसंख्यकों – जिनमें मुस्लिम, दलित और भारतीय ईसाई शामिल हैं – को वास्तविक नुकसान होता है – बल्कि उन निर्वाचित अधिकारियों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और शिक्षाविदों को भी नुकसान होता है, जिन्हें हिंदू वर्चस्व की आलोचना करने का साहस करने के लिए नफ़रत फैलाने वाले कट्टरपंथियों के रूप में बदनाम किया जाता है।”
हिंदू दक्षिणपंथियों के उत्पीड़न का सामना करने वाले शिक्षाविदों के एक समूह, साउथ एशिया स्कॉलर एक्टिविस्ट कलेक्टिव (एसएएसएसी) द्वारा निर्मित एक फील्ड मैनुअल, ‘हिंदूफोबिया‘ शब्द को एक “समस्याग्रस्त” अवधारणा के रूप में पेश करता है जिसका उपयोग “हिंदू धर्म की अकादमिक जांच और हिंदुत्व की आलोचना को दबाने के लिए” कियाजाताहै।
यह मानते हुए कि दक्षिण एशियाई अमेरिकियों – जिनमें हिंदू भी शामिल हैं– को नस्लवाद और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, एसएएसएसी लिखता है: “भेदभाव के व्यक्तिगत मामले, चाहे कितने भी दर्दनाक हों, ‘हिंदूफोबिया‘ की श्रेणी में नहीं आते हैं… ‘हिंदूफोबिया‘ को अक्सर जाति उत्पीड़न के शिकार समुदायों की स्थिति को सामने लाने वाले आयोजकों को चुप कराने के लिए बतौर हथियार इस्तेमाल किया जाता है…[यह] इस गलत धारणा पर आधारित है कि हिंदुओं ने पूरे इतिहास में और वर्तमान समय में व्यवस्थित उत्पीड़न का सामना किया है।”
कई प्रमुख हिंदू अमेरिकी कार्यकर्ताओं ने भी संयुक्त राज्य अमेरिका में संरचनात्मक भेदभाव के एक रूप के रूप में हिंदूफोबिया के विचार को खारिज कर दिया है, जिसमें एडवोकेसी समूह हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (एचएफएचआर) भी शामिल है।
समूह ने लिखा, “हम संयुक्त राज्य अमेरिका या भारत में प्रणालीगत ‘हिंदूफोबिया‘ की धारणा को इस्लामोफोबिया या यहूदी–विरोध के समान माने के विचार को खारिज करते हैं। हम मानते हैं कि ‘हिंदूफोबिया‘ शब्द संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के बीच लोकप्रिय हुआ है – पाकिस्तान या बांग्लादेश में सताई गई हिंदू आबादी द्वारा नहीं… हम इस बात पर जोर देते हैं कि केवल जाति, हिंदू राष्ट्रवाद या हिंदू धर्म की आलोचना – खासकर जब हाशिए पर रहने वाले समुदायों की ओर से आती है– इसे हिंदू विरोधी भावना के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए।
हिंदूफोबिया को हथियार बनाने के कारण पिछले कुछ वर्षों में वास्तविक और सार्वजनिक परिणाम हुए हैं: हिंदू अमेरिकी दक्षिणपंथी समूहों ने हिंदुत्व के बारे में एक अकादमिक सम्मेलन को रोकने, कैलिफोर्निया और सिएटल में जाति–आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों को कुचलने का प्रयास करने और भारत में मुस्लिम विरोधी भेदभाव की निंदा करने वाले नगर परिषद के प्रस्ताव को रोकने के लिए ‘हिंदूफ़ोबिया’ का इस्तेमाल किया।।
इसके अतिरिक्त, अमेरिकी और भारतीय उग्र दक्षिणपंथी समूहों ने ‘हिंदूफ़ोबिया’ से जुड़े इस प्रस्ताव का जश्न मनाया है। एक अमेरिकी–आधारित समूह जिसने प्रस्ताव के लिए समर्थन की घोषणा की है, वह हिंदूएक्शन है, जो विश्व हिंदू परिषद ऑफ अमेरिका (वीएचपी–ए) का एक एडवोकेसी समूह है। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के ब्रिज इनिशिएटिव ने वीएचपी–ए को भारत स्थित विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से जुड़े एक उग्र हिंदू दक्षिणपंथी संगठन के रूप में चिन्हित किया है, जिसका अल्पसंख्यक विरोधी हमलों, नरसंहारों, मस्जिदों के विध्वंस समेत कई अन्य हिंसक गतिविधियों में शामिल रहने का एक लंबा इतिहास है। अन्य शोधों में पाया गया है कि वीएचपी–ए संयुक्त राज्य अमेरिका में सक्रिय दक्षिणपंथियों और मुस्लिम विरोधी नफ़रती समूहों से जुड़ा हुआ है।
खुद अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य थानेदार को भी वीएचपी–ए पहल, हिंदूपैक्ट के मंच पर देखा गया है, जिसने मुस्लिम अमेरिकी एडवोकेसी समूहों को बदनाम करने के लिए बार–बार मुस्लिम विरोधी शब्दों का इस्तेमाल किया है और अपने आलोचकों को “हिंदूफोबिक” करार दिया है।
हिंदूएक्शन द्वारा हाल ही में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में, थानेदार ने जोर देकर कहा कि सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास को निशाना बनाना हिंदूफोबिया के समान है। “भारतीय दूतावास… कैलिफोर्निया में जला दिया गया था, तो आपको [हिंदूफोबिया के] और क्या सबूत चाहिए?”
जबकि 2023 में उपद्रवियों द्वारा सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में तोड़फोड़ और आगजनी का प्रयास वास्तव में घृणित था, यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि इस कृत्य का मकसद हिंदुओं के प्रति घृणा के बजाय भारत विरोधी भावना में निहित था।