नीतीश कुमार और योगी पर भी लटकी है पोक्सो की तलवार- पूर्व डीजीपी

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काॅलम Published On :


 

विकास नारायण राय

 

 

मुजफ्फरपुर बाल गृह प्रकरण में शुरुआती चुप्पी के बाद अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कितने ही दिलेर शब्दों में अपराधियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की बात करें,पोक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत हो रही जांच में स्वयं उनकी भूमिका का भी आपराधिक पाया जाना अप्रत्याशित नहीं होगा| कम से कम, सीबीआई को इस पहलू को भी अपनी जांच में शामिल करना ही पड़ेगा|

पोक्सो एक्ट के चैप्टर पाँच की धारा 19 और 20 में सम्बंधित सरकारी व्यक्तियों, मीडिया, एनजीओ, काउंसेलर, होटल, क्लब, स्टूडियो इत्यादि पेशेवर समेत सभी पर जिम्मेदारी डाली गयी है कि वे बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की भनक मिलते ही स्थानीय पुलिस या बाल-अपराध पुलिस यूनिट को सूचित करेंगे| ऐसा न करने वालों या इस तरह की सूचना पर कार्यवाही न करने वाले अधिकारियों को इसी चैप्टर की धारा 21 में छह माह तक सजा का प्रावधान है|

लिहाजा, नीतीश और उनके नौकरशाहों की भूमिका पोक्सो एक्ट की इन धाराओं के अंतर्गत जाँची जानी चाहिये| जिला प्रशासन से लेकर मंडल और राज्य स्तर तक सरकारी अमले और एजेंसियों का एक समूचा पदानुक्रम होता है जिस पर ऐसे परिसरों में होने वाले तमाम कार्यकलाप के नियमित निरीक्षण, काउंसलिंग और ऑडिट की जिम्मेदारी आयद रहती है| उनकी रिपोर्टें नौकरशाही के वरिष्ठ स्तरों और मंत्रियों तक भी देखी जाने और तदनुसार कार्यवाही की व्यवस्था है|

मुजफ्फरनगर प्रकरण में ‘टिस’ जैसी प्रतिष्ठित एजेंसी ने मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के नीतीश सरकार के अनुदान से चलने वाले बालगृह का सोशलऑडिट किया था। उन्हें सरकार को रिपोर्ट सौंपे भी दो माह से अधिक समय हो चुका था। अब चल रही सीबीआई जाँच से यह भी स्पष्ट होगा कि जिला मुख्यालय, राज्य सचिवालय और मंत्रालय समेत किन स्तरों पर और किनकी शह पर धारा 21 पोक्सो एक्ट का खुला उल्लंघन किया गया|

पोक्सो की नीतीश, उनके मंत्रियों और वरिष्ठ नौकरशाहों पर लटकती तलवार को समझने के लिए एक नजर मई 2012 के ऐसे ही एक मामले, रोहतक का ‘अपना घर’ प्रकरण, पर डाल सकते हैं जिसका फैसला इसी अप्रैल में पंचकुला सीबीआई अदालत से आया है। तब तक पोक्सो एक्ट नहीं बना था और जघन्य कांड के प्रकाश में आने के छह साल बाद केवल इस आश्रय स्थल के संचालकों और सहायकों को ही सजा मिल सकी है।

हालाँकि,इसमें सीबीआई ने त्वरित जांच की और अदालत ने भी सजा देने में कोई कम दिलेरीनहीं दिखायी;जज ने कुल सात दंडित में से तीन को आजीवन कारावास भी पकड़ाया| सीबीआई जज जगदीप सिंह वही थे, जिन्होंने कुख्यात धर्मगुरु राम रहीम को व्यभिचार में बीस वर्ष का कारावास दिया था|

‘अपना घर’मामले का खुलासा तीन निवासी लड़कियों के भागकर दिल्ली पहुँचने और एक हेल्पलाइन के माध्यम से अपनी बात कह पाने से हो पाया था।अन्यथा राज्य के अधिकारी खामोश ही थे। राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम ने तीन दिन बाद ‘अपना घर’ परिसर पर छापा मारा जहाँ उन्हें सेक्स और श्रम शोषण की असहाय शिकार, सौ से अधिक लड़कियां मिलीं|

लेकिन जहाँ सरकारी अनुदान से चलने वाले इस एनजीओ के कर्ता-धर्ता पकड़े गये, वहीँ इसका नियमित निरीक्षण करने के लिए जिम्मेदार बनाया गया सरकारी अमला, रोहतक से चंडीगढ़ तक का, साफ बच निकला| वरिष्ठ नौकरशाहों और मंत्रियों की आपराधिक भूमिका तो तब जांच का विषय ही नहीं बन सकी थी। पोक्सो एक्टके उपरोक्त प्रावधानों ने अब इस कमी को दूर कर दिया है|

इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार भी मुख्यमंत्री योगी के पड़ोसी जिले देवरिया में एक बालिका गृह का मुजफ्फरपुर जैसा ही मामला, राजनीतिक बयानों से निपटाने में व्यस्त दिखती है। यहाँ भी एक निवासी लड़की के किसी प्रकार यातना परिसर से निकलकर महिला थाना तक पहुँच पाने से ही प्रभावी संरक्षण में चल रहे इस व्यापक यौन शोषण का पर्दाफाश हो सका। अन्यथा राज्य सरकार की एजेंसियां तो खामोश ही चल रही थीं| अधिक दिन नहीं हुए, एक जिला कलक्टर ने इसी संस्था को मुख्यमंत्री की सामूहिक विवाह योजना के लिए पात्र बता डाला था|

देवरिया प्रकरण में भी फिलहाल गिरफ्तारियां सिर्फ संचालकों तक सीमित हैं। जाहिर है, योगी भी नीतीश से भिन्न नहीं हैं और जाँच का दायरा पोक्सो एक्ट की धारा 19-21 तक नहीं बढ़ाया गया है। सवाल है, एक्ट तो बन गया पर बच्चों के यौन शोषण पर चुप रहने वाले अधिकारी और शह देने वाले प्रभावी व्यक्ति गिरफ्त में कैसे आ पायेंगे? यह आँच नीतीश और योगी तक पहुंचेगी?

 

(अवकाश प्राप्त आईपीएस विकास नारायण राय, हरियाणा के डीजीपी और नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के निदेशक रह चुके हैं।)