लॉकडाउन में शराब की दुकानें खोलने का ऐपवा ने किया विरोध

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अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोशिएसन (ऐपवा) की ओर से लखनऊ में “महिला हिंसा पर रोक लगाओ, शराब की दुकानें बंद कराओ,” “शराब नहीं रोजगार दो जीने का अधिकार दो” नारे के साथ महिलाओं ने प्रतिवाद दर्ज कराया.

इस अवसर पर जारी बयान में ऐपवा की संयोजिका मीना सिंह ने कहा है कि, एक ओर मजदूर बेरोजगार हैं, उनके पास खाने की व्यवस्था नहीं, इधर सरकार ने शराब की दुकान खोल दिया. इससे गरीब, मजदूर परिवारों के अंदर तनाव बढ़ गया है, महिला हिंसा की घटनाएं लॉकडाउन में बढ़ गई हैं.

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में जिस दिन शराब की दुकान खोली गई उसी दिन एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी क्योकि उसने अपने गहने देने से मना कर दिया था. ये तो एक उदाहरण है इस तरह की घटनाएं पूरे देश मे घट रही हैं. इसलिए हम सरकार से मांग करते है कि शराब की दुकानें पूरी तरह से बंद की जायें.

ऐपवा संयोजिका मीना सिंह ने कहा कि “आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है, पर हमारे देश में यह प्राकृतिक आपदा के साथ साथ मानव निर्मित आपदा है.

उन्होंने कहा कि जनवरी से ही विदेशों से आ रहे कोरोना मरीजों के माध्यम से देश में इसके फैलाव को रोकने के लिए जो प्रभावी कदम सही समय पर उठाए जाने चाहिए थे, वे नहीं उठाए गए. फरवरी में ट्रम्प का स्वागत होता रहा, मध्य मार्च तक मध्यप्रदेश में सरकार बनती रही.

“फरवरी अंत में जब लॉकडाउन का एलान हुआ, तो यह बिना किसी तैयारी के, बिना किसी योजना के, बिना लोगों को अपने घरों तक जाने का मौका दिए, एकदम अचानक नाटकीय अंदाज़ में किया गया.

नतीजा यह हुआ कि जो जहां था वहीं फंस गया.

इसका सबसे भयानक/बदतरीन शिकार प्रवासी मजदूर हुए. अचानक उनका काम धंधा बंद हो गया. वे अपने दरबानुमा कमरों में सट सट के रातदिन रहने को मजबूर हो गए.

इन हालात में जरूरत थी कि सरकार और उनके मालिक यह सुनिश्चित करते कि उन्हें भरपेट भोजन मिलता रहे.

लेकिन यह नहीं हुआ. मजदूर आधे पेट खा कर इस संकट के निकल जाने का इंतज़ार करते रहे. लेकिन इसकी अवधि बढ़ती गई, अब इसके 50 दिन हो चुके हैं.

कई  संगठनों ने, अर्थशास्त्रियों ने मांग किया कि मजदूरों के खाते में सरकार 5-10 हजार रुपये डाले ताकि वे भरपेट भोजन खा सकें. लेकिन सरकार ने इसे नहीं माना।

अंततः मजदूरों का धैर्य जवाब दे गया.

वे अपने परिवार के साथ, दुधमुंहे बच्चों, गर्भवती महिलाओं के साथ हज़ारों किलोमीटर की यात्रा पर पैदल अपने गांवों की ओर निकल पड़े. थके, घिसटते, भूखे प्यासे वे पुलिस के डंडे खा रहे, यहाँ तक कि महिलाओं ने रास्ते मे ही बच्चों को जन्म दिया है. वे रास्ते में चलते-चलते दम तोड़ते रहे हैं, ट्रेन से कट रहे, हाई वे पर कुचल कर मर रहै हैं. इस यातना का वर्णन नहीं हो सकता.

“A C ट्रेन चल रही हैं, जो उनके बस के बाहर हैं

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में उनका कोई जिक्र ही नहीं किया, संवेदना तो दूर की बात है उनके घर पहुंचने का कोई प्रबन्ध भी नहीं किया.


विज्ञप्ति पर आधारित 


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