प्रीति नागराज
कर्नाटक में कल जब नतीजे आने शुरू हुए तो ऐसा लगा कि बीजेपी ने जिस किस्म का आत्मविश्वास दिखाया था, वह हवाबाजी नहीं थी। उसमें कुछ दम था। रुझानों को देखकर लगा कि अब तो अपने दम पर बीजेपी सरकार बना लेगी और येदियुरप्पा दूसरी बार मुख्यमंत्री बन ही जाएंगे। इसके बाद कुछेक घंटों के दौरान मतगणना का शुरुआती चरण पूरा होने पर अचानक लगने लगा कि यहां तो वही घट रहा है जिसका यह देश गुजरात में गवाह रहा था।
कोई 120 सीटों पर बढ़त दिखाने के बाद संघर्ष करते हुए बीजेपी का कांटा आखिरकार 104 पर जा ठहरा। यह बहुमत से 10 सीट कम था। सत्ताधारी कांग्रेस 78 पर सिमट चुकी थी और जनता दल सेकुलर को 37 सीटें मिलीं, जबकि बाकी 3 पर निपट गए। चूंकि अब कोई भी पार्टी अपने बूते अकेले सरकार नहीं बना सकती, तो अपनी इस नाकामी की पड़ताल तीनों को करनी ही होगी। भले तुरंत नहीं, लेकिन इतना तो बनता ही है। उधर राष्ट्रीय मीडिया लगातार इन नतीजों को दक्षिण में बीजेपी की सेंध और मोदी की सुनामी कह कर प्रचार कर रहा है। ऐसा दक्षिण के मामले में हर बार होता है कि मीडिया तथ्यों को परखते वक्त हमेशा सरलीकरण कर देता है और असल तस्वीर से चूक जाता है।
याद करें, 2008 में येदियुरप्पा ने जब 110 सीटों पर चौंकाने वाली जीत हासिल की थी उस वक्त बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से न कोई दखल था और न ही उन्हें कोई मदद मिली थी। उस वक्त भी 114 के निर्णायक कांटे से वे पीछे ही थे। तब उन्होंने जो काम किया, जिसे ”ऑपरेशन कमला” का नाम दिया गया, उसने लोगों में काफी गुस्सा भर दिया और संविधान की अवमानना को लेकर काफी चीख-पुकार मची। अब, राजनीति तो राजनीति ही है जहां जीतने वाला साम-दाम-दंड-भेद से खुद को बचा ही ले जाता है। यहां नैतिकता नाम की चीज़ नहीं होती बल्कि एक तय खांचे के भीतर केवल संभावनाओं का आकलन ज़रूरी होता है।
इस बार हालांकि येदियुरप्पा सरकार बनाने से 10 सीट पीछे हैं लिहाजा उनका ऑपरेशन कमला अबकी काफी जटिल हो गया है। जो लोग अमित शाह को जानते हैं, उन्हें पता है कि बिना किसी उलटफेर के यह भारी चुनौती कुछ ही दिनों में निपटा ली जाएगी। फिलहाल, येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण समारोह की जो तारीख 17 मई तय की गई थी वह अनिश्चितकाल के लिए टल चुकी है।
कल जब नतीजे आने शुरू हुए तो लगा कि ऐसा हलचल भरा तो कभी आया ही नहीं था। बीजेपी का ‘निरपेक्ष आत्मविश्वास’ कुछ ही घंटों के भीतर ‘निरपेक्ष निस्सहायता’ में बदल चुका था। मणिपुर और गोवा में कम संख्या के चलते पीछे हटने और सरकार बनाने का दावा न करने के पिछले घटनाक्रम से सबक ले चुकी कांग्रेस ने पहले ही अपने संदेशवाहकों को बंगलुरु में तैनात कर दिया था। उन्हें जैसे ही अहसास हुआ कि संख्याबल के मामले में वे पर्याप्त नहीं हैं, उन्होंने देवेगौड़ा की ओर दौड़ लगा दी।
गुला नबी आज़ाद ने देवेगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी से बात की। बेशर्त समर्थन ज़ाहिर किया, सीएम की सीट की पेशकश की और गठबंधन सरकार बनाने के लिए जेडीएस के लिए तमाम किस्म की रियायतों का प्रस्ताव रखा। इस तरह लोकतंत्र ने सबसे कम सीटें लाने वाले शख्स को निर्णायक स्थिति में ला दिया और उसके लिए सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
येदियुरप्पा भी राज्यपाल से मिलने भागे-भागे गए। उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश कर डाला। संवैधानिक रूप से यह बिलकुल मुमकिन था क्योंकि उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आई है। अब गेंद राज्यपाल के पाले में थी कि वे किसे सरकार बनाने का न्योता देते हैं।
अब जेडीएस और कांग्रेस के सभी विधायकों सहित एक निर्दलीय विधायक (मुलाबागिल से मंजुनाथ, जो पहले कांग्रेस में थे) को बाज़ी पूरी होने तक एक अज्ञात स्थान पर ले जाकर रखा गया है। विधायकों की खरीद-फ़रोख्त के डर से ऐसा किया गया है।
सिद्धरामैया के लिहाज से यह चुनाव एक कठोर संदेश लेकर आया है। मोदी के खिलाफ उनके स्टैंड को वैसे तो कई लोगों ने सराहा, लेकिन कई मौकों पर पार्टी के सदस्यों को भरोसे में न लेने के उनके रवैये ने पलटवार कर डाला। चामुंडेश्वरी सीट से उनकी बुरी तरह हार हुई और बदामी से बड़ी मुश्किल से वे जीत पाए। अच्छा हुआ कि उन्होंने दो सीटों से परचा भरा। कम से कम अपनी विधायकी तो वे बचा ही ले गए। उनके कई करीबी सहयोगी जो उनकी सरकार में मंत्री थे, सब हार चुके हैं। अब इन्हें मिलजुल कर आत्ममंथन करना होगा।
इस चुनाव ने उत्तरी कर्नाटक, हैदराबाद कर्नाटक और मुंबई-कर्नाटक के क्षेत्रों को बीजेपी के लिए खोल दिया है। इससे पहले कभी भी प्रधानमंत्री ने इन इलाकों पर इतना ध्यान नहीं दिया था। इस बार कुछ जगहों पर मोदी का करिश्मा काम कर गया है। कांग्रेस का लिंगायत कार्ड धूल फांक रहा है।
यह जनादेश राजनीतिक विश्लेषकों के लिए बहुत दिलचस्प साबित हुआ है। इस चुनाव में क्या कारगर रहा और क्या नहीं, इसकी हज़ारों व्याख्याएं करने की संभावनाएं खुल गई हैं। नई सरकार के बनने तक कर्नाटक में बभी बहुत कुछ होना बाकी है। अपने टीवी सेट खुले रखिए।
कर्नाटक चुनाव की सम्पूर्ण कवरेज