कुमार मुकेश
अमेजन प्राइम की नई वेब सीरिज़ “पाताल लोक” खासी चर्चा में हैं. फिल्म का मुख्य किरदार इस्पेक्टर हाथीराम चौधरी सीरिज के आरम्भ में ही अपना दर्शन अपने एक कनिष्ठ अधिकारी से साझा करता है, “ये जो दुनिया है न दुनिया, दरअसल यह एक नहीं तीन दुनिया है. सबसे ऊपर स्वर्ग लोक है, इसमें देवता रहते हैं. दूसरा धरती लोक, इसमें आदमी रहते हैं और सबसे नीचे है पाताल लोक, जिसमें कीड़े रहते हैं. वैसे तो यह शास्त्रों में लिखा है पर मैंने व्हाट्सएप पर पढ़ा है.”
हाथीराम की तीन दुनिया में दिल्ली के तीन किस्म के पुलिस थाने हैं. उसका थाना आउटर यमुनापार थानों के पाताल लोक की श्रेणी में है जिसके “कीड़ों” से वह पिछले पन्द्रह साल से वाकिफ है. घर-परिवार और नौकरी, दोनों ही जगह असफल हाथीराम को जब एक हाई-प्रोफाइल केस की इन्वेस्टिगेशन की जिम्मेदारी मिलती है तो वह चार अपराधियों की पृष्ठभूमि खंगालने के लिए उनके अतीतरुपी पाताल में घुसता है तो समझ आता है कि असल पाताललोक तो मीडिया और सिस्टम है.
कहानी के केंद्र में भले ही इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी और प्राइम टाइम का हाई-प्रोफाइल टी-वी एंकर संजीव मेहरा हैं. पर पाताललोक के “ कीड़ों” के रूप में चीनी, तोपसिंह, कबीर और त्यागी और मिस्टर सिंह अथवा विक्रम कपूर के रूप में मीडिया मालिक और मीडिया टाइकून, सब एक अदृश्य “मास्टर” के मोहरे मात्र होते हुए भी महत्वपूर्ण किरदार हैं..
पाताललोक का द्रोणाचार्य भी अपने शिष्य से अंगूठा ही मांगता है. यहाँ के एकलव्य के हाथ में हथौड़ा है. हथौड़ा त्यागी “मास्टर जी” के लिए अंगूठा नहीं प्राण भी दे सकता है.
कबीर को उसके बाप ने मुसलमान तक नहीं बनाया और निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर पलने वाला और बाल यौन शोषण का शिकार चीनी ट्रांसजेंडर बन गया. मीडिया और सिस्टम का पाताललोक कबीर को फर्जी जिहादी और चीनी को नेपाल स्थित आई.एस.आई. एजेंट घोषित करने की ताकत भी रखता है. पंजाब का दलित तोपसिंह दबंगों के जुल्म सहकर बड़ा हुआ तो “बड़ा काण्ड” करने के बाद दिल्ली के अपराध-जगत में घुसा तो मोहरा होने के बावजूद पाताललोक ने उसे “बड़ी साजिश” का सरगना करार दिया.
प्राइम टाइम टीवी एंकर को लगता है कि व्यवस्था की डोर उसके हाथ में है. टी आर पी गिरने पर उसी एंकर को मालिक द्वारा उसकी औकात समझाई जा सकती है कि ट्रबल-मेकर बनने की आवश्यकता नहीं है. छुट्टी करो और देश के हालात पर कोई किताब लिखो या ओरगेनिक खेती ही कर लो; बेहद “थेरेप्युटिक” होती है.
मीडिया-मालिक सरकार की आलोचना को अनैतिक मानता है. उसके मुताबिक बड़े-बड़े एक्सप्रेस-वे सरकार की सौगात हैं जनता को, यह बात और है कि इन प्रोजेक्ट्स में वह खुद भी कहीं न कहीं “स्लीपिंग-पार्टनर” है. तो असल मीडिया हैं कौन? क्या कोई स्थानीय पत्रकार? जिस पर बड़े से बड़े चैनल को भी निर्भर रहना पड़ता है किसी “बिग-ब्रेकिंग” के लिए. चाहे उस बेचारे का दफ्तर कोई लोकल नेता खुद के खिलाफ लिखने पर तुड़वा दे या पुलिस के खिलाफ कुछ बोलने पर थानेदार उसे थाने में तलब कर ले.
“हम कभी समाज के नायक होते थे. लोग हमें पसंद करते थे. पर अचानक इस देश में कुछ बदल सा गया. और अब हमें ट्रोल किया जाता है, मार दिया जाता है या नौकरी से बेदखल कर दिया जाता है.” ये कहने वाला नामी-गिरामी पत्रकार मेहरा खुद पर बनती है तो बिकने को तैयार है, बशर्ते उसको मुंहमांगी कीमत मिल जाए.
पाताललोक में कोई ऐसे नायक नहीं है जो इसे स्वर्ग-लोक अथवा पृथ्वी लोक बनाना चाह रहे हों. हाथीराम चौधरी भी नहीं. यहाँ सिर्फ कीड़े हैं या उन्हें कुचलने वाले बूट.
सीरिज़ का आरम्भिक दर्शन हाथीराम का है तो उपसंहार उसके वरिष्ठ अफसर का:
“ये सिस्टम जो है न दूर से देखने में सड़ा-गला कचरे का ढेर लगता है लेकिन घुस कर समझोगे न यह एक वेल-ऑयल्ड मशीनरी है. हर पुर्जे को मालूम है कि उसे क्या करना है. जिसे नहीं पता उस पुर्जे को बदल दिया जाता है पर यह सिस्टम नहीं बदलता.”
पाताल लोक के आरम्भिक दर्शन से उपसंहार रूबरू होने के लिए यह सीरिज़ देखे जाने की मांग करती है.
गैंग्स ऑफ़ वसेपुर में शाहिद खान और अब पाताललोक में हाथीराम चौधरी जैसे किरदार निभाने वाले जयदीप अहलावत के रूप में इंडस्ट्री को इरफ़ान खान भले ही वापस न मिले पर एक और बेहतरीन अभिनेता अवश्य मिल गया है.
कुमार मुकेश चर्चित लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।