तमाम महत्वपूर्ण किताबों के लेखक पवन वर्मा भारतीय विदेश सेवा के लिए 1976 में चुने गये थे। तमाम देशों में राजदूत रहे। लेकिन अफसरशाही की सीमा से पार जाकर समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। नीतीश कुमार से प्रभावित पवन वर्मा जेडीयू में शामिल हुए और राज्यसभा में भेजे गये। पर जब ‘संघमुक्त भारत’ का नारा देने वाले नीतीश कुमार मोदी के शरण में चले गये और उन्होंने सीएए और एनआरसी का समर्थन किया तो वे अलग हो गये। उनसे भारतीय लोकतंत्र की मौजूद स्थिति पर बात की सौम्या गुप्ता ने।





























