श्रम कानूनों को निरस्त करके 12 घंटे के कार्य दिवस थोपने, न्यूनतम वेतन और हड़ताल का अधिकार छीनने का प्रावधान करने वाली श्रम संहिता के खिलाफ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत संगठित और असंगठित क्षेत्र की देशव्यापी हड़ताल के साथ छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े कई किसान संगठनों ने आज एकजुटता व्यक्त करते हुए पूरे प्रदेश में आंदोलनकारी मजदूरों के समर्थन में प्रदर्शन किया। वहीं कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा आहूत देशव्यापी किसान आंदोलन के तहत 27 नवंबर को राज्य में जगह-जगह किसानों के प्रदर्शन होंगे और किसान श्रृंखलाएं बनाई जाएंगी।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन ने मजदूर संगठनों की सफल आम हड़ताल के लिए देश के मजदूरों और आम जनता को बधाई दी है। राजनांदगांव, सरगुजा, कांकेर और कोरबा सहित कई जिलों से एकजुटता प्रदर्शन की खबरें हैं। छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि जिला किसान संघ के नेतृत्व में जहां राजनांदगांव में और किसान सभा के नेतृत्व में अंबिकापुर और कोरबा में मजदूरों के साथ मिलकर प्रदर्शन किया गया और श्रम कानूनों को बहाल करने की मांग की गई, वहीं कांकेर के दूरस्थ आदिवासी अंचल कोयलीबेड़ा में एक सभा के जरिये संविधान रक्षा की शपथ ली गई। अन्य जिलों में भी प्रदर्शन की खबरें हैं।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा देश को कॉर्पोरेट गुलामी की ओर धकेलने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है। दुनिया में आज कहीं भी 12 घंटों का कार्य दिवस नहीं है। न्यूनतम वेतन और हड़ताल के जरिये सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार मजदूरों ने पूंजीपतियों से लड़कर हासिल किया है। लेकिन आज फिर मजदूरों को दासता के युग में धकेला जा रहा है। देश की राष्ट्रीय संपत्ति को कार्पोरेटों की तिजोरियों में कैद करने के साथ ही अब मजदूरों से उनके जीवन और आराम करने का अधिकार छीनकर उसे कॉर्पोरेट मुनाफे के हवन-कुंड में झोंका जा रहा है। इसी प्रकार किसान विरोधी कानूनों के जरिये खेती-किसानी के अधिकार और नागरिकों की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया गया है। इसलिए मजदूर-किसानों का यह देशव्यापी संघर्ष आम जनता का संघर्ष भी बन गया है।
किसान नेताओं ने हरियाणा में मजदूर-किसान नेताओं को गिरफ्तार करने की, दिल्ली में प्रदर्शन करने जा रहे किसानों को रोकने की कोशिशों की और उन पर आंसू गैस के गोले और पानी की बौछार मारने की मोदी सरकार की हरकत की कड़ी निंदा की है। इस प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ के किसान भी प्रतीकात्मक तौर से हिस्सा लेने जा रहे हैं और 27 नवंबर को पूरे प्रदेश में प्रदर्शन करने, मोदी सरकार के पुतले जलाने और किसान श्रृंखलाएं बनाने का आह्वान किया गया है।
इन विरोध प्रदर्शनों के जरिये मोदी सरकार से कृषि विरोधी तीनों काले कानून और बिजली कानून निरस्त करने, सभी फसलों, सब्जियों, वनोपजों और पशु-उत्पादों का सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, खेत मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन और रोजगार की गारंटी का कानून बनाने की मांग की जाएगी।
इसके साथ ही छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार से भी मांग की जा रही है कि केंद्र के कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए पंजाब की तर्ज़ पर वह एक सर्वसमावेशी कानून बनाये। किसान नेताओं ने राज्य के मंडी कानून में संशोधनों को अपर्याप्त और केंद्र के किसान विरोधी कदमों का अनुगामी करार दिया है और इसका तीखा विरोध किया है।
किसान आंदोलन के नेताओं ने कहा है कि आगामी दिनों में पूरे प्रदेश के किसान संगठनों को एकजुट करके कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ प्रतिरोध को और तेज किया जाएगा। यह संघर्ष तब तक चलेगा, जब तक कि इन मजदूर-किसान विरोधी कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता। उन्होंने पूरे प्रदेश के किसान समुदाय से इन संघर्षों में शामिल होने की अपील की है।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते द्वारा जारी