आज सभी अखबारों की लीड अलग है। जब कोई बड़ी खबर नहीं हो तो ऐसा होता है और मैंने देखा है कि ऐसे दिन पहले पन्ने पर और भी कई अच्छी बड़ी खबरें होती हैं। इसलिए आज सबसे पहले पांच अखबारों की लीड का शीर्षक। इसके बाद पढ़िए कौन सी अखबार में क्या खास है ताकि आप अपने हिन्दी अखबार का हाल जान सकें।
- सुकमा मुठभेड़ में पांच सुरक्षाकर्मी मारे गए – द हिन्दू (पांच कॉलम)
- चुनावी लड़ाई गर्म हुई, मोदी–ममता आमने सामने (हिन्दुस्तान टाइम्स, दो कॉलम)
- हिमन्त के माफी मांगने पर चुनाव आयोग ने प्रतिबंध में ढील दी; कांग्रेस ने कहा चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहा (इंडियन एक्सप्रेस, पांच कॉलम)
- पांच महीने के बाद, भारत में कोविड की गिनती फिर दुनिया में सबसे ज्यादा (टाइम्स ऑफ इंडिया, चार कॉलम)
- बंगाल का बंटवारा मत होने दीजिए : ममता (द टेलीग्राफ, चार कॉलम)
द हिन्दू में बंगाल की लड़ाई गर्म हुई जैसी कोई खबर नहीं है। हालांकि, यह टाइम्स ऑफ इंडिया में टॉप पर है। टाइम्स ने बताया है कि प्रधानमंत्री ने ममता बनर्जी को जवाब दिया। असल में ममता बनर्जी भाजपा के प्रचारकों और समर्थकों को बाहरी कह रही है। जवाब में प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि वे नंदीग्राम से हार रही हैं। कहीं और से चुनाव लड़ेंगी। इसपर उन्होंने कहा कि वे बनारस से लड़ेंगी। और इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा है कि बनारस में लोग उनका स्वागत करेंगे, बाहरी नहीं कहेंगे आदि आदि। पर हिन्दू में जो बड़ी खबरें हैं उन्हें भी जान लीजिए। अखबार ने फोटो के साथ पांच कॉलम में खबर छापी है, “हरियाणा के मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन में किसान घायल”। उपशीर्षक है, “मनोहर लाल के रोहतक दौरे से पहले पुलिस के साथ झड़प में बुजुर्ग प्रदर्शनकारी, पुलिसवाले जख्मी हुए”। फोटो के साथ यह खबर द टेलीग्राफ में है पर दिल्ली के अखबारों में नहीं है। “किशोरी के साथ गैंगरेप, मौत के मामले में मेरठ में दो गिरफ्तार”। यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में भी है।
इंडियन एक्सप्रेस में कई खास खबरें हैं लेकिन सबसे पहले मेरा ध्यान गया लीड के साथ छपी सिंगल कॉलम की एक खबर पर। मैंने पहले बताया है कि इंडियन एक्सप्रेस की लीड, एक भाजपा उम्मीदवार को दी गई सजा कम करने की खबर है। चुनाव के समय दूर असम में सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार को अगर सजा दी जाए और अगले ही दिन कम कर दिया जाए, अखबार में लीड खबर छपे तो नेता अपने आप बड़ा हो जाएगा, मुफ्त में प्रचार मिला सो अलग। वैसे भी ऐसी सजा का क्या मतलब जो उससे ज्यादा हो नहीं सकती थी और अगले ही दिन कम कर दी गई। मामला यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान आपत्तिजनक भाषण के लिए असम के मंत्री और भाजपा उम्मीदवार हिमन्त बिश्व शर्मा पर 48 घंटे यानी दो दिन का प्रतिबंध लगाया गया। उनके पास प्रचार के लिए इतना ही समय था। उनके चुनाव क्षेत्र में मतदान 6 अप्रैल को है। चुनाव प्रचार आज यानी चार अप्रैल को बंद हो जाना है। प्रतिबंध रहने पर वे शनिवार शाम से रविवार शाम तक प्रचार नहीं कर पाते। उन्होंने यही दलील दी और इसे मान लिया गया। ऐसा नहीं है कि प्रतिबंध लगाने वाले को या लगाने के समय यह सब जानकारी नहीं थी। जाहिर है, प्रतिबंध सब सोच कर और जरूरत के अनुसार लगाया गया होगा। अब इसे वापस ले लिया गया तो मान सकते हैं कि मामला विवेक का है। दबाव या भ्रष्टाचार नहीं है। जो भी है हास्यास्पद तो है ही। आपको लगता है कि यह सब बगैर दबाव के हो गया होगा तो मुझे कुछ नहीं कहना।
इस मामले में एक और तथ्य है जो इंडियन एक्सप्रेस की खबर में पहले पन्ने पर नहीं है। द हिन्दू ने इसे अपनी मुख्य खबर के साथ प्रमुखता से छापा है। प्रतिबंध कम करने के लिए एक्सप्रेस ने ‘रिलैक्सेस’ शब्द का इस्तेमाल किया है। हिन्दी में यह ‘ढील देना’ होता है। हिन्दू में इस खबर का ‘शीर्षक है’, चुनाव आयोग ने असम के मंत्री हिमन्त बिश्वास पर प्रचार प्रतिबंध कम किया। यहां ‘रिड्यूसेज’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। मूल खबर दो दिन के प्रतिबंध की थी तो ढीला करने और कम करने का अंतर आप समझ सकते हैं। ऐसे खेल इरादतन न भी किए जाएं तो इनसे बचने की सीख देना संपादक का काम है।
दूसरी खबर है, भाई का तबादला। इसके अनुसार चुनाव आयोग ने असम के इस मंत्री के भाई का तबादला कर दिया है जो एसपी थे। मुझे लगता है कि यह तबादला पहले नहीं किया जाना ज्यादा बड़ी चूक (छूट) है और अब शायद सजा कम करने की मजबूरी में किया गया हो। या पहले किसी मजबूरी में नहीं हटाया गया हो। अखबारों का काम यही सब बताना है पर अब वे लीप–पोत कर छिपाते ज्यादा हैं। बताते कम हैं। चुनाव आयोग की इस और ऐसी भूमिका और उससे संबंधित खबर के बीच इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर का शीर्षक चौंकाता है, प्रधानमंत्री ने कहा, “खिलाड़ी अंपायर (ईसी) पर आरोप लगाए, खेल (ममता) में कुछ गड़बड़ है।“अंपायर की भूमिका पर अगर खिलाड़ी आरोप नहीं लगाएगा तो दर्शक लगाएगा? और खिलाड़ी क्यों न लगाए। खेल में भी तानाशाही। खिलाड़ी अंपायर से सवाल क्यों न करे, जवाब क्यों न मांगे। और सब गलत हो भी तो दूसरा खिलाड़ी (प्रधानमंत्री यानी भारतीय जनता पार्टी के प्रचारक) अंपायर का बचाव क्यों करे? और यह सब हो तो अखबार की खबर में एक ही खिलाड़ी की बात क्यों हो? पर शायद यही है, जर्नलिज्म ऑफ करेज। वैसे अखबार के इतवार के मास्टहेड में यह दावा या प्रचार नहीं है।
इंडियन एक्सप्रेस में आज टॉप पर केंद्र सरकार की एजेंसियों का चुनाव के समय दुरुपयोग किए जाने से संबंधित एक अच्छी खबर है। निश्चित रूप से यह रूटीन खबर नहीं है और ऐसी खबरों पर पहले बाईलाइन होती थी जो आज नहीं है। दूसरी ओर, पूरी तरह सरकारी और भाजपा उम्मीदवार का प्रचार करने वाली खबर में बाई लाइन है जो प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर ही लिखी गई होगी। हिन्दू की ये वाली खबर बेहतर है पर बाई लाइन नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में दो लोगों की बाईलाइन है पर भाई के तबादले वाला हिस्सा पहले पन्ने पर तो नहीं ही है। मुख्य बात यह है कि चुनाव के दौरान केंद्र सरकार की एजेंसियों के दुरुपयोग पर इंडियन एक्सप्रेस की यह शानदार खबर है। रिकार्ड और इतिहास लिखने के भी काम आएगा।
हिन्दुस्तान टाइम्स में आज टीके से संबंधित एक दिलचस्प खबर है। इस मामले में शुरू से ही गड़बड़ होती रही है या कहिए की गंभीरता नहीं रही है। पंजीकरण का ड्रामा और खाली था तो लगवा लिया (डॉ. केके अग्रवाल का वायरल वीडियो) फिर उनका कहना कि हृदय से संबंधित मामला हो तो 100 रुपए की टेस्ट करवा लेना चाहिए और फिर इसका नियमों में शामिल नहीं होना। पहली खुराक के बाद अंतराल बढ़ाना और फिर शेल्फ लाइफ बढ़ा देना। ऐसे माहौल में कानपुर की एक नर्स ने 48 साल की महिला को दोनों खुराक एक साथ लगा दिए। महिला ने बताया नहीं कि उसे पहली खुराक अभी–अभी लगी है यह टीके को लेकर गंभीरता का आलम है। हालांकि, दवाइयों से संबंधित कोई प्रयोग-प्रचार चल रहा हो तो उसमें यह भी काम ही आएगा पर पता नहीं इसका उपयोग ऐसे किया जाएगा या बात आई–गई हो जाएगा। निश्चित रूप से यह चाल कॉलम की खबर है, भले पांच जवानों के मारे जाने की खबर सिंगल कॉलम में है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।