30 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम 23 दिसंबर आ गया है। उम्मीद के अनुसार ही महागठबंधन (झामुमो-कांग्रेस-राजद) को स्पष्ट बहुमत (झामुमो-30, कांग्रेस-16, राजद-1) के साथ 81 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटें मिली हैं और सत्तासीन भाजपा को मात्र 25 सीटें मिली हैं। यहां तक कि झारखंड में पहली बार 5 साल तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहने वाले रघुवर दास को भी अपनी सुरक्षित सीट जमशेदपुर पूर्वी से हार का सामना करना पड़ा है।
इस चुनाव में एक तरफ एनडीए (भाजपा, जदयू, लोजपा, आजसू) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन में तीन मजबूत दलों (झामुमो-कांग्रेस-राजद) ने पूरी एकजुटता के साथ चुनाव को लड़ा। वाम मोर्चा ने महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा, लेकिन कई सीटों पर वामदलों के प्रत्याशी आपस में भी लड़े। वामपंथी दलों में सिर्फ भाकपा (माले) लिबरेशन को ही एक सीट मिली, जबकि मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) को झारखंड में पहली बार एक भी सीट नहीं मिली। 2014 केे चुनाव में वामपंथी पार्टियों को 2 सीटें मिली थी, जिसमें निरसा से मासस के अरूप चटर्जी व धनवार से भाकपा (माले) लिबरेशन के राजकुमार यादव जीते थे। इस बार इन दोनों को तीसरा स्थान मिला।
अब जबकि चुनाव परिणाम आने के बाद लगभग स्पष्ट हो चुका है कि महागठबंधन के मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए गये झाामुमो केे हेमंत सोरेन अगले मुख्यमंत्री होंगे (शायद 27 या 28 सितंबर को रांची के मोहराबादी मैदान में वे शपथ लेंगे)। तब सवाल उठता है कि क्या झारखंड के आदिवासी-मूलवासी जनता की उम्मीदें नयी सरकार से पूरी होगी
नयी सरकार से उम्मीदें:
पिछले पांच सालों से विप़क्ष में रहते हुए झामुमो ने जिस-जिस आंदोलन को समर्थन किया व भाजपा सरकार की जिन-जिन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ उन्होंने सड़क से लेकर विधानसभा तक में आंदोलन किया, अब जब वे खुद सरकार में होंगे, तो उन सवालों पर उनका रूख क्या होगा? क्योंकि झारखंड के आदिवासी-मूलवासी जनता के सामने आज भी वे तमाम सवाल जस के तस खड़े हैं और वे सवाल उनके जीवन-मरण से जुड़े हुए हैं।
Chief Minister designate of Jharkhand Hemant Soren: Hemant Soren in Ranchi: I am leaving for Delhi today, to invite Congress leaders Sonia Gandhi Ji, Rahul Gandhi Ji and Priyanka Gandhi Ji for the oath-taking ceremony on 29th December pic.twitter.com/TvXjVGlnzF
— ANI (@ANI) December 25, 2019
एक बात तो स्पष्ट है कि झारखंड गठन के 19 साल बाद भी झारखंडी जनता के अलग राज्य के साथ जो आकांक्षा जुड़ी हुई थी, वह पूरी नहीं हुई है और इसे पूरा नहीं होने के पीछे सभी सत्तधारी राजनीतिक दल दोषी हैं, चाहे वह झामुमो ही क्यों न हो। झामुमो ने सिर्फ कुर्सी की चाहत में आदिवासी-मूलवासी विरोधी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी व भाजपा को झारखंड में फलने-फूलने का मौका दिया। आज झामुमो कोे अपनी गलती सुधारने का मौका मिला है, इसलिए झारखंड की नयी सरकार को केंद्र की ब्राह्मणीय-हिन्दुत्व-फासीवादी नरेंद्र मोदी सरकार की उन तमाम नीतियों के खिलाफ (जो झारखंड की आदिवासी-मूलवासी जनता के साथ-साथ पूरे देश की मेहनतकश जनता के हित के खिलाफ में है) डटकर व तनकर खड़ा होना चाहिए, ताकि झारखंड की जनता की उम्मीदों पर कुठाराघात न हो।
झारखंड की जनता की उम्मीदों के मुताबिक नयी सरकार को शपथ ग्रहण के बाद अविलंब निम्नलिखित घोषणाएं करनी चाहिए, जिसपर झारखंड की जनता पिछले दिनों आंदोलित रही है-
- एनआरसी व सीएए को झारखंड में लागू न करने की घोषणा करनी चाहिए,
- पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान हजारों लोगों पर दर्ज देशद्रोह के मुकदमे को वापस लेना चाहिए और इस मुकदमे के तहत जेल में बंद सभी आंदोलनकारियों की रिहाई की घोषणा करनी चाहिए,
- पारा शिक्षकों समेत सभी अनुबंधकर्मियों की नौकरी को स्थायी करनी चाहिए,
- 9 जून 2017 को गिरिडीह जिला में कोबरा द्वारा मारे गये डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या की न्यायिक जांच करवानी चाहिए,
- सीएनटी व एसपीटी एक्ट में भविष्य में किसी भी प्रकार के संशोधन न करने की शपथ लेनी चाहिए,
- आदिवासी-मूलवासी विरोधी भूमि अधिग्रहण संशोधन को कभी लागू नहीं करने की घोषणा करनी चाहिए,
- सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की घोषणा करनी चाहिए,
- देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ किये गये तमाम जनविरोधी एमओयू को अविलंब रद्द कर देना चाहिए,
- अडानी को गोड्डा में पावर प्लांट के लिए दी गयी भूमि वापस ले लेनी चाहिए,
- मजदूर संगठन समिति समेत कई प्रगतिशील-जनवादी संगठनों पर झारखंड सरकार द्वारा लगाए गये प्रतिबंध को वापस लेना चाहिए,
- ग्रामीण इलाकों से अर्द्धसैनिक बलों के कैंपों को अविलंब हटाना चाहिए,
- माओवादी का टैग लगाकर फर्जी मुकदमे के तहत जेल में बंद आदिवासियों-मूलवासियों की अविलम्ब रिहाई सुनिश्चित करनी चाहिए,
- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची का नाम बदलकर बिरसा मुंडा विश्वविद्यालय करना चाहिए,
- मोब लिंचिंग के आरोपियों को कठोर सजा सुनिश्चित की जानी चाहिए,
- राज्य में साम्प्रदायिक तत्वों पर कड़ी निगरानी रखने की व्यवस्था करनी चाहिए,
- संथाली, मुंडारी, हो, कुड़ूक, खोरठा आदि क्षेत्रीय भाषा व क्षेत्रीय लिपि को भी प्रोत्साहित करना चाहिए,
- आदिवासी-मूलवासी जनता की इज्जत-अस्मिता व जल-जंगल-जमीन पर उनके परंपरागत अधिकार की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए,
- राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा की भी गारंटी की घोषणा करनी चाहिए,
- किसानों के कर्ज को माफ कर देना चाहिए,
- उच्च शिक्षा को आदिवासी-मूलवासी जनता के लिए सुलभ करने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड सरकार की जनविरोधी नीतियों का भंडाफोड़ करने के कारण माओवादी होने का आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया गया था, ये 6 दिसंबर को जमानत पर रिहा हुये हैं)