‘ब्राह्मणों की आबादी तीन फ़ीसदी पर 60 फ़ीसदी उच्च राजपत्रित पदों पर क़ाबिज़ क्यों?’

डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 37

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन  का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और  समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की  सैतीसवीं कड़ी – सम्पादक

230.

डा. आंबेडकर बम्बई प्रान्त में जनसभा करेंगे 
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 6 जनवरी 1940)

इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर बम्बई शहर और प्रान्त के सभी जिलों में उसी 26 जनवरी को जनसभाएॅं करने की तैयारियाॅं कर रहे हैं, जिसे काॅंग्रेस ने ‘स्वाधीनता दिवस’ के रूप में निश्चित किया है।

ऐसा प्रतीत होता है कि डा.आंबेडकर इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के सन्देश को पूरे देश में पहुॅंचाना चाहते हैं, विशेषकर इस तथ्य को देखते हुए कि काॅंग्रेस ने भारत के 11 प्रान्तों में पद छोड़ने का फैसला इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की बढ़ती ताकत को ध्यान में रखकर किया है।

26 जनवरी को होने वाली जनसभा में डा. आंबेडकर स्वयं अध्यक्षता करेंगे अथवा मुख्य वक्ता होंगे। वे इस आशय का वक्तव्य अगले कुछ दिनों में दे सकते हैं।

डा. आंबेडकर शुक्रवार को पूना से बम्बई लौटे हैं। बुद्धवार को सतारा जिले में मोटर दुर्घटना में चोटिल होने के बाद उनकी चोटें अब ठीक हो गई हैं।

231.

 

जस्टिस पार्टी नेता काॅंग्रेस को तोड़ेंगे

हर जगह ब्राह्मण: मद्रास के पूर्व गवर्नर के विरुद्ध ढेरो आरोप 
(दि बाम्बे क्रानिकल, 9 जनवरी 1940)

जस्टिस पार्टी के नेता ई. वी. रामास्वामी नायकर ने तमिल समुदायों की भीड़ भरी जनसभा में, जो डा. बी. आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में रविवार की शाम को धरावी शहर में हुई थी, मद्रास की काॅंग्रेस सरकार द्वारा किए जाने वाले सामाजिक भेदभावों के पापों और आक्रामक ब्राह्मणवाद, जिससे प्रान्त के गैरब्राह्मण समुदाय पीड़ित हैं, की एक चैंका देने वाली सूची पेश की।

गैर-ब्राह्मण द्रविड़ बाहर

श्री नायकर ने कहा, गैर-ब्राह्मणों की आबादी इस प्रान्त में 70 प्रतिशत है,किन्तु 10 में से 6 मन्त्री पद ब्राह्मणों को दिए गए हैं, परिषद का सभापति और विधानसभा का स्पीकर का पद भी ब्राह्मणों को दिया गया है, जबकि ब्राह्मणों की आबादी मात्र 3 प्रतिशत है। 50 प्रतिशत राजपत्रित पदों पर और 60 प्रतिशत उच्च अराजपत्रित पदों पर भी ब्राह्मणों का कब्जा है। श्री नायकर ने पूरी-पूरी सनद देकर प्रमाणित किया कि काॅंग्रेस शासन के दौरान कम होने के बजाए ब्राह्मणों की वृद्धि हुई है।

जैसे ही काॅंग्रेस सत्ता में आई, उसने उन सभी स्कूल समितियों को भंग कर दिया था, जिनमें गैर-ब्राह्मणों का बहुमत था, और नई स्कूल समितियों का गठन किया, जिनमें ब्राह्मणों का बहुमत है।

उसने बहुत चालाकी से जिला परिषद के चुनावों को स्थगित कर दिया, क्योंकि ऐसा करना ब्राह्मणों का बहुमत पाने के उसके उद्देश्य के अनुकूल था। इसके लिए उसने मामूली बात पर सैकड़ों मतदाताओं को अयोग्य घोषित कर दिया और इस प्रकार सारे गाॅंव अपने मताधिकार से वंचित हो गए। उसने मतदाता के लिए साक्षर होने की योग्यता निर्धारित की और इस प्रकार- चूॅकि 90 प्रतिशत ब्राह्मण साक्षर हैं और 93 प्रतिशत गैरब्राह्मण अशिक्षित हैं- ब्राह्मणों की वोट संख्या बढ़ गई और गैरब्राह्मणोंकी संख्या घट गई।

दो हजार स्कूल बन्द

और ताकि शिक्षा केवल ब्राह्मणों तक ही सीमित रहे, इसलिए स्पीकर ने 2200 ग्रामीण स्कूलों को पूरी तरह बन्द करने की घोषणा कर दी और आधार यह दिया कि उनको चलाने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है।

जबकि इन स्कूलों को चलाने के लिए उनके पास धन नहीं था, अलग से ब्राह्मणोंके लिए उन्होंने वेदों, पुराणों आदि के अध्ययन हेतु ब्राह्मण कालेज शुरु करने के लिए बारह लाख रुपए दिए हैं, जिसमें आरम्भ में 40 से 50 लोगों की नियुक्ति 200 रुपए से 600 रुपए के वेतन पर की जायेगी और वे सभी ब्राह्मण होंगे।

90 प्रतिशत चिकित्सक ब्राह्मण हैं और 90 प्रतिशत वकील ब्राह्मण हैं। सरकारी नियमों के अन्तर्गत सरकार की वैध नियुक्तियों में गैरब्राह्मणों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाना है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए सरकार ने विभिन्न अदालतों के वकील संघों को पुलिस अभियोजकों को चुनने का एक अत्यन्त असाधारण और क्रूर आदेश जारी किया। और चूॅंकि इन वकील संघों पर ब्राह्मणों का वर्चस्व है, इसलिए एक को छोड़कर सभी अभियोजन अधिकारी ब्राह्मण चुने गए।

स्वर्णकारों पर सरकार का प्रतिबन्ध

श्री नायकर ने कहा, मद्रास में तो ब्राह्मणवाद इस हद तक पागल हो गया है कि सरकार ने प्रान्त के सुनारों को, उन उपनामों को रखने से मना करने वाला आदेश जारी कर दिया है, जो उनके ब्राह्मण होने का बोध कराता है। इस आदेश ने जिला और अन्य अदालतों तथा राजस्व कार्यालयों को यह निर्देश दिया है कि ब्राह्मण उपनाम वाले स्वर्णकारों के किसी पत्र का न संज्ञान लें, न उसे पंजीकृत करें और न स्वीकार करें। यह आदेश तब निरस्त किया गया, जब उसके विरुद्ध पूरे प्रान्त में भीषण आन्दोलन चलाया गया।

मन्दिर प्रवेश बिल भी एक धोखा है। इसमें हरिजनों के प्रवेश का अधिकार निहित नहीं है। इसका निर्णय इसने मन्दिर के पदाधिकारियों पर छोड़ दिया है, जो ‘लोकमत’ के अनुसार काम कर सकते हैं। लेकिन मन्दिर के अधिकारियों के पास यह जानने के लिए कि लोकमत विरुद्ध है या पक्ष में है, कोई मशीनरी नहीं है।

राष्ट्र-निर्माण विभाग में सरकार का रिकार्ड शर्मनाक है। इसने स्कूलों को बन्द कर दिया है, और दो हजार स्कूलों की गैर-ब्राह्मणों की छात्रवृत्ति का अनुदान काट दिया है। दलित वर्गों और मुसलमानों का शोषण करने और उन पर शासन करने के लिए वास्तव में सभी चतुर ब्राह्मणों ने उन्हें लकड़ी चीरने और पानी खींचने वाली जनता में बदल दिया है।

प्रेस पर सारा नियन्त्रण ब्राह्मणों का है, ताकि गैर-ब्राह्मणों की शिकायतों का हल नहीं किया जा सके और उनकी गतिविधियों की खबरें न छप सकें।

काॅंग्रेस हरेक से वादा करती है। अपने चुनाव अभियान के दौरान झूठ बोलने का कोई मतलब नहीं है, और न ही वादा करने का कोई पाखण्ड करने का मतलब है। पर काॅंग्रेस वोट के लिए यह करती है। काॅंग्रेस जमीनदारों से कहती है कि अगर वे काॅंग्रेस को वोट देंगे, तो सारा भू-राजस्व खत्म कर दिया जायेगा, किराएदारों से कहती है कि अगर वे काॅंग्रेस को वोट देंगे, तो बोर्ड द्वारा उनके सारे किराए खत्म कर दिए जायेंगे, व्यापारियों से कहती है कि अगर वे काॅंग्रेस को वोट देंगे, तो उनके माल को करमुक्त कर दिया जायेगा, और अकाल-पीड़ित क्षेत्रों में जाकर गाॅंधी जी की ओर से वर्षा कराने का आश्वासन दिया जाता है। लगता है, गाॅंधी जी कावर्षा के देवता वरुण के साथ सीधा सम्पर्क है। इसी तरह वह महामारी से पीड़ित जिलों के लोगों से कहती है कि अगर वे काॅंग्रेस को वोट देंगे, तो उन्हें आपदा से बचाने की आशाएॅं  दी जाती हैं।

पृथक तमिलनाडु

वक्ता (नायकर) को ब्राह्मणों के वर्चस्व से घृणा थी। उसने जनता की भावनाको कुचल दिया है और वह उन्हें धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से गुलाम बनाकर रखता है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण तामिल नहीं हैं। वे विदेशी हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रान्त को उनसे मुक्त करने का केवल एक ही हल है और वह यह है कि बर्मा की तरह एक पृथक प्रान्त ‘तामिलनाडु’ का निर्माण किया जाए, जो शेष भारत से अलग हो। तामिलनाडु की जनसंख्या उतनी ही है, जितनी कि इंग्लैण्ड की है, और संस्कृति, परम्पराओं और सभ्ताओं के साथ क्षेत्रफल में वह जर्मनी के बराबर है, जो ब्राह्मणवाद से आजाद होना चाहता है। इसका गठन अच्छी तरह से एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में हो सकता है।

अन्त में उन्होंने कहा कि अगर उन्हें मि. जिन्ना और डा. आंबेडकर का सहयोग मिला, तो वह काॅंग्रेस और ब्राह्मणवाद को धराशायी करने में अवश्य ही समर्थ हो जायेंगे और अपना स्वतन्त्र प्रान्त स्थापित कर लेंगे।

232.

 

काॅंग्रेस को ध्वस्त करने के लिए भीड़ जुटी
जस्टिस नेता जिन्ना और आंबेडकर के साथ एक ही नाव पर 
(दि बाम्बे क्रानिकल, 11 जनवरी 1940)
मद्रास में जस्टिस पार्टी के नेता ई. वी. रामास्वामी नायकर, जो पिछले पाॅंच दिनों से बम्बई में हैं, काॅंग्रेस-विरोधी मोर्चा बनाने की गम्भीर तैयारियों में हैं।

नए विचारों के साथ सक्रिय

एक ऐसे शहर में, जिसके साथ हाल ही में मुसलमानों के विरुद्ध काॅंग्रेस द्वारा किए गए अत्याचारों की कहानियों को साझा किया गया है, श्री नायकर एक ऐसी बीमारी के वायरस को मारने का प्रयास कर रहे हैं, जो ब्राह्मणफोबिया है, जिससे कुछ समय से पूरा मद्रास पीड़ित है, परन्तु अब काफी हद तक यह प्रान्त इससे मुक्त हो गया है।

श्री नायकर मदास की जस्टिस पार्टी के नेता हैं, जिनकी गणना मदास के प्रमुख ज्योर्तिमान लोगों में होती है, जैसे, कोचीन के वर्तमान दीवान श्री शानमुखम चेट्टी, भारत सरकार के वाणिज्य सदस्य श्री ए. रामास्वामी मुदलियर एवं के. वी. रेड्डी, जो कुछ समय के लिए मद्रास के कार्यकारी गवर्नर रहे थे, और अन्तरिम सरकार में प्रधानमन्त्री तथा बोबबिली के राजा। 1937 के चुनावों में जस्टिस पार्टी को लोगों ने मैदान से बाहर कर दिया था, जिनमें विशाल बहुमत गैर-ब्राह्मणों का है, परन्तु वे पार्टी के विरोधी थे। इनके पार्टी ग्रहण करने के साथ ही बड़े नेताओं ने नेतृत्व छोड़ दिया और वे ज्यादा लाभ के चरागाहों की तरफ चले गए। तब श्री नायकर को जस्टिस पार्टी के नेतृत्व के लिए लाया गया।

काॅंग्रेस को तोड़ने के लिए भीड़

श्री नायकर ने सुर्खियों में आने के लिए मद्रास में हिन्दी-विरोधी अभियान चलाया था, और अब काॅंग्रेस मन्त्रालय सत्ता से बाहर है, वह जस्टिस पार्टी को पुनः स्थापित करने और काॅंग्रेस को तोड़ने का अवसर तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। और इस काम में, वह मि. एम. ए. जिन्ना और डा. बी. आर. आंबेडकर की सहायता लेने का प्रयास कर रहे हैं।

श्री नायकर ने मि. एम. ए. जिन्ना और डा. बी. आर. आंबेडकर के साथ लम्बी बातचीत की है, जिसके क्रम में समझा जाता है कि उन्होंने दुभाषिए की सहायता से उन्हें गैर-ब्राह्मणों के साथ किए जा रहे उत्पीड़न से अवगत कराया है और यह भी स्पष्ट किया है कि मद्रास में उनकी जैसी अल्पसंख्यक समस्या नहीं है। वहाॅं ब्राह्मण अल्पसंख्यक हैं, जो पूरी तरह काॅंग्रेस की नीतियों के नियन्त्रण में  97 प्रतिशत जनसंख्या वाले बहुसंख्यक गैर-ब्राह्मणों पर अत्याचार कर रहे हैं। चूॅंकि मुस्लिम लीग और दलित वर्ग भी काॅंग्रेस के खिलाफ लड़ रहे हैं, इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि उन्हें साझा मोर्चा बनाना चाहिए।

समझा जाता है कि श्री नायकरने संविधान सभा की योजना को अस्वीकृत करने का विचार लीग नेता की सहानुभूति और समर्थन पाने के लिए किया है।

233.

डा. आंबेडकर की सेना में शामिल होने की अपील
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया,  31 जनवरी 1940)
(हमारे निजी संवाददाता द्वारा)
रत्नागिरी, 29 जनवरी।

डा. आंबेडकर ने कल शाम सेना में भर्ती होने वाले कुछ महारों का स्वागत किया, और इस अवसर पर कुनबी तथा महार समुदायों से आगे बढ़कर सेना में भर्ती होने की अपील की।

डा. आंबेडकर ने उनके सेना में जाने के निर्णय की प्रशंसा की। उन्होंने मिलिटरी का पेशा जातीय पूर्वाग्रहों के कारण उनके लिए बन्द कर दिया था, हालाॅंकि अतीत में उन्होंने अपनी बेहतीन सेवाएॅं दी थीं। वास्तव में एक समय बम्बई की तीन चैथाई सेना महारों से बनाई गई थी, और उन्होंने अंग्रेजों की ओर से बहुत सी महान युद्ध लड़े थे, जिनमें कोरेगाॅंव का वह प्रसिद्ध युद्ध भी था, जिसने पेशवाओं को हराया था और अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित किया था।
1857 के गदर के बाद, उन्होंने कहा, दूसरे वर्गों के लोग सेना में भर्ती हो गए। वे अछूतों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त थे, इसलिए महारों की भर्ती को रोक दिया गया। इस प्रकार आप लोगों को नई भर्तियों ने सेना में अपनी पुरानी प्रतिष्ठा बहाल करने का उत्तरदायित्व दिया है।
234.
दलित वर्गों कर रैली

डा. आंबेडकर ने और संरक्षण माॅंगे
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 6 फरवरी 1940)

यह विचार कि भारत सरकार के अधिनियम और पूना समझौते के अन्तर्गत प्रदान किए गए संरक्षणों ने दलित वर्गों के हितों की रक्षा को पूरी तरह नाकाफी साबित कर दिया है और इन वर्गों को जल्दी ही एक विस्तृत और व्यापक प्रकृति के ठोस प्रस्तावों और शर्तों को तैयार करने पर ध्यान देना होगा, जिस पर प्रशासन के साथ भावी सहयोग सम्भव हो सके, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर ने रविवार की रात मजगाॅंव में लगभग 40 हजार स्त्री-पुरुषों की एक रैली में प्रकट किया, जिसकी अध्यक्षता श्री एस. सी. जोशी ने की थी।

यह रैली पाॅंच मील लम्बे जुलूस के साथ, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की कोलाबा शाखा के अध्यक्ष श्री सुरेंन्द्रनाथ टिपनिस का सम्मान करने के लिए, जो ‘खोती प्रथा’ के उन्मूलन के समर्थन में भाषण देने के सम्बन्ध में तीन माह की सजा काटकर शनिवार की सुबह थाणा जेल से मुक्त हुए थे, डा. आंबेडकर के आवास से आरम्भ हुई थी।

अधिकांश जिलों के पार्टी नेताओं और असेबली के पार्टी सदस्यों के साथ-साथ लगभग एक हजार मजबूत स्वयंसेवकोंने भी जुलूस में भाग लिया था, जो नारे और जयकारे लगाते हुए भीड़ भरे मजदूरों के इलाकों से गुजर रहे थे।

पिछली कड़ियाँ–

36. अस्पृश्यों की समस्या का प्रश्न स्वराज के प्रश्न से ज़्यादा ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

35. दलितों में मतभेद पर डॉ.आंबेडकर ने जताया दु:ख

34. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ने मनाया डॉ.आंबेडकर का 47वाँ जन्मदिन..

33. कचरापट्टी मज़दूरों ने डॉ.आंबेडकर को 1001 रुपये की थैली भेंट की

32.औरंगाबाद अछूत सम्मेलन में पारित हुआ था 14 अप्रैल को ‘अांबेडकर दिवस’ मनाने का प्रस्ताव

31. डॉ.आम्बेडकर ने बंबई में किया स्वामी सहजानंद का सम्मान

30. मैं अखबारों से पूछता हूॅं, तुम्हारे सत्य और सामान्य शिष्टाचार को क्या हो गया -डॉ.आंबेडकर

29. सिद्धांतों पर अडिग रहूँँगा, हम पद नहीं अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं-डॉ.आंबेडकर

28.डॉ.आंबेडकर का ग्रंथ रूढ़िवादी हिंदुओं में सनसनी फैलाएगा- सीआईडी रिपोर्ट

27ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है ब्राह्मणवाद, हालाॅंकि वह इसका जनक है-डॉ.आंबेडकर

26. धर्मांतरण का आंदोलन ख़त्म नहीं होगा- डॉ.आंबेडकर

25. संविधान का पालन न करने पर ही गवर्नर दोषी- डॉ.आंबेडकर

24. ‘500 हरिजनों ने सिख धर्म अपनाया’

23. धर्म बदलने से दलितों को मिली सुविधाएँ ख़त्म नहीं होतीं-डॉ.आंबेडकर

22. डॉ.आंबेडकर ने स्त्रियों से कहा- पहले शर्मनाक पेशा छोड़ो, फिर हमारे साथ आओ !

21. मेरी शिकायत है कि गाँधी तानाशाह क्यों नहीं हैं, भारत को चाहिए कमाल पाशा-डॉ.आंबेडकर

20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !

19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर

18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर

17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर

16अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर

15न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !

14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर

13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर

 12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क

11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर

10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!

9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!

8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!

7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?

6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर

5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !

3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !

2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए विख्‍यात। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।



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