संथाल विद्रोह की 165वीं वर्षगाँठ पर ‘हूल-दिवस’ नहीं मनायेंगे सिदो-कान्हू के उत्पीड़ित वंशज!

रूपेश कुमार सिंह रूपेश कुमार सिंह
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30 जून, 2020 को संथाल हूल (विद्रोह) की 165वीं वर्षगांठ है, लेकिन ‘हूल’ के नायक-नायिकाओं सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो के वंशजों ने देशवासियों से अपील की है कि वे इस बार ‘हूल दिवस’ नहीं मनाएं। ‘हूल’ के नायक-नायिकाओं की छठी पीढ़ी के वंशजों में से एक मंडल मुर्मू ने एक वीडियो जारी कर कहा है कि 12 जून को उनके चचेरे भाई रामेश्वर मुर्मू की हत्या कर दी गई है, और अब तक उनका श्राद्ध नहीं हुआ है, जबकि संथाल आदिवासियों में यह रीति-रिवाज व परम्परा है कि जबतक मृतक का श्राद्ध नहीं हो जाए, उनके परिवार के लोग पूजा-पाठ या किसी भी शुभ कार्य में भाग नहीं लेंगे। वीडियो में उन्होंने कहा है कि जब उनके परिवार के लोग ही पूजा-पाठ व माल्र्यापण नहीं करेंगे, तो अगर और लोग करेंगे तो वंशजों को अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए देश में कहीं भी कोई भी ‘हूल दिवस’ नहीं मनाएं।

‘हूल ’के नायक नायिकाओं के वंशजों की इस अपील पर राज्य में कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है, जहां कई संगठन उनकी अपील को मानने की बात कर रहे हैं, जबकि कई संगठन व राजनीतिक दलों द्वारा ‘हूल दिवस’ मनाया जा रहा है।

मालूम हो कि 12 जून 2020 को ‘हूल’ के नायक-नायिकाओं की छठी पीढ़ी के वंशज रामेश्वर मुर्मू की मृत्यु हो गयी थी, 13 जून की सुबह में रामेश्वर की लाश गांव के बाहर खेत में पड़ी हुई मिली थी। लाश का पोस्टमार्टम 13 जून को ही साहेबगंज सदर अस्पताल में हुआ, जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट 23 जून को परिजनों को मिली। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अधिक अल्कोहल लेने से रामेश्वर मुर्मू की मृत्यु बताई गई है, लेकिन 17 जून को ही रामेश्वर मुर्मू की पत्नी कपरो किस्कू ने बरहेट थाना प्रभारी को एक आवेदन देते हुए गांव (भोगनाडीह) के ही सद्दाम अंसारी पर रामेश्वर मुर्मू की हत्या का आरोप लगाया और एफआईआर दर्ज करते हुए सीबीआई जांच की मांग की।

शासन-प्रशासन को दिया गया आवेदन

इस आवेदन की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, दुमका डीआईजी व साहेबगंज एसपी को भी भेजा गया। थाना प्रभारी को दिये गये आवेदन में कपरो किस्कू ने लिखा है कि उनके पति के मौसेरे भाई सोवान किस्कू उनके घर आए हुए थे। उन्हीं के साथ 12 जून को शाम पांच बजे भोगनाडीह के मांझी टोला की तरफ महुआ दारू पीने गये, वहां महुआ दारू नहीं मिलने पर वे दोनों बगल के गांव धनजोरी की तरफ जाने लगे, तभी एक आदिवासी लड़की वहां से गुजरी, जिसके बारे में गांव के ही सद्दाम अंसारी अश्लील टिप्पणी करने लगा। जिसे देख व सुनकर रामेश्वर ने सद्दाम को मना किया, लेकिन सद्दाम रामेश्वर से ही उलझ गया और धक्का-मुक्की शुरू कर दिया। साथ ही जान से मारने की धमकी भी देने लगा।

मृतक रामेश्वर मुर्मू की फाइल फोटो

 

उस समय रामेश्वर के मौसेरे भाई सोवान किस्कू ने किसी तरह मामले को शांत कराया, लेकिन सद्दाम ‘मोराय देबो रे सौतार (सौतार, मार देंगे)’ बोलकर जान से मारने की धमकी देता रहा। फिर रामेश्वर अपने मौसेरे भाई के साथ धनजोरी गांव में खेचन रजवार के घर में जाकर महुआ दारू पीये और लगभग रात के 8 बजे अपने घर की तरफ चल दिये। भोगनाडीह पहुंचने के पहले ही ‘जाहेर स्थान’ के पास अधिक नशा हो जाने के कारण सोवान किस्कू गिर पड़ा, उसे वहीं छोड़कर और ये बोलकर कि मैं आगे बढ़ता हूं, रामेश्वर आगे बढ़ गया। रास्ते में घात लगाकर सद्दाम अंसारी ने नशे की हालत में ही रामेश्वर मुर्मू को लाठी से पीटकर मार डाला।

‘हूल’ के नायक नायिकाओं के वंशज पाॅलिटेक्निक काॅलेज सिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग के डिग्री प्राप्त मंडल मुर्मू ने बताया कि 13 जून की सुबह 3 बजे से बारिश होने लगी, जिससे नशे की हालत में ‘जाहेर स्थान’ के पास अचेत पड़े सीवान किस्कू का नशा टूटा और वे रामेश्वर के घर आए और रामेश्वर को पुकारने लगे, लेकिन रामेश्वर तो घर आए ही नहीं थे। इसलिए किसी ने दरवाजा नहीं खोला और वे बाहर में ही गमछा बिछाकर सो गए। सुबह 5 बजे गांव की ही एक महिला ने बताया कि रामेश्वर की लाश खेत में पड़ी हुई है।

हूल नायक-नायिकाओं के वंशज मंडल मुर्मू

मंडल मुर्मू, जो रिश्ते में रामेश्वर के चचेरे भाई हैं, ने बताया कि हमलोग खेत की ओर दौड़ पड़े, वहां हमने उनके मुंह और कान पर ब्लेड से काटे जाने का निशान पाया और दोनों जगह से काफी खून भी निकला था और पूरे शरीर में काला-काला दाग भी था। बाद में हमलोगों ने ही एक चैकीदार के साथ जाकर पोस्टमार्टम भी कराया। रामेश्वर की मृत्यु से सोवान किस्कू पूरी तरह से टूट चुका था, इसलिए उस समय वह कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। बाद में जब उन्होंने पूरी बात बतायी, तब फिर उनकी पत्नी ने बरहेट थाना में हत्या का मुकदमा 17 जून को दर्ज करने के लिए आवेदन दिया।

मालूम हो कि ‘हूल’ के नायक-नायिकाओं का जन्म स्थान वर्तमान झारखंड के साहेबगंज जिला के बरहेट थानान्तर्गत भोगनाडीह गांव में ही है। बरहेट विधानसभा भी है, जिसके विधायक खुद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हैं और यह गांव राजमहल लोकसभा में आता है, जहां के सांसद झारखंड मुक्ति मोर्चा के एकमात्र सांसद विजय हांसदा हैं। ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के अति-महत्वपूर्ण वंश के व्यक्ति की मृत्यु पर झारखंड सरकार व झारखंड मुक्ति मोर्चा ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई, जिसका फायदा उठाने की कोशिश भाजपा ने प्रारंभ कर दी है। रामेश्वर मुर्मू की लाश को दफनाने के समय मिट्टी देने के लिए झामुमो के तो कोई नेता नहीं ही पहुंचे, लेकिन राजमहल लोकसभा से भाजपा उम्मीदवार हेमलाल मुर्मू जरूर पहुंच गये और प्रशासन की तरफ से डीडीसी मनोहर मरांडी भी पहुंचे।

पोस्ट मार्टम रिपोर्ट

मृतक के परिजनों द्वारा एफआईआर दर्ज करा देने व भाजपा द्वारा इस हत्या की सीबीआई जांच की मांग करने के बाद विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा मृतक के परिजनों से मिलने आए। 23 जून को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के पहले ही 20 जून की ‘हूल’ के नायक-नायिकाओं के वंशजों के साथ ग्रामीणों ने भोगनाडीह स्थित सिदो-कान्हू पार्क में धरना देकर हत्यारोपी की गिरफ्तारी की मांग को उठाया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी परिजनों ने मानने से इंकार कर दिया। इधर राजनीतिक दबाव बढ़ने व पुलिस के सक्रिय हो जाने के कारण हत्यारोपी सद्दाम अंसारी ने 24 जून को साहेबगंज न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया। लेकिन इसके बाद भी भाजपा व मृतक के परिजन लगातार सीबीआई जांच व मृतक रामेश्वर के तीनों बच्चों (2 पुत्री व 1 पुत्र) की मुफ्त पढ़ाई व पत्नी की सरकारी नौकरी की मांग को लेकर टिके हुए हैं।

धरना देकर हत्यारोपी की गिरफ्तारी की मांग करते ग्रामीण

इधर 26 जून को भाजपा की 10 सदस्यीय पांच दल ने भोगनाडीह जाकर रामेश्वर मुर्मू के परिजनों से मुलाकात की और सीबीआई जांच, 10 लाख का मुआवजा व सरकारी नौकरी की मांग की, इस जांच दल में राज्यसभा सांसद समीर उरांव, दुमका सांसद सुनील सोरेन, हेमलाल मुर्मू, लुईस मरांडी, अरूण उरांव, रामकुमार पाहन, शिवशंकर उरांव, गंगोत्री कुजूर, अशोक बड़ाईक, बिंदेश्वर उरांव आदि शामिल थे।

सांसद विजय हांसदा ने कहा कि सीबीआई या उससे भी बड़ी कोई जांच एजेंसी है, तो सरकार उससे भी जांच कराने के लिए तैयार है। वंशज परिवार के रामेश्वर मुर्मू की मौत को लेकर परिवार शोक में हैं। हमलोग उन्हें समझाने का प्रयास कर रहे है। अगर बात बन जाती है, तो हम सभी सादगी के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए 30 जून को हूल दिवस मनाएंगे।

दूसरी तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री ने भी स्पष्ट तौर पर कहा कि इस मामले की किसी भी स्तर की जांच करने से राज्य सरकार पीछे नहीं हटेगी। मुख्यमंत्री के द्वारा गठित एक शिष्टमंडल भी राजमहल सांसद विजय हांसदा के नेतृत्व में 28 जून को भोगनाडीह पहुंची और उन्होंने बताया कि वीर शहीद के वंशज परिवार की हर प्रकार का सहयोग देने के लिए राज्य सरकार तैयार है। राज्य सरकार के स्तर से बच्चों को पढ़ाने तथा भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी ली। उन्होंने यह भी कहा कि पत्नी की सरकारी नौकरी की व्यवस्था की जाएगी।

मृतक की पत्नी किस्कू अपनी सास और बच्चों के साथ

वीर शहीद सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू बताते हैं कि हमारे लोगों पर यह पहला हमला नहीं है, बल्कि 2016 में भी ऐसा ही हुआ था, तब झारखंड में भाजपा की सरकार थी। वीर शहीद सिदो कान्हू की प्रतिमा का आधुनिकीकरण हुआ था और गांव के ही कई मुस्लिम युवक प्रतिमा के पास गुटका खाकर थूक रहा था और जूता पहनकर उस स्थल पर चढ़कर तस्वीर खींच रहा था। जब हमलोग मना करने गये, तो हमारे वंशज की ही एक महिला बड़की टु्डू के पेट में लात मार दिया, उस समय वह गर्भवती थी। बाद में जन्म लिया बच्चा एक आंख से विकलांग हो गया। हमलोग ने मुकदमा भी किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

दरअसल सरकार के पास ऐसे शहीद परिवारों के लिए कोई नीति ही नहीं है और उनके परिवार अपने हाल पर ही जीने के लिए विवश है।

गोड्डा काॅलेज में समाजशास्त्र विभाग के असिस्टेंस प्रोफेसर रजनी मुर्मू कहती है कि ‘संथाल आदिवासियों में महिलाओं की स्थिति काफी खराब है और आदिवासी लड़कियों पर अश्लील टिप्पणी करना, उनके साथ छेड़छाड़ करना आदि से गैर-आदिवासी पुरूष जरा सा भी नहीं डरते हैं, क्योंकि आदिवासी पुरूष नशे में बर्बाद हो रहा है और उन्हें आदिवासी पुरूषों से किसी तरह का डर नहीं है।

असिस्टेंस प्रोफेसर रजनी मुर्मू

हूल विद्रोह में भी आदिवासी महिलाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लेकिन इतिहास ने इसे रेखांकित नहीं किया। जबकि हूल विद्रोह की नायिका फुलो-झानो के नेतृत्व में 21 अंग्रेज सिपाहियों की हत्या की थी, बाद में फुलो-झानो भी अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गयीं। महिला लड़ाकुओं का इतिहास अंग्रेजो ने तो मिटाया ही, 1947 के बाद से लेकर अबतक भी फुलो-झानो पर कोई जमीनी शोध नहीं हुआ है। महिला आदिवासी योद्धाओं के इतिहास को आज बाहर लाने की बहुत जरूरत है, ताकि आदिवासी महिलाओं को प्रेरणा मिल सके और वे ऐसी महिला आदिवासी विरोधी व्यक्तियों को माकूल जवाब दे सके।’

मालूम हो कि 30 जून 1855 को वर्तमान झारखंड के साहेबगंज जिला स्थित भोगनाडीह गांव में लगभग 400 गांवों के 50 हजार परंपरागत हथियारों से लैस संथाल आदिवासी एकत्रित हुए थे और अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर लिया था। इस सभा में सिदो मुर्मू को संथाल राज का राजा, कान्हू को उनका सहायक व राजा की उपाधि, चांद को प्रशासक व भैरव को सेनापति बनाया गया था। सिदो ने सभा में घोषणा किया था कि ‘‘अब हम स्वतंत्र है। हमारे उपर कोई सरकार नहीं है, इसलिए न कोई हाकिम है न कोई थानेदार। अब अपना और सिर्फ अपना संथाल राज स्थापित हो गया है।’’ उन्होंने कहा था ‘‘करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो।’’ उनकी इस घोषणा के बाद ही ऐतिहासिक ‘संथाल हूल’ की शुरूआत हुई थी।

शहीद फूनो-झानो की प्रतिमा

बाद में यह विद्रोह महान छापामार लड़ाई में तब्दील हो गया था, जिसमें अंग्रेजों के बंदूकों के सामने आदिवासियों के तीर-धनुष थे। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए नृशंसतापूर्वक कत्लेआम किये। संथाल आदिवासी अपने खून की अंतिम बूंद तक लड़ते रहे। इसमें आदिवासी महिलाओं ने भी अपनी बहादुरी से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। आगे चलकर यही विद्रोह ‘संथाल हूल’ के नाम से इतिहास में दर्ज हुआ और 1947 के बाद से प्रत्येक वर्ष 30 जून को भोगनाडीह में वीर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फुलो-झानो को श्रद्धांजलि देने नेताओं का जमावड़ा लगने लगा। लेकिन इस बार ‘हूल’ के नायक नायिकाओं के वंशजों के छठी पीढ़ी के एक सदस्य रामेश्वर मुर्मू की हत्या के बाद के उपजे हालत में शहीदों की प्रतिमा पर माल्यार्पण हो पाएगा या नहीं? यह एक ज्वलंत सवाल बना हुआ है।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जो संथाल आदिवासी ही है, को जल्द से जल्द रामेश्वर मुर्मू की हत्या की सीबीआई जांच का आदेश देते हुए उनके परिजनों की तमाम मांगों को मान लेना वक्त की जरूरत है ताकि भाजपा के नापाक इरादे पूरे न हो पाए और शहीदों के परिवार को न्याय मिल सके।


 

रूपेश कुमार सिंह , स्वतंत्र पत्रकार हैं.

 


 


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