उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शायद ही कभी अपराधियों पर दबिश बनाने का श्रेय लेना छोड़ते हों। पिछले साल जब से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में नई सरकार आयी है, तब से 1240 एनकाउंटर हुए हैं जिसमें करीब 40 अपराधी मारे गए हैं एवं 305 से ज्यादा घायल हुए हैं। साथ ही 142 वांटेड अपराधियों, जिन पर सरकार ने ईनाम घोषित कर रखा था, ने आत्मसमर्पण किया है। इन घटनाओं से जुड़ी जटिलताओं को तो अब सरकार के कट्टर समर्थक भी समझने बूझने लगे हैं क्योंकि अब हम उन लोगों के दोषी होने का सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं। न्यायपालिका के किसी प्रक्रियाओं से गुजरने के बजाय उनके अपराधों का फ़ैसला मौका-ए-वारदात पर ही ले लिया गया। निजी तौर पर मैं नहीं मानता कि ऐसा कोई कदम सराहनीय है, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो हमारे पूर्वजों ने न्यायपालिका की इस विस्तृत प्रणाली के लिए मेहनत नहीं की होती। लेकिन इस मामले को हम मानवाधिकार के चौकीदारों के हाथ छोड़कर आगे बढ़ते हैं चुनाव आयोग के उस आदेश की तरफ जो कल सुर्खियों में था।
15 अप्रैल, सोमवार को चुनाव आयोग ने चार राजनेताओं को चुनावी आचार संहिता का हनन करने का दोषी पाया है और उनके एक निश्चित सीमावधि में चुनाव-प्रचार करने पर रोक लगाया है। चुनाव आयोग ने योगी आदित्यनाथ को 72 घंटे और सुश्री मायावती को 48 घंटे चुनाव-प्रचार करने से रोका है। सुल्तानपुर लोकसभा से भाजपा की उम्मीदवार मेनका गांधी पर भी 48 घंटे की रोक है एवं रामपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आज़म खान को भी 72 घंटे चुनाव-प्रचार करने से रोका गया है। चुनाव आयोग का आदेश उनको इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट एवं सोशल मीडिया पर भी आगामी लोकसभा चुनाव से संबंधित कोई टिप्पणी करने से रोकता है जिसकी अवधि मंगलवार सुबह 6 बजे से शुरू होती है। ज्ञात हो कि इस आदेश के पहले निर्वाचन आयोग ने योगी आदित्यनाथ की “मोदी की सेना” वाली टिप्पणी के लिए 5 अप्रैल तक जवाब तलब किया था और संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने पर आगे सावधानी बरतने की सलाह भी दी थी।
इस समाचार को पढ़ने के बाद मुझे चुनाव आयोग के इस साहसिक फैसले और देश के भीतर लोकतंत्र की गहरी जड़ों पर फख्र हुआ जिसने वर्तमान मुख्यमंत्री के खिलाफ ऐसा फैसला लिया है। लेकिन अफसोस..
योगी आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग के इस फैसले की काट ढूंढ ली है। अब वे हनुमान चालीसा का जाप करेंगे। इतना ही नहीं, माननीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी मंदिर जाकर इस जाप में शामिल होने वाले हैं।
क्या सच में? हिप्पोक्रेसी की भी कोई सीमा होती है। जब आप भगवा धारण करते हो, तो आप कुछ जिम्मेदारियों को भी धारण करते हो, वैसे ही जैसे डॉक्टर सफेद कोट पहनता है या लाइफगार्ड अपना वेस्ट। मुख्यमंत्री योगी, महंत या किसी भी जिम्मेदार नागरिक से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह पहले तो नियम-कानून तोड़े, फिर जब उस पर कोई कार्रवाई हो तो हनुमान चालीसा का जाप करने लगे।
जब आप अपराधियों के खिलाफ कड़ी करवाई करने का माद्दा रखते हैं तब आपकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि आप खुद कानून का पालन करें न कि खुद उसी श्रेणी में शामिल हो जाएं। भले ही यह गैर-कानूनी न हो लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण जरूर है कि गृहमंत्री ने भी चुनाव आयोग के द्वारा की गई संवैधानिक करवाई को नीचा दिखाने के कृत्य में खुद को शामिल करने का निर्णय लिया है। जनता ऐसा मुख्यमंत्री कतई नहीं चाहती जो लोकतंत्र के महापर्व के बीच खुद कानूनी आदेशों का पालन न करने के लिए विख्यात होना चाहता हो।