अमेरिकी जिम्नास्ट सिमोन बाइल्स का टोक्यो ओलिंपिक में महिला जिम्नास्टिक्स टीम इवेंट के बीच से हट जाना सिर्फ अमेरिका नहीं, दुनिया भर में मौजूद उनके प्रशंसकों को निराश कर गया। जिस परफॉर्मेंस में उन्हें हवा में ढाई चक्कर लगाने थे, उसमें वे डेढ़ ही चक्कर लगा पाईं और मैट पर उनकी लैंडिंग भी काफी बेढंगी सी रही। लेकिन ऐसे मौके हर खिलाड़ी के खेल जीवन में आते हैं। ओलिंपिक भावना गिरकर उठने की ताईद करती है लिहाजा उम्मीद की जा रही थी कि आगे की परफॉर्मेंसेज और इवेंट्स में वे अच्छा करेंगी। लेकिन सिमोन ड्रेसिंग रूम से रोती हुई लौटीं और मीडिया के सामने अपने मानसिक स्वास्थ्य का हवाला देते हुए आगे परफॉर्म न करने की बात कही।
ध्यान रहे, सिमोन बाइल्स आज भी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जिम्नास्ट हैं और रियो ओलिंपिक में जीते गए चार स्वर्ण के अलावा भी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं के इतने स्वर्ण पदक उनके पास मौजूद हैं, जितने आज तक किसी भी महिला या पुरुष जिम्नास्ट के हिस्से नहीं आए हैं। खेलों की दुनिया में उनकी लगभग वैसी ही पौराणिक हैसियत बन चुकी है जैसी जेसी ओवंस, अबेबे बिकिला, जिम थोर्प और सर्जेइ बुबका जैसे धुरंधरों की मानी जाती रही है। ऐसी खिलाड़ी का मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर खेल के बीच से हट जाना दुनिया के लिए धक्के का सबब तो है लेकिन इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि दुनियादारी के नजरिये में आया एक बड़ा बदलाव इसमें परिलक्षित हो रहा है।
भारत में कोई आज भी अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चर्चा करे तो उसके दोस्त-मित्र और अभिभावक उसे चुप कराने का प्रयास करते हैं। पिछले कुछ सालों में मनोचिकित्सकों से संपर्क करने का चलन बढ़ा है। लोग इस बारे में आपस में भी कुछ बातचीत कर लेते हैं। लेकिन इसे फुरसत की चीज ही माना जाता है। सायक्याट्रिस्ट के यहां से लौटने के बाद मरीज के परिजनों का आग्रह डिप्रेशन और एंग्जाइटी को शुगर या ब्लड प्रेशर की तरह लेने का होता है, जो पूरी तरह ठीक भले न हो, बस नियंत्रण में रखा जा सके तो भी जीवन की गुणवत्ता ज्यों की त्यों बनी रहती है। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य की समस्या बताकर कोई अगर अपना बड़ा इम्तहान छोड़ दे या इंटरव्यू से हटने का मन बना ले तो यही परिजन इसको उसमें मोटिवेशन की कमी की तरह देखते हैं और यहां से हिलने का नाम नहीं लेते।
सिमोन बाइल्स का फैसला हमें मानसिक स्वास्थ्य के प्रश्न को एक बड़े फलक पर देखने के लिए प्रेरित करता है। सिमोन अपना खेल जारी रख सकती थीं। टोक्यो ओलिंपिक में महिला जिम्नास्टिक्स की कई इवेंट्स अभी उनका इंतजार कर रही हैं। हो सकता है, इनमें से किसी में वे हिस्सा भी लें। लेकिन जिम्नास्टिक्स एक हाई रिस्क खेल है और इतने ऊंचे लेवल पर परफॉर्म करते हुए अगर एक बार खिलाड़ी के मन में हिचक पैदा हो जाए तो उसके चोटिल होने की आशंका बढ़ जाती है। 2008 के पेइचिंग ओलिंपिक में विश्व रिकॉर्डधारी हर्डल रेसर ल्यू श्यांग के साथ ठीक ऐसा ही हुआ था। अश्वेत नस्ल के एकछत्र दबदबे वाले इस खेल में शांघाई के रहने वाले इस धावक ने असाधारण उपलब्धियां हासिल की थीं और उद्घाटन समारोह में चीन के ध्वजवाहक के रूप में स्टेडियम में प्रवेश किया था। लेकिन ट्रैक पर उतरने के बाद ल्यू श्यांग ने पिस्टल दगने से पहले ही एक फाल्स स्टार्ट ले ली और इस क्रम में उसके टखने की कोई ऐसी चोट उभर आई जो उसे याद भी नहीं थी। नतीजा यह कि उसका करियर ही खत्म हो गया।
ऐसे में देखने की बात यही है कि इवेंट छोड़ने के बाद सिमोन बाइल्स मैट पर दोबारा वापस आ पाती हैं, या यहीं से उनके टॉप लेवल की जिम्नास्टिक्स छोड़ देने की शुरुआत होती है। पिछले डेढ़ वर्षों में दुनिया भर में फैली कोरोना की महामारी ने यूं भी मानसिक स्वास्थ्य को एक विश्वव्यापी समस्या का रूप दे दिया है, लेकिन साल भर पहले होने वाले टोक्यो ओलिंपिक के हिसाब से तैयारी कर रहे खिलाड़ियों के लिए यह समस्या कई गुना बढ़ गई है। लंबे समय से उन्हें विश्वस्तरीय वॉर्मअप टूर्नामेंट्स नहीं खेलने को मिले। दर्शकों की हौसला अफजाई से खुद को ज्यादा ऊंचे स्तर पर ले जाने की जो प्रक्रिया दिमाग से लेकर शरीर तक चलती है, वह भी नहीं चल पाई। सिमोन बाइल्स का कहना है कि यह ओलिंपिक वे अपने लिए खेलना चाहती थीं लेकिन लगा कि यहां भी दूसरों के लिए ही खेल रही हैं।
पीछे जाएं तो इस जिम्नास्ट का जीवन काफी संकटों से भरा हुआ रहा है। अश्वेत पृष्ठभूमि की सिमोन बाइल्स अपने चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर की हैं। उनके माता-पिता बच्चों के पैदा होने के बाद ही अलग हो गए और मां नशे की गिरफ्त में आकर जेल के भीतर-बाहर होती रहती थीं। चारो बच्चे अनाथालय में पल रहे थे कि तभी उनके नाना ने सोचा कि क्यों न इन बच्चों को पाल लिया जाए। उन्होंने दो बच्चों को पालने का आग्रह अपनी बहन से किया और दो को अपने पास रख लिया। बाद में बच्चों को गोद लेकर वे और उनकी पत्नी कानूनी तौर पर इनके माता-पिता बन गए। बाइल्स उन्हीं का टाइटल है। सिमोन अगर अपने जैविक पिता के साथ रहतीं तो उनका टाइटल क्लेमंस होता।
एक इंटरव्यू में सिमोन बाइल्स ने कबूल किया कि बचपन की उनकी यादें सिर्फ भूख और भय की हैं। परिवार क्या होता है, यह उन्होंने सबसे पहले छह साल की उम्र में पहुंचकर जाना। इसके कुछ ही साल बाद बतौर जिम्नास्ट उनकी ख्याति अमेरिका में फैलने लगी और मात्र सोलह की उम्र में उन्होंने वर्ल्ड ऑलराउंड टाइटल जीत लिया। और हां, जिम्नास्टिक्स में उनका आना भी उनके रॉनल्ड बाइल्स परिवार से जुड़ने का ही नतीजा है। रॉनल्ड और उनकी पत्नी नेली एक जिम चलाते हैं, जिसमें उनकी गोद ली हुई दोनों बच्चियों ने आने के साथ ही प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।
2016 के रियो ओलिंपिक में झंडे गाड़ने से पहले सिमोन बाइल्स ने ओलिंपिक समिति को बता दिया था कि उन्हें एडीएचडी (अटेंशन-डेफिसिट/ हाइपरऐक्टिविटी डिसॉर्डर) है और वे इसकी दवा खाती हैं। बाद में यह बात उन्होंने बाकायदा मीडिया को भी बताई। ऐसी बीमारी के बावजूद वे अपने खेल को यहां तक ले आई हैं, इससे उनकी असली ताकत का पता चलता है। दुनिया सिमोन बाइल्स का नाम जिम्नास्टिक्स में उनके प्रदर्शन से जोड़कर लंबे समय तक लेती रहेगी, लेकिन उतनी ही बड़ी भूमिका उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के प्रश्न को कलंक-मुक्त करने में भी निभाई है। हमें भी जितनी खुशी किसी को चैंपियन बनते देखकर होती है, उतनी ही उसे स्वस्थ देखकर होनी चाहिए।क
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।