बिहार विधानसभा में विधायकों की पिटाई के कलंक से कैसे बचेंगे नीतीश?

‘नीतीश कुमार ने अपने दामन को बचाते हुए लोकतंत्र के दामन पर लगे कलंक को मिटाने के लिए कौन सा ठोस कदम उठाया? जवाब साफ है कि अब तक कुछ भी नहीं। जबकि खुद नीतीश कुमार मानते हैं कि इसके लिए जिम्मेवार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा है। लेकिन अब तक वो अपने पद पर बने हुए हैं। नीतीश कुमार सुशासन की बात करते हैं लेकिन इस घटना पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। वहीं दूसरी तरफ राजद के नेता सहित महागठबंधन के तमाम पार्टियों के नेता विधानसभा के अध्यक्ष को सवालों के घेरे में लाने से बचते रहे हैं.'

23 मार्च को बिहार विधानसभा में जो हुआ, वह आजाद भारत के इतिहास में शायद पहली घटना है, जब विधानसभा के अंदर हथियार बंद पुलिसबल व सफेदपोश गुंडों ने विपक्ष के विधायकों पर हमला किया। जहां महिला विधायकों को भी नहीं बख्शा गया, उनके साथ भी बदसलूकी की गई।

ऐसे में यह सवाल उठना लजिमी हो जाता है कि विधानसभा सभा के भीतर ऐसे कुकृत्य का जिम्मेदार कौन है? तब इस सवाल पर एक और सवाल खड़ा होता है कि सदन चलाने की जिम्मेदारी किसकी है? जवाब स्पष्ट और साफ है कि सदन चलाने की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष की होती है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उक्त घटना का ठीकरा विधानसभा अध्यक्ष के सिर पर फोड़ते हुए कहते हैं कि सदन चलाने की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष की होती है, अत: उनके निर्देश पर ही बाहरी हस्तक्षेप हुआ है। वहीं नीतीश कुमार के बचाव में गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक खड़े नजर आते हैं। दोनों ने स्पष्ट कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर ही पुलिस ने अंदर प्रवेश किया।

जबकि विपक्ष का कहना है कि ऐसा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इशारे पर हुआ है। अगर ऐसा है तब एक और सवाल खड़ा होता है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष का अपना कोई अस्तित्व नहीं है?

बता दें कि विधानसभा सभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा एनडीए गठबंधन के अंतर्गत भाजपा से हैं।

बता दें कि 26 मार्च को किसान संगठनों द्वारा आहूत भारत बंद के दौरान सीपीएम्, भाकपा माले एवं राजद ने सयुंक्त रूप से बिहार के पटना में एक मार्च निकाला। मार्च के दौरान विपक्ष तीनों कृषि कानून व पुलिस राज अधिनियम 2021 को वापस लेने संबंधी नारों के साथ साथ ”नीतीश कुमार बिहार की जनता से माफी मांगो, डीजीपी व डीएम पर कार्रवाई करो, लोकतंत्र की हत्या बंद करो, बुद्ध की धरती को पुलिसिया राज में बदलने की साजिश मुर्दाबाद, बिहार को यूपी बनाना बंद करो,” के बैनर पोस्टर के साथ नारा लगाता रहा।

उल्लेखनीय है कि पहले तो एनडीए गठबंधन के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस घटना पर मुंह चुराते नजर आये लेकिन विपक्ष ने जब घेरना शुरू किया तो उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया और कहा कि सदन चलाने की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष की होती है ना कि हमारी। लेकिन उन्होंने अभी तक इस घटना पर कोई अफसोस जाहिर नहीं किया। जो विपक्ष के आरोप को ठोस आधार देता है, जो इस बात का प्रमाण है कि इस घटना से नीतीश कुमार की आत्मा को कोई ठेस नहीं पहुंची है, बल्कि वे अपना दामन को बचाने के लिए अपनी सफाई दे रहे हैं।

इन तमाम मसलों पर कई सवालों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता व दलित चिंतक डा. अंजनी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछते हैं कि ‘नीतीश कुमार ने अपने दामन को बचाते हुए लोकतंत्र के दामन पर लगे कलंक को मिटाने के लिए कौन सा ठोस कदम उठाया? जवाब साफ है कि अब तक कुछ भी नहीं। जबकि खुद नीतीश कुमार मानते हैं कि इसके लिए जिम्मेवार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा है। लेकिन अब तक वो अपने पद पर बने हुए हैं। नीतीश कुमार सुशासन की बात करते हैं लेकिन इस घटना पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। वहीं दूसरी तरफ राजद के नेता सहित महागठबंधन के तमाम पार्टियों के नेता विधानसभा के अध्यक्ष को सवालों के घेरे में लाने से बचते रहे हैं और वो सिर्फ नीतीश कुमार को इस घटना के लिए जवाबदेह मानते हैं, जबकि कायदे से सोचा जाए तो इस घटना के लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री से पहले विधानसभा अध्यक्ष हैं, क्योंकि सदन चलाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की नहीं, विधानसभा अध्यक्ष की होती है। आखिर क्या मजबूरी है कि विपक्ष विधानसभा अध्यक्ष पर सवाल उठाने से कतरा रहा है? लगता है कि विपक्षी दल भी इस कुकृत्य को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, क्योंकि विपक्षी दल सतही ढंग से संकीर्ण आधार पर ही लड़ रहे हैं।’

दूसरी तरफ भाजपा के शीर्ष नेता इस घटना पर प्रतिक्रिया देने से अब तक बचते नजर आ रहे हैं। बात-बात में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ट्वीट करते हैं, लेकिन इतनी बड़ी घटना पर आज तक इस ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है।

सवाल ये नहीं कि पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने का आदेश कौन दे रहा था?  सवाल उठता है कि आखिर उसे बुलाया किसने? ज़ाहिर है विधानसभा अध्यक्ष सवालों के घेरे में हैं।

पक्ष और विपक्ष के अबतक के बयानबाजी से यही लगता है कि कोई भी विधानसभा के अंदर हुई घटनाओं से मर्माहत नहीं है। बस सब अपनी कुर्सी बचाने और कुर्सी पाने की राजनीति कर रहे हैं।

इस घटना पर कई सवालों पर एक बड़ा सवाल है कि जो पार्टी दिन रात यह कहती रही है कि फासीवादी तानाशाही के खिलाफ हमें लड़ना होगा उसे खुद फासीवाद की आहट समझ में नहीं आ रही है। अब इससे बड़ी घटना क्या होगी जब विपक्षी दलों के नेताओं व विधायकों को सदन के बाहर पीटते हुए बाहर कर दिया जाए। लेकिन फासीवादी पार्टी के अध्यक्ष के खिलाफ चूं तक नहीं बोल पाते हैं। यहां तक कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी उनकी बैठक के कॉल पर उनके दरबार में हाजिरी देने पहुंच जाते हैं।

भले ही विपक्ष के लिए यह कोई बड़ा सवाल नहीं हो, लेकिन एक नागरिक के लिए ये घटना मर्माहत कर देनेवाली है। लोकतांत्रिक मुल्क के नागरिकों के सामने ये सवाल हमेशा बना रहेगा कि इतनी बड़ी घटना पर अब तक दोषियों को जेल क्यों नहीं भेजा गया?

डा. अंजनी अह्वान करते हुए कहते हैं कि आइये, ‘एक नागरिक की हैसियत से अपने लोकतंत्र व संविधान को बचाने के लिए अपनी आवाज को बुलंद करें। अगर आप पक्ष और विपक्ष के पीछे चुप्पी साधे रहेंगे तो ना आपका संविधान बचेगा, ना लोकतंत्र! यहां तक कि आप एक नागरिक होने का अधिकार भी खो देंगे।’

यहां तक की इस मसले पर साफ-साफ बोलने से बुद्धिजीवी वर्ग भी हिचकिचाहट में हैं, वे भी किसी ना किसी का पक्षधर होकर अपना बयान दे रहे हैं और विषय की गंभीरता पर साफ-साफ बोलने से कतराते नजर आते हैं।

बता दें कि विधानसभा में विधायकों की पिटाई पर 26 मार्च को तेजस्वी यादव ने एक बड़ा बयान दिया, उन्होंने जो कहा वह कई सवाल खड़े करता है। उन्होंने कहा है कि उनकी नाराजगी बिहार विधानसभा अध्यक्ष से नहीं है। अध्यक्ष हमारे संरक्षक हैं और विधानसभा अध्यक्ष के कहने पर पुलिस ने पिटाई नहीं की। बल्कि नीतीश कुमार के कहने पर विपक्ष के विधायकों के साथ मारपीट की गई। तेजस्वी ने कहा कि नीतीश सरकार विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव बनाने की कोशिश ज़रूर कर रही है लेकिन उन्हें अध्यक्ष पर पूरा भरोसा है।

वे अपने बड़े चाचा के निधन की वजह से वह 26 के भारत में शामिल नहीं हो पाए थे।


लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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