मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, ट्रेड यूनियन के नेता और मनोवैज्ञानिकों के 11 सदस्यीय एक दल ने 28 सितंबर से 4 अक्टूबर तक कश्मीर घाटी का दौरा किया। इस दौरे का मुख्य उद्देश्य था राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म कर अनुच्छेद 370 के हटाने के दो महीने बाद घाटी की हालत के बारे में जानकारी इकठ्ठा करना। इस दल ने यात्रा के दौरान प्राप्त जानकारियों और अनुभवों के आधार पर 117 पेजो की एक रिपोर्ट तैयार की है।
इस जांच दल में आरती मुंडकर (वकील, बेंगलुरु), अमित सेन (मनोचिकित्सक, नयी दिल्ली), क्लिफ्टन डी रोज़ारिओ (वकील, एआइपीएफ बेंगलुरू), गौतम मोदी (न्यू ट्रेड यूनियन इनीसिएटिव, नई दिल्ली), लारा जेसानी (वकील, मुंबई पीयूसीएल), मिहिर देसाई (वकील, मुंबई पीयूसीएल) सहित अन्य शामिल थे।
जांच दल ने इस रिपोर्ट को राज्य के अलग-अलग जिलों के लोगों, वकीलों, व्यापारियों, चिकित्सकों आदि से बातचीत के आधार पर तैयार किया है।
इस रिपोर्ट में वर्तमान हालात के साथ ही कश्मीर के इतिहास से लेकर भारत में विलय के समय उसके साथ किये गए वादों के साथ भारत सरकार द्वारा समय-समय किये गए वादा खिलाफी का भी जिक्र है। वहीं कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर संयुक्त राष्ट्र की टिप्पणियॉं भी शामिल हैं तो वहीं कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के प्रधानमंत्री के दावे का भी सच्चाई मौजूद है।
रिपोर्ट अंग्रेजी में होने के बाद भी आसानी से समझ आएगी क्योंकि यह रिपोर्ट मानवाधिकारों और उनके उल्लंघन की कहानी है। एक राज्य का इतिहास और उसके विभाजन की कहानी है।
खेत में पड़े सड़ते सेवों की महक कब तक दबी रह सकती है भला? स्थिति सामान्य होती तो सरकार अख़बारों में विज्ञापन देकर दुकानदारों, ट्रांसपोटरों से हड़ताल खत्म करने की अपील क्यों करती है?
पढ़िए रिपोर्ट को, जानिए दो टुकड़ों में विभाजित नए कश्मीर को। जानिए, कैद, दमन और संघर्ष की कहानी:
Imprisoned Resistance-final for dissemination