चंद्र प्रकाश झा
पूर्वोत्तर के त्रिपुरा राज्य विधानसभा चुनाव के मतदान 18 फरवरी को संपन्न हो चुके है. अन्य दो राज्यों , मेघालय और नगालैंड की विधानसभा चुनाव के लिए भी मतदान 27 फरवरी को हो गए जहां क्रमशः 67 % प्रतिशत और 75 % वोटिंग की खबर है । वर्ष 2013 के पिछले विधान सभा चुनाव में नागालैंड में करीब 91 % और मेघालय में 89 % मतदान हुआ था। तीनों विधानसभा की 60-60 सीटें हैं। इनमें से त्रिपुरा की एक समेत कुल दो सीटों पर चुनाव प्रत्याशियों के निधन के कारण स्थगित कर दिए गए हैं। तीनों राज्यों के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा भी एकसाथ 18 जनवरी को कर दी गई थी। उनके अधिकृत चुनाव परिणाम एकसाथ 3 मार्च को मिलेंगे। लेकिन एग्जिट पोल में त्रिपुरा में सत्तारूढ़ वाम मोर्चा तथा मेघालय में सत्तारूढ़ कांग्रेस की हार के साथ ही नगालैंड में भाजपा की जीत की संभावना व्यक्त की गई है।
इस बीच, लोकसभा में उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर तथा बिहार में अररिया सीटों पर 11 मार्च को उपचुनाव के कार्यक्रम की भी अलग से घोषणा की जा चुकी है। बिहार विधानसभा की दो रिक्त सीटों , जहानाबाद और भभुआ परउपचुनाव भी 11 मार्च को ही कराये जा रहे हैं। इन सभी उपचुनाव के परिणाम 13 मार्च को निकलेंगे .
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर की सीट क्रमशः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख़्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के सांसद पद से इस्तीफा देने से रिक्त हुई है जो वहाँ से 2014 के आम चुनाव में जीते थे . उन्होंने विधानसभा के पिछले वर्ष मार्च में संपन्न चुनाव के बाद गठित नई सरकार में क्रमश: मुख्यमंत्री और उपमुख़्यमंत्री बन जाने के बावजूद सांसद पद से इस्तीफे जुलाई 2017 में राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा खेमा प्रत्याशी राम नाथ कोविद की जीत सुनिश्चित करने के लिए गणितीय राजनीति -रणनीति के कारण तत्काल नहीं दिए थे।
बिहार में लोकसभा की अररिया सीट, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सदस्य तस्लीमुद्दीन के निधन से रिक्त है. जहानाबाद और भभुआ की सीट वहाँ 2016 के विधानसभा चुनाव में जीते क्रमशः राजद के मुंद्रिका यादव और भाजपा के आनंद भूषण पांडेय के निधन से रिक्त है। इन उपचुनाव की विस्तृत चर्चा, मीडिया विजिल के इस स्तम्भ की अगली किस्त में की जाएगी।
चुनावी चर्चा श्रृंखला की पिछली कड़ी में त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान से लेकर मतदान संपन्न होने तक की मीडिया की ख़बरों का विस्तार से विश्लेषण किया जा चुका है। इस बार, बारी मेघालय और नगालैंड की है। पूर्वोत्तर के चुनाव की राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा अपेक्षाकृत कम होने की प्रवृति के बारे में मीडिया विजिल द्वारा ध्यान आकृष्ट किये जाने के बाद उन चुनाव की ख़बरों की आमद में कुछ बढ़ोतरी-सी नजर आई है।
नगालैंड में चुनाव की घोषणा के बाद बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम शुरू हो गए जिसके बारे में राष्ट्रीय मीडिया में स्पष्ट खबरें कम ही नज़र आई हैं। जबकि गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव को लेकर आर्थिक अखबार , फिनांसियल एक्सप्रेस में पिछले सप्ताह कयासों से भरी लगभग पूरे पन्ने की रिपोर्ट छप चुकी है.
नगालैंड में भाजपा, कांग्रेस, नगा पीपुल्स फ्रंट समेत 11 राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से घोषणा कर दी थी कि वे ” नगा समस्या ” का वहाँ के जनजातीय संगठनों एवं अन्य समुदायों को स्वीकार्य समाधान होने तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. नगालैंड में सत्तारूढ़ ‘डेमोक्रेटिक अलायंस ऑफ़ नगालैंड’ का नेतृत्व कर रहे ‘ नगा पीपुल्स फ्रंट’ समेत 11 दलों का हस्ताक्षरित संयुक्त घोषणापत्र राज्य की राजधानी कोहिमा में 30 जनवरी को
आदिवासी “होहो” समुदाय के प्रतिनिधि-संगठन और नागरिक संगठन की कोर कमेटी (सीसीएनटीएचसीओ) की बुलायी गई बैठक के बाद जारी किया गया था।
लेकिन बाद में भाजपा उक्त संयुक्त घोषणा से पीछे हट गई। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इस घोषणापत्र पर विधिवत हस्ताक्षर करने वाले पार्टी कार्यकारी परिषद सदस्य, खेतो संपार्ती को निलंबित कर दिया। भाजपा चुनाव मैदान में ‘नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ‘ के संग अपना गठबंधन बना उतर गई है।
वर्ष 2003 से राज्य सरकार की बागडोर संभाले डेमोक्रेटिक अलायंस ऑफ़ नगालैंड में कालान्तर में भाजपा भी शामिल हो गई। टी आर जिलिआंग मई 2014 से फरवरी 2017 तक नगालैंड के मुख्यमंत्री रहे और जुलाई 2017 में फिर इस पद पर बैठ गए।
कांग्रेस ने भाजपा गठबंधन के खिलाफ ‘धर्मनिरपेक्ष’ उम्मीदवारों का समर्थन करने की घोषणा की है। इसका कितना असर हुआ या होगा उसकी साफ तस्वीर चुनाव परिणाम से ही मिलेगी। कांग्रेस ने 18 और भाजपा ने 20 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये हैं।
प्रधानमन्त्री ने नगालैंड के तुएनसांग में भी 22 फरवरी को एक रैली में कहा कि नगा मुद्दे का जल्द ही समाधान हो जाएगा। पर उन्होंने पृथकतावादी नगा उग्रवादियों के साथ केंद्र सरकार के पिछले वर्ष कथित रूप से किये उस गुप्त समझौता का कोई जिक्र नहीं किया जिसके तहत नागालैंड को अलग से पासपोर्ट जारी करने का भी अधिकार देने का वादा शामिल होने की अटकलें लगाई जाती रही हैं। बताया जाता है कि मोदी सरकार ने इस कथित समझौता के लिएअपने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भी विश्वास में नहीं लिया था और अधिकृत तौर पर समझौता का कभी कोई खुलासा नहीं किया गया। नगालैंड में इसाई धर्मावलम्बी बहुमत में है।
एनडीटीवी इंडिया न्यूज़ चैनल ने नगालैंड के बारें में कई खबरें दी हैं। इनमें सबसे ज्यादा चौकाने वाली खबर यह है कि वहाँ पिछले 54 साल में 12 विधानसभा चुनाव होने के बावजूद एक भी महिला विधायक निर्वाचित नहीं हो सकीं। इस बार भी चुनाव मैदान में कुल 195 प्रत्याशियों में केवल पांच ही महिलाएं हैं. इन पांच महिला प्रत्याशियों में से ‘नेशनल पीपुल्स पार्टी’ (एनपीपी) की टिकट पर वेदिइ-यू क्रोनू और मंगयांगपुला क्रमश: दिमापुर-तृतीय और नोकसेन सीट पर मुकाबले में हैं। भाजपा की तरफ से राखिला, तुएनसांग सदर-द्वितीय सीट, नवगठित ‘नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी’ (एनडीपीपी) की ओर से अवान कोन्याक, अबोई सीट, और निर्दलीय रेखा रोज दुक्रू, चिझामी सीट पर उम्मीदवार हैं।
गौरतलब है कि राज्य में सत्तारूढ़ नगालैंड पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) की एक भी महिला उम्मीदवार नहीं है। मौजूदा चुनाव में कुल पांच महिला प्रत्याशियों में से चार पहली बार चुनाव मैदान में उतरी हैं। तुएनसांग सदर-द्वितीय सीट पर भाजपा प्रत्याशी राखिला, इसी सीट पर पिछली बार जीत नहीं सकी थी। वह इसी सीट से चार बार जीते और मंत्री रहे दिवंगत लकीउमोंग की पत्नी हैं. एनडीपीपी उम्मीदवार अवान कोन्याक, चार बार विधायक रहे नेयिवांग कोन्याक की बेटी हैं, जिनका हाल में निधन हो गया. नगालैंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अभिजीत सिन्हा के अनुसार पिछले चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या दो ही थी.
मोदी जी ने त्रिपुरा की तरह ही मेघालय में भी चुनाव प्रचार में साम्प्रदायिक कार्ड चलाने में गुरेज नहीं किया। उन्होंने 22 फरवरी को वहाँ के अपने दूसरे चुनावी चक्कर में फूलबाड़ी में एक जनसभा में कहा कि उनकी सरकार ने 2014 में इराक में सभी इसाई भारतीय नर्सों को आतंकी ‘ आईएसआईएस ‘ से बचाया। उन्होंने कहा कि मेघालय के लोगों को भाजपा को सत्ता सम्भालने का मौक़ा देना चाहिए क्योंकि मौजूदा कांग्रेस सरकार के चलते
राज्य में विकास नहीं होने दिया गया है। उन्होंने मेघालय में पर्यटन के प्रोत्साहन के लिए केंद्र सरकार की ‘ स्वदेश दर्शन योजना ‘ के तहत राज्य में गिरजाघरों और धार्मिक संस्थाओं के सौन्दर्यीकरण की 70 करोड़ रूपये की स्कीम , राजधानी शिलांग के हवाई अड्डा के सुधार के लिए 180 करोड़ रूपये के प्रावधान और 100 करोड़ रूपये के खर्च से 21 हज़ार आवास बनाने की घोषणा का उल्लेख किया।
उन्होंने मुख्य्मंत्री मुकुल संगमा पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाते हुए कहा कि उनके डॉक्टर होते हुए भी राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं जर्जर हो गईं हैं.
बहरहाल , अब सबकी नजरें इन तीनों विधानसभा चुनाव परिणाम के तीन मार्च को निर्धारित घोषणा पर टिकी रहेंगी। उसके बाद तो उत्तर प्रदेश और बिहार के उपरोक्त उपचुनाव ही नहीं इसी वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक समेत कुछेक अन्य राज्यों के भी चुनाव निर्धारित हैं। इस बीच , प्रधानमंत्री मोदी जी के गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर उवाचित नया जुमला, ‘एक राष्ट्र एक चुनाव ‘ को लेकर लोकसभा का अगला चुनाव भी मई 2019 के पहले कराये जाने की अटकलें भी बढ़ रही हैं. देखना है कि ऐसे में भारत की राष्ट्रीय मीडिया सही चुनावी खबरें देने के लिए कितनी सुस्त -चुस्त है।
मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है। सीपी की इस श्रृंखला की कड़ियाँ हम चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव बाद भी पेश करते रहेंगे।