राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखिया ने विजयादशमी पर बयान दिया है कि भीड़ की हिंसा (Mob lynching) पश्चिमी दुनिया की अवधारणा है और बाइबिल से आयी है। यह बयान भीड़ की हिंसा के अपराध और अब तक घटित घटनाओं को नकारना है।
आज से करीब 600 साल पहले काशी में संत कबीर और संत रैदास जी जात-पात, सांप्रदायिकता और पाखंड के खिलाफ बोले, किन्तु भीड़ की हिंसा का शिकार नहीं हुए। काशी के साथ समूचे भारत में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है। हकीकत यह है कि आरएसएस के गुरु गोलवलकर जी यूरोप के दो फासीवादियों हिटलर और मुसोलिनी की विचारधारा को भारत में ले आये, जिसने भारत में मनुस्मृति आधारित भेदभाव वाली जाति-आधारित पितृसत्ता और सामंतवाद के साथ मिलकर भीड़ की हिंसा की शुरुआत की।
श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत का समाज मिलजुल कर रहता है। फिर सवाल उठेगा कि जीसस से 250 साल पहले अशोक द्वारा किया गया कलिंग का युद्ध क्या था? उससे पहले अगर लोक में देखें, तो रामजी द्वारा शम्बूक का वध (वाल्मीकि रामायण 583−84), माता सीता की अग्निपरीक्षा, गर्भवती होने पर भी माता सीता को घर से निकाले जाने के प्रसंग क्या कहते हैं? सती प्रथा और डायन प्रथा क्या है? दलितों और अदिवासियों को सामुदायिक दंड देने की प्रथा क्या है? शास्त्रार्थ में याज्ञवल्क्य ने महिला ऋषियों पर तलवार क्यों ताना था? और पुष्यमित्र शुंग ने अशोक के पौत्र के साथ जो बरताव किया था, वह क्या था?
यह गुरु गोलवरकर जी द्वारा दिया पश्चिम से आयातित ज्ञान नहीं तो और क्या है? मोहन भागवत जी अगर वास्तव में समझते हैं कि लिंचिंग पश्चिम की अवधारणा है, तो उन्हें शाइस्ता परवीन की आवाज़ सुननी चाहिए जो लिंचिंग में मार दिए गए तबरेज़ अंसारी की बेवा हैं। झारखण्ड के खरसावां स्थित ग्राम बेहरासाईं, पोस्ट कदमडीह की यह घटना आरएसएस के मुखिया की आंख खेलने के लिए काफी होनी चाहिए।
तबरेज़ की कहानी, शाइस्ता की ज़ुबानी
छह माह पहले ही हमारी शादी तबरेज़ अंसारी से हुई थी। अल्लाह के करम से हमें जैसा शौहर चाहिए था वैसा ही मिला। हम दोनों एक दूसरे के साथ बेहद खुश थे। मेरे पति मेरी हर छोटी बड़ी जरूरतों को पूरा करते थे। लेकिन हमारी ख़ुशी को न जाने किसकी बुरी नज़र लग गयी और हमारा हँसता खेलता परिवार बिख़र गया।
-शाइस्ता परवीन, 18 जून 2019 को भीड़ के हाथों झारखण्ड में मारे गए तबरेज़ अंसारी की बेवा
इस परिवार के साथ बीते 18 जून को जो हुआ, वह लिंचिंग के अलावा कुछ और कहा जा सकता है क्या? शाइस्ता से हमने पूरी घटना के बारे में पूछा। शाइस्ता बताती हैं:
“मेरे पति काम के सिलसिले में बाहर जाने वाले थे और इस बार हम भी उनके साथ जाने की तैयारी कर रहे थे। उसके लिए वह टाटा कुछ ज़रूरी सामान लेने के लिए गए हुए थे। टाटा से लौटते हुए तक़रीबन 10 बजे रात तबरेज़ हमसे फ़ोन करके बोले की वह वापस आ रहे हैं। उस वक़्त मैं अपने मायके में ही थी। काफ़ी रात तक मैं उनका इंतज़ार करती रही, लेकिन न वो ही आये न उनका फ़ोन ही। हमें लगा कहीं रुक गए होंगे। 18 जून, 2019 को सुबह तक़रीबन 6 बजे उनका फोन आया। जब मैंने फ़ोन उठाया तो वे जोर−जोर से बोल रहे थे कि तुम लोग भाई को लेकर जल्दी से आओ और हमको बचा लो नहीं तो ये लोग मेरी जान ले लेंगे। यह सुन कर मुझे लगा कि उनसे फ़ोन पर यह सब कोई बोलवा रहा है। मैंने बिना रुके चीखते चिल्लाते घर के सभी लोगों को यह ख़बर दी। तुरंत घर के लोग गए तो देखा कि वहां जमघट लगाकर लोग तबरेज़ को मार रहे थे। घर के लोग वहां बेबस थे। वह लोग उग्र भीड़ को तबरेज को मारने से रोक न सके। वह लोग घर वापस आकर तुरंत पुलिस को फ़ोन किये, तब सरायकेला थाने की पुलिस आकर मेरे शौहर को लेकर थाने चली गयी| थाने में हम लोगों को तबरेज़ से मिलने नहीं दिया गया। उनको आँख भर देखने और मिलने के लिए हम थाने के गेट के बाहर घंटों इंतज़ार करते रहे, पर किसी पुलिस वाले को हम लोगों पर तरस नहीं आया| उन लोगों ने हम लोगो को तबरेज से मिलने नहीं दिया, हम लोगों ने बहुत मिन्नतें की लेकिन सब बेकार। किसी तरह मेरी अम्मी हाज़त के पास जाकर देखीं कि मेरे शौहर जमीन पर लेटे हुए थे। उनकी तबियत एकदम ठीक नहीं लग रही थी| उनकी यह हालत देखकर मेरी अम्मी रोने लगीं।”
रोने की आवाज़ सुनकर पुलिसवालों ने उनके चाचा और अम्मी को बोला- “चोर की सिफारिश करने आये हो, उसको भी मारेंगे और तुमको भी मारेंगे।”
“तभी पप्पू मंडल जो तबरेज़ को मारा था, वह थाने में पुलिस वाले और हम लोगों को सुनाते हुए बोला कि साले को इतना मारे पर मरा नहीं?” – शाइस्ता ने बताया।
पुलिस वालों से परिवार ने इलाज के लिए अनुरोध किया, तो पुलिस ने कहा कि इलाज करवा दिया गया है, सब नॉर्मल है। उसी दिन तीन बजे पुलिस ने चालान कर दिया और तबरेज़ के मोबाइल, पर्स के अलावा बेल्ट को अपने पास लिया। परिवार को थाने जाने पर मालूम हुआ कि तबरेज जेल में है| वे लोग तुरंत जेल गए तबरेज़ से मिलने।
22 जून, 2019 की सुबह परिवार के पास फोन आया कि तबरेज़ बहुत बीमार है और सदर अस्पताल में भर्ती है। शाइस्ता के मुताबिक:
“शाम के तक़रीबन 7 बज रहे थे, लेकिन हम लोगों को कोई तबरेज़ से मिलने नहीं दे रहा था। बहुत मिन्नत के बाद बोला गया कि आप लोग दो घंटे बाद उनसे मिल सकती हैं। उनके ऊपर सफ़ेद चादर देखकर मैं चिल्ला−चिल्ला कर रोने लगी। 11 बजे रात एक पुलिस (SDPO) के आने के बाद हम लोगों को तबरेज़ के पास जाने दिया गया।”
परिवार वाले तबरेज को टीएमसी अस्पताल ले जाने लगे तो सदर अस्पताल के लोगों ने उन्हें रोक दिया। तबरेज़ को जबरन वे लोग टीएमसी ले गए। वहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।
सही निदान की ज़रूरत
https://youtu.be/viG2TuC3C14
मोहन भागवत जी ने मॉब लिंचिंग को नकारने के अलावा यह भी कहा है कि अर्थव्यवस्था पर ज्यादा बहस मत करो। गुजरात नरसंहार और भारत के 16वें संसदीय चुनाव के फैसले को देखने से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि नवफासीवाद और सत्तावादी हिंदुत्व परियोजना- जो सांप्रदायिक नफरत को पोसती है और गरीबों को विभाजित करती है- को अन्याय बढ़ाने वाली आर्थिक नीतियों और उसके जिम्मेदार लोगों के प्रति बरती जाने वाली दंडहीनता छुपाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
यह इस उम्मीद में किया जाता है कि वह भारत को विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक स्थल बनाएगी और भ्रष्ट राजनैतिक और आर्थिक नेतृत्व को समृद्ध करेगी। इन स्थितियों में भारत के संविधान को दोबारा लागू करने के अलावा और रास्ता नहीं बचता।
इसके लिए मोहन भागवत और आरएसएस को देश में घट रही घटनाओं व परिस्थितियों का सही निदान (Diagnosis) करना होगा। अपनी वैचारिक बुनियाद की जगह आरएसएस को वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा के साथ भारत की श्रमण संस्कृति को लागू करना होगा, जो अपने मूल में समावेशी और बहुलतावादी है। शास्त्रार्थ की परंपरा जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
इसकी बुनियादी शर्त है कि मनुस्मृति की जाति आधारित पितृसत्ता का आरएसएस सबसे पहले त्याग करे।
Human Rights Diary के सारे अंक पढ़ने के लिए यहां जाएं