पहला पन्ना: सब दुरुस्त बताने को ख़बरें गोल! धारावी का प्रचार! इंडियन एक्सप्रेस तुस्सी ग्रेट हो!! 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


गंगा किनारे रेत में दबाए गए शवों पर से रंगबिरंगी चादरें हटा दी गईं। हालांकि खबर यह भी है कि इसकी जांच के लिए पैनल बना है ( हिन्दू) यानी यह सरकारी कार्रवाई नहीं है। दूसरी ओर, अखबारों में खबरें छप गईं कि ऐसा पहले भी होता रहा है (चादरें नहीं हटाई गई होंगी, बाकी सब) और सबसे बड़े हिन्दी अखबार ने खबर छाप दी (फोटो भी), “कोरोना नहीं था, फिर भी तीन साल पहले ऐसी ही थी गंगा किनारे की तस्वीर जाहिर है, सब कुछ सामान्य बताने की इन कोशिशों का असर हो रहा है और आज अंग्रेजी के तीन बड़े अखबारोंहिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया में कोरोना की स्थिति बताने वाली कोई खबर नहीं है। टेलीग्राफ ने न्यूयॉर्क टाइम्स के एक अध्ययन के हवाले से खबर दी है कि तस्वीर बहुत विकट है। मुझे लगता है कि तीन साल पहले ऐसी ही हालत थी तो अभी तक कुछ किया जाना चाहिए था पर नहीं किया गया और अब सामान्य दिखाने की कोशिश हो रही है तो आगे भी कुछ करने की योजना नहीं होगी। इससे स्थिति ज्यादा विकट बनती और लगती है। लेकिन वह अलग मुद्दा है। 

न्यूयॉर्क टाइम्स के एक अध्ययन के हवाले से टेलीग्राफ ने बताया है कि भारत में कोविड से मरने वालों की  संख्या बताए गए तीन लाख से बहुत ज्यादा हो सकती है। इस विश्लेषण के अनुसार, 24 मई को आधिकारिक गिनती 26.9 मिलियन यानी दो करोड़ 69 लाख लोगों के संक्रमित होने और 3,07,231 मौतों की सूचना थी। पर अनुमान है कि संक्रमितों की संख्या 404.2 मिलियन यानी 40 करोड़ 42 लाख होगी और इसमें 0.15 प्रतिशत की मौत के हिसाब से कम से कम छह लाख लोगों की मौत हुई होगी। दूसरी संभावना यह है कि संक्रमितों की संख्या 53 करोड़ 90 लाख होगी। अगर मरने वालों का प्रतिशत 0.30 माना जाए तो संख्या 16 लाख होगी। सबसे बुरा परिदृश्य है, 70 करोड़ सात लाख लोगों के संक्रमित होने का। इस स्थिति में मरने वालों का प्रतिशत 0.60 माना जाए तो संख्या होगी 42 लाख। सरकार अगर आंकड़े छिपाएगी, जलती चिताओं को ढंकने के लिए दीवार खड़ी करेगी तो ऐसी अटकलें लगेंगी ही। दिलचस्प यह है कि इतनी मौतों को सामान्य बताने की कोशिश हो रही है। यही नहीं, आज संक्रमितों और मरने वालों की खबर पहले पन्ने पर नहीं होना भी प्रचारकों की रणनीति की सफलता ही है।  

ऐसा नहीं है कि स्थिति बहुत ठीक हो गई है या संक्रमितों या मरने वालों की संख्या में भारी कमी आई है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अध्ययन के आलोक में होना यह चाहिए कि सरकार इस मामले में पारदर्शिता बढ़ाए लेकिन आज तो बुरी हालत है। हिन्दू की खबर के अनुसार संक्रमण के 2,02,570 नए मामले दर्ज किए और 3,577 मौते हुईं। दोनों ही संख्या अभी तक के शिखर के मुकाबले भले कम लग रही हो पर कम नहीं है। कोविड-19 से अगर अभी तक तीन लाख मौतें मानें तो 50,000 मौतें 12 दिन में हुई थीं। उससे पहले की 50,000 मौतें 30 दिन जबकि दो लाख मौतें कोई एक साल में हुई थीं। इस लिहाज से 3577 की मौत का आंकड़ा कम तो छोड़िए, बहुत ज्यादा है। एक साल में दो लाख मौतों का मतलब हुआ 547 रोज और अभी 3577 है। अखबारों का काम सच बताना है और यह इसलिए भी जरूरी है कि इससे सरकार पर अपनी प्राथमिकताएं तय करने के लिए दबाव पड़ता है। आपको याद होगा कि महाराष्ट्र में मामले बढ़ रहे थे तो दिल्ली में उसका कितना प्रचार था। उस रणनीति का फायदा हुआ हो या नहीं, सच्चाई तो नहीं ही छिपी। आम लोगों या मतदाताओं तक भले नहीं पहुंच रही हो पर दुनिया देख रही है फिर भी ना सरकार पर कोई असर है ना मीडिया पर। महाराष्ट्र में करीब 25,000 मामले अब भी मिले हैं लेकिन दिल्ली में खबर पहले पन्ने से गायब है।

बात इतनी ही नहीं है, इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी एक खबर का शीर्षक है, एक समय के हॉट स्पॉट, धारावी में सिर्फ तीन नए मामले, दूसरी लहर में सबसे कम। मैं इस खबर को चुनौती नहीं दे रहा हूं। मैं खबरों के चयन से असहमत हूं। यह खबर भी वैसी ही है। जब महाराष्ट्र सरकार को बदनाम करना हो तो वहां मामले ज्यादा होने की खबर छापना और अब जब सब ठीक है बताने की जरूरत है तो धारा के साथ बहकर धारावी की खबर ढूंढ़ लाना पत्रकारिता नहीं है। कम से कम वो तो नहीं, जिसके लिए रामनाथ गोयनका ने जाने जाते थे। इंडियन एक्सप्रेस तुस्सी ग्रेट हो!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।