विज्ञान के टॉपर बच्चे और बारिश के लिए हवन करता देश!

संजय श्रमण
विज्ञान Published On :


पिछले साल की बात है, एक मित्र के घर बारहवीं क्लास में टॉप किये एक बच्चे से बात हो रही थी. वो अपना कुत्ता लेकर उसके साथ खेल रहा था, अचानक उसका पैर एक किताब पर लगा और उसने “किताब के पैर छुए” कान भी पकड़े. खेलते हुए उसका पैर कुत्ते को भी लगा, उसने फिर कुत्ते के प्रति भी क्षमा व्यक्त की, मैंने पूछा कि ये क्यों? उसने कहा कि ये कुत्ता नहीं भेरू महाराज है. मैंने एक टीवी सीरियल में देखा था, एक देवता की तस्वीर में भी मैंने कुत्ते देखें हैं.

मैंने उसकी किताब को गौर से देखा उसकी किताब पर नेम चिट में एक हवा में उड़ने वाले देवता की तस्वीर के बगल से उसका नाम लिखा हुआ था.

मैंने पूछा ये किस तरह का जीव है? उसने कहा ये जीव नहीं भगवान् है जो हवा में उड़ सकते हैं.

मैंने इस बात को इग्नोर करके उससे गुरुत्वाकर्षण के बारे में पूछा. उसने गुरुत्वाकर्षण का पूरा नियम एक सांस में बोलकर सुना दिया, फिर मैंने उससे पलायन वेग (एस्केप वेलोसिटी) और प्लेनेटरी मोशन पर कुछ पूछा उसने तुरंत दुसरी सांस में इनसे संबंधित सिद्धांत सुना दिए. ये सुनाते हुए वह बहुत प्रसन्न था।

मैंने फिर पूछा कि एक राकेट को उड़ने और जमीन के गुरुत्व क्षेत्र से बाहर जाने में कितना समय और ऊर्जा लगती है? क्या यह ऊर्जा एक इंसान या जानवर में हो सकती है? उसने कहा नहीं इतनी ऊर्जा एक बड़ी मशीन में ही हो सकती है जैसे कि हवाई जहाज या राकेट.

मैंने उससे फिर पूछा कि ये उड़ने वाले देवता कैसे उड़ते होंगे? उसे ये प्रश्न सुनकर बिलकुल आश्चर्य नहीं हुआ. उसने बड़ी सहजता से उत्तर दिया कि वे भगवान हैं और भगवान कुछ भी कर सकते हैं.

मैंने फिर आखिर में पूछा कि क्या भगवान प्रकृति के नियम से भी बड़ा होता है? उसने कहा मुझे ये सब नहीं पता लेकिन भगवान जो चाहे वो कर सकते हैं.

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जब परीक्षा में टॉप कर रहे बच्चों की खबरें आती हैं तो शहर-शहर जश्न होता है. जो बच्चे टॉप करते हैं वे निश्चित ही बधाई के पात्र होते हैं. वे वास्तव में कड़ी मेहनत करते हैं और जैसी भी शिक्षा उन्हें दी जाती है, उसमे वे ज्यादा अंक लाकर सफल होते हैं.

लेकिन इन बच्चों की सफलता का वास्तविक मूल्य क्या है? क्या ये वास्तव में अच्छे इंसान और अच्छे नागरिक बन पाते हैं? क्या इनकी शिक्षा – जो अधिकाँश अवसर पर विज्ञान विषयों के साथ होती है– इन्हें वैज्ञानिक चित्त और सोचने समझने की ताकत देती है?

ये टॉपर बच्चे अक्सर ही रट्टू तोते होते हैं जिन्हें मौलिक चिंतन और विचार नहीं बल्कि विश्वास सिखाये जाते हैं, ये पश्चिमी बॉसेस के लिए अच्छे बाबू, टेक्नीशियनऔर मैनेजर साबित होते हैं ये खुद कुछ मौलिक नही कर पाते।

परीक्षा परिणामों का यह जश्न मैं 20 सालों से देख रहा हूँ, और दावे से कह सकता हूँ कि इन टॉपर्स में से अधिकांश बच्चों को IIT, JEE, AIIMS इत्यादि की स्पेशल कोचिंग वाले भयानक दबाव वाले रट्टू और प्रतियोगी वातावरण में तैयार किया जाता है।

ये बच्चे किसी ख़ास परीक्षा में पास होने के लिए तैयार किये जाते हैं, इनमे ज्ञान के प्रति, सीखने और समझने के प्रति कितना लगाव है ये एक अन्य तथ्य है जिसका कोई सीधा संबंध इन बच्चों की उपलब्धियों से नहीं है. ऐसे अधिकांश बच्चे धर्मभीरु, विचार की क्षमता से हीन, आलोचनात्मक चिंतन से अनजान और समाज, सँस्कृति और धर्म के ज्ञान से शून्य होते हैं। अधिकतर इन्हें प्रतियोगिता परीक्षाओं की स्पेशल कोचिंग में उच्चतर विज्ञान और गणित इत्यादि घोट घोटकर पिलाये जाते हैं और घर लौटते ही इन्हें मिथकशास्त्र और महाकाव्यों की तोता-मैना की कहानियां पिलाई जाती हैं।

न केवल ये मिथकों और महाकाव्यों में श्रद्धा रखते हैं बल्कि स्कूल कालेज या परीक्षा के लिए जाते समय प्रसाद चढाकर या मन्नत मांगकर भी जाते हैं. ये बच्चे एक तरफ ग्रेविटी, एस्केप वेलोसिटी इत्यादि रटते हैं और दुसरीं तरफ आसमान में पहाड़ लेकर उड़ जाने वाले देवताओं की पूजा भी करते हैं।

ये एक भयानक किस्म का सामूहिक स्रीज़ोफ़ेनिया है जिसमे एक ही तथ्य के प्रति कई विरोधाभासी जानकारियाँ और विश्वास लेकर बच्चे जी रहे हैं, वे ज्ञान के किसी भी आयाम में कुछ मौलिक नहीं खोज पाते. वे सिर्फ पहले से ही खोज ली गयी चीजों के अच्छे प्रबंधक या तकनीशियन या बाबू हो सकते हैं लेकिन विज्ञान, कला, साहित्य, दर्शन इत्यादि में कुछ नया नहीं दे पाते हैं.

इन बच्चों का एक ही लक्ष्य होता है कि किस तरह से कोई परिक्षा पास करके जीवन भर के लिए कोई बड़ी डिग्री हासिल कर ली जाए और एक बड़ी कमाई तय कर ली जाए. इसके आगे पीछे जो कुछ है उससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता. अधिकाँश बच्चों में आरंभ में इस तरह की जिज्ञासा होती है लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था, हमारे परिवारों के अंधविश्वास पूजा पाठ और कर्मकांड इन जिज्ञासाओं को मार डालते हैं.
आप कल्पना कीजिये जिस परिवार में पहाड़ लेकर उड़ जाने वाले देवता की पूजा होती है उस घर का कोई बच्चा गुरुत्वाकर्षण के वर्तमान सिद्धांत में कोई कमी निकालकर उसे कभी चुनौती दे सकेगा? जो बच्चा मन्त्र की शक्ति से विराट रूप धर लिए किसी अवतार की पूजा करता आया है क्या वह जेनेटिक्स या जीव विज्ञान के स्थापित सिद्धांतों के कमियाँ खोजकर कुछ नया और मौलिक प्रपोज कर सकता है?

निश्चित ही ऐसे बच्चे इस दिशा में अधिक सफल नहीं हो सकते. यह संभव भी नहीं है. जो मन आलोचनात्मक चिंतन कर सकता है वह परीलोक की कहानी को जीवन भर धोकर उसकी पूजा नहीं कर सकता. ये दो विपरीत बातें हैं.

इसीलिये भारत के करोड़ों करोड़ बच्चे, जो किसी न किसी परिक्षा में पास होकर या टॉप करके निकलते रहे हैं उन्होंने ही मिलकर उस भारत को बनाया है जिसमे मंत्री नेता और अधिकारी लोग बारिश लाने के लिए हवन कर रहे हैं. उन्ही बच्चो ने ये भारत बनाया है जिसमे आज सीमाओं की रक्षा के लिए राष्ट्र रक्षा महायज्ञ हो रहा है और डिफेंस की टेक्नोलोजी फ्रांस और इजराइल से खरीदी जा रही है. उन्ही बच्चों के बावजूद आज वह भारत सामने है जिसमे गाय के नाम पर या लव जिहाद के नाम पर सरेआम लिंचिंग हो रही है.

टॉपर बच्चो के जश्न के बीच इन बातो पर एक बार जरुर गौर कीजियेगा.

संजय श्रमण -(संजय श्रमण जोठे )मूलतः मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। इंग्लैंड की ससेक्स यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय विकास अध्ययन मे स्नातकोत्तर करने के बाद ये भारत के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस से पीएचडी कर रहे हैं। बीते 15 वर्षों मे विभिन्न शासकीय, गैर शासकीय संस्थाओं, विश्वविद्यालयों एवं कंसल्टेंसी एजेंसियों के माध्यम से सामाजिक विकास के मुद्दों पर कार्य करते रहे हैं।

तस्वीर डाउन टू अर्थ से साभार।