2019 में वो इसी ट्विटर पर ट्रोल हो रही थी, जहां आज कोई उनको देश का गर्व बता रहा है तो कोई भारत माता की बेटी। लेकिन निखत (या निकहत, जैसा आप पढ़ना चाहें) का कम उम्र में ये लंबा सफ़र, हार-नाउम्मीदी-अपमान और संघर्ष से उतना ही भरा था, जितना किसी आम परिवार से आने वाली एक लड़की का हो सकता था। तेलंगाना की निखत ज़रीन ने महिला वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के फाइनल्स में फ़्लाईवेट फ़ाइनल मुकाबले में थाईलैंड की जितपोंग जुतामास को हरा कर गोल्ड मेडल भारत के नाम कर दिया था।
Our boxers have made us proud! Congratulations to @nikhat_zareen for a fantastic Gold medal win at the Women’s World Boxing Championship. I also congratulate Manisha Moun and Parveen Hooda for their Bronze medals in the same competition. pic.twitter.com/dP7p59zQoS
— Narendra Modi (@narendramodi) May 19, 2022
क्या हुआ था 2019 में?
2019 में वे ट्विटर पर बेहद ही अपमानजनक भाषा और तिरस्कारपूर्ण बातों के साथ ट्रोल की जा रही थी। कारण था, निखत का देश की अब तक की सबसे सफल महिला मुक्केबाज़ मैरीकॉम को चुनौती देना – वो भी खुलेतौर पर सामने आकर। टोक्यो ओलंपिक के लिए विश्व चैंपियन मैरीकॉम को सीधे भेजे जाने पर उन्होंने विरोध जताया और अपनी दावेदारी को खुलेआम ठोंक दिया। निखत ने पहले बॉक्सिंग फेडरेशन में अपनी मांग रखी और वहां से भी निराशा मिलने पर खेल मंत्री किरेन रिजिजू से मैरीकॉम के साथ एक मैच कराने की मांग की। आख़िरकार इसके बाद ओलंपिक के लिए ट्रायल्स शुरू हुए और अंततः निखत का मैरीकॉम से मुक़ाबला हुआ। इसके पहले निखत ने नेशनल चैंपियन ज्योति गुलिया को हराया और फिर मैरीकॉम के सामने फाइनल में पहुंची।
Mary Kom defeated Nikhat Zareen to book her spot in the Olympic qualifiers.
She doesn’t shake Zareen’s hand after the fight 😬😬pic.twitter.com/BiVAw9PCSd
— MMA India (@MMAIndiaShow) December 28, 2019
लेकिन इस मैच में निखत हार गई…वो भी बुरी तरह से। उनको मैरीकॉम ने 1-9 अंकों से हराया और उनके प्रति स्पष्ट नाराज़गी का इज़हार करते हुए, इस मैच के बाद मैरी कॉम ने निखत से हाथ तक नहीं मिलाया। इसके बाद निखत को ट्रोल किया गया। उनको उनके अतिआत्मविश्वास से लेकर, उनके धर्म तक के आधार पर ट्रोल किया गया। निखत पर उस समय क्या बीती होगी, हम बस अंदाज़ा लगा सकते हैं। यहां तक कि निखत ने परेशान होकर मीडियाकर्मियों के फोन उठाने और मैसेज के जवाब देने तक बंद कर दिए।
Mary Kom on not shaking hands with Nikhat Zareen after the bout: Why should I shake hands with her? If she want others to respect her then she should first respect others. I don’t like people with such nature.Just prove your point inside the ring,not outside. https://t.co/TERXuRECMh pic.twitter.com/vwqSvSmgN3
— ANI (@ANI) December 28, 2019
निकहत न केवल ट्रोल हो रही थी, मैरीकॉम ने भी उनसे रिंग में हाथ न मिलाने को जायज़ ठहराते हुए कहा था, “मैं क्यों उससे हाथ मिलाऊं। अगर वो चाहती हैं कि दूसरे लोग उनका सम्मान करें तो उनको भी पहले दूसरों का सम्मान करना होगा। मुझे ऐसे लोग नहीं पसंद हैं। आप अपनी बात को रिंग के अंदर साबित करें, न कि रिंग के बाहर।”
निखत, हार गई थी और उनको ट्रोल करने वाले, उनकी मैरीकॉम के साथ बाउट की मांग को नाजायज़ ठहराते हुए उनको ट्रोल कर रहे थे।
Mary Kom was right by not shaking dirty hands of a disrespectful Zareen who has a condescending attitude towards a great Tribal fighter who thrashed a “superior” mainlander. This wil teach Zareen manners in her future career @MangteC
— Dave (@Zsavi) December 28, 2019
क्या निखत की मांग नाजायज़ थी?
खेल जगत के कई लोगों समेत, ट्विटर पर लगातार हाहाकार मचाए रहने वाले ट्रोल्स, निखत का मज़ाक उड़ाने में लगे थे। मैरीकॉम के रवैये को तर्कसंगत ठहरा रहे थे। निखत पर खेल भावना, सीनियर्स का सम्मान न होने से लेकर धार्मिक, लिंगभेदी और अश्लील टिप्पणियां तक कर रहे थे। निखत बस चुप थी…तो क्या निखत का चुप रहना और इन सबका ये कहना, मैरीकॉम का रवैया इससे जायज़ साबित होता है या फिर निखत की मांग, इससे नाजायज़ साबित हो जाती है? अब जबकि वही सारे लोग, निखत के कसीदे पढ़ रहे हैं – शायद वो तर्क सुन पाएं।
निखत ने जब टोक्यो ओलंपिक्स के लिए फेयर ट्रायल की बात कही तो शायद उस समय दुनिया के किसी भी खेल फेडरेशन के लिए ये ही न्यायसंगत बात थी, न कि किसी खिलाड़ी को उसके अतीत के प्रदर्शन और वरिष्ठता के आधार पर ओलंपिक के लिए चुन लेना। साल 2019 में जब निखत, ओलंपिक में जाने के लिए सबको एक निष्पक्ष मौका देने की मांग कर रही थी, तब वे मैरीकॉम से बेहतर थी कि नहीं, इसका फ़ैसला केवल ट्रायल से ही हो सकता था। उसमें वो जीतें या हारें, इस बात से इस न्यायसंगत बात का वज़न कम नहीं हो जाता।
ये सारा मामला अगस्त, 2019 में शुरू हुआ, जब उस समय 23 साल की निखत उम्मीद कर रही थी कि 51 किग्रा. के वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप ट्रायल्स में वे मैरीकॉम को चुनौती दे सकेंगी। लेकिन अचानक मैरीकॉम को बिना किसी ट्रायल के लिए चुन लिया गया। उन्होंने इसका विरोध किया और कहा कि उनके, वनलाल दुआती के साथ होने वाले मुक़ाबले को चयनकर्ताओं के अध्यक्ष राजेश भंडारी द्वारा रुकवा दिया गया।
इसके बाद वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में मैरीकॉम ने भाग लिया और उनको कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। इसके बाद टोक्यो ओलंपिक के लिए, बॉक्सिंग फेडरेशन द्वारा कहा गया कि विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में गोल्ड और सिल्वर जीतने वाले मुक्केबाज़ों को सीधे ओलंपिक के लिए चुना जाना चाहिए। लेकिन मैरीकॉम ने तो कांस्य पदक जीता था? इसके बाद भी उनका सीधा चयन किया गया और आधार वही बताया गया कि उनके गौरवशाली इतिहास को देखते हुए, उनको ओलंपिक के लिए सीधे चयनित किया जा रहा है। निकहत 2019 में स्ट्रैंड्ज़ा बॉक्सिंग टूर्नामेंट, बुल्गारिया के 70वें संस्करण में गोल्ड जीत चुकी थी।
ऐसे में निखत ने, ये कहने का साहस किया कि सीधे चयन – न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ है। क्या जब वो ये कह रही थी तो उन तमाम नौजवान मेहनती मुक्केबाज़ों की आवाज़ नहीं बन रही थी, जो यही फेयर ट्रायल चाहते थे? उन्होंने फेयर ट्रायल मांगा, उसमें वो मैच खेली और हार गई और जो जीता, वह आगे गया। इससे निखत की मांग कैसे नाजायज़ साबित हो गई? इस पर मैरीकॉम का ये कहना कि ये सीनियर खिलाड़ियों का सम्मान नहीं है, दरअसल खेल भावना के ही ख़िलाफ़ था, न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ था क्योंकि खेल की भावना और न्याय का अपमान कर के, सीनियर खिलाड़ियों का सम्मान कौन सी कसौटी हो सकती है?
आगे की कहानी…
इसके आगे की कहानी ये है कि कोविड के वैश्विक असर से 2020 में टोक्यो ओलंपिक हो ही नहीं सके लेकिन आख़िरकार वे 2021 में हुए। मैरीकॉम टोक्यो ओलंपिक में गई और 51 किलो वर्ग के प्री-क्वार्टर फाइनल में ही कोलंबिया की बॉक्सर वैलेंसिया से 3-2 से हार कर, बाहर हो गई। मैरीकॉम ने इसके बाद रिंग से बाहर रहने का फ़ैसला किया और यहां से निखत के लिए रास्ता खुला। वे लगातार मेहनत कर रही थी और अपनी दावेदारी को मैरीकॉम की जगह साबित करने का ये आदर्श मौका था। उन्होंने एक नए अवतार में वापसी की और फरवरी 2022 में दुनिया के बेहद प्रतिष्ठित स्ट्रैंड्ज़ा बॉक्सिंग टूर्नामेंट, बुल्गारिया के 73वें संस्करण में गोल्ड जीतकर, वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए अपनी दावेदारी साबित की। फ्लाईवेट में वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहुंची और गोल्ड लेकर, साबित किया कि उनसे हाथ मिलाने को लोग तरस सकते हैं।
ONE FOR THE HISTORY BOOKS ✍️ 🤩
⚔️@nikhat_zareen continues her golden streak (from Nationals 2021) & becomes the only 5️⃣th 🇮🇳woman boxer to win🥇medal at World Championships🔥
Well done, world champion!🙇🏿♂️🥳@AjaySingh_SG#ibawwchs2022#IstanbulBoxing#PunchMeinHaiDum#Boxing pic.twitter.com/wjs1mSKGVX
— Boxing Federation (@BFI_official) May 19, 2022
मध्यपूर्व में नौकरी कर के, अपनी बेटी की शिक्षा और खेल के लिए जीवन लगा देने वाले मोहम्मद जमील अहमद की मेहनत और रिश्तेदारों और आसपास के लोगों के ताने सुनकर भी अपनी बेटी के साथ खड़ी और अड़ी रहने वाली परवीन सुल्ताना भी इसके साथ जीत गए हैं। निखत की जीत केवल उनकी अपनी जीत नहीं है। उन्होंने जीतते ही बेहद मासूमियत से ये सवाल किया, “क्या मैं ट्विटर पर ट्रेंड कर रही हूं…ये मेरा सपना था” और हां, उनको 2019 में ट्विटर पर ट्रोल करने वाले ही, उनको ट्रेंड कर रहे थे…उनके लिए तालियां बजा रहे थे…उनको देश की बेटी बता रहे थे…उनको भारत का गर्व बता रहे थे। निखत की लड़ाई केवल रिंग की लड़ाई की कहानी नहीं है, समाज के नियमों-दायरों और सिस्टम के भेदभाव के ख़िलाफ़ खड़े होने और सिर उठाकर तिरस्कार के बावजूद संघर्ष करते रहने की कहानी है। ऐसी कोई भी कहानी, कितनी ही छोटी हो – वह अहंकार, पद और सत्ता की ताक़त और समाज के दकियानूस रवैये पर हमेशा भारी पड़ेगी..बस थोड़ा वक़्त लगेगा।