राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके तमाम आनुषंगिक संगठनों की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत के लगभग 80 फ़ीसदी लोग मानते हैं कि देश सबका है, न कि सिर्फ़ हिंदुओं का। यानी हिंदुत्व के राजनीतिक प्रचार के उलट वे धार्मिक बहुलतावाद के समर्थक हैं। यह निष्कर्ष सडीएस-लोकनीति के ताज़ा सर्वे का है। विकासशील समाजों के अध्ययन के प्रतिष्ठित केंद्र के रूप में मशहूर सीएसडीएस-लोकनीति के 19 राज्यों में हुए इस सर्वे में अधिकतर लोगों ने धार्मिक बहुलतावाद को अपना समर्थन दिया। लोकनीति ने यह सर्वेक्षण अंग्रेजी अख़बार द हिंदू के लिए किया है।
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि भारत में धार्मिक बहुलतावाद का इतिहास बहुत पुराना रहा है। आज भी भारत में धार्मिक बहुलतावाद की भावना अधिकतर लोगों में बची हुई है। रिपोर्ट कहती है कि सर्वे में शामिल 79 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि भारत में सभी धर्म समान हैं, कोई धर्म विशेष नहीं है। दिलचस्प बात ये है कि इस तरह का विचार रखने वाले लोगों में हिन्दुओं की संख्या ज़्यादा है जिन्हें गोलबंद करके आरएसएस-बीजेपी हिंदू राष्ट्र का विचार प्रचारित कर रहे हैं। भारत के 10 में से 8 लोग धार्मिक बहुलतावाद का समर्थन करते हैं। लोगो का मानना है कि भारत को ऐसा देश होना चाहिए जहाँ सभी लोग अपने-अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन कर सकें। हालाँकि 11 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि भारत केवल हिन्दुओं का देश है। जबकि 10 फ़ीसदी लोगों ने इस पर अपना कोई निर्णय नहीं दिया कि भारत हिन्दुओं का देश है या सभी धर्मों का।
रिपोर्ट के अनुसार, बुजुर्गों से अधिक युवा मानते हैं कि भारत सभी धर्मों का देशों हैं। लेकिन बुजुर्गों की संख्या भी कम नहीं है, 73 फ़ीसदी बुजुर्ग लोग मानते हैं कि भारत सभी धर्मों का देश है। जबकि 81 फ़ीसदी युवा भी इस बात से सहमत है कि भारत सभी धर्मों का देश हैं।
रिपोर्ट के अनुसार 73 फ़ीसदी अशिक्षित लोगों की तुलना में 83 फ़ीसदी शिक्षित लोग भारत को सभी धर्मों के देशों के रूप में देखते हैं। इसके अलावा ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों की तुलना में शहरी परिवेश में रहने वाले लोग धार्मिक बहुलतावाद के पक्ष में अधिक हैं।
लोकनीति 1997 में स्थापित सीएसडीएस (विकासशील समाजों के अध्ययन के लिए केंद्र) का एक अनुसंधान कार्यक्रम है जिसके तहत विभिन्न सर्वेक्षणों के ज़रिए समाज की गति और बदलावों का अध्ययन किया जाता है ।