एक विजातीय की जि़ंदगी यानी ‘लाइफ ऑफ ऐन आउटकास्ट’ जाति के प्रश्न पर बनी उस फिल्म का नाम है जिसका ट्रेलर मई दिवस पर स्टूडियो सर्वहारा ने जारी किया है। यह भारत के एक गांव में रहने वाले दलित परिवार की कहानी है जिसे वृत्तचित्र निर्माता स्वतंत्र फिल्मकार पवन के. श्रीवास्तव ने निर्देशित किया है। पवन ‘नया पता’ नाम की एक फिल्म से चर्चा में आए थे और लगातार प्रयोगधर्मी फिल्में बनाने का उपक्रम सार्वजनिक चंदे से करने की कोशिश में जुटे हैं। सोमवार को उन्होंने फिल्म का ट्रेलर जारी करते हुए इसके लिए चंदा जुटाने का एक अभियान भी शुरू किया है जिससे स्टूडियो सर्वहारा की वेबसाइट पर जाकर जुड़ा जा सकता है।
पवन कहते हैं, ”फिल्म की कहानी काल्पनिक है लेकिन कहानी लिखने की जमीन बहुत ठोस है जो मुझे इसी समाज ने मुहैया करवाई है। कहानी समाज के यथार्थ के बहुत करीब है। फिल्म की कहानी एक दलित परिवार के 30 साल के संघर्ष और दमन की कहानी है। फिल्म मुख्य रूप से दलित दमन और धार्मिक असहिष्णुता की बात करती है। इस फिल्म से मेरा एक ही मकसद है कि भारतीय सिनेमा में जाति का विमर्श और संघर्ष मुखर हो।”
”नया पता” बनाने के बाद पवन तीन साल तक एक सार्थक कहानी के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने कई निर्माताओं के चक्कर लगाए लेकिन उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगा। वे कहते हैं, ”बाद में मुझे महसूस हुआ कि मैं गलत रास्ते पर जा रहा था। बहुत साफ़ मामला है कि अगर आपकी कहानी बाजारू नहीं है तो बहुत मुश्किल है किसी प्रोड्यूसर को समझाना। सब बाज़ार का मामला है।”
इस फिल्म को 10 भाषाओं में सबटाइटिल किया जाएगा। पवन ने फिल्म की स्क्रीनिंग भारत के 500 गांवों में करने का फैसला लिया है। उनका मानना है कि रिलीज़ से पहले फिल्म पर जनता का हक़ बनता है जो उसकी वास्तविक दर्शक है।
https://youtu.be/PNk99Q1NIHc
फिल्म के प्रदर्शन के लिए चंदा जुटाने के अभियान की शुरुआत करते हुए पवन ने सामान्य जनता से अपील की है, ”आज के राजनैतिक माहौल में ये एक जरूरी फिल्म है, लेकिन ये सब तभी संभव हो पाएगा जब आपका सपोर्ट मिलेगा। मुझे आपकी मदद की सख्त जरूरत है। आप इस फिल्म को सपोर्ट कीजिये। मैं इस फिल्म को वहां ले जाऊँगा जहां का रास्ता आज का बॉलीवुड का सिनेमा भूल गया है।”
फिल्म को सहयोग करने के लिए यहां जाएं।