अस्पृश्यों की समस्या का प्रश्न स्वराज के प्रश्न से ज़्यादा ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 36

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन  का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और  समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की  छत्तीसवीं कड़ी – सम्पादक

 

 

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अत्यन्त अस्पष्ट योजना

परामर्श समिति पर डा. आंबेडकर की टिप्पणी

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 24 अक्टूबर 1939)

इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर ने निम्नलिखित वक्तव्य जारी किया है-

इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की कार्यकारिणी परिषद की बैठक में, जो डा. डा. बी. आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में 21 अक्टूबर को हुई थी, निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किया-

इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की कार्यकारिणी परिषद वर्तमान युद्ध से उत्पन्न स्थिति पर जारी वक्तव्य की पुष्टि करती है।

इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की कार्यकारिणी परिषद ने 27 अक्टूबर को महामहिम वायसराय द्वारा की गई घोषणा पर विचार किया है।

परिषद की राय में यदि काॅंग्रेस ने इस देश में विभिन्न समुदायों और वर्गों के बीच एकता लाने की कोशिश की थी, तो भारत के लोगों की आकांक्षाओं और माॅंगों के बारे में सही और सन्तोषजनक जवाबदेही महामहिम की सरकार से ही आयेगी।

वायसराय द्वारा दिए गए इस आश्वासन को ध्यान में रखते हुए, कि युद्ध बन्द होने के तुरन्त बाद महामहिम की सरकार भारत के [संविधान में संशोधन करने के लिए विभिन्न समुदायों और पार्टियों के हित में उनके प्रतिनिधियों के साथ परामर्श करेगी, और इस तथ्य को देखते हुए कि युद्ध की घटना एक ऐसा मोड़ भी ले सकती है कि भारत की रक्षा का प्रश्न ग्रेट ब्रिटेन की सहायता के प्रश्न से ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है, कार्यकारिणी परिषद यह अनुभव करती है कि ग्रेट ब्रिटेन से अपने सहयोग को रोकने के लिए यह उचित अवसर नहीं है।

फिर भी, परिषद की राय में परामर्श समिति के गठन से सम्बन्धित प्रस्ताव असन्तोषजनक है। इसके सिवा कि प्रस्तावित समिति के पास न ही निर्णय लेने और न ही निर्देश देने की किसी तरह की कोई शक्ति नहीं होगी, समिति का गठन लोगों की अस्थिर बाॅडी से किया जायेगा। परिषद के विचार में इस प्रस्ताव में सबसे आपत्तिजनक पैनल सिस्टम है। फिर भी कथित प्रस्ताव पर पार्टी के किसी भी अन्तिम या सुविचारित मत व्यक्त करने से पूर्व प्रस्तावित समिति के संविधान, उसकी कार्यप्रणाली, शक्तियों और उसके दायरे के बारे में विशेष सन्दर्भ के साथ एक विस्तृत योजना का होना आवश्यक है।-ए. पी.

 

 

222.

काॅंग्रेस में अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित

दलित वर्गों ने डा. आंबेडकर को नकारा

वायसराय के घोषणा पत्र का खण्डन

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 26 अक्टूबर 1939)

 

इलाहाबाद, 24 अक्टूबर।

 

अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की कार्यकारिणी समिति की बैठक सप्ताहान्त के दौरान बिहार सरकार के संसदीय सचिव जगजीवन राम, एम.एल.ए. की अध्यक्षता में हुई। संघ की कार्यकारी परिषद, कार्यकसरिणी समिति और वायसराय की घोषणा से सम्बन्धित कई प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए।

उनमें से एक प्रस्ताव में कहा गया है कि अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की कार्यकारिणी विश्वास करती है कि भारतीय राष्ट्रीय काॅंग्रेस ही इस देश में एकमात्र राजनीतिक संगठन है, जो विभिन्न समुदायों और देश के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर सकता है, और जिसके हाथों में समस्त अल्पसंख्यकों के अधिकार और हित सुरक्षित तथा संरक्षित हैं और इस तरह से केवल यही एक संगठन है, जिस पर सम्पूर्ण राष्ट्र की ओर से बोलने के लिए भरोसा किया जा सकता है।

आंबेडकर को नकारा

डा. आंबेडकर द्वारा उठाए गए कदम से सम्बन्धित एक अन्य प्रस्ताव में कहा गया है-

‘अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की कार्यकारी समिति के विचार में डा. आंबेडकर का संविधान संशोधन और वायसराय की घोषणा पर हाल में दिया गया वक्तव्य अनुसूचित जातियों के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, क्योंकि उन्होंने अपना विचार अपने-अपने प्रान्तों के अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधि नेताओं से परामर्श करने के बाद नहीं बनाया है।’

प्रस्ताव में यह भी बताया गया है कि डा. आंबेडकर के विचार, विशेष रूप से पूना समझौते का खण्डन करने वाले, देश की प्रगति और स्वयं अनुसूचित जातियों के हितों के लिए हानिकारक हैं।

वायसराय की घोषणा अस्पष्ट है

एक अन्य प्रस्ताव वायसराय की घोषणा पर है, जिसमें कहा गया है कि समिति की दृष्टि में वायसराय की घोषणा, ‘महात्मा गाॅंधी के दोस्ताना और उत्तरदायी दृष्टिकोण के बावजूद, असामयिक और भारतीय राष्ट्र के लिए खुली चुनौती है।’ समिति अखिल भारतीय काॅंग्रेस कमेटी के युद्ध प्रस्ताव का भी समर्थन करती है, जो वर्धा में पास किया गया था, और ‘अनुभव करती है कि ब्रिटिश सरकार के लिए अभी भी समय है कि वह महात्मा गाॅंधी की दोस्ताना पेशकश को स्वीकार कर सक्रिय सहयोग करें।’ -ए. पी.

 

 

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दलित वर्ग काॅंग्रेस के साथ

डा. आंबेडकर के दावे को नकारा

वायसराय की घोषणा पर उनका मत अनुसूचित जातियों को मान्य नहीं

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 29 अक्टूबर 1939)

(हमारे संवाददाता द्वारा)

 

इलाहाबाद, 28 अक्टूबर।

यहाॅं अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की कार्यकारिणी समिति की बैठक में कई प्रस्ताव पास किए गए, जिनमें वर्तमान राजनीतिक संकट में दलित वर्गों का प्रतिनिधित्व करने के लिए डा. आंबेडकर का खण्डन किया गया और काॅंग्रेस का पूर्ण समर्थन किया गया।

दलित वर्ग संघ का मत है कि वायसराय की घोषणा पर डा. आंबेडकर के वक्तव्य में कहे गए विचार अनुसूचित जातियों के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, क्योंकि उन्होंने दलित वर्ग के नेताओं से परामर्श करने के बाद ये विचार व्यक्त नहीं किए हैं।

समिति ने यह भी कहा कि पूना समझौते का खण्डन दलित वर्गों के हितों के लिए हानिकारक होगा।

समिति ने अपनी धारणा प्रकट की है कि काॅंग्रेस अकेली पार्टी है, जो विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर सकती है और उसके हाथों में अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित हैं। इस प्रकार काॅंग्रेस ही एकमात्र संगठन है, जिस पर देश की मुक्ति के किसी भी प्रश्न पर सम्पूर्ण राष्ट्र की ओर से बोलने के लिए विश्वास किया जा सकता है।

कमेटी ने अपना विचार व्यक्त किया कि ब्रिटिश सरकार भारत को उतनी भी राजनीतिक रियायत नहीं दे रही है, जितनी कि ब्राह्मण कुलीन वर्ग अनुसूचित जातियों के साथ व्यवहार करके देता है।

कमेटी का मानना है कि वायसराय की घोषणा अस्पष्ट और असामयिक है।

 

224.

डा. आंबेडकर और हरिजन

उनके सचिव ने उनका खण्डन किया

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 30 अक्टूबर 1939)

(हमारे संवाददाता द्वारा)

हरिजनों (चमारों) की एक जनसभा रविवार को जिला अहमदनगर, तालुका श्रीगोंडा, रायपुर में हुई, जिसकी अध्यक्षता नगर पालिका स्कूल, बम्बई के सुपरवाइजर एस. एन. शिवतारकर ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण में शिवतारकर ने बम्बई प्रान्त में हरिजनों के आन्दोलन पर एक विहंगम अवलोकन किया और उन परिस्थितियों का विस्तार से चित्रण किया, जिनके तहत इस देश में काॅंग्रेस के द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय आन्दोलन के मार्गदर्शन में हरिजन उत्थान के आन्दोलन में भारी और तीव्र प्रगति हुई है। उन्होंने तरीकों की भी व्याख्या की, जिनमें महात्मा गाॅंधी और उनके कट्टर समर्थकों ने हरिजन उत्थान के लिए आन्दोलन को एक निश्चित रूपरेखा प्रदान की है।

काॅंग्रेस सरकार और हरिजन सेवक संघ अपने स्तर से हरिजन हित में बेहतर काम कर रहे हैं। शिवतारकर ने हरिजनों के मामलों में गाॅंधी जी, संघ और काॅंग्रेस के प्रति डा. आंबेडकर के दृष्टिकोण का खण्डन किया। उन्होंने अपने निजी अनुभवों से, क्योंकि वह 15 वर्षों तक डा. आंबेडकर के अन्तरंग सहयोगी और निजी सचिव रह चुके हैं, प्राप्त तथ्यों से बहुत सी बातों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि किस तरह डा. आंबेडकर उन समुदायों के हितों के त्याग पर, जिनका उन्होंने प्रतिनिधित्व करने का दावा किया, अपनी नीति को बदल रहे हैं। वास्तव में, शिवतारकर के विचार में, डा. आंबेडकर महार समुदाय के सिवा किसी अन्य समुदाय का न प्रतिनिधित्व करते हैं और न करेंगे। उन्होंने हरिजनों को संगठित होने होकर सामाजिक समानता तथा राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए संघष करने के लिए सलाह दी। इस जनसभा में अनेक प्रस्ताव, जिनमें हरिजन हितों के प्रति काॅंग्रेस सरकार और हरिजन सेवक संघ इत्यादि के सहानुभूतिपूर्ण रवैये के लिए धन्यवाद भी शामिल हैं, पास किए गए।

 

225.

अनुसूचित वर्ग और काॅंग्रेस

आंबेडकर-देसाई वार्ता

(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 18 नवम्बर 1939)

मि. भूलाभाई जे. देसाई, सदस्य काॅंग्रेस कार्यकारी कमेटी और डा. आंबेडकर, नेता इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, के बीच शुक्रवार की शाम को बम्बई में नए सिरे से बातचीत हुई। माना जाता है कि दोनों के बीच संविधान सभा बुलाने के औचित्व और अनुसूचित वर्गों के दावों के विषय पर बातचीत हुई थी।

मि. देसाई और डा. आंबेडकर के बीच पहली बातचीत पिछले महीने हुई थी, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू बम्बई में थे।

काॅंग्रेस संसदीय उप-समिति के अध्यक्ष मि. वल्लभभाई पटेल और मि. भूलाभाई देसाई शुक्रवार को बम्बई से इलाहाबाद आए थे। उन्हें विक्टोरिया टरमिनस पर काॅंग्रेस के अनेक लोगों ने विदा किया था, जिनमें बम्बई प्रान्तीय काॅंग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष नगीनदास टी. मास्टर, संयुक्त सचिव एस. के. पाटिल, और कोषाध्यक्ष भवनजी ए. खीमजी, एवं सुन्दरदास मोरारजी शामिल थे।

 

 

226

महारों की शिकायतें

आंबेडकर का गवर्नर को शिष्टमण्डल भेजने का सुझाव

(दि बाम्बे क्रानिकल, 19 दिसम्बर 1939)

सप्ताहन्त के दौरान अहमदाबाद में सम्पन्न वतनदार सम्मेलन में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में महार और मांग वतरदारों की शिकायतों के हल के लिए सत्याग्रह आन्दोलन और पूरे बम्बई प्रान्त में आम हड़ताल करने की सम्भावना बताई है। इस सम्मेलन में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के लगभग सभी विधायक मौजूद थे।

डा. आंबेडकर ने, गाॅंव प्रभारी संस्था का मूल उदगम खोजते हुए, कहा कि मराठा शासन के दौरान पटेल, कुलकर्णी, देसाई, नहवी (नाई), सुतार (बढ़ई), मुसलमान इत्यादि ऐसे 12 विभिन्न अधिकारी थे, जिन्हें विशेष कार्य सौंपे गए थे और उन कार्यों को करने के लिए उन्हें राजस्व-मुक्त जमीनें दी गई थीं। अंग्रेजों के आगमन के बाद ‘वतन’ भूमि के माध्यम से भुगतान की व्यवस्था, महारों को छोड़कर सभी ममलों में, समाप्त कर दी गई थी। उन स्थानों पर लोग नियमित वेतन पर नियुक्त किए गए थे।

डा. आंबेडकर ने कहा, ‘पुरानी व्यवस्था को समाप्त करने की इस प्रक्रिया के बारे में जो रोचक बात है, वह यह है कि पूर्व पटेलों, कुलकर्णियों, तलातियों आदि के सैकड़ों मामलों में, जब उनको अपने दायित्वों से छुटकारा मिल गया था, उन्हें अपनी भूमि बरकरार रखने की अनुमति दे दी गई थी और उनकी वतन भूमि में जो राजस्व वृद्धि हुई, वह बहुत मामूली थी। इस प्रकार सरकार आज इन ग्राम अधिकारियों के वंशजों को वास्तव में लाखों रुपए भुगतान कर रही है, हालाॅंकि उनके पास करने के लिए गाॅंव की सेवाएॅं वहीं हैं।’

इसके विरुद्ध महार वतनदारों की नियति यह है कि लगभग हर महार एक वतनदार है। अंग्रेजों ने वंशानुगत वतनदारी सेवाओं को समाप्त नहीं किया। इसलिए महार अपनी कर्तव्यों का निर्वाह उसी तरह करते आ रहे हैं, जिस तरह वे पहले करते थे। किन्तु रियायती भूराजस्व, जिसे ‘जूड़ी’ कहा जाता है, बढ़़ा दिया गया है।

अन्यायपूर्ण कर

इस मामले की साकार द्वारा जाॅंच की गई थी और 1974 में पास किए गए एक कानून के द्वारा यह निर्धारित किया गया था कि वतन भूमि को अलग नहीं किया जा सकता और जब तक वह महार वतनदारों के हित में न हो, तब तक उन पर कर कार बोझ भी नहीं डाला जा सकता। किन्तु इसके बजाए काॅंग्रेस सरकार ने, जो दलित वर्गों के हितों की सेवा का दावा करती है, और जिसके पास अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए अनेक अन्य स्रोत हैं, इन सबसे गरीब और पीड़ित वर्गों पर करों की मार मारी है।

अध्यक्ष ने कहा, ‘यह न केवल अनुचित और अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह वर्तमान कानून का उल्लंघन करता है, जो अभी भी कानून की किताब में बना हुआ है, इसलिए अवैध और असंवैधानिक भी है। और यदि सरकार अपनी मूर्खता को महसूस नहीं करती है, और अपने आदेश को निरस्त नहीं करती है, तो महार वतनदारों को सरकार के खिलाफ विद्रोह करने और अपनी ग्राम-सेवाएॅं न देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।’

अध्यक्ष कोई जल्दबाजी करना नहीं चाहते हैं। वह सरकार को अपनी गलती सुधारने के लिए समय देना चाहते हैं। उन्होंने सीधी लड़ाई लड़ने से पहले सरकार को छह महीने का नोटिस देने की बात कही है।

‘हम इसको लेकर इतने गम्भीर क्यों हैं? उसका कारण यह है कि काॅंग्रेस सरकार द्वारा अतिरिक्त कर का बोझ डाले बिना भी, ‘महार वतन’ प्रथा एक निर्मम शोषण है।’

यह एक बड़ी विपत्ति है, जिससे हजारों महार पीड़ित हैं। प्रान्त में ऐसे अनगिनत गाॅंव हैं, जहाॅं महारों को वतन भूमि या किसी भी तरह के वेतन के बिना सारे सौंपे गए काम करने पड़ते हैं। यह वास्तव में बेगारी और मुफ्त श्रम के सिवा कुछ नहीं है। इसे खत्म किया जाना है।

इन और दूसरी तकलीफों के सम्बन्ध में उन्होंने गवर्नर को एक शिष्ट मण्डल भेजने का प्रस्ताव रखा है, जो इन तकलीफों के हल के लिए उन्हें इन सारे तथ्यों से अवगत कराए।

इसके बाद काॅंग्रेस पर बोलते हुए डा. आंबेडकर ने कहा-

‘यह अच्छी बात है कि काॅंग्रेस ने खुद को जल्दी बेनकाब कर दिया, और उसने पूर्ण स्वराज मिलने तक का भी इन्तजार नहीं किया, जब मामलों को हल करना बहुत मुश्किल हो जाता।

‘हम अब उस सबक को नहीं भूलेंगे। हम काॅंग्रेस के बराबर मजबूत नहीं हो सकते और न हमारा संख्या बल उनके जैसा हो सकता है। परन्तु हम सामाजिक जीवन के इस सिद्धान्त में विश्वास करते हैं कि अगर हमें खाने के लिए एक सूखी रोटी से ज्यादा कुछ नहीं मिलता है, तो हम उसी को अपने साथियों के साथ मिल बाॅंटकर खा लेंगे। काॅंग्रेस सूखी रोटी के लिए नहीं आई है। वह एक पूर्ण दावत के लिए आई है, और चाहती है कि उस दावत को खुद ही खाए और दूसरे लोग भूखे मरें।’

‘ठीक है, हम उनके हाथों से व्यंजन छीनने में सक्षम नहीं हैं। परन्तु हम एक काम कर सकते हैं। उनकी दावत में एक मुट्ठी धूल फेंक सकते हैं।’

 

 

227.

 

डा. आंबेडकर

(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 27 दिसम्बर 1939)

बेलगाॅंव, 26 दिसम्बर। आज बेलगाॅंव नगरपालिका द्वारा डा. आंबेडकर का सम्मान किया गया। सम्मान के उत्तर में डा.आंबेडकर ने कहा कि उच्च जातीय हिन्दू, और कोई नहीं, अस्पृश्यता के पाप के लिए जिम्मेदार हैं, जिसे वे अस्पृश्यों के उत्थान के लिए काम करके दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारे लिए अस्पृश्यों की समस्या का प्रश्न स्वराज के प्रश्न से ज्यादा जरूरी है। -एसोसिएट प्रेस।

 

228.

डा. आंबेडकर के साथ मोटर दुर्घटना हुई

(दि बाम्बे क्रानिकल, 4 जनवरी 1940)

 

बम्बई से खबर मिली है कि इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर जब बुद्धवार को सतारा जा रहे थे, तो उनकी मोटर दुर्घटना ग्रस्त हो गई। किन्तु बताया जाता है कि उनको मामूली चोटें आईं हैं।

 

 

229.

सतारा जिला अनुसूचित वर्ग का युवा सम्मेलन

(दि बाम्बे सीक्रेट अबस्ट्रेक्ट, 6 जनवरी 1940)

15। यह सम्मेलन 24 दिसम्बर को आंकलखोप गाॅंव, जिला सतारा में डा. बी. आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में हुआ था, जिसमें 2000 लोगों ने भाग लिया था। वक्ताओं ने दलित वर्गों के लिए डा. आंबेडकर के कार्यों की प्रशंसा की और लोगों से उनका समर्थन करने की माॅंग की। डा. आंबेडकर ने कहा कि काॅंग्रेस सरकार ने दलित वर्गों के लिए कुछ भी नहीं किया है, बल्कि इसके विपरीत उसने ईनामी और महार की जमीनों पर राजस्व उपकर लगा दिया है, जबकि उनकी सेवाओं का उन्हें पुरस्कार मिलना चाहिए। अगर छह महीनों में उनके कष्टों का निवारण नहीं हुआ, तो महार अपनी सेवाओं को बन्द कर देंगे।

 

पिछली कड़ियाँ–

 

35. दलितों में मतभेद पर डॉ.आंबेडकर ने जताया दु:ख

34. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ने मनाया डॉ.आंबेडकर का 47वाँ जन्मदिन..

33. कचरापट्टी मज़दूरों ने डॉ.आंबेडकर को 1001 रुपये की थैली भेंट की

32.औरंगाबाद अछूत सम्मेलन में पारित हुआ था 14 अप्रैल को ‘अांबेडकर दिवस’ मनाने का प्रस्ताव

31. डॉ.आम्बेडकर ने बंबई में किया स्वामी सहजानंद का सम्मान

30. मैं अखबारों से पूछता हूॅं, तुम्हारे सत्य और सामान्य शिष्टाचार को क्या हो गया -डॉ.आंबेडकर

29. सिद्धांतों पर अडिग रहूँँगा, हम पद नहीं अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं-डॉ.आंबेडकर

28.डॉ.आंबेडकर का ग्रंथ रूढ़िवादी हिंदुओं में सनसनी फैलाएगा- सीआईडी रिपोर्ट

27ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है ब्राह्मणवाद, हालाॅंकि वह इसका जनक है-डॉ.आंबेडकर

26. धर्मांतरण का आंदोलन ख़त्म नहीं होगा- डॉ.आंबेडकर

25. संविधान का पालन न करने पर ही गवर्नर दोषी- डॉ.आंबेडकर

24. ‘500 हरिजनों ने सिख धर्म अपनाया’

23. धर्म बदलने से दलितों को मिली सुविधाएँ ख़त्म नहीं होतीं-डॉ.आंबेडकर

22. डॉ.आंबेडकर ने स्त्रियों से कहा- पहले शर्मनाक पेशा छोड़ो, फिर हमारे साथ आओ !

21. मेरी शिकायत है कि गाँधी तानाशाह क्यों नहीं हैं, भारत को चाहिए कमाल पाशा-डॉ.आंबेडकर

20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !

19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर

18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर

17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर

16अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर

15न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !

14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर

13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर

 12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क

11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर

10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!

9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!

8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!

7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?

6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर

5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !

3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !

2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए विख्‍यात। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।



 

 

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