रामजन्मभूमि आंदोलन की शुरुआत के साथ ही जनमानस में समाई राम की अभयमुद्रा वाली छवि को बदल दिया गया था। युद्ध को उद्धत रूप वाले राम के पोस्टर शहर-शहर लगे थे। इसका सीधा संबंध चुनावों से था और गाँधीवादी समाजवाद के नारे के साथ जन्मी भारतीय जनता पार्टी ने नब्बे के दशक की शुरुआत के साथ रामवादी पार्टी का मुखौटा ओढ़ लिया। यह सीधे-सीधे लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर वोट बटोरना था। ऐसा लगता है कि राम के बाद अब हनुमान की बारी है। हनुमान के बारे में सोचने पर उनकी छवि हमेशा राम के चरणों में बैठे सेवक वाली उभरती है। कम से कम कैलेंडर कला ने उनका यही रूप पहुँचाया है। दूसरी मशहूर छवि पर्वत हाथ में उठाकर उड़ते हनुमान की है। मंदिरों में वे आशीर्वाद मुद्रा में पाए जाते हैं। लेकिन अब “क्रोधित हनुमान “की एक नई छवि सामने आई है। पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक, जिसे हनुमान की जन्मस्थली भी कहा जाता है, ऐसे पोस्टरों और स्टीकरों की अचानक सप्लाई बढ़ गई है। ऐसा लगता है कि इसका संबंध 2018 में होने जा रहे कर्नाटक विधानसभा चुनावों से है। यानी राम के बाद अब हनुमान के इस्तेमाल की बारी है। बैंगलुरु में रह रहीं संवेदनशील लेखिका प्रचेता ने इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर प्रकाश डालने वाला यह लेख मीडिया विजिल को भेजा है-संपादक
मेरे हनुमान के नाम पर नहीं
प्रचेता
बचपन से हम मूर्तियों और कैलेंडरों जिन में हनुमान की तस्वीरों को देखकर बड़े हुए हैं, हमेशा उन मूर्तियों और चित्रों से मन को शान्ति मिलती थी (है) । पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान राम पृथ्वी को छोड़ने के लिए तैयार हुए, तो उन्होंने हनुमान जी से यहीं पृथ्वी पर रूककर उनके राज्य और समस्त संसार की देखभाल करने को कहा। यह माना जाता है कि हनुमान जी आज भी हमारे बीच हैं। आखिर हुआ क्या है और क्यों कि अचानक हनुमान इतने गुस्से में हैं? क्या कलियुग उनपर असर कर रहा है? इन पोस्टरों में उनकी सिकुड़ी भौहें और आंखों में बदले का भाव, एक ऐसी छवि बनाता है जो मेरे रोंगटे खड़े कर देता है। देने को कोई यह तर्क दे सकता है कि यह सिर्फ एक हानिरहित छवि है जो कई लोगों को अपील कर गयी होगी। मानने को मन तो करता है कि यह सब इतना ही सरल और निश्छल है, पर ऐसा है नहीं। जब भी कोई ट्रेंड होता है तो वह उस समय और जगह के सामाजिक माहौल के बारे में बहुत कुछ कहता है। प्रायः हम इस विषय में कुछ कर भी न पाएं , लेकिन इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
आजकल हमारे चारों ओर बहुत कुछ चल रहा है। अनकहा भय और दबा हुआ गुस्सा | इसे आसानी से आजकल बातचीत में, सोशल मीडिया पर और अक्सर टी वी समाचारों में महसूस किया जा सकता है। अक्सर एकांत में मैं यह सोचती और टटोलती हूँ कि क्या यह वाक़ई भय है ? हम यकायक क्यों इतना असुरक्षित हो गए हैं ? उस देश में जहाँ हिंदुओं आबादी 70% से अधिक है, ऐसा क्या हुआ है जो हिंदुओं असुरक्षित बना रहा है?
काश, इसका सीधा और सरल जवाब होता | यह एक परत दर परत बारीकी से समझने वाली घटना है जिसके लिए मनोविज्ञान, राजनीति और धार्मिक कट्टरता के अंतर संबंधों पर सोचने की आवश्यकता है
संस्कृति और धर्म के बारे में अनावश्यक संकेत जो असामान्य संदर्भों में जगह लेना शुरू कर चुके हैं , मुझे चिंतित कर जाते हैं | जब एक बुद्धिमान और शिक्षित व्यक्ति मुसलमानों से घृणा या सावधान होने का का कारण बताता है, तो मेरा मन विचलित हो उठता है । ऐसे विवाद अक्सर कही सुनी बातों और कुंठा का मिश्रण होते हैं।
एक बार मैंने अपने टैक्सी चालक, जिसकी कार में ऐसे ही क्रोधित हनुमान का स्टिकर था, के साथ वार्तालाप की | यह पूछने पर कि आपने इसी स्टिकर को क्यों चुना, वह बोला- ‘हम गर्वित हिन्दू हैं और इससे दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि हम डरपोक नहीं हैं और दुश्मन के खिलाफ चुप नहीं रहेंगे।’ जब मैंने वास्तविक खतरा नहीं होने के बारे में तथ्य दिए तो वह अनमना कर चुप हो गया । कुछ देर बाद वह बोला , “अगर वे हिन्दुओं को समाप्त नहीं करना चाहते तो इतने बच्चे क्यों पैदा करते हैं ?” मैंने इसका कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि यह उसका अपना विचार नहीं था | यही तर्क कई व्हाट्सप्प संदेशों पर और दूसरे सन्दर्भों में भी सामने आया है, और भविष्य में आने वाले “उस बदले के दिन” के लिए युवा व वयस्कों को तैयार रहने के लिए अनेकों फेसबुक पोस्टों पर देखने में आता है |
समाज अपने लोगों का ही प्रतिबिंब है और इसी तरह उनका भगवान भी। हम सब प्रतीकात्मकता को समझते हैं और इसलिए हम समझते हैं कि ऐसी छवियों के साथ क्या हो रहा है | यह नफरत है और आपको धर्म की रक्षा के नाम पर मरने के लिए तैयार किया जा रहा है और और यह बताया जा रहा है कि भगवान भी यही चाहता है | यह कहना मुश्किल है कि यह कब शुरू हुआ पर हम जानते हैं कि यह तेजी से बढ़ रहा है | क्या नफरत अब हमारी सामूहिक चेतना का हिस्सा है? कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मानव जाति वास्तव में इतनी नादान है?
यह सब मुझे एक नागरिक, एक व्यक्ति और हनुमान भक्त के रूप में भी परेशान करता है। बचपन में मैं स्वेच्छा से नास्तिक थी और बाद में हनुमान जी से खुद को जुड़ा हुआ महसूस किया। तब से वह करोड़ोंभारतियों की तरह, मेरे मार्गदर्शक हैं। राम का उपयोग पिछले दो दशकों में नफरत को उकसाने के लिए किया गया है, पर उनका चेहरा पोस्टरों और कैलेंडरों में मुस्कुराता हुआ छोड़ दिया गया था |
यह नाराज हनुमान का मामला एक सूक्ष्म संदेश दे रहा है | उनकी राम के प्रति वफादारी की भावना, और उनके लिए लिए लड़ जाने वाला जूनून। राम जन्म भूमि आंदोलन में न जाने कितने बेक़सूर मारे गए, इस मानव निर्मित पागलपन का हमारा देश इसका पर्याप्त नुकसान उठा चुका है। इस विषम समय में बदलती सामाजिक गतिशीलता के बारे में और सतर्क होने की आवश्यकता है |
यह गुस्से वाले हनुमान जी मेरे हनुमान नहीं हैं |
प्रचेता एक लेखिका और जीवन सलाहकार है जो अपने पिछले अवतार में माइक्रोसॉफ्ट में तक्नीकी विशेषज्ञ थी | वह बैंगलोर में रहती हैं और मानव व्यवहार, सामाजिक प्रवृत्तियों और राजनीतिक व्यंग्य के बारे में लिखती हैं। प्रचेता ट्विटर पर @prachetab