कर्नाटक: कर्ड को दही लिखने का आदेश वापस लिया जाना, अमूल का ट्वीट और फिर खंभा नोचना

कर्नाटक चुनाव प्रचार का एक पक्ष 

 

देश में ‘कश्मीर फाइल्स’ नामक फिल्म के सरकारी प्रचार के बाद गुजरात पर बीबीसी की फिल्म प्रतिबंधित हुई और कर्नाटक चुनाव के समय ‘दि केरला स्टोरी’ का प्रचार हुआ। बीबीसी के दफ्तर पर छापा और सरकार समर्थित फिल्म बनाने वालों पर टैक्स फ्री (की मांग) की बरसात हुई। ये घटनाएं या खबरें नामुमकिन मुमकिन होने के बाद की हैं। उसी क्रम में कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान कर्नाटक की संप्रभुता की बात पर एतराज और चुनाव आयोग द्वारा जवाब मांगने की खबरों के बीच आज के हिन्दुस्तान टाइम्स में मणिपुर हिंसा और कर्नाटक चुनाव प्रचार की खबरें ऐसे छपी हैं जैसे एक-दूसरे जुड़ी हों। भले ऐसा था नहीं पर कर्नाटक में भाजपा या सत्तारूढ़ पार्टी, खासकर प्रधानमंत्री की चुनावी सभा ऐसी रही जैसे इसके लिए मणिपुर को जलता छोड़ दिया गया हो। प्रधानमंत्री चुनावी रैली में बजरंग बली के नारे लगवाते रहे और इसपर चुनाव आयोग ने नोटिस दिया कि नहीं यह पता नहीं चला। नहीं दिया हो तो कारण समझना मुश्किल नहीं है और दिया हो तो क्या मतलब जब कुछ हुआ नहीं। 

मणिपुर हिंसा की टाइम्स ऑफ इंडिया ने शीर्षक में बताया है कि मणिपुर में 35000 लोग विस्थापित हुए हैं,  इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि 1700 घर जला दिये गए। अमर उजाला ने बताया है कि 10 हजार लोग फंसे हुए हैं। 20 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। अमर उजाला का एक उपशीर्षक है, गृहमंत्री शाह रख रहे नजर, राज्यों ने अपने नागरिकों व छात्रों को निकाला। मरने वाले 60 और 230 घायल बताये गए हैं।  पहली बार ये सूचनाएं मुख्यमंत्री के हवाले से हैं और खबरों में कहा गया है कि मुख्यमंत्री ने शांति की अपील की है। देश में आम नागरिक इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि घर पर विमान गिरने से मौत आ जाए तो खबर सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड है। दूसरी ओर, घर में घुसकर फ्रिज में रखा मांस देखने वाले यह भी नहीं चाहते हैं कि चोरों के उपनाम एक क्यों होते हैं – जैसा सवाल पूछा जाए। देश के कानून के तहत सजा दिलाने या सवाल को गैर कानूनी साबित करने के लिए उपनाम को जाति बनाकर प्रचारित किया गया और यह सब सत्तारूढ़ दल ने किया।

यह उसी दल की कहानी है जिसके पास चुनाव प्रचार के दौरान गिनाने के लिए काम नहीं था। तो वह या उसके स्टार प्रचारक जो संयोग से देश के प्रधानमंत्री भी हैं, अपनी तारीफ कम और कांग्रेस की आलोचना ज्यादा करते रहे। इसमें कर्नाटक की संप्रभुता की बात को भी मुद्दा बना दिया गया। यहां तथ्य यह भी है कि कर्नाटक चुनाव की घोषणा 30 मार्च को हुई थी और 30 मार्च की एक खबर है, “स्वास्थ्य मंत्रालय की संस्था भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने नई अधिसूचना जारी कर दही के पैकेट पर क्षेत्रीय भाषा का इस्तेमाल करने की मंजूरी दे दी है। अधिसूचना में कहा गया है कि दही को इन नामों से भी लेबल किया जा सकता है जैसे ‘कर्ड (दही)’, ‘कर्ड’ (मोसारू), ‘कर्ड’ (जामुत दोद), ‘कर्ड’ (तयैर)’ और ‘कर्ड (पेरुगु)’।“ इसी खबर में आगे बताया गया था, (एफएसएसएआई) ने हाल ही में एक आदेश जारी कर दक्षिण भारत में दही बनाने वाली सहकारी संस्थाओं से कहा था कि वे दही के पैकेट पर अंग्रेजी में कर्ड या दही लिखें। दही के स्थानीय विकल्पों का जिक्र नहीं होने से इसे हिन्दी थोपना माना गया और विवाद होने पर नया आदेश आया।  

इससे पहले, 30 दिसंबर 2022 को गृहमंत्री अमित शाह ने कर्नाटक के मांड्या में कहा था, “कर्नाटक के सभी किसान भाई-बहनों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि अमूल और नंदिनी दोनों मिलकर कर्नाटक के हर गांव में प्राइमरी डेयरी खोलने की दिशा में काम करेंगे। 3 साल बाद कर्नाटक का एक भी गांव ऐसा नहीं होगा, जहां प्राइमरी डेयरी नहीं हो।“ इसके तीन महीने बाद अमूल ने एक ट्वीट कर कहा कि अमूल परिवार बेंगलुरु शहर में कुछ ताजा ला रहा है। ज्यादा जानकारी जल्दी ही। कहने की जरूरत नहीं है कि कर्ड को दही लिखने के कथित दबाव के बाद लोगों ने इसे गुजरात के अमूल का कर्नाटक में प्रसार देखा। इसे आप जैसे देखिये, कई तरह से देखा जा सकता है और इसमें गुजरात मॉडल का विस्तार से लेकर स्थानीय ब्रांड या सहकारी प्रयास को खत्म करना शामिल है। आप इसे बड़ी मछली का छोटी को खा जाना जैसे सामान्य ढंग से देख सकते हैं। गुजरात मॉडल का विस्तार तो है ही। 

लेकिन कर्नाटक की संप्रभुता के मायने हैं और शायद इसीलिए मौका मिलते ही इसे बजरंग दल की तरह लपक लिया गया और बजरंगबली बनाकर फायदा उठाने की कोशिश की गई। पर वह अलग मुद्दा है। इरादा यही था – इसे पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है लेकिन लगता यही है। मोटे तौर पर यह इरादा, उसकी नाकामी और खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसा मामला बनता है और कर्नाटक का चुनाव प्रचार इस बार इसी सब पर केंद्रित रहा। अखबारों ने संप्रभुता मामले को हवा दी और नवोदय टाइम्स की लीड है, “कर्नाटक में ‘संप्रभुता’ के सवाल पर संग्राम”। यह ऐसे ही नहीं है। भाजपा ने इसके लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके साथ यह भी नोट कर लीजिये कि जिस एक शब्द पर भाजपा ने इतना हंगामा काटा है वह इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार सोनिया गांधी के भाषण में नहीं है। एक्सप्रेस की खबर की चर्चा आगे है। 

उससे पहले मामला समझने की कोशिश कीजिये। कांग्रेस ने हुबली में एक चुनावी रैली में सोनिया गांधी के भाषण का जिक्र करते हुए एक ट्वीट में कहा था कि कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष ने ‘‘6.5 करोड़ कन्नड़ लोगों को एक कड़ा संदेश दिया’’। पार्टी ने उनकी तस्वीर भी साझा की, जिसमें वह जनसभा को संबोधित करते दिख रही हैं। कांग्रेस ने ट्वीट किया था, ‘‘कांग्रेस किसी को भी कर्नाटक की प्रतिष्ठा, संप्रभुता या अखंडता के लिए खतरा पैदा नहीं करने देगी।’’भाजपा की ओर से शिकायत दर्ज कराने वाली केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने इस बयान को ‘‘चौंकाने वाला और अस्वीकार्य’’ बताते हुए कहा कि सोनिया ने आदर्श चुनाव आचार संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश जारी करने का भी अनुरोध किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस शाही परिवार कर्नाटक को भारत से ‘‘अलग करने’’ की खुलकर वकालत कर रही है। इसपर कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया था कि कांग्रेस शाही परिवार ने देश के लिए जान दी है। आज यह खबर या पंक्ति द टेलीग्राफ के अलावा कहीं नहीं दिखी। 

अमर उजाला ने कांग्रेस विरोध की इस खबर को लीड के साथ प्रकाशित किया है। शीर्षक है, भाजपा की शिकायत पर आयोग ने कांग्रेस को कहा – गलती सुधारें। कांग्रेस ने इसे गलत बयानी कहा है और मामला दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की है। ऐसी खबर भी अमर उजाला में है। इंडियन एक्सप्रेस में भी यह खबर लीड के साथ है और लीड मणिपुर के बारे में है। मणिपुर की खबर को द टेलीग्राफ ने लीड बनाया है। पहले पन्ने की अपनी खबरों में मणिपुर से कोलकाता पहुंचे लोगों के हवाले से उनका और वहां का हाल बताया गया है और ऐसी ही एक पीड़ित महिला से बातचीत का शीर्षक है, कहां जाएं? हम इसी देश के हैं। लीड का शीर्षक है, सैनिक का रिश्तेदार होने का भी फायदा नहीं मिला। 

टाइम्स ऑफ इंडिया ने मिग विमान गिरने से तीन महिलाओं की मौत की खबर को लीड बनाया है जबकि कर्नाटक चुनाव प्रचार विवाद को लीड के साथ बराबर में रखा है। इसमें एक बॉक्स है जिसका शीर्षक है, “ट्वीट पर युद्ध, चुनाव आयोग ने भाजपा की भी खिंचाई की”। इसके साथ कांग्रेस का बयान है, यह ऐसा शब्द नहीं है कि इसपर एतराज किया जाए। सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा ने कहा कि संवैधानिक अर्थ में इस शब्द का उपयोग अदालतों में संघ और राज्य दोनों के लिए किया जाता है। ऐसे में लगता है कि यह प्रधामंत्री की गलत समझ का मामला भी हो सकता है। लेकिन यह कोई पहली बार या पहला शब्द नहीं है।

कर्नाटक की संप्रभुता से संबंधित टिप्पणी के लिए भाजपा की शिकायत के बारे में इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, दो दिन पहले चुनाव प्रचार की एक सभा में कर्नाटक की संप्रभुता का समर्थन करने वाली सोनिया गांधी की कथित टिप्पणियों के लिए भाजपा के चुनाव आयोग के पास जाने के घंटों बाद आयोग ने सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे से स्पष्टीकरण देने और सुधार के उपाय करने के लिए कहा है। भाजपा ने एक पार्टी के रूप में कांग्रेस का पंजीकरण रद्द करने की मांग की है और चुनाव आयोग से अपील की है कि एफआईआर दर्ज कर सोनिया के खिलाफ सजा की कार्रवाई शुरू की जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि यह मांग उसी देश में सरकार चलाने वालों का चुनाव करने की प्रक्रिया में उस पार्टी ने की है जो सत्ता में है और जिसके शासन में यौन शोषण के आरोपी सासंद के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है, प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ दल के सांसद के खिलाफ फर्जी डिग्री और शपतपत्र देने के आरोपों पर सुनवाई नहीं हो रही है। 20,000 करोड़ रुपए के निवेश पर आवश्यक स्पष्टीकरण इंडियन एक्सप्रेस ने यह भी बताया है कि यह मांग किन धाराओं के तहत की गई है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

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