दास मलूका कौन हैं, यह जानने से ज़्यादा अहम यह जानना है कि हमारे समय में ऐसे लोग हैं जो दास मलूका जैसी दृष्टि रखते हैं। यह दृष्टि हमें उस ‘गोपन’ की यात्रा कराती है जो दृश्य में होते हुए भी अदृश्य है। दास मलूका बहुत दिनों से चुपचाप ज़माने की यारी-हारी-बीमारी पर नज़र रख रहे थे कि मीडिया विजिल से मुलाक़ात हुई और क़लम याद आया। अब वादा है कि महीने में दो बार,आपसे गुफ़्तगू करेंगे- संपादक
दास मलूका
प्रणब मुख्रजी नागपुर के रेशिम बाग मैदान में बने मंच पर पहुंच चुके थे। उनके साथ मंच पर सर संघचालक मोहन भागवत गणवेश में नई-नई शामिल
हुई फुल पैंट में मौजूद थे। सबकी निगाहें टीवी चैनलों पर चिपकी थीं और कान इस बात का इंतजार कर रहे थे कि आखिर प्रणब मुखर्जी यहां बोलेंगे क्या ? मीडिया के महारथी लहक-लहक कर संघ और दादा की करीबी बयान किए जा रहे थे….इसी बीच हिंदी के नंबर 1 चैनल पर एक और ही घमासान शुरु हो गया।
खुद को संघ का विचारक कहने वाले राकेश सिन्हा ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में एक टिप्पणी की…..और इस टिप्पणी के जवाब में कांग्रेस की प्रवक्ता रागिनी नायक ने कुछ ऐसा कहा कि सिन्हा हत्थे से उखड़ गए…..
रागिनी ने जो कहा उसका लब्बो -लुआब ये था कि
“राकेश सिन्हा तो प्रोफेसर भी नहीं है, एसोसिएट प्रोफेसर हैं…डिपार्टमेंट में पढ़ाने तक नहीं जाते, आप उसी तरह स्वयंभू प्रोफेसर हैं जैसे सावरकर स्वयंभू वीर”
जाहिर है टिप्पणी जाती हो गई थी, सिन्हा का गुस्सा लाजिमी था और वो उठकर खड़े हो गए, उनका कहना था कि मैं अपनी आपत्ति जताते हुए कार्यक्रम छोड़कर जा रहा हूं। हालांकि वो गए नहीं…..और इस आरोप का जवाब देने की बजाए कि वो प्रोफेसर भी नहीं है, इस बात पर नाराजगी का इजहार करने लगे कि ‘मैं पढ़ाने नहीं जाता हूं’। लेकिन रागिनी यहीं नहीं रुकीं उन्होने तो उस सांध्य कॉलेज का नाम तक बता दिया जहां राकेश सिन्हा दरअसल असोसिएट प्रोफेसर हैं।
संघ के विचारक की विवशता देखिए कि रागिनी नायक बार-बार उन्हें छेड़ कर उठा रही थीं, और एंकर अंजना कश्यप बार-बार उन्हें संघ प्रमुख और प्रणब मुखर्जी की नागपुर से आ रही ताजा तस्वीरों का हवाला देकर रोक ले रही थीं…आखिरकार राकेश सिन्हा रुक तो गए लेकिन माहौल में बड़ा विषाद घुल गया। खुद अंजना कश्यप ने एक बार राकेश सिन्हा को झिड़क कर चुप करा दिया।
हालांकि दास मलूका का असल मकसद राकेश सिन्हा की विवशता या चैनल की बहस में घुल गया विषाद बताना नहीं है।
बताना ये है कि कितने संघर्षों के बाद तो राकेश सिन्हा संघ के ‘स्वयंभू’ विचारक बने, और मीडिया में उन्हें लोग इस तरह ट्रीट करते हैं।
मीडिया से उनका रिश्ता पुराना है, सूत्रों के मुताबिक दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने से भी पहले का, लेकिन उससे भी पुराना रिश्ता उनका दिल्ली आने के बाद ABVP से बना। कहते हैं कि ABVP के इसी रिश्ते ने उन्हें रजत शर्मा के संपादन में निकलने वाली ‘ऑनलुकर’ से भी जोड़ा। लेकिन राकेश सिन्हा दिल्ली यूनिवर्सिटी में आने के बाद हिंदी पट्टी में मशहूर पत्रिका ‘आउटलुक’ के एक कॉलम से पहचाने गए। जहां जाने क्यों उन्हें इतिहासकार बताया जाता था, जबकि हैं वो ‘पॉलिटिकल साइंस’ के एसोसिएट प्रोफेसर।
इस बीच एक लंबा वक्फ़ा गुजरा और अन्ना का आंदोलन आते-आते टीवी पर उनकी पहचान संघ के आदमी के रुप में हुई, लेकिन अपने लिए संघ विचारक नाम उन्होने खुद चुना, कहते हैं ये एक टीवी प्रोड्यूसर का दिया नाम था।
हालांकि अन्ना के आंदोलन तक राकेश सिन्हा इतने आक्रामक नहीं हुआ करते थे, जितना आज संघ के लिए दिखते हैं। उनकी भाषा में ये बदलाव धीरे धीरे नोट किया गया। जब लगभग तय हो गया कि संघ परिवार ( दरअसल चालक शक्ति तो वही है ) नरेंद्र मोदी को ही प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाएगा। अचानक एक दिन एक स्टूडियो में उन्होने ऐलान किया-
” नरेंद्र मोदी की सुनामी आने वाली है” (इस ऐलान से साफ था कि सिन्हा संघ के विचारक ही नहीं सियासत के मौसम विज्ञानी भी हैं) लेकिन स्टूडियो में मौजूद दूसरे पैनलिस्ट ने त्वरित टिप्पणी की ” राकेश जी सुनामी तो विनाश की होती है”
जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री उम्मीदवार बन गए तो सिन्हा ने फिर दावा किया
“अगर मोदी पीएम नहीं बनते तो मैं अपना नाम बदल दूंगा” ( इस बार उनके तेवर में आक्रामकता थी ) हालांकि तब भी उन्हें टोका गया ” राकेश जी ये भी तो बताते जाइए कि फिर आपको किस नाम से पुकारेंगे”
लेकिन वो दिन भी आया जब BJP ढाई सौ से ज्यादा सीटें लेकर आती नजर आई। कहते हैं विचारक राकेश सिन्हा के अंदर की ऊर्जा देखने वाली थी। स्टूडियो से जलपान के लिए निकले सिन्हा ने सीधे इस्लाम और मुसलमान को निशाने पर लिया। उनका कहना था कि ‘इन्होने’ सारा जोर लगा दिया
मगर मोदी को रोक नहीं पाए।
RSS के कई अधिकृत संगठन हैं जिन्हें स्वयं सेवक सहोदरी संस्थाएं कहते हैं। यानि जिनका जन्म एक ही उदर से हुआ-मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। लेकिन एक ऐसा दौर भी चला था जब कई फाऊंडेशन वजूद में आए, जो संघ के तो नहीं थे लेकिन जिनके पीछे संघ से संबद्ध लोग थे। इसमें दीना नाथ मिश्र से लेकर राम माधव तक के खड़े किए फाऊंडेशन हैं। इसी तर्ज पर राकेश सिन्हा ने भारत नीति प्रतिष्ठान खड़ा किया।
इस प्रतिष्ठान का जो न्यूज लेटर है उसका एक बड़ा हिस्सा उर्दू अखबारों की खबरों पर केंद्रित होता है, जो व्याख्या के साथ बताता है कि मुसलमानों के नजरिए में खोट क्या है ?
लेकिन राकेश सिन्हा को जानने वाले कहते हैं कि इस प्रतिष्ठान का इस्तेमाल उन्होने संघ में अपनी पैठ और मीडिया पर अपनी मौजूदगी बढ़ाने में किया।
इसका प्रमाण है सर संघ चालक मोहन भागवत का उनके निवास स्थान पर जलपान के लिए जाना। जहां उनका स्वागत फूल माला और आरती से किया गया।
लेकिन आज राकेश सिन्हा की दिक्कत दोहरी है, बाहर वालों से तो उन्हें पहले ही जूझना पड़ रहा था, अब भीतर वाले अलग से परेशान करने लगे हैं।
मोदी सरकार आने तक राकेश सिन्हा अकेले ‘संघ विचारक’ थे। लेकिन जैसे जैसे मोदी सरकार परवान चढ़ती गई कई ‘संघ के जानकार’ भी सामने आने लगे। हालांकि वे सिर्फ ‘जानकार’ थे और राकेश सिन्हा ‘विचारक’ बने हुए थे। इनमें से कई दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यापक थे।
टीवी चैनलों पर इन लोगों की आवाजाही ने आपसी टकराव बढ़ा दिए। इन्हीं में एक नाम संगीत रागी का है जिनके साथ सिन्हा का टकराव अब संघ की सर्किल में ही नहीं मीडिया में भी जाहिर है। जाने कितना सही मगर आरोप है कि सिन्हा उन्हें ‘संघ का जानकार’ नहीं मानते, यही नहीं सिन्हा ने कई चैनलों पर उन्हें बुलाए जाने से रोका भी। ये मामला संघ के ऊपरी सर्किल तक भी गया। फिलहाल रागी भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में पोलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं
(असोसिएट नहीं)। हाल में वो तब चर्चा में आए जब उन्होने आक्रामकता की रौ में ये कह दिया कि-
” चीन से हार के बाद कोई दूसरा देश होता तो जवाहर लाल नेहरू को फांसी चढ़ा दिया गया होता”
बहरहाल हिंदी के एक असोसिएट प्रोफेसर और भी हैं, जिनका नाम है अविजिनेश अवस्थी। मीडिया में हिंदी के अलावा वो हर मामले पर बहस करते हैं। कहते हैं राकेश सिन्हा का टकराव तो उनसे भी हुआ लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी में कुलपति दिनेश सिंह के दौर में दोनों की पट गयी। तब दिनेश सिंह को विश्वविद्यालय से हटाने का अभियान छिड़ा हुआ था, जानकारों के मुताबिक अविजिनेश अवस्थी और राकेश सिन्हा दोनों उनके खिलाफ थे,ये और बात है कि दिनेश सिंह संघ की भीतरी सर्किल में सब पर भारी पड़े।
मीडिया में RSS का पक्ष रखने वाला हर शख्स मीठी मुस्कान और दबी जबान से कमोबेश ये बातें कहता है। दास मलूका इन्हीं सुनी-सुनाई बातों को आपके सामने रख देता है। इनमें कुछ सच्चाई हो भी सकती है और कुछ ईर्ष्या भी।
ऐसी ही एक बातचीत में यूनिवर्सिटी के ही एक प्रोफेसर ने जिनका RSS से कोई नाता नहीं जवाब देने के अंदाज में सवाल किया।
इतना तो तय है कि राकेश सिन्हा का टार्गेट ‘एकेडमिक’ नहीं ‘पॉलिटिकल’ है…..लेकिन ये बताइए कि वो राज्यसभा में जाएंगे या JNU वाले कन्हैया कुमार के खिलाफ़ चुनाव लड़कर लोकसभा ?
चलते-चलते बता दें कि संघ विचारक राकेश सिन्हा भी बेगूसराय के ही रहने वाले हैं और कन्हैया के बेगूसराय से चुनाव लड़ने की चर्चा सियासी गलियारों में फिलहाल सुगबुगा रही है।