दिगम्बर
आज के अखबारों में यह खबर है कि “भारत पेरिस से करीब 200 किलोमीटर दूर विलर्स गिस्लेन में प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस की आजादी में अविभाजित भारत के सैनिकों के योगदान को रेखांकित करने के लिए एक युद्ध स्मारक का निर्माण करेगा. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इसकी घोषणा की.”
सच्चाई यह है कि प्रथम विश्व युद्ध साम्राज्यवादी देशों के दो खेमों के बीच मुनाफे की हवस और गलाकाटू प्रतियोगिता का नतीजा था। हमारे देश के लोग अंग्रेजों के गुलाम होने के चलते जबरन सेना में भर्ती करके तोप का चारा बनाकर उस युद्ध में झोंक दिए गए थे। वे फ्राँस को आजाद कराने की भावना से नहीं गए थे। अगर आजादी के लिए कुर्बानी देना होता तो वे खुद अपनी आजादी के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ते।
मेरी राय में गुलाम नागरिकों का गुलाम बनानेवाले देश के हित में लड़ना-मरना मजबूरी तो हो सकती है, कोई गर्व का विषय नहीं हो सकता और न ही इसको गौरवान्वित किये जाने की जरूरत है। युद्ध स्मारक का निर्माण करने का निर्णय दरअसल ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी के कलंक को अपने लिए सौभाग्य का टीका समझना है। यह दिमागी गुलामी का द्योतक है।
इस मुद्दे पर आपलोगों की क्या राय है?
लेखक राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता हैं। यह उनकी फ़ेसबुक टिप्पणी है।