चन्द्र प्रकाश झा
कर्नाटक विधान सभा चुनाव में क्या – क्या हो रहा है , हम इसकी विश्लेषणपरक खबरें ‘ मीडिया विजिल ‘ के इस साप्ताहिक स्तम्भ में लगातार देते रहे है और आगे भी देते रहेंगे। चुनाव परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या नहीं , यह लिखना हमारा काम नहीं है। हमारा काम पाठकों को चुनाव के बारे में वस्तुनिष्ठ समाचार देना है। चुनावी समाचारों , तथ्यों, अधिकृत आंकड़ों और विश्लेषण के सहज स्वीकार्य मानक, ‘चुनाव चर्चा’ स्तम्भ के पिछले अंकों में काफी हद तक विकसित हो चुके है. साप्ताहिक स्तम्भ में पल-प्रतिपल की खबरें देना संभव नहीं है। हमारा मूल उद्देश्य चुनाव पर पैनी नज़र रखना है। इस सांविधिक एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कहीं भी, किसी से भी, चाहे वह निर्वाचन आयोग ही क्यों न हो , कोई कोताही होती है तो उसकी हमें कस कर खबर भी लेनी है। पर यह काम खबरिया टीवी चैनलों की तरह ताबड़तोड़, विषयनिष्ठ और सतही सर्वे , प्रीपोल, एग्जिट-पोल देने से नहीं होगा। बल्कि इस तरह की प्रायोजित कारगुजारी के वृहत्तर कारणों की जांच -परख करने से लोकतांत्रिक चुनाव की जड़ें और मजबूत ही होंगी, ऐसा हमारा मानना है। कुछ और चुनाव भी हो रहे हैं या होने वाले हैं अथवा संपन्न हो चुके हैं, हम उनकी भी आज के अंक में संक्षिप्त चर्चा करेंगे। इनमें उत्तर प्रदेश की रिक्त कैराना लोकसभा सीट और नूरपूर विधान सभा सीट पर उपचुनाव, तीनों बड़ी संसदीय कम्युनिस्ट पार्टियों की कुछेक बरस पर होने वाली कांग्रेस ( राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मलेन ) में उनकी कमेटियों और महासचिवों के सुचारु-संपन्न चुनाव,अगले बरस निर्धारित 17 वीं लोकसभा चुनाव की पेशबन्दियाँ और विभिन्न राज्यों की विधान सभा के 2018 में ही निर्धारित चुनाव शामिल हैं।पहले चर्चा कर्नाटक की , जिसके चुनाव कार्यक्रम की निर्वाचन आयोग की घोषणा से पहले ही भाजपा के आईटी सेल के कर्ता -धर्ता, अमित मालवीय के ट्वीट से जो विवाद छिड़ा, वह पुराना पड़ गया है। मालवीय जी के ट्वीट के बावजूद, चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए सांविधिक रूप से अधिकृत एकमेव संस्था निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र का दिनदहाड़े अतिक्रमण होने के बावजूद विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, सब तमाशबीन बने रहे। ट्वीट के पीछे भाजपा और उसकी सरकार के नेतृत्व की मंशा यही थी कि लोग मानें लें कि लोकतांत्रिक चुनाव के मामले में भी वे जो भी चाहते हैं वही होगा, सब उनकी मुट्ठी में हैं। अब उस ट्वीट से चार कदम आगे बढ़कर बी.एस.येदुरप्पा ने भाजपा के घोषित अगले मुख्यमंत्री बतौर अपनी नई सरकार के शपथ ग्रहण का शुभ मुहूर्त भी उद्घोषित कर दिया है। उन्होंने यह करिश्मा ‘इंडिया टुडे’ के साथ भेंटवार्ता में चुनाव परिणाम विखंडित निकलने की भविष्यवाणियों को नकारते हुए कहा कि वही 18 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। येदुरप्पा, मुहूर्त निकालने के मामले में चार कदम आगे इसलिए निकल गए कि उन्होंने इस मामले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को भी कुछ पीछे छोड़ दिया है। अमित शाह ने बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव का अधिकृत परिणाम आने के पहले ही बाकायदा मिनट-वार घोषित कर दिया था कि अब क्या-क्या होगा। रिकार्डेड शाह गर्जना थी, ‘ इतने मिनट पर, मुख्यमंत्री नितीश कुमार, अपने कैबिनेट की आखरी बैठक बुलाएंगे, फिर अपनी सरकार के इस्तीफा का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित करवा कर इतने मिनट पर राज्यपाल से मिलने राजभवन पहुंचेंगे, इतने मिनट पर ……… और इतने मिनट पर भाजपा की नई सरकार का शपथ ग्रहण संपन्न हो जाएगा। उन्होंने बस नए मुख्यमंत्री का नाम नहीं लिया था । इसलिए कि उस चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित ही नहीं किया था।
संभव है कि आगे के चुनाव प्रचार में ही नहीं, सभी 224 विधानसभा सीटों पर एक ही चरण में , 12 मई को होने वाले मतदान, 15 मई को निर्धारित मतगणना और उसके बाद राज्य में नई सरकार के गठन तक नए -नए विवाद उठते रहें. संसद के बजट सत्र के बीच निर्वाचन आयोग द्वारा 27 मार्च को पूर्वाह्न बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही लगभग एक ही वक़्त केंद्र में सत्तारूढ़ मोर्चा का नेतृत्व कर रही भाजपा ही नहीं कर्नाटक में पिछले पांच बरस से सरकार चला रही कांग्रेस के भी महिमामंडित ‘आईटी’ सेल के कर्ता -धर्ता भी, मतदान और मतगणना की तारीख ट्वीट कर गए और उनके समर्थक इस तमाशा पर बस थिरकते रहे। चुनावी प्रक्रिया में शामिल लगभग सभी में अधैर्य है। उनके बीच, किसी से भी पहले “ब्रेकिंग न्यूज” देने की अघोषित अलोकतांत्रिक बाज़ारू प्रतिस्पर्धा है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम 15 मई को जो भी निकले, इतना साफ है कि राज्य में एक बार सरकार बना चुकी भाजपा को फिर सत्ता में लौटने के उसके तमाम उपक्रमों में जमीनी संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।
कर्नाटक संगीत की तरह वहाँ की राजनीती के राग भी गज़ब के हैं। वे हिन्दुस्तानी संगीत और उत्तर भारतीय राजनीति से भी जुदा हैं। कर्नाटक संगीत में कोई भी राग, चाहे वह राग भैरवी ही क्यों न हो, किसी भी प्रहर गाया और बजाया जा सकता है। इसी तरह वहाँ की चुनावी राजनीति में भाजपा, सत्य ही नहीं समय के भी पार चली गई है। तभी तो येदुरप्पा अपनी नई सरकार के शपथ ग्रहण का शुभ मुहूर्त, मतदान, मतगणना, नए विधायक दल के नेता का औपचारिक चयन, नई सरकार के गठन के लिए राज्य्पाल के सम्मुख पेश करने की अनिवार्यता, राज्य्पाल की सहमति की दशा में उनका विधिवत लिखित आमंत्रण हासिल होने की सांविधिक प्रक्रिया पूर्ण होने से 15 दिन पहले ही, सीधे अपने ‘पद एवं गोपनीयता’ की शपथ लेने का समय निर्धारित कर लेते हैं. यह कर्नाटक की राजनीति में येदुरप्पा का ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ राग है। 75 -वर्षीय येदुरप्पा को स्वयं पर भरोसा है और इसलिए वानप्रस्थ की ओर नहीं जाना चाहते हैं। भाजपा ने लिंगायत समुदाय के, बी एस येद्दयुरप्पा को अगली सरकार के मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावेदार घोषित कर कांग्रेस के लिंगायत कार्ड की तोड़ पेश कर रखी है। उन्हें राज्य में 2009 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जीती भाजपा की सरकार के मुख्यमंत्री पद से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण हटना पड़ा था। उन्होंने सत्ता से अपदस्थ होने के बाद अपनी नई पार्टी भी बना ली थी। बाद में उनकी नई पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया गया। भाजपा ने कांग्रेस के लिंगायत कार्ड की तोड़ के रूप में येद्दयुरप्पा को आगे करने के लिए अपने उस घोषित राजनितिक ‘सिद्धांत ‘ की तिलांजलि दे दी है जिसके तहत उसके 75 साल से अधिक अवस्था के नेता, सरकार और संगठन में किसी पद पर नहीं रह सकते। भाजपा को चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने में भी परेशानी हो रही है क्योंकि येद्दयुरप्पा को इन आरोपों के कारण न सिर्फ ही मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था बल्कि अरबों रूपये के भूमि-घोटाले में जेल भी जाना पड़ा था. यह दीगर बात है कि उन्हें बाद में अदालत से राहत मिल गई , वह जेल से बाहर आ गए और उनका वानप्रस्थ अवस्था में भी भाजपा में ही सहजता से राजनीतिक पुनर्वास भी हो गया।
मोदी जी :
भाजपा के ‘ दागी ‘ रेड्डी बंधू
‘ लिंगायत कार्ड ‘ :
कर्नाटक में मायावती :
कम्युनिस्ट :
कैराना लोकसभा सीट और नूरपूर विधान सभा सीट उपचुनाव :
निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 28 मई को मतदान और 31 मई को मतगणना कराने की अधिकृत घोषणा कर दी है। इस उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह के सुपुत्र जयंत चौधरी की संभावित उम्मीदवारी को साझा विपक्ष का समर्थन मिलने की प्रबल संभावना बताई जाती है। यह सीट भाजपा के हुकुम सिंह के गत फरवरी में हुए निधन से रिक्त हुई है। वह इस क्षेत्र के रसूखदार गूजर नेता थे। नूरपुर विधान सभा सीट भाजपा के विधायक लोकेन्द्र सिंह चौहान के फरवरी माह में ही एक सड़क दुर्घटना में हुई मौत से रिक्त हुई है। उत्तर प्रदेश में हाल में गोरखपुर और फूलपुर तथा बिहार की अररिया लोकसभा सीटों पर उपचुनाव की तरह ही अगर भाजपा , कैराना उपचुनाव भी हार जाती है तो पार्टी का मौजूदा लोकसभा में अपने दम पर हासिल हासिल स्पष्ट बहुमत खतरे में पड़ जाएगा। सदन में भाजपा को स्पीकर, सुमित्रा महाजन के कास्टिंग वोट को मिलाकर 271 सदस्यों का ही समर्थन प्राप्त है जो साधारण बहुमत की संख्या है। वर्ष 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने अकेले दम पर 282 सीटें जीतकर केन्द्र में अपनी सरकार बनाई थी। लेकिन चार साल का कार्यकाल पूरा होने तक यह आंकड़ा अब 272 पर सिमट गया है। इसमें अगर भाजपा से निलम्बित कीर्ति आजाद की सीट न जोड़ें तो भाजपा सदन में अल्पमत में आ गई है। लोकसभा के उपचुनाव में अब तक बीजेपी 10 सीटों पर चुनाव हार चुकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 71 सीटें जीती थीं.




















