जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री के साथ हुई सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस ने पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के साथ पाँच महत्वपूर्ण माँगें रखी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बैठक में शामिल ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि बैठक में आपत्ति जतायी गयी कि राज्य की स्थिति बिना जन प्रतिनिधियों की सहमति के बदली गयी, जो नहीं होना चाहिए था।
ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि हम लोगों ने याद दिलाया कि सदन के अंदर गृहमंत्री जी ने और प्राइम मिनिस्टर ने भी ये आश्वासन दिया था कि समय आने पर स्टेटहुड बहाल किया जाेगा। अभी शांति भी है, सीज फायर भी है, बॉर्डर भी शांत है, तो पूर्ण राज्य की बहाली के लिए इससे ज्यादा कोई अनुकूल समय नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि हम लोगों ने ये भी कहा कि आप लोग कहते हैं कि लोकतंत्र को मजबूत करना है। अब आपने पंचायत के इलेक्शन किए, जिला परिषद के इलेक्शन किए तो ऐसा कैसे हो सकता है कि विधानसभा न हो, तो इसलिए विधानसभा का इलेक्शन भी तुरंत करना चाहिए, डेमोक्रेसी को बहाल करने के लिए।
ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि तीसरी चीज हमने बताई कि महाराजा के जमाने से डोमिसाइल का विशेषाधिकार था। 1925 से और बाद में नौकरी का भी विशेषाधिकार था। तो केन्द्र सरकार को ये गारंटी देनी चाहिए कि वो भी जब बिल लाएगी, तो उसके साथ हमारी जमीन और नौकरी का विशेषाधिकार बरक़रार रहेगा।
आज़ाद ने कहा कि हमने बैठक में कहा कि कश्मीरी पंडित पिछले 30 साल से बाहर हैं। बहुत सारे, जम्मू में भी हैं, कश्मीर में भी हैं कुछ लेकिन अधिकतर बहुत बड़ी संख्या जो है, वो बाहर हैं। ये हमारी मौलिक ड्यूटी है, सरकार की तो बनती ही बनती है, लेकिन जम्मू और कश्मीर के हर एक राजनीतिक दल और नेता की ये जिम्मेदारी ह कि वो कश्मीर के पंडितों को वापस लायें। उनके पुनर्वास में हम सरकार की सहायता करेंगे, मदद करेंगे कि कश्मीरी पंडित वापस कश्मीर आ जाएं।
ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि पाँचवा प्वाइंट था कि जिस वक्त 5 अगस्त को स्टेट के दो हिस्से किए गए और डाउनग्रेड किया गया, उससे पहले और उसके बाद भी हजारों की तादाद में पॉलीटिकल प्रिजनर्स थे, वर्कर्स थे, सोशल ऑर्गनाइजेशन के लोग थे, उन्हें रिहा किया जाये। हम मिलिटेन्ट्स को छोड़ने की बात नहीं करते लेकिन सामाजिक राजनीतिक लोगों को छोड़ देना चाहिए। ।
एक अन्य प्रश्न पर कि कुछ पार्टियाँ आर्टिकल 370 को हटाने की बात कह रही थीं, क्या इस तरह की चर्चा भी हुई थी, श्री आजाद ने कहा कि अधिकतर लोगों ने कहा कि वो इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महत्व देंगे।
एक अन्य प्रश्न पर कि क्या चुनाव कराने की कोई समय सीमा सरकार की तरफ से दी गई है, श्री आजाद ने कहा कि उसके लिए पीएम ने कहा कि कोविड की वजह से बैठक बुलाने में विलंब हुआ। पोस्ट कोविड ये सबसे बड़ी मीटिंग हुई, एक विंडो निकली तो हमने बात की।
श्री आजाद ने कहा कि परिसीमन जल्द होना चाहिए, अगर इलेक्शन करना है और नॉर्मल्सी बहाल करनी है, डेमोक्रेसी बहाल करनी है। हम चाहते हैं कि तुरंत डेमोक्रेसी बहाल हो जाए। हम लोगों ने ये भी बात रखी कि हम ब्यूरोक्रेसी के खिलाफ नहीं हैं। ब्यूरोक्रेसी एक हिस्सा है डेमोक्रेसी का और सरकार का, लेकिन ब्यूरोक्रेसी सरकार खुद अपने आप में लेजिस्लेचर का काम नहीं कर सकती, मंत्री का काम नहीं कर सकती है, तो इसलिए ब्यूरोक्रेसी, हमारे कॉन्स्टीट्यूशन में निर्धारित है, ब्यूरोक्रेसी को क्या करना है, और पॉलिटिकल लीडरशिप को क्या करना है, इसको पीएम ने स्वयं माना कि ब्यूरोक्रेसी पॉलिटीशियन को रिप्लेस नहीं कर सकती है, उनका एक अलग सिस्टम है काम करने का औऱ राजनेताओं का अलग है तो इसलिए हम लोगों ने कहा कि अब इतने सालों से ये चल रहा है तो उसकी वजह से लोगों को दिक्कत होती है, तो जिस तरह से पॉलिटीशियन मिलता है लोगों से, उस तरह से तो ब्यूरोक्रेट नहीं मिलेगा।