इस लेख में हम जंतर मंतर पर जारी पहलवानों के धरने, वहां पुलिस के साथ हुए उनके टकराव, यौन शोषण के उनके आरोपों के बारे ये समझने और समझाने की कोशिश करेंगे कि पिछले एक हफ्ते से भी अधिक समय से गोदी मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए अपने बारे में महानता की गाथा गाते और अपने समर्थन में अहंकार और दबंगई से बोल रहे भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह और उनके समर्थकों के तर्कों में बुनियादी दिक्कत क्या है। लगातार मीडिया जिस तरह से उनको एक रॉबिनहुड की तरह पेश करने में लगी है, उसमें उन पर महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता कहीं पीछे छूट गई है और सबकुछ किसी फिल्म की तरह मज़ेदार और लार्जर दैन लाइफ़ बनाने की कोशिश चल रही है। टीआरपी की दौड़ से इतर जो तर्क हैं, वो हम इस लेख में रख रहे हैं।
बृजभूषण और उनके पक्ष में खड़े लोगों के तर्क में बुनियादी दिक्कतें क्या हैं?
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पहलवानों को धरना देने की क्या ज़रूरत थी?
अव्वल तो धरना देना ज़रूरत ही नहीं है, मौलिक अधिकार भी है। इसलिए क्या ज़रूरत है, इस पर प्रश्न करने का अधिकार किसी को नहीं है। उनको लगता है कि ज़रूरत है तो वो धरना दे रहे हैं। लेकिन आगे की बात करें तो पहलवान स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि उनकी ज़रूरत क्या है अगर आप उसे ज़रूरत मानें तो लेकिन कुछ लोग नहीं भी मानते तो इस देश में तो जंतर मंतर पर ही हिंदू राष्ट्र बनाने, मुस्लिमों से वोटिंग राइट लेने, दंगा करवाने वालों, जनसंहार के आरोपियों, बलात्कारियों और हत्यारों के समर्थन तक में धरने हो गए हैं और तमाम लोग न केवल चुप रहे बल्कि कई बार समर्थन में रहे। और अब वे ही पूछ रहे हैं कि इतनी अहम मांग लेकर धरने पर बैठे पहलवानों को धरना देने की क्या ज़रूरत थी?
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बिना जांच के एफआईआर क्यों होनी चाहिए?
किसी ने भी जांच की बात तो नकारी ही नहीं, सवाल पुलिस के रवैये का है। जिस तरह के आरोप, जिन धाराओं में बृजभूषण के ख़िलाफ़ हैं उनमें एफआईआर हो सकती है। लेकिन पुलिस अदालत में अपनी बात रख चुकी है और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर के आदेश दिए हैं। आपको लगता है कि आपका क़ानूनी ज्ञान, सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं था? चलिए ये भी मान लिया, लेकिन खेल संघ या कहें कि सरकार ने एक जांच समिति बिठाई थी, उसने ही जांच की होगी? न केवल जांच समिति का जांच करने का समय कई महीने बीत गया है बल्कि पहलवानों को धरने पर बैठे हुए भी कई दिन हो गए हैं – तो जांच समिति ही अपनी रिपोर्ट पब्लिक कर देती? आख़िर क्यों नहीं ये रिपोर्ट सार्वजनिक की जा रही है? क्यों ये कहा जा रहा है कि इसमें एक सदस्य ने हस्ताक्षर तक नहीं किए और रिपोर्ट सौंप भी दी गई है…और फिर ऐसे में बिना एफआईआर के पुलिस पर कितना दबाव होगा, बृजभूषण से पूछताछ का और मामले की ईमानदार जांच का, जब कि एफआईआर के बाद भी ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है…
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बृजभूषण के ख़िलाफ़ खिलाड़ी सुबूत क्यों नहीं पेश कर रहे?
किसके सामने सुबूत रखने हैं? भाजपा या बृजभूषण या उनके समर्थकों के सामने या मीडिया के सामने? और क्यों रखने हैं? ज़रा एक बार ये सब लोग क़ानून पढ़ें। क्यों खिलाड़ी बाध्य हैं, पब्लिक डोमेन में सुबूत रखने के लिए और सामने आकर गवाही देने के लिए? न केवल जिस तरह का ये समाज महिलाओं के प्रति है और यौन हिंसा के मामले में उसका रवैया है बल्कि जिस व्यक्ति के ख़िलाफ़ आरोप लगे हैं, वह शक्तिशाली है। उसका एक गंभीर आपराधिक इतिहास रहा है और वह सत्ताधारी पार्टी का सांसद है। ऐसे में क्यों सामने आना चाहिए पीड़ितों को, क्यों सुबूत रखने चाहिए मीडिया के सामने? सिर्फ इसलिए कि कुछ लोग सत्ताधारी पार्टी का किसी भी कीमत पर जाकर समर्थन करना चाहते हैं और आप उनको सार्वजनिक रूप से अपमानित और डिस्क्रेडिट कर देना चाहते हैं। न तो ये लोग, न समाज और न ही मीडिया कोई लीगल एंटिटी है कि उसके सामने साक्ष्य रखे जाएं। जो भी साक्ष्य हैं या नहीं हैं – वो अदालत में पेश किए जाएंगे या जांच करने वाली एजेंसी को दिए जाएंगे…ये सवाल ही ग़लत है..
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बृजभूषण का तर्क कि वो इस्तीफ़ा नहीं देंगे…?
वो सभी जो बृजभूषण के समर्थन में हैं, वो एक बात बहुत बेशर्म दबंगई से कह रहे हैं कि बृजभूषण को आरोप साबित होने से पहले इस्तीफ़ा क्यों देना चाहिए। अव्वल तो किसी भी खेल संघ से ऐसे व्यक्ति का इस्तीफ़ा हो ही जाना चाहिए, जो 11 साल से वहां अध्यक्ष बना बैठा हो। क्योंकि दो टर्म से ज़्यादा उसको लगातार अध्यक्ष होना ही नहीं चाहिए लेकिन फिलहाल इस मामले के नज़रिए से ही बात करें तो सोचिए कि जिस तरह के आरोप हैं, उनमें पहले ही बृजभूषण पर आरोप ही ये हैं कि वो खिलाड़ियों की मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं, वो उन पर हिंसा के आरोपी हैं और जिस तरह की शक्ति एक अध्यक्ष, एक सांसद के तौर पर उनके पास है – उसमें जब तक वो एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, आरोपमुक्त हो जाने तक, वो ये ख़तरा पैदा करते रहेंगे।
दूसरी बात सिर्फ ख़तरा ही नहीं, बृजभूषण शरण सिंह पर जिस तरह के आरोप हैं और इससे उनके और खिलाड़ियों और कुश्ती संघ के कामकाज के बीच एक कन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट पैदा होता है जिसके कारण वो जब तक इस पद पर हैं, खेल और प्रदर्शन के बावजूद इन सभी खिलाड़ियों से भेदभाव किए जाने या इनके उचित अवसर छीन लिए जाने और इनको खेल संघ द्वारा उत्पीड़ित किए जाने का ख़तरा लगातार बना हुआ है।
सीधी सी बात है, जिस व्यक्ति पर खिलाड़ियों ने ऐसे आरोप लगाए हों, वही व्यक्ति उनके ही खेल संघ का अध्यक्ष बना रहे – ये किस तरह की अतार्किक बात है। ये ऐसा ही है कि आपके बच्चे अपने बॉस पर ये आरोप लगाएं और वो अपने पद पर बना रहे, ऐसे में न्याय कैसे होगा और आरोपी क्यों होने देगा? इस तरह की संभावनाओं को ख़त्म करने और न्याय-जांच-कामकाज की प्रक्रिया निष्पक्ष रूप से चलती रहे इसके लिए बृजभूषण या किसी भी आरोपी को पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए।
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पीएम या पार्टी अध्यक्ष कहें तो इस्तीफ़ा दे दूंगा…
बृजभूषण शरण सिंह ने लगातार आरोप लगाया है कि ये यौन हिंसा का नहीं बल्कि राजनैतिक मामला है। दिलचस्प बात ये है कि खिलाड़ी ऐसा कुछ नहीं कह रहे हैं। अब जब वो ये कहते हैं कि प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष कहें तो वह पद छोड़ देंगे तो वो इस मामले का ही नहीं खेल औऱ खेल संघ का भी राजनीतिकरण करते हैं। वो भी बेकार दर्जे का अतार्किक, असंवैधानिक राजनीतिकरण…उनको कोई सामने बिठाकर, बिना उनके ज़ोर से बोले, बिना कविता सुनाए, बिना अपने शरीर में लगी गोलियां गिनाए, बिना अपने गरीब उद्धार के कार्यक्रम की मिसाल दिए पूछे कि प्रधानमंत्री क्यों दखल देंगे किसी खेल संघ के अध्यक्ष के इस्तीफ़े के मामले में? क्या पीएम खिलाड़ी हैं कि खेल संघ के पदाधिकारी?? चलिए आप कहेंगे कि वो देश के पीएम हैं, अच्छा, तो जेपी नड्डा कौन हैं? क्या वो भी सरकार का हिस्सा हैं? वो भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं। एक खेल संघ का अध्यक्ष जिसकी जवाबदेही खेल, ओलंपिक एसोसिएशन, खिलाड़ियों, सरकार के खेल मंत्रालय के प्रति है, वह कहता है कि भाजपा अध्यक्ष कहेंगे तो वह इस्तीफ़ा देगा…बृजभूषण शरण सिंह, आप खेल प्रशासक के तौर पर कुश्ती संघ चला रहे हैं कि भाजपा के नेता की तरह? फिर वे ये कहने का दुस्साहस लाते कहां से हैं कि राजनीति हो रही है, राजनीति न हो, मैं राजनीति का शिकार हूं…वे तो कुश्ती संघ को भाजपा की यूनिट बनाए दे रहे हैं…कल को वे पहलवानों को राजनैतिक पार्टी के मर्सिनरी की तरह इस्तेमाल कर लेंगे…
देखिए इसी मुद्दे पर हमारा ये विशेष वीडियो
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जब बृजभूषण नैतिक मूल्यों, आचार, आरोपों की बात करें…किसी और ये सिखाएं…
जिस नेता की राजनीति की शुरुआत ही हिंसा और अपराध से हुई हो, जिस पर न केवल हत्या के, हत्या की कोशिश के आरोप हों, बल्कि देश को सांप्रदायिकता और उन्माद की आग में झोंकने में अहम भूमिका निभाने वालों में से वो एक हो। जिसका राजनैतिक करियर दबंगई, बाहुबल, अपने पहलवान गुंडों की फौज, अपराधियों को संरक्षण देने और अल्पसंख्यक विरोधी-नफ़रत पर परवान चढ़ा हो, वह नैतिकता की बात करे, वह आचार की बात करे, वह कहे कि आरोप साबित होंगे, तब इस्तीफ़ा दूंगा…बृजभूषण के कई बयान हम आपको पढ़ा भी नहीं सकते हैं लेकिन यह कौन सा समय है, जहां इस तरह के ही लोग नैतिकता, संविधान, मूल्यों की बात करेंगे? जिस तरह के आरोप, जिन लोगों की ओर से बृजभूषण पर लगे हैं, वो दोषी हैं या नहीं – ये हम नहीं कह सकते लेकिन उनका रवैया अपने आप में सिर्फ एक बात करता है कि वह भयंकर पितृसत्तात्मक और सामंती हैं और इसलिए ये मानते हैं कि उनको उनकी गद्दी नहीं छोड़नी है। सिर्फ इसलिए कि अब तक किसी मामले में किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि कोई उनके ख़िलाफ़ बोले, वह संभवतः यह बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहे हैं कि उनके ख़िलाफ़ कोई बोल रहा है…उनका इस्तीफ़ा नहीं होता है तो खेल मंत्रालय को उनको, उनके पद से बर्खास्त करना चाहिए…तब तक, जब तक कि इस मामले में जांच और फ़ैसला न हो जाए…
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इस्तीफ़े के तार्किक आधार
जैसा कि हमने कहा कि जब तक इस तरह का आरोपी अपने पद पर है, खिलाड़ियों के प्रति निष्पक्ष जांच, कुश्ती संघ की ओर से साक्ष्य उपलब्ध कराने की प्रक्रिया और खिलाड़ियों के साथ निष्पक्ष बर्ताव की उम्मीद नहीं की जा सकती है। कुश्ती संघ के प्रोफेश्नल खेल संगठन है और ज़ाहिर है कि खिलाड़ियों को खेलने की फ़ीस भी मिलती ही होगी। साल 2018 में ही भारतीय कुश्ती संघ ने अपना पहला कांट्रेक्ट सिस्टम शुरू किया, यानी कि खिलाड़ियों को खेलने के लिए सालाना फ़ीस या सैलरी देने का एक तंत्र। इस आधार पर ये खिलाड़ी पेशेवर हुए और कुश्ती संघ के पेशेवर संस्थान यानी कि वर्कप्लेस। ऐसे में ये मामला वर्कप्लेस पर यौन शोषण का भी है। अपने बच्चों को रख कर सोचिए कि वर्कप्लेस पर अगर उनके बॉस पर ऐसे आरोप लगेंगे तो आपके हिसाब से प्रक्रिया क्या होनी चाहिए? प्रक्रिया में पहला चरण ही बॉस के इस्तीफ़े का होगा क्योंकि अन्यथा वह जांच और बाकी प्रक्रिया प्रभावित कर सकता है, अपनी शक्ति के दम पर साक्ष्यों से छेड़खानी कर सकता है या फिर प्रक्रिया को लंबित कर सकता है। इसके अलावा उसका बर्ताव शिकायतकर्ता के प्रति निष्पक्ष नहीं होगा।
आप ये जानकर हैरान होंने कि भारतीय कुश्ती संघ की सेक्शुअल हैरेसमेंट कमेटी में सिर्फ एक महिला हैं साक्षी मलिक-जो ख़ुद धरने पर बैठी हैं और बाकी 4 सदस्य पुरुष हैं और वो सब कुश्ती संघ के पदाधिकारी हैं, जिसने इस मामले को लेकर कितनी बैठकें की, इस बारे में तो आप भी जानते ही होंगे…इसके अलावा बृजभूषण शरण सिंह के परिवार के कई पुरुष भारतीय कुश्ती संघ और राज्यों के कुश्ती संघों में अहम पदों पर बैठाए गए हैं ..और निष्पक्षता के साक्ष्य चाहिए आपको?