मत चूको चौहान – मामा के बेटे को शुभाशीष, पर सवाल तो बनता है…

कपिल शर्मा कपिल शर्मा
काॅलम Published On :


दोस्तों, मामा जी के बेटा जी ने यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया से एलएलएम की डिग्री हासिल की, और मामा जी ने जैसा कि अपेक्षित था अपने बेटे की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को भारत की ग़रीब जनता के साथ साझा भी किया। मुख्यमंत्री ने बहुत ही गर्वीली भावुकता के साथ ये बताया कि कार्तिकेय सिंह चौहान ने दीक्षांत समारोह में जो डिग्री हासिल की उससे उनका मन आनंदित हुआ और जाहिर है वे वहां नहीं पहुंच पाए क्योंकि वे प्रशासनिक दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। किसी का भी बेटा हो, एल एल एम की डिग्री और वो भी अमेरिका से….गर्व तो बनता है। पर कई सवाल भी उठते हैं, कई सवाल तो मामा के ट्विटर भी लोगों ने पूछ डाले, पर हमारे सवाल कुछ दूसरी किस्म के हैं, इसलिए यहां पूछ रहे हैं।

 

सवाल नंबर 1

भई आप कौन से प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं जिनकी वजह से आप अपने बेटे की इस उपलब्धि में शामिल नहीं हो पाए? आपके पंद्रह साल के शासन काल में हमें तो जो प्रशासनिक कार्य मिला, शैक्षणिक जगत में उसकी उपलब्धि व्यापमं में दिखी, जिसमें सैंकड़ों जाने गईं, लेकिन नतीजा सिफर रहा। इतना बड़ा घोटाला हुआ और आज तक ये ने पता चल पाया कि उस घोटाले का असली सूत्रधार कौन था। तो मामा जी, आपके इस प्रशासनिक दायित्व के निर्वहन में चूक से अगर हम व्यापमं जैसे किसी जानलेवा घोटाले से बच सके तो हमारी सलाह तो यही है कि प्रशासनिक दायित्व का निर्वहन ना करें, उसे जस का तस पड़ा रहने दें। बाकि अपने बेटे के दीक्षांत समारोह में आपको जरूर जाना चाहिए था, वहां व्यापमं नहीं हुआ तो आपका बेटा डिग्री पा गया। यहां व्यापमं हुआ हमारे बेटे-बेटियां एडमिशन तक के लिए तरस रहे हैं। आपके प्रशासनिक दायित्व में क्या सीटों की हेरा-फेरी होती है मामा जी? क्योंकि हमारे प्रदेश में करोड़ों खर्च करने के बाद कोई डिग्री मिलती है, और उसमें भी व्यापमं हो जाता है, या व्यापमं जैसा कोई कांड हो जाता है।

हमारे यहां तो मामा जी लोग परीक्षा के लिए फार्म भरते हैं और फिर परीक्षा की डेट का इंतजार करते हुए बूढ़े हो जाते हैं। कभी कोई परीक्षा हो जाती है, तो पता चलता है कि पेपर लीक घोटाला हो गया। फिर दूसरी बार का फार्म भरने और फिर से इंतजार करने को अभिशप्त हैं हम। मामा जी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया में तो ऐसा नहीं होता होगा ना? वहां तो ऐसा नहीं होता होगा कि फार्म तो कार्तिकेय सिंह चौहान भरें और उनकी जगह परीक्षा कोई और दे आए। या फिर मान लीजिए कि फार्म भरके, परीक्षा देके, आपके सुपुत्र अच्छे रिजल्ट का इंतजार करें। फिर अचानक खबर मिले की कोई पेपर लीक घोटाला हो गया है और सरकार ने परीक्षा ही रद्द कर दी है। पर अब तो दीक्षांत समारोह हो गया है, तो अब परीक्षा या परिणाम रद्द होने का कोई खतरा नहीं है। क्योंकि मामा जी, वहां आप अपने प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं।

सवाल नंबर 2

मामा जी, आपको बहुत गर्व हो रहा है। ठीक भी है, भई अपना बेटा कोई डिग्री हासिल करे तो किस बाप को गर्व नहीं होगा। आपका बेटा है, अब लाॅ में मास्टर्स है, तो गर्व होना चाहिए। लेकिन एक मुख्यमंत्री होने के नाते क्या आपको ज़रा भी बुरा नहीं लग रहा है कि आपके बेटे को, अमेरिका में जाकर एल एल एम की पढ़ाई करनी पड़ी। आप अपने पंद्रह साला मुख्यमंत्री काल में एक अदद काॅलेज ऐसा नहीं बनवा पाए कि आप अपने बेटे को यहां से एल एल एम करवाते और फिर गर्व करते। मामा जी, व्यक्तिगत गर्व में इस सामाजिक शर्म के महत्व पर भी तो थोड़ा प्रकाश डालिए। भई आप मुख्यमंत्री हैं, आपकी सलाहियत है, आपके पास सारे स्रोत संसाधन हैं, लेकिन जिनके पास आपके जैसे स्रोत संसाधन नहीं हैं, जो यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया जाकर डिग्री नहीं ले सके, वो क्या करें। हमारे यहां तो मामा जी, स्कूल तो ढंग का नहीं है, काॅलेज और यूनिवर्सिटी की तो कोई क्या कहें। आपका क्या है, आप तो इस पर भी गर्व कर सकते हैं। पर हम क्या करें, इस बात पर कैसे गर्व करें कि देखो हमारे बच्चों को पढ़ाई के लिए विदेश जाना पड़ रहा है।

सवाल नंबर 3

चिंता मत कीजिए, सवालों की फेहरिस्त में ये आखिरी सवाल है। यूं मैं और भी सवाल पूछ सकता था, क्योंकि सवाल तो अनगिनत हैं, लेकिन अगर आप इन तीन सवालों के जवाब भी ईमानदारी से दे सकें तो समझ लीजिए कि मध्य-प्रदेश के और इस देश के भाग्य पलट जाएंगे। तो सवाल नंबर तीन ये है मामा जी कि आपने अपने बेटे को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आर एस एस की शाखा में भेजा क्या? क्या वो रोज़ सुबह उठ कर ”नमस्ते सदावत्सले…” गाता है। क्या वो गोभक्त है, क्या वो अमेरिका जैसे भ्रष्ट खानपान वाले देश में बेचैन नहीं हुआ, आपकी अंतरात्मा ने कैसे स्वीकार कर लिया कि जहां आपने अपने राज्य में जनता पर तमाम तरह के निषेधात्मक कानून लगा रखे हैं, वहीं आपका बेटा अमेरिका जैसे देश से डिग्री ले रहा है, जहां शायद उसके प्रोफेसर लोग भी बीफ खाते होंगे, स्टीक खाते होंगे और सबसे बड़ी बात गौमूत्र नहीं पीते होंगे। ये कैसा उदाहरण आप जनता के सामने रख रहे हैं, सिर्फ मध्यप्रदेश की ही नहीं, पूरे देश की जनता आपसे पूछ रही है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी, कि ऐसे देश में जहां, गाय की पूजा नहीं होती, गौमूत्र को अमृत नहीं माना जाता, जहां हिंदू स्वाभिमान का कोई मतलब नहीं है, उस विधर्मी राष्ट्र की किसी भी डिग्री को हासिल करने पर आप अपने बेटे की उपलब्धि कैसे मान रहे हैं? हमारे देश में जहां लाखों, करोड़ों युवा, निसदिन, जय श्री राम का नारा लगाते हुए, पूरे देश को अखंड हिंदू राष्ट्र बनाने पर तुले हुए हैं, ऐसे समय में अपने बेटे को विधर्मी विदेशी डिग्री हासिल करने पर आपके गर्व का क्या औचित्य है। जब पूरे राष्ट्र को हनुमान जयंती मनाना है, परशुराम जयंती मनाना है, इस देश के विधर्मियों का नाश करना है, तब आपका बेटा यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया से एलएलएम की डिग्री ले रहा है। इसे क्या माना जाए मामा जी….


यूं बातें और भी हो सकती हैं, सवाल तो मैने कहा ही है कि अनगिनत हैं ही….पर अगर आपको गर्व करना है, तो भले ही गर्व कीजिए अपने बेटे की डिग्री पर, हमारा क्या है, हम तो इसी बात पर गर्व कर लेते हैं कि बेटा जी स्कूल की पढ़ाई कर पा रहे हैं, या फिर किसी तरह काॅलेज पहुंच जा रहे हैं। मुसीबत सिर्फ ये है कि काॅलेज, डिग्री सब करने के बाद भी बेटा जी को कोई नौकरी नहीं मिल पा रही है। अब सोच रहे हैं कि अपने स्कूल का नाम भी पेन्सिलिवेनिया ही रख दें, कुछ तो हमारा भी मन आनंदित हो, जैसा आपका हो रहा है। लोकतंत्र है ना…सोचते हैं, जैसे मुख्यमंत्री का दिल आनंदित हो, वैसे ही हमारा भी हो जाए, पर उसकी संभावना कम ही लग रही है….खैर आप दीक्षांत समारोह की और वीडियो साझा कीजिए….उसे ही देख के खुष हो जाएं, इससे ज्यादा की औकात अपनी लगती नहीं है, आपने होने ही नहीं दी, बाकी दिल ने बातें करना चाही तो आपको बता दीं, बुरा मत मानिएगा। हमारा क्या है साधारण ”जनोचित” विद्वजन ध्यान दें, फिर एक नया शब्द खोजा है” व्यवहार और बात की है।

उनके देखे से जो आ जाती है मुहं पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

ये तो पक्का चचा ग़ालिक का शेर है, चाहे तो दीवान उठा कर देख लीजिए, वहीं मिलेगा। शुक्रिया

 

(उल्टा तीर-कमान को डांटे – फिल्मकार-संस्कृतिकर्मी कपिल शर्मा के नियमित व्यंग्य स्तंभ के तौर पर मीडिया विजिल पर प्रकाशित हो रहा है।)