पीडीपी से राज्यसभा सांसद मोहम्मद फयाज़ मीर ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर मोहम्मद अफ़ज़ल गुरु और मकबूल भट की अस्थियां कश्मीर में रह रहे उनके परिवरों को वापस देने की मांग की है। उनका कहना है कि केंद्र यदि इस बारे में सकारात्मक फैसला लेता है कश्मीरियों में भारत सरकार को लेकर मौजूद अलगाव में कमी आएगी। ध्यान रहे कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक मकबूल भट को 11 फरवरी 1984 में तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी और उनकी लाश वहीं दफन कर दी गई थी। यही सलूक 2013 की 9 फरवरी को अफ़ज़ल गुरु के साथ किया गया। पिछले नवंबर पत्रकार आनंद दत्ता दोनों के परिवारों से मिलकर आए हैं। मेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रहे बेटे अफ़ज़ल के बेटे गालिब गुरू और नर्स से हाउस वाइफ बनी उनकी पत्नी तबस्सुम गुरू अब क्या सोचती है कश्मीर के हालात के बारे में; बेटे को नीट (NEET) की तैयारी करवा रही मां को क्यों चाहिए आजाद कश्मीर? यह बातचीत बीते साल नवंबर में श्रीनगर में हुई थी! (संपादक)
आनंद दत्ता
अफ़ज़ल का बेटा गालिब गुरु (13 साल) कहता है ‘जब मेरे अब्बा का नंबर 21वां था, तब 20 अपराधियों को छोड़ मेरे पिता को पहले फांसी क्यूं दी गई. यही नहीं, फांसी कब होगी, कहां होगी ये भी नहीं बताया. जब फांसी दे दी, तब कई दफे सरकार से मिन्नतें की, लेकिन अब्बू का डेड बॉडी नहीं दिया गया.’
श्रीनगर से 30 किलोमीटर दूर सोपोर में अपने घर के बाहर बैठे तबस्सुम गुरू कहती हैं, ‘एक बार उनके कब्र पर जाने देती सरकार तो उसका शुक्रगुजार रहती. अभी मैं इस बच्चे (गालिब) की तरफ देख रही हूं. ये पढ़े, अच्छा इंसान बने. कुछ कमाए, अपनी तरफ से वह बेहतर करे. जीने का बस यही मकसद है.’
वे कहती हैं, ‘जिस गांव (फिलहाल बारामुला के गुलनार) में रह रही हूं वहां सभी बहुत इज्जत करते हैं. वह कहते हैं कि हमें आपके ऊपर और अफ़ज़ल साब की कुर्बानी पर फख्र है. अगर कहीं सामान, कपड़े खरीदने जाती हूं तो पैसे पहले ही कम कर देते हैं. बारामुला के बाहर भी जब जाती हूं तो पहले तो लोग गौर से देखते हैं, फिर जब पहचानते हैं तो अफ़ज़ल के बारे में बात करते हैं. वह पूछते हैं कि दिल्ली में अफ़ज़ल से जुड़ी जो चीजें थी, उनके जो सामान थे, वह लेकर आए क्या. मैं हर साल अखबार के माध्यम से और चिट्ठी लिखकर सरकार से कहती हूं कि मुझे मेरे शौहर का सामान लौटा दे.’
ट्यूशन पढ़ाने वाले ने क्यों छोड़ दी फीस
गुलनार में पिता ने रहने के लिए जमीन दी थी. एक साल पहले तबस्सुम ने वहां घर बनाया है. अभी गालिब की पढ़ाई का खर्च उनके भाई उठा रहे हैं. पिता भी साथ रहते हैं. उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है. घर का खर्च पिता ही चलाते हैं. हाल ही में घटे एक वाकये का जिक्र करते तबस्सुम ने कहा, ‘श्रीनगर में गालिब जब ट्यूशन पढ़ने गया तो ट्यूशऩ वाले ने 35,000 की जगह मात्र 5000 रुपए लिए.’
सोपोर हॉस्पीटल में 12 सालों तक नर्स रहीं तबस्सुम बताती हैं कि अफ़ज़ल के फांसी के बाद कई साल तक पुलिस और आर्मी वाले चेक करने आते रहे. वह चेक करते थे कि उनके पास कहीं से पैसे तो नहीं आ रहे. बंदूक के बारे में पूछते थे. जब भी कोई मेहमान आते थे, उसके बाद आर्मी वाले आकर पूछते थे. कहती हैं, ‘मेरे घर के बगल में ही आर्मी का बंकर है, वह जब चाहे आते हैं, पूछते हैं, पूरे घर की तलाशी लेते हैं, फिर जाते हैं. बीते छह महीने से यह सब बंद हुआ है. जब भी कश्मीर के हालात खराब होते हैं, कोई मिलिटेंट मारा जाता है, वह मेरे घर आकर भी तलाशी लेते हैं. उनको लगता है कि मैं अभी भी मिलिटेंटों की मदद करती हूं. वह मेरे मेहमानों को भी आतंकी बताते थे. जब भी कोई मीडियावाले आते हैं, उनका कैमरा सहित सबकुछ चेक किया जाता है. आर्मी उन्हें भी परेशान करती है.’
गुस्से से कहती हैं- ‘उन्होंने (भारत सरकार) फांसी देकर गलती कर दी. इंडियन आर्मी खुद लोगों के मन में अपने लिए नफरत पैदा करवा रही है.’
कैसे बचा रही है इस माहौल से बेटे को
कश्मीर में आजादी की मांग कर रहे लोगों को फख्र है कि उनका बच्चा मिलिटेंट बन रहा है. लाखों लोग उन मिलिटेंट के जनाजे में शामिल हो रहे हैं. गालिब गुरू इन सब चीजों से कैसे बचा रह रहा है? तबस्सुम कहती हैं- ‘गालिब को पता है कि उसकी मां का एक ही सहारा है. अगर दो होते तो एक तो निकलता ही. मैंने अपनी जवानी भी उसपर लुटाई है, वही तो मेरा खाब है. हमें इसमें नहीं पड़ना है, मेरे शौहर ने कुर्बानी दी न, वही नहीं, उसके साथ उसका छोटा भाई और मां भी मर गई, पूरी फैमिली खत्म.’
खुद तबस्सुम गुरू आजाद कश्मीर चाहती हैं क्या? ‘अब बहुत हो गया. हम चाहते हैं कि दोनों मुल्क आपस में बैठे, फैसला कर ले, बस हमें चैन से रहने दे. सब कुछ खत्म हो रहा है. अगर लोग चाहिए तो हमारा फैसला करे, अगर जमीन चाहिए तो जैसे चल रहा है, चलने दें.’
कश्मीरी बच्चों को सलाह देंगी कि वह मिलिटेंसी छोड़ दे- ‘नहीं मैं क्यूं सलाह दूंगी, उनको खुद पता है कि वह क्यूं लड़ने जा रहे हैं.’
क्या कोई नेता अफ़ज़ल की मौत के बाद उनके परिवार से मिलने आया क्या- ‘नहीं, श्रीनगर से केवल रशीद इंजीनियर आए थे. इंतकाल के समय आए थे जलसा लेकर. नेता खुद डरे हुए हैं, वह मेरे पास क्यूं आएंगे. मैं जीवन में कभी राजनीति में नहीं आऊंगी. लोकल चुनाव के वक्त भी कोई नहीं आता मेरे घर वोट मांगने. हमारा गांव वोट ही नहीं डालता, तो कोई क्यूं आएगा. मैंने आज तक वोट नहीं दिया है अपने पूरे जीवन में. मेरी जब शादी हुई तब मैं 18 साल की थी, उस वक्त भी हालात ऐसे ही थे, भला हम हिन्दुस्तान को वोट क्यूं डालेंगे.’
सोपोर जहां अफ़ज़ल का घर है, तबस्सुम के पास दो कुनाल जमीन है. यहां अफ़ज़ल के दो भाई एजाज अहमद गुरू जो ठेकेदार हैं और बिलाल अहमद गुरू भी व्यापारी हैं, रहते हैं. दो भाई की मौत हो चुकी है. गालिब अपनी फूफी के यहां (श्रीनगर) रहकर पढ़ाई कर रहा है.
क्या बातचीत हुई थी आखिरी मुलाकात में
बातचीत के वक्त गालिब श्रीनगर में था. उसकी तस्वीर दिखाती तबस्सुम कहती हैं- ‘जब भी गालिब कुछ बोलता है तो मुझे उसमें अफ़ज़ल नजर आते हैं, उसका बोलने का तरीका, हाथ हिलाने का तरीका सबकुछ अफ़ज़ल साब की तरह है.’ आखिरी मुलाकात का जिक्र करती हैं- ‘2012 में अगस्त महीने में हुई थी. उस वक्त उनकी अम्मी का इंतकाल हुआ था. वे घर, मेरे और गालिब के बारे में पूछ रहे थे. पूछ रहे थे कि घर में टाइम पास कैसे करती हो, घर को कैसे संभाल रही हो.’
भावुक तबस्सुम कहती हैं, ‘मुलाकात के वक्त ना तो उन्हें थोड़ा सा अंदाजा था कि फांसी होगी, ना किसी और को. इसलिए हमने इसपर बात भी नहीं की. हम तो सोच रहे थे कि 12 साल हो गए, इन्हें आजीवन कारावास हो जाएगा. फिर अचानक एसआर गिलानी का फोन आया कि मेरे पास कोई चिट्ठी आई है क्या. मैंने कहा नहीं तो, क्या हुआ. तो उन्होंने कहा कि लगता है अफ़ज़ल को फांसी दी जाएगी. मैंने कहा, नहीं ऐसा नहीं हो सकता. पिछली बार भी यही बात कही गई थी, लेकिन वह अफवाह निकली. आप अफवाह पर ध्यान मत दीजिए. 2013 नौ दिसंबर को मुझे सुबह 7.30 बजे पता चला कि उनको फांसी दे दी गई है.’
क्या उम्मीद है कि ये मसला कब तक सुलझेगा?
(गुस्से में) ‘और ये कब तक चलेगा?’