मंगलवार की रात 8 बजे जब देशव्यापी बंद की प्रधानमंत्री ने घोषणा की, उसके एक दिन पहले ही आने वाले दिनों की आहट में दिल्ली के एक सब्जी विक्रेता संतराम ने सब्जी का स्टॉक कर लिया था. अब वे पछता रहे हैं. बंद की वजह से सब सब्ज़ियां बेकार हो गईं। ठेकेदार का पैसा देने का संकट आ खड़ा हुआ है. संतराम कहते हैं, “हम लोग रोज कमाकर खाने वाले लोग हैं अगर लंबे समय तक यही हाल रहा तो दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाएंगे”.
जिस देश में तीन-चार दिन तक चूल्हा न जलने से पूरा का पूरा परिवार भुखमरी का शिकार हो जाता हो, वहां पूरे 21 दिनों की तालाबंदी से सबसे ज्यादा संकट आने वाला है तो उन मजदूरों पर, जो रोज़ की दिहाड़ी कमाकर खाते हैं और अगले दिन फिर काम की तलाश में निकल जाते हैं. इतना बड़ा फैसला लेने से पहले सरकार ने इन लोगों के बारे में कुछ सोचा भी है या नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इन मजदूरों से बात कर के समझ आता है कि कोरोना से ज्यादा खतरनाक इनके लिए ये लॉकडाउन है. कोरोना एक बार को छोड़ भी दे तो ये देशव्यापी बंदी इन्हें लील जाएगी.
नोएडा में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले देवेंद्र कहते हैं कि पिछले चार दिन से उन्होंने एक पैसे का काम नहीं किया है. “करते भी कैसे, सबकुछ तो बंद है. अगर लंबे समब तक यही हाल रहा तो बच्चे भूख से मर जाएंगे.
योगी सरकार की नई घोषणा के बारे में देवेंद्र कहते हैं कि उनको इसकी जानकारी नहीं है. अगर होती भी तो क्या होता? सरकारी सहायता लेने के लिए उनके पास जरूरी कागज़ात ही नहीं हैं.
संतराम और देवेंद्र जैसे लाखों लोग हैं जिनको अपनी रोजी रोटी की चिंता सता रही है.
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दिहाड़ी और रेहड़ी-पटरी वाले मजदूरों की मदद की घोषणा की है. प्रदेश सरकार 20.37 लाख निर्माण श्रमिकों और 15 लाख दिहाड़ी मजदूरों को उनकी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 1000-1000 रुपये प्रतिमाह का भत्ता देगी. इसके अलावा प्रदेश के 1.65 करोड़ गरीब और जरूरतमंद परिवारों को एक महीने का राशन 20 किलो गेहूं और 15 किलो चावल मुफ्त दिया जाएगा.
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के प्रेमनाथ राय ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. मीडियाविजिल से बात करते हुए प्रेमनाथ ने कहा कि सरकार द्वारा मदद की ऐलान सकारात्मक कदम है लेकिन यह नाकाफी है. उन्होंने बताया कि सरकार ने केवल पंजीकृत मजदूरों के लिए इस मदद की घोषणा की है, जबकि प्रदेश में बड़ी आबादी है जिसका पंजीकरण या फिर उनका नवीनीकरण नहीं हुआ है.
भारतीय मजदूर संघ के अनुमान के आधार पर प्रदेश में दिहाड़ी मजदूर रेहड़ी-पटरी वालों की संख्या एक करोड़ या उससे ज्यादा हो सकती है जबकि सरकार केवल 35 लाख लोगों को मदद देगी. बाकी लोग क्या करेंगे, इस पर सरकार को सोचना चाहिए.
मजदूरों का पंजीकरण न होने के सवाल पर प्रेमनाथ राय कहते हैं कि ऐसा इसलिए है कि सरकार द्वारा खोले गए जनसेवा केंद्रो पर ही पंजीकरण कराया जा सकता है. पंजीकरण केन्द्र इसके लिए दो सौ रुपये तक वसूलते हैं. अब ऐसे में कौन मजदूर पंजीकरण कराएगा जबकि उसकी दिन भर की कमाई ही बमुश्किल दो-तीन सौ रुपये हो? योजना की घोषणा से ज्यादा जरूरी है यह कि इसको कितनी जल्दी और कैसे लागू किया जाता है.
भारतीय मजदूर संघ की राष्ट्रीय इकाई के सदस्य सुखदेव प्रसाद मिश्रा कहते हैं कि मजदूरों के हित के लिए सरकार का यह फैसला सराहनीय है, लेकिन सवाल यह है कि सरकार कितने मजदूरों को धनराशि देगी क्योंकि असंगठित मजदूरों की संख्या एक करोड़ से अधिक है. क्या इसमें दिहाड़ी मजदूरों के अलावा लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योगों के मजदूरों को भी शामिल किया जाएगा? आपदा से तो सभी प्रभावित हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में वृद्धावस्था पेंशन से लाभान्वित होने वाले लोगों की संख्या 46.97 लाख, दिव्यांग पेंशनधारी लोगों की संख्या 10.76 लाख और विधवा पेंशन पाने वोलों की संख्या 26.10 लाख है. प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार श्रम विभाग के अंतर्गत पंजीकृत 20.37 लाख श्रमिकों में सिर्फ 5.97 लाख श्रमिकों के पास बैंक एकाउंट उपलब्ध है. इसके अलावा ऐसे मजदूरों की संख्या भी लाखों में है, जो कहीं पंजीकृत नहीं हैं. ऐसे में सभी श्रमिकों को इस योजना का लाभ कैसे मिलेगा, यह एक बड़ा सवाल है.
प्रदेश सरकार का कहना है कि जिन श्रमिकों के बैंक खाते नहीं हैं, तुरंत उनके खाते खोले जाएंगे. शहरों में घुमंतू प्रकृति के लोगों जैसे- ठेला, खोमचा आदि लगाने वाले लगभग 15 लाख श्रमिकों के बैंक डिटेल का डाटाबेस बनाकर एक हजार रूपए उनके बैंक खातों में सीधा भेजा जाएगा. इसके अलावा ऐसे शहरी मजदूरों के पास राशन कार्ड की सुविधा नहीं होती क्योंकि उनका घर गांवों में होता है. योगी सरकार ने कहा है कि ऐसे लोगों का तत्काल राशन कार्ड भी बनवाया जाएगा ताकि उन्हें मुफ्त खाधान्न योजना का भी लाभ मिल सके.
सरकार की ही बात मानी जाए तो ये मोदी सरकार की जनधन योजना पर बट्टा है. केंद्र से लेकर प्रदेश तक की सरकारों ने वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को लेकर जनधन योजना पर खूब गाल बजाये थे. जब सरकार पहले ही सबके जीरो बैलेंस के खाते खुलवा चुकी है तब ये पंद्रह लाख लोग कौन हैं जिनके खाते खोलने की बात सरकार कर रही है?
सरकार की इस घोषणा में मनरेगा के तहत कार्य करने वाले मजदूरों का कोई जिक्र नहीं किया गया है जबकि उत्पन्न हुई परिस्थितियों को देखते हुए स्वभाविक है कि मनरेगा में काम करने वाले मजदूर भी इससे प्रभावित होंगे.
भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने कोरोना संकट के मद्देनजर दिहाड़ी व मनरेगा मजदूरों को भरण-पोषण भत्ता के रूप में 1000 रु. प्रतिमाह की सरकारी सहायता को नाकाफी बताया है. पार्टी ने सरकार से राज्य की विशाल जनसंख्या के अनुरूप पर्याप्त आवंटन के साथ एक ‘कोरोना आपदा कोष’ बनाने की मांग की है. पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि दिहाड़ी मजदूरों को मासिक गुजारा राशि बढ़ा कर कम-से-कम 15000 रु. करने चाहिए.
इस हालात में राज्य सरकारों ने भी अपने तरीके से मदद का ऐलान किया है. इसमें केरल, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ की सरकारें प्रमुख हैं जिन्होंने अपने नागरिकों को सहायता उपलब्ध कराने की घोषणा की है. हरियाणा सरकार पंजीकृत निर्माण मजदूरों, बीपीएल परिवारों को हर महीने 4500 रुपये देगी। इनको अप्रैल का राशन फ्री मिलेगा. दिहाड़ी मजदूरों, रिक्शा चालकों, स्ट्रीट वेंडर्स को जिलों में डीसी के पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा. उन्हें भी 4500 रुपये हर महीने मिलेंगे. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने डिजिटल प्रेस कांफ्रेंस में ये घोषणाएं की हैं.
दिल्ली सरकार ने भी राज्य के 72 लाख लोगों के लिए सरकारी सहाएता का ऐलान किया है. केजरीवाल ने घोषणा करते हुए बताया कि सरकार दिल्ली के 72 लाख लोगों को 7.5 किलो राशन मुफ़्त देगी और 8.5 लाख लोगों को पांच हज़ार रुपए पेंशन देगी. सरकार ने नाइट शेल्टरों में मुफ़्त खाने की व्यवस्था शुरू की है. कोई भी व्यक्ति यहां जाकर खाना खा सकता है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने लॉकडाउन की स्थिति से निपटने और राज्य के लोगों को मदद मुहैया कराने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के राशन कार्डधारकों को अप्रैल और मई के राशन का एकमुश्त वितरण करने का निर्णय लिया है. इसके लिए खाद्य विभाग द्वारा आवंटन जारी करते हुए अंत्योदय, प्राथमिकता और अन्नपूर्णा श्रेणी के राशनकार्ड धारकों को अप्रैल एवं मई 2020 में चावल के साथ नमक और शक्कर का भी एकमुश्त वितरण करने के निर्देश जारी किए गए हैं. मिड-डे मील के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था की गयी है. मध्याह्न भोजन हेतु 40 दिन का सूखा दाल और चावल बच्चों को स्कूल की तरफ से दिया जाएगा. प्राथमिकशाला के प्रत्येक बच्चे को 4 किलोग्राम चावल और 800 ग्राम दाल तथा उच्चतर माध्यमिकशाला के प्रत्येक बच्चे को 6 किलोग्राम चावल और 1200 ग्राम दाल दी जाएगी.