जम्मू से बिलासपुर तक नेशनल हाइवे नापते प्रवासी मजदूरों की कोरोना-कथा



कोरोना वायरस की रोकथाम को किए गए लॉकडाउन से पहले रोजी-रोटी की तलाश में देश के अन्य राज्यों में गए मजदूर अब अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे हैं. कुछ ही खुशकिस्मत हैं जो अपने घर पहुंच सके हैं. ज्यादातर या तो रास्ते में अटके पड़े हैं, सुनसान हाइवे पर पैदल सड़कें नाप रहे हैं और भूखे प्यासे पुलिस की लाठी खा रहे हैं. मीडियाविजिल ने जम्मू से लेकर बिहार तक और छत्तीसगढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश तक प्रवासी मजदूरों को ट्रैक किया है. कुछ कहानियां मीडिया में पहले से मौजूद थीं, प्रवासी मजदूरों पर शाेध कर चुके अंकुर जायसवाल और मीडियाविजिल के सीनियर रिपोर्टर अमन कुमार ने अपने अपने संसाधनों से कुछ और दर्दनाक कहानियां निकाली हैं.

जयपुर से सुपौल पैदल

बिहार के प्रवासी मजदूर देश के किसी भी कोने में पाये जा सकते हैं. इन्हीं प्रवासियों की जमात में शामिल होने का सपना लिए सुपौल जिले से युवकों का एक समूह कुछ महीने पहले जयपुर आया था. सभी को एक कोल्ड स्टोरेज में नौकरी मिल गयी थी. कोरोनाबंदी के चलते यह कोल्ड स्टोरेज अब बंद कर दिया गया है. इन्हीं युवकों में एक सुधीर के मुताबिक बंदी होने से पहले यहां काम करने वाली लेबर को प्रत्येक दो हजार रुपये देकर छुट्टी कर दी गयी. उनके पास घर लौटने के अलावा और रास्ता नहीं बचा.

दिक्कत तब आयी जब पता चला कि जयपुर कर्फ्यू की चपेट में है. कोई वाहन नहीं चल रहा था. सुधीर अपने दोस्तों के साथ पैदल ही बिहार निकल लिए. गूगल के मुताबिक जयपुर से सुपौल की सड़क मार्ग से दूरी 1205 किलोमीटर है और सामान्य गति से पैदल चलने पर इस दूरी को तय करने में कुल 244 घंटे लग जाते हैं. 244 घंटे का मतलब है लगातार बिना रुके चलते हुए भी दस दिन से ज्यादा.

हिसाब बुरा नहीं था। दस की जगह पंद्रह दिन भी लगाएं तो कोरोना महामारी के अपने चरम पर पहुंचने तक ये युवक सुपौल पहुंच सकते थे. सवाल है कि उस पेट का क्या करें, जिसकी ताकत से सड़क नापनी है. घर के लिए आज से पांच दिन पहले 21 मार्च को जयपुर से निकले ये युवक 24 मार्च को आगरा पहुंचे यानी चार दिन में कुल 232 किलोमीटर का रास्ता इन्होंने नाप दिया.

इस पूरे रास्ते में खाने और पीने का कुछ भी सामान नहीं मिला. वे भूखे पेट चलने को मजबूर थे. सुधीर ने जब हमसे फोन पर बात की तो वे अपने गांव से  करीब 1000 किलोमीटर पीछे थे.

सुधीर ने बताया, “रास्ते में जो मिल जाता है, उसी से पेट भर ले रहे हैं”.

आगरा से आगे उन्हें अभी पूरा उत्तर प्रदेश पार करना है, लेकिन यूपी से जैसी तस्वीरें आ रही हैं उन्हें देखकर लगता नहीं कि यूपी पुलिस उन्हें सीधे चलने देगी क्योंकि घर लौट रहे मजदूरों को रास्ते में पुलिस की प्रताड़ना का भी शिकार होना पड़ रहा है. सोशल मीडिया में कई ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें पुलिस ज्यादती करती दिख रही है. ग्वालियर से पैदल चलकर बदायूं पहुंचे मजदूरों को रेंगने पर मजबूर करती उत्तर प्रदेश पुलिस का एक वीडियो ट्विटर पर आया है जिसे देखकर शक होता है कि सुधीर और उनके दोस्त अपनी मंज़िल तक पहुंच भी पाएंगे या नहीं.

दिल्ली-यूपी वाला NH-24

उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में रहने वाले दया से हमने फोन पर बात की. उन्होंने हाइवे से पैदल लौटने वाले कई लोगों को खुद देखा है. आसपास के इलाके में काम करने गये कई लोग भी पैदल अपने गांवों की तरफ लौट रहे हैं, लेकिन ज्यादा बड़ी संख्या उन लोगों की है जो दिल्ली-गाजियाबाद से मोटरसाइकिलों से लौट रहे हैं.

दिल्ली से उत्तर प्रदेश ले जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर जो नज़ारा है, उसे वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने कैद कर के सोशल मीडिया पर डाला है. उन्होंने एनएच-24 पर जाकर घर लौट रहे लोगों से बातचीत की. उनमें से कई लोग आजमगढ़, लखनऊ की तरफ लौट रहे हैं. रास्ते में जा रहे अधिकतर लोगों में एक डर है कि पुलिसवाले पीट न दें. इससे बचने के लिए कई लोग कच्चे रास्तों से जा रहे हैं.

अजीत अंजुम से बात करते हुए दिल्ली के मंडावली में पीओपी का काम करने वाले एक मज़दूर शिवम ने कहा, “मज़दूरी करते हैं. रोज कमाते और रोज खाते हैं. तीन दिन से भूखे हैं, क्या करेंगे यहां रहकर?”

आसपास रैन बसेरे में जाने की बात पर वह कहते हैं, “नहीं है न रैन बसेरा. बाहर निकलने पर पुलिस वाले डंडे से मारते हैं. रूम से बाहर न निकलो. खाने के लिए कुछ नहीं है. जहां 26 रुपये किलो आटा था वहां अब 50 रुपये किलो हो गया. कमाई होनी नहीं है, क्या खाएंगे”?

कुछ लोग घर तो जाना चाह रहे हैं लेकिन हालात देखकर उन्हें हिम्मत नहीं हो रही. एनसीआर में काम करने वाले प्रतापगढ़ के बब्लू से हमने बात की. उनके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं जिनको संक्रमण से ज्यादा खतरा है. लॉकडाउन के बाद से ही बब्लू घर जाने के लिए बेचैन हैं. वे कहते हैं कि बिना काम करते हुए दिल्ली में रहना बहुत बड़ी मुसीबत है. उनके पास घर जाने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है.

बब्लू ने बताया, “राशन की कीमतें इतनी बढ़ गयी हैं कि यहां रुकने का कोई मतलब नहीं. पत्नी और बच्चों को छोड़कर रैन बसेरों में भी नहीं जा सकता. अगर जाता भी हूं तो बच्चों पर खतरा बढ़ जाएगा”.

जम्मू से अररिया पैदल

बिहार के अररिया जिले के खुर्शीद ने जम्मू के पुंछ से पैदल निकलने की हिम्मत की थी. पुंछ से अररियाकी दूरी 1900 केलोमीटर है लेकिन खुर्शीद निकल लिए. अब तक वे उसी जिले में फंसे हुए हैं. उनके मालिक ने दो दिन पहले छुट्टी कर दी थी, लेकिन जब तक वे निकल पाते उससे पहले ही नाकाबंदी कर दी गयी और वे फंस गये.

वे बताते हैं कि रुकने का इंतजाम तो सरकार की तरफ से किया गया है लेकिन खाना अपने पैसों का खा रहे हैं.

मीडियाविजिल ने छत्तीसगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता प्रियंका शुक्ला से फोन पर बात की, जिन्होंने बिलासपुर में अटके करीब 250 मजदूरों का मुद्दा दो दिन पहले उठाया था. वे बताती हैं कि अलग-अलग जगहों पर फंसे हुए लोगों की मदद के लिए लगातार फोन आ रहे हैं. इनमें ट्रक चलाने वालों की संख्या ज्यादा है. वे कहती हैं कि अधिकांश ट्रक वाले ऐसे हैं जो सामान लेकर आये थे या फिर लेकर जा रहे थे जो अब फंस गये हैं. लॉकडाउन के बाद उन्हें अपनी गाड़ी वहीं खड़ी करनी पड़ी है. अलग-अलग जगह पर खड़ी कई ट्रकों में लदा सामान जल्दी खराब होने वाला है जो पूरा बेकार हो जाएगा.

एक संपर्क के माध्यम से हमने छत्तीसगढ़ में अटके उत्तर प्रदेश के एक ट्रक ड्राइवर त्रिलोकी से बात की. त्रिलोकी चित्रकूट जिले के रहने वाले हैं. उनकी गाड़ी सीमेंट और फलों की ढुलाई के काम में चलती है. जिस दिन लॉकडाउन की घोषणा हुई उस दिन उन्होंने गाड़ी में सीमेंट लादा हुआ था. वे अब दो दिन से छत्तीसगढ़ के जांजगीर के पास फंसे हुए हैं.

पुलिस वाले गाड़ी छोड़कर जाने को कह रहे हैं और गाड़ी मालिक सामान की डिलीवरी देने को. ऐसा न करने पर हर्जाना वसूलने को कहा जा रहा है.

त्रिलोकी ने बताया, “अब कहां जाएं, न ट्रक कहीं जा सकता है और न हम”.

बिलासपुर में अटके चार राज्यों के मजदूर

प्रवासी मजदूरों के साथ सबसे बड़ा मानवीय संकट छत्तीसगढ़ में सामने आया है जहां एर्नाकुलम एक्सप्रेस से आये लगभग 250 मजदूरों के बिलासपुर में फंसे होने की ख़बर दो दिन पहले आयी थी. इनमें 147 मजदूर झारखंड के थे, बाकी मजदूर बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के थे. अपने घर लौटने के लिए इन मजदूरों के पास न कोई साधन था और न ही भोजन.

बीबीसी के लिए काम करने वाले छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल बताते हैं कि 24 मार्च की शाम उनको पता चला कि बिलासपुर में कई मजदूर फंसे हुए हैं जो अपने घर लौट रहे थे. परिवहन के साधन बंद कर दिये जाने से ये लोग रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर भटक रहे हैं जिनको पुलिस वाले परेशान कर रहे हैं. मामले का संज्ञान लेते हुए आलोक पुतुल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इस बाबत सूचनी दी और इनके घर लौटने के इंतजाम करने को कहा.

मीडियाविजिल से बात करते हुए आलोक पुतुल ने बताया कि अभी तक केवल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ मिलकर मजदूरों के घर लौटने की व्यवस्था करवायी है. किसी और राज्य सरकार ने इस मसले में दिलचस्पी नहीं दिखायी जबकि संबंधित राज्यों से मदद के लिए कई बार अनुरोध किया जा चुका है.

प्रियंका शुक्ला ने मीडियाविजिल से फोन पर बात करते हुए बताया कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से बात करके मजदूरों को घर भेजने का इंतजाम करवाया है. झारखंड के मजदूर अपने घर लौट गये हैं. उम्मीद है बचे हुए राज्य भी मामले का जल्द ही संज्ञान लेंगे और ये लोग भी घर लौट पाएंगे. जब तक ऐसा नहीं होता है, छत्तीसगढ़ की सरकार ने इन लोगों के रुकने और खाने का इंतजाम बिलासपुर के त्रिवेणी सभागार में कर दिया है.

फिलहाल 100 के आसपास मजदूर अब भी वहां फंसे हुए हैं. फंसे हुए लोगों में सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल से 50, असम से 8, बिहार से 17, मध्यप्रदेश से 4, नेपाल से 1 और उत्तर प्रदेश से 3 मजदूर हैं.


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