ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी का तीसरा कार्यकाल भी नफ़रत की भेंट चढ़ जाएगा। उनके कार्यकाल के पहले साल में 25 बेगुनाह मुस्लिमों की जान हेड क्राइम ने ले ली।ये रिपोर्ट है सिविलि राइट्स के लिए काम करने वाली संस्था एपीसीआर की है।एपीसीआर ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद नफ़रती भाषण देते हैं और बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों ने त्योहारों को धार्मिक उन्माद फैलाने का ज़रिया बना लिया है।
पीएम मोदी नारा देते हैं ‘सबका साथ–सबका विकास का’, लेकिन असलियत है कि उनके राज में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ एक ख़ूनी अभियान चल रहा है। यह निष्कर्ष है यह एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) की ताजा रिपोर्ट का।एपीसीआर ने नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के पहले साल—7 जून 2024 से 7 जून 2025— के दौरान घटी घटनाओं का विश्लेषण करके जो रिपोर्ट तैयार की है, उससे शक़ होता है कि यह महात्मा गाँधी का देश है। यह वही देश है जिसका संविधान डा.आंबेडकर ने लिखा और हर नागरिक को अपना धर्म मानते हुए सर उठाकर जीने का अधिकार दिया। ये रिपोर्ट बताती है कि भारत में न संविधान का शासन है न क़ानून का। सत्ता के संरक्षण में जिसको चाहे निशाना बनाया जा सकता है। खुले आम नफ़रत फैलाई जा सकती है।
APCR की रिपोर्ट बताती है कि 7 जून 2024 से 7 जून 2025 के बीच देश में 947 नफरती घटनाएँ दर्ज की गईं। इनमें 602 हेट क्राइम्स और 345 हेट स्पीच शामिल हैं। 419 घटनाओं में 1,460 मुस्लिम निशाना बने, जिनमें 25 की हत्या हुई। 173 शारीरिक हमले, 62 नाबालिग बच्चों पर अत्याचार, और 10 बुजुर्गों को नहीं बख्शा गया।
सबसे ज़्यादा हेड क्राइम योगी आदित्यनाथ के शासन वाले उत्तर प्रदेश में हुए। यहाँ 217 हेट क्राइम्स के साथ सबसे ज्यादा हिंसा हुई, इसके बाद मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र। यह सब बीजेपी शासित राज्यों में हुआ। क्या यह महज इत्तफाक है, या सत्ता की शह पर हो रहा सुनियोजित अत्याचार?
23 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमला हुआ। आतंकियो ने नाम पूछकर निर्दोषों को मारा। उनका इरादा था कि देश भर में हिंदू मुसलमानों को मारें ताकि देश में गृहयुद्ध जैसे हालात बन जायें। देश ने तो समझदारी दिखाई। आतंकियों के इरादों को सफल नहीं होने दिया लेकिन हिंदुत्ववादी संगठनों ने आतंकियों के इरादे को सफल बनाने का काम किया।
पहलगाम हमले के बाद मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का सैलाब आ गया। दो हफ्तों में 87 घटनाएँ, जिनमें 136 मुस्लिम निशाना बने। नैनीताल में मुस्लिम दुकानों पर हमले, अंबाला में मोहम्मद शादाब की दुकान तोड़ी गई। मसूरी में कश्मीरी शॉल विक्रेताओं को पीटा गया और भगाने की धमकी दी गई। हिंदू रक्षा दल और बजरंग दल ने खुलेआम हिंसा को हवा दी। एक गौ–रक्षक समूह ने तो पहलगाम का बदला लेने के लिए 2,600 और हत्याएँ करने की धमकी दी। और सबसे शर्मनाक बात ये रही कि पुलिस ने सिर्फ 13% मामलों में FIR दर्ज की। यह क्या दर्शाता है? यह सत्ता की मिलीभगत और कानून के मखौल का उदाहरण है!
APCR की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान 345 हेट स्पीच हुईं, जिनमें से 178 बीजेपी से जुड़े लोगों ने दिए। और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद 5 नफरती भाषण दिए, जिनमें 110 इस्लामोफोबिक टिप्पणियाँ शामिल हैं। 63 भाषण बीजेपी के मुख्यमंत्रियों और 71 अन्य निर्वाचित नेताओं ने दिए। 21 विश्व हिंदू परिषद और 20 बजरंग दल ने दिए। दो जज और एक गवर्नर भी इस नफरत के खेल में शामिल थे। बीते लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 21 अप्रैल 2024 को बांसवाड़ा, राजस्थान में पीएम मोदी ने मुस्लिमों को “घुसपैठिए” और “ज्यादा बच्चे पैदा करने वाला समुदाय” कहा। क्या देश का प्रधानमंत्री इस तरह की सांप्रदायिकता फैलाएगा?
रिपोर्ट बताती है कि रामनवमी, होली, नवरात्रि, गणेश चतुर्थी जैसे हिंदू त्योहार अब मुस्लिमों के लिए खौफ का पर्याय बन गए हैं। जोधपुर में रामनवमी जुलूस में एक मुस्लिम व्यक्ति को जंजीरों से बाँधकर प्रदर्शन किया गया। बरमेर और तेलंगाना में पूजा स्थलों को तोड़ा गया। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में गौ–रक्षा और सामाजिक बहिष्कार के नाम पर हिंसा आम हो गई। APCR की रिपोर्ट कहती है कि चुनावी माहौल में नफरत और हिंसा चरम पर थी। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री ने 14 नफरती भाषण दिए। यह देश का लोकतंत्र नहीं, सांप्रदायिक तानाशाही है!
मोदी सरकार में बुलडोजर जस्टिस मुस्लिमों के खिलाफ हथियार बन गया है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में मुस्लिमों के घर और दुकानें बिना कानूनी प्रक्रिया के तोड़े गए। जबलपुर में एक ईसाई पादरी को पुलिस स्टेशन में ही हमला झेलना पड़ा। APCR की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 13% मामलों में FIR दर्ज हुई, जो पुलिस की निष्क्रियता और पक्षपात को दर्शाता है। अमरोहा, उत्तर प्रदेश में एक नर्सरी छात्र को पारंपरिक मुस्लिम पोशाक पहनने के लिए स्कूल से निलंबित किया गया। रतलाम, मध्य प्रदेश में तीन मुस्लिम बच्चों पर स्कूल में हमला हुआ। यह देश का सामाजिक ताना–बाना तोड़ रहा है।
इस नफरत का असर सिर्फ मुस्लिमों तक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब होने से निवेश और व्यापार प्रभावित हो रहा है। मुस्लिमों, ईसाइयों, दलितों, और आदिवासियों के खिलाफ हिंसा ने सामाजिक तनाव को बढ़ाया है। पुलिस और न्याय व्यवस्था की निष्क्रियता ने कानून के शासन को कमजोर किया है। अमेरिका के USCIRF और अन्य संगठनों ने भारत को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए कटघरे में खड़ा किया है।
यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने 2025 की अपनी रिपोर्ट में भारत को विशेष चिंता का देश घोषित किया। इसने कहा कि मोदी के तीसरे कार्यकाल में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा और गौ–रक्षा के नाम पर हत्याएँ बढ़ी हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले और नफरती भाषणों ने भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल किया है। USCIRF ने साफ कहा कि बीजेपी शासित राज्यों में संस्थागत भेदभाव और हिंदुत्ववादी संगठनों को सत्ता का समर्थन मिल रहा है। यह भारत के लिए शर्मिंदगी की बात है।
एपीसीआर से लेकर यूएससीआईआरएफ तक की रिपोर्टें बता रही हैं कि भारत में सांप्रदायिकता का नंगा नाच हो रहा है। और यह सब सरकार के संरक्षण में हो रहा है। जब संसद के अंदर बीजेपी के सांसद धार्मिक घृणा से भरे शब्दों में विपक्ष के मुस्लिम सांसद को संबोधित करें, केंद्रीय मंत्री ही नहीं प्रधानमंत्री भी नफ़रती भाषण दें तो समझ जाना चाहिए कि देश को एक गंभीर बीमारी हो गयी है।
जिस हिंदू धर्म के नाम पर यह सब हो रहा है, यह उसके भी विरुद्ध है। उपनिषदों मे कहा गया है
अतः निज: परोवेति गणना लघु चेतसाम
उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम।
यानी ये अपना है, ये पराया ऐसा सोचना नीच लोगों का काम है। उदार चरित के लोगों के लिए तो पूरी धरती ही एक परिवार है।
