डॉ.आम्बेडकर ने बंबई में किया स्वामी सहजानंद का सम्मान

 


डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 31

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन  का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और  समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की  /इकतीसवीं कड़ी – सम्पादक

 

 

 

197.

 

जब आंबेडकर काॅंग्रेस के संघर्ष में शामिल होंगे

सहजानन्द के सम्मान समारोह में घोषणा

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 27 दिसम्बर 1938)

 

‘मैं यह लिखित में देने को तैयार हूॅं कि इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी और उसके प्रवक्ता के रूप में मैं भारतीय राष्ट्रीय काॅंग्रेस के किसी भी संघर्ष में शामिल हो जायेंगे, यदि वह संघ (फेडरेशन) के विरुद्ध लड़ाई शुरु करती है।

‘मैं यह लिखकर देने को तैयार हूॅं कि यदि काॅंग्रेस के मन्त्री संघ के विरोध में अपने पदों से इस्तीफा दे देते हैं, तो इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी उन रिक्त पदों को हासिल नहीं करेगी, और अपनी समस्त शक्ति तथा प्रभाव का उपयोग दूसरों को प्रशासनिक तन्त्र चलाने से रोकने के लिए करेगी।’

यह घोषणा डा. बी. आर. आंबेडकर ने एक सम्मान-समारोह में की थी, जो उन्होंने रविवार की दोपहर अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष स्वामी सहजानन्द के लिए आयोजित किया था, जिसमें अनेक श्रमिक नेता, क्रान्तिकारी और पत्रकार आमन्त्रित थे।

‘मुझे पूरी तरह पता है कि हम भारत में सबसे अधिक भूखे कुत्ते हैं। हम सबसे अधिक पददलित, गरीबी से ग्रस्त और पीड़ित लोग हैं। हम जिस तरह के अन्याय भोगते हैं, वैसा कोई अन्य वर्ग नहीं भोगता है। किन्तु हम इसी क्षण उच्च वर्गों के साथ अपने मतभेदों को समाप्त कर देंगे। हम अपने वर्ग की माॅंगों पर भी जोर देना बन्द कर देंगे, और काॅंग्रेस में शामिल हो जायेंगे, यदि वह साम्राज्यवाद से लड़ने का निश्चय करती है।’

यह घोषणा उस टिप्पणी के सन्दर्भ में की गई थी, जिसमें स्वामी सहजानन्द ने कहा था कि सभी को काॅंग्रेस में शामिल हो जाना चाहिए।

उन्होंने माना कि काॅंग्रेस एक साम्राज्य-विरोधी संगठन था, जिसके पास साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष की ऐसी परम्परा थी, जिसका दावा कोई भी दूसरी पार्टी नहीं कर सकती। जिस तरह इसके नाम और उद्देश्यों को पूरे देश के लाखों मजदूर और किसान जानते हैं, उस तरह किसी अन्य राजनीतिक संगठन को नहीं जानते हैं और यही जनता में वर्ग-चेतना का निर्माण करके इसे उसके वर्तमान नेतृत्व से बचा सकता था।

‘मैं इस देश के लोगों के समान शत्रु विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने के उनके प्रयास में सभी वर्गों के एक संयुक्त राजनीतिक संगठन की आवश्यकता को समझ सकता हूॅं। मैं इस समान शत्रु के विरुद्ध लड़ाई की स्थिति में समस्त राजनीतिक संगठनों के अस्थाई विघटन का समर्थन करुॅंगा। इस उद्देश्य के लिए मुझे इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का विघटन करके और अपनी शक्तियों को भारतीय राष्ट्रीय काॅंग्रेस के नियन्त्रण में सौंपकर खुशी होगी, मगर तब, जब वह साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ाई आरम्भ करती।’

डा. आंबेडकर ने उत्तर में कहा, ‘किन्तु आज स्थिति यह है कि काॅंग्रेस साम्राज्य-विरोधी लड़ाई में शामिल नहीं है। आज वह संवैधानिक तन्त्र का उपयोग पूॅंजीपतियों के हितों और अन्य निहित स्वार्थों को आगे बढ़ाने में कर रही है।वह मजदूरों और किसानों के हितों की बलि देकर उनको मजबूत करने में लगी हुई है।

‘इसकी प्रशासनिक गतिविधियों का गुणगान जनता नहीं, बल्कि स्वयं वह साम्राज्यवाद कर रहा है, जिससे इसे लड़ना था।

‘इस प्रकार जब काॅंग्रेस इस वर्ग के हितों को आगे बढ़ाने में विभाजित शक्तियों का भी शोषण कर रही है, तो हमें अपने हितों की रक्षा के लिए अपना स्वयं का वर्ग संगठन स्थापित करने और काॅंग्रेस या किसी अन्य मन्त्री द्वारा हमारे अधिकारों और हमारी स्वतन्त्रताओं के अतिक्रमण का विरोध करना हमारा स्पष्ट कर्तव्य बन जाता है। ऐसी स्थिति में काॅंग्रेस में शामिल होना हमारे लिए आत्मघाती कदम होगा।’

 

गलती पर नेतृत्व

 

स्वामी सहजानन्द का मुख्य तर्क यह था कि काॅंग्रेस की वर्तमान नीति के लिए उसका गलत नेतृत्व जिम्मेदार था। इस वर्तमान नेतृत्व को उखाड़ फेंककर और जनता के नेतृत्व को स्थापित करके नीति को बदला जा सकता है, और अगर अभी तक वर्तमान नेतृत्व को उखाड़ कर नहीं फेंका गया, तो इसलिए कि जनता में वर्ग-चेतना नहीं थी।

आज हमारा मुख्य काम जनता में वर्ग-चेतना उत्पन्न करना है। उसके बाद वर्तमान नेतृत्व अपने आप ही खत्म हो जायेगा।

डा. आंबेडकर ने कहा, ‘अगर हम काॅंग्रेस को अधिकार में लेने में सक्षम हैं, तो वर्तमान नेतृत्व को एक और संगठन बनाने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं है। इस प्रकार काॅंग्रेस पर कब्जा करने का वह मुख्य उद्देश्य विफल हो जाता है, जो पूरे देश में एक राजनीतिक संगठन का होना है।’

इन सभी आपत्तियों पर स्वामी जी का उत्तर था कि यह काॅंग्रेस ही है, जिसने जनता को जगाया है, और काॅंग्रेस ही है, जिस पर जनता भरोसा और विश्वास कर सकती है।

‘सबसे पहले इस राष्ट्र को विदेशी शासन से मुक्त कराना है, और इस मकसद के लिए सभी मौजूदा शक्तियों को एकजुट होने की जरूरत है,’ उन्होंने कहा, ‘और काॅंग्रेस अपने पिछले अनुभवों तथा परम्पराओं के साथ यह काम करने में सबसे अधिक सक्षम है।’

इस स्थिति में ही इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आबेडकर ने उपरोक्त वक्तव्य दिया कि वे और उनकी पार्टी ऐसे किसी भी आन्दोलन में शामिल होने के लिए तैयार है, जो काॅंग्रेस द्वारा संघ से लड़ने के लिए या साम्राज्यवाद को खत्म करने के लिए आरम्भ किया जायेगा, वे और उनकी पार्टी उन मन्त्री पदों को भी स्वीकार नहीं करेंगे, जो काॅंग्रेस द्वारा इस्तीफा देने से रिक्त होंगे, और वे दूसरों को भी संविधान का समर्थन करने के लिए मन्त्रि पदों का उपयोग नहीं करने देंगे।

स्वामी सहजानन्द इस घोषणा से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने कहा कि वर्तमान काॅंग्रेस के नेता अब चाहे जो कहें या करें, पर साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई बन्द नहीं होगी।

 

198.

 

डा. आंबेडकर और काॅंग्रेस

संघ से लड़ने की योजना

(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 27 दिसम्बर 1938)

 

इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आबेडकरने एक समारोह में संघ से लड़ने का विचार व्यक्त किया। यह समारोह उन्होंने बिहार के किसान नेता स्वामी सहजानन्द के सम्मान में आयोजित किया था, जो आमलनेर से बम्बई पहुॅंचे थे।

डा. आंबेडकर ने काॅंग्रेस को आश्वासन दिया कि इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी काॅंग्रेस द्वारा छोड़े गए मन्त्री पदों को स्वीकार नहीं करेगी और दूसरों को उनका संविधान के समर्थन के लिए उपयोग करने देगी। उन्होंने संघ का विरोध करने के लिए सभी वर्गों द्वारा संयुक्त रूप से काम करने पर जोर दिया और इस उद्देश्य के लिए अपनी पार्टी के समर्थन की घोषणा की।

स्वामी सहजानन्द ने सभी दलों को काॅंग्रेस में शामिल होने का आवाहन करते हुए कहा कि काॅंग्रेस के पीछे एक नाम था, और ‘प्रतिक्रियावादी नेतृत्व’ बाहर हो गया है।

डा. आंबेडकर ने शिकायत की कि वर्तमान समय में काॅंग्रेस पूॅंजीपतियों के हितों और अन्य निहित स्वार्थों को आगे बढ़ाने में संवैधानिक तन्त्र का उपयोग कर रही है। इस तरह की परिस्थितियों में, यह उनका कर्तव्य है कि वे अपने हितों की रक्षा के लिए और काॅंग्रेस तथा अन्य मन्त्रालयों द्वारा अपने अधिकारों और अपनी स्वतन्त्रताओं के हनन के विरुद्ध अपना स्वयं का वर्ग संगठन खड़ा करें। वर्तमान परिस्थितियों में काॅंग्रेस में शामिल होना आत्मघाती होगा। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने काॅंग्रेस के नेतृत्व को कब्जे में ले लिया, तो वर्तमान नेताओं को स्वयं का पृथक संगठन बनाने से रोकने से कुछ नहीं होगा। इससे हमारा उद्देश्य ही विफल हो जायेगा, जिसके लिए वे काॅंग्रेस में शामिल होंगे।

फिर भी यदि काॅंग्रेस संघ या साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ाई आरम्भ करती है, तो वे सभी राजनीतिक संगठनों के विघटन का समर्थन करेंगे। उन्हें इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी को खत्म करने और अपनी शक्तियों को काॅंग्रेस के नियन्त्रण में देने में खुशी होगी, पर तभी, जब वह इस लड़ाई को शुरु करेगी।

 

199.

 

डा. आंबेडकर की रक्षा

पार्टी स्वयंसेवकों को सलाह

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 10 जनवरी 1939)

पहली बार जब से 7 नवम्बर को श्रमिकों की हड़ताल पर सरकार जाॅंच समिति के समक्ष इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर द्वारा दिए गए साक्ष्य की प्रकृति पर प्रत्यक्ष हमले शुरु हो गए हैं। अवसर पार्टी के स्वयंसेवक दलों की वार्षिक परेड का था, जो रविवार की सुबह कामगार मैदान में हुई थी, और जब 2500 स्वयंसेवक शीघ्र ही अपनी ड्रेस में तैयार हो गए और उन्हें देखने के लिए पार्टी के 20 हजार से भी ज्यादा सदस्य और अनुयायी उस मैदान एकत्र हुए।

डा. आंबेडकर ने कहा, ‘मैं उस साक्ष्य के विस्तार में नहीं जाऊॅंगा, जो वर्तमान जाॅंच समिति के समक्ष दिया गया है, क्योंकि समिति अभी जाॅंच कर रही है और न्यायिक प्रक्रिया जारी है। किन्तु मैं इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के स्वयंसेवक दलों की प्रकृति और परम्परा को दुनिया को जरूर दिखाऊॅंगा, जिसके विरुद्ध समिति के समक्ष दिन पर दिन मूर्खतापूर्ण और जहरीले आरोप लगाए जा रहे हैं।’

‘मैं केवल दो दृष्टान्तों का हवाला दूॅंगा, जब न केवल हमारे मित्रों और हमसे सहानुभूति रखने वालों ने, बल्कि काॅंग्रेस के आकाओं ने भी स्वयंसेवक दलों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। मा. मि. खेर और सरदार पटेल द्वारा की गई प्रशंसा को उद्धृत करने के बाद डा. आंबेडकर ने कहा-

‘इसके सिवा, हमारे बहुत से स्वयंसेवकों और पुरुषों ने अनेक वर्षों तक सेना में सेवा की है। उनमें कोई भी अन्यायपूर्ण दुर्व्यवहार करने वाला, गुण्डागर्दी और शरारत करने वाला तत्व नहीं है। वे अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और अनुशासनिक व्यवहार में विश्वास करते हैं। क्या ये लोग कुख्यात गतिविधि वाले लोग हो सकते हैं, जिसका उन पर आरोप लगाया गया है?’

 

स्वयंसेवकों को सम्बोधन

 

डा. आंबेडकर ने स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए सीधे कहा-

‘स्वयंसेवक दल का जन्म दलित वर्गों के उस महाद सत्याग्रह आन्दोलन में हुआ था, जो मानवीय अधिकारों को पाने के लिए शुरु किया गया था।

‘उस कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए आप लोगों को खरे चरित्र का आदमी बनना होगा, जिस पर बाकी समाज गर्व करे और उसे अपना आदर्श माने।

‘आपको यह बात अच्छी तरह याद रखना है कि आप एक झुण्ड या भीड़ नहीं है। आप एक बटालियन हैं। भीड़ और बटालियन में अन्तर स्पष्ट है। आप जैसे मुटठी भर अच्छी तरह प्रशिक्षित और अनुशासित लोग हजारों की भीड़ पर नियन्त्रण करने के लिए सक्षम हैं। आपमें और एक साधारण भीड़ में यही एकमात्र अन्तर है।’

डा. आंबेडकर एक जोशीली अपील के साथ दूसरे लोगों को बटालियन में शामिल कराने और उसकी शक्ति को बढ़ाने के लिए आगे बढ़ते रहेंगे।

स्वयंसेवक कोर के सामान्य अधिकारी कमांडिंग डी. वी. प्रधान ने आशा प्रकट की कि वे भारत के अन्य प्रान्तों में भी कोर की शाखाएॅं उसी तरह से खोलने में सक्षम हैं, जिस तरह से उन्होंने बम्बई प्रान्त के अनेक भागों में खोली थीं।

 

 

पिछली कड़ियाँ —

 

30. मैं अखबारों से पूछता हूॅं, तुम्हारे सत्य और सामान्य शिष्टाचार को क्या हो गया -डॉ.आंबेडकर

29. सिद्धांतों पर अडिग रहूँँगा, हम पद नहीं अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं-डॉ.आंबेडकर

28.डॉ.आंबेडकर का ग्रंथ रूढ़िवादी हिंदुओं में सनसनी फैलाएगा- सीआईडी रिपोर्ट

27ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है ब्राह्मणवाद, हालाॅंकि वह इसका जनक है-डॉ.आंबेडकर

26. धर्मांतरण का आंदोलन ख़त्म नहीं होगा- डॉ.आंबेडकर

25. संविधान का पालन न करने पर ही गवर्नर दोषी- डॉ.आंबेडकर

24. ‘500 हरिजनों ने सिख धर्म अपनाया’

23. धर्म बदलने से दलितों को मिली सुविधाएँ ख़त्म नहीं होतीं-डॉ.आंबेडकर

22. डॉ.आंबेडकर ने स्त्रियों से कहा- पहले शर्मनाक पेशा छोड़ो, फिर हमारे साथ आओ !

21. मेरी शिकायत है कि गाँधी तानाशाह क्यों नहीं हैं, भारत को चाहिए कमाल पाशा-डॉ.आंबेडकर

20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !

19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर

18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर

17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर

16अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर

15न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !

14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर

13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर

 12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क

11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर

10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!

9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!

8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!

7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?

6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर

5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !

3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !

2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए विख्‍यात। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।



 

 

First Published on:
Exit mobile version