एबीपी के मराठी चैनल एबीपी माझा के ख़िलाफ़ इन दोनों सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त कैंपेन चल रहा है। लोगों का आरोप है कि एबीपी माझा पूरी तरह से बीजेपी की गोद में बैठ गया है। इसलिए इसका बहिष्कार किया जाना चाहिए।
आरोप है कि एबीपी ने भुसारे की पिटाई को तवज्जो नहीं दी। यही नहीं, क़र्ज़माफ़ी के लिए चल रहे विपक्षी पार्टियों के आंदोलन तथा संघर्षयात्रा को भी माझा चैनल नकारात्मक तरीक़े से पेश कर रहा है। मुख्यमंत्री ने क़र्ज़ माफ़ करने से साफ़ इंकार कर दिया है। एबीपी के रुख के ख़िलाफ़ तरह-तरह की तस्वीरों और हैशटैग के ज़रिये एबीपी माझा के बहिष्कार की अपील जारी की जा रही है।
इस सिलसिले में ट्विटर पर जैसी तल्ख़ी देखी जा रही है, वह एबीपी ही नहीं तमाम दूसरे चैनलों के लिए भी ख़तरे की घंटी है..
संभव है कि सोशल मीडिया में एबीपी विरोधी अभियान के पीछे विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं का हाथ हो। ख़ासतौर पर शिवसेना जिस तरह इस मुद्दे पर सरकार के ख़िलाफ़ मुखर है, यह उसका असर भी हो सकता है। लेकिन एबीपी के संपादकों को दिल पर हाथ रखकर यह तो पूछना ही चाहिए कि आख़िर सांसद का कुत्ता उनके लिए किसी किसान से ज़्यादा अहम कैसे हो गया है। यह भी कि वे ‘पक्ष’ कैसे हो गए ?
बर्बरीक