इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक पुलिसकर्मी की जमानत याचिका खारिज कर दी। यह पुलिसकर्मी हिरासत में एक व्यक्ति को जान से मारने का आरोपी है। कोर्ट ने ऐसे अपराधों को चिंता का विषय बताया। दरअसल, यह मामला कई वर्षों पहले पुलिस हिरासत में ओमप्रकाश गुप्ता की बेरहमी से पिटाई के कारण हुई मृत्यु का है।
हाईकोर्ट ने बुधवार को ज़मानत याचिका खारिज करते हुए कहा, पुलिस हिरासत में व्यक्ति के साथ हिंसा और मौत, हमेशा से ही सभ्य समाज (civilized society) के लिए चिंता का विषय रहा है। इस मामले पर जस्टिस समित गोपाल ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय का हवाला देते हुए कहा की कोर्ट ने पुलिस हिरासत में मौत पर नाराज़गी जताते हुए आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
रुकने का नाम नही ले रही हिरासल में मौतें…
हालांकि कोर्ट के ऐसे फैसले के बाद भी हिरासत में मौत की घटनाए, या पुलिस द्वारा मासूमों पर अत्याचार जैसे मामले रुकने का नाम नही ले रहें हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने संसद में यह खुलासा किया था कि पिछले तीन वर्षों के दौरान पुलिस हिरासत में 348 लोगों की, वहीं न्यायिक हिरासत (judicial custody) में 5,221 लोगों की मौत हो गई। केवल उत्तर प्रदेश में ही 2018 से 2020 के दौरान 23 लोगों की पुलिस हिरासत में और 1,295 लोगों की न्यायिक हिरासत में मौतें हुईं हैं।
हिरासत में बेरहमी से पीटा गया, इसी कारण थाने में मौत हुई..
जिस मामले में हाई कोर्ट ने पुलिसकर्मी शेर अली की ज़मानत याचिका खारिज की इस मामले में शिकायतकर्ता संजय कुमार गुप्ता ने आरोप लगाया था कि 28 दिसंबर, 1997 को कुछ पुलिसकर्मी उनके घर आकर उनके पिता गोरखनाथ उर्फ ओम प्रकाश गुप्ता को अपने साथ ले गए। जिसके बाद पुलिसकर्मियों ने संजय को बताया कि उनके पिता की हृदय गति रुकने से मौत हो गई है। लेकिन संजय ने पुलिस के बयान को झुठलाते हुए पुलिस पर आरोप लगाया कि उनके पिता को हिरासत में बेरहमी से पीटा गया, जिस कारण थाने में ही उनकी मौत हो गई।
इस मामले में शेर अली(पुलिसकर्मी) के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 364 (अपहरण या हत्या के लिए अपहरण), 304 (गैर इरादतन हत्या) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत FIR दर्ज कराई गई थी।
CJI ने कहा था मानवाधिकारों का हनन सबसे अधिक पुलिस थानों में..
आपको बड़ा दें की इसी महीने की शुरुआत में ही नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (NALSA) के वीजन और मिशन मोबाइल ऐप और डॉक्युमेंट की शुरुआत करते हुए, भारत के चीफ जस्टिस (CJI) एनवी रमना ने एक बयान दिया था जिसमे उन्होंने पुलिस स्टेशनों में होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा की हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पुलिस थाने में तुरंत कानूनी मदद नहीं मिल पाती है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था की मानवाधिकारों का हनन सबसे अधिक पुलिस थानों में ही होता है।
चीफ जस्टिस एनवी रमना की यह बातें इतना समझने के लिए काफी हैं की देश में पुलिस का क्या हाल है। भले ही पुलिस जनता की हिफाज़त के लिए है, लेकिन इस बात को भी नही नकारा जा सकता की पुलिस भी कई अपराधों में भागीदार होती है। चाहे वह किसी बेगुनाह की FIR ना दर्ज करना हो, हिरासत में आरोपियों के साथ जानवरों जैसा सुलूक करना हो, किसी गरीब से कार्यवाही के नाम पर पैसा ऐंठना हो या फिर पीड़ितों के साथ ही अपराधियों वाला व्यवहार करना हो, पुलिस के ऐसे कई वीडियो बराबर सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते है।