पहला पन्ना: ममता पर हमले की ख़बर को नड्डा के काफिले पर हमले की ख़बर के मुकाबले क्यों न देखा जाए?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


आज ममता बनर्जी पर हमले की खबर। आज की खबर की चर्चा से पहले याद दिला दूं कि पिछले 10 दिसंबर को कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ था। उसकी खबर इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर तीन कॉलम में छपी थी। दो लाइन का शीर्षक था, बंगाल में नड्डा के काफिले पर हमला, भाजपा नेता जख्मी, केंद्र ने रिपोर्ट मांगी। इस खबर के साथ दो कॉलम की फोटो थी, कैप्शन था, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पश्चिम बंगाल में डायमंड हार्बर के रास्ते पर थे तो उनके काफिले पर हमला किया गया। आज इंडियन एक्सप्रेस की खबर है, “ममता जख्मी, कहा ‘4-5 लोगों ने मुझे धक्का दिया’ चुनाव आयोग ने रिपोर्ट मांगी”। ममता बनर्जी पर हमले की खबर मेरे सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। हिन्दू में यह सिंगल कॉलम की खबर है, शीर्षक है, चुनाव प्रचार के दौरान ममता जख्मी, साजिश का आरोप लगाया। द टेलीग्राफ में आधा पन्ना विज्ञापन है और पहले पन्ने पर गिनती की खबरें होती हैं पर उसकी खबरें दूसरे अखबारों में नहीं होती है। उनके बारे में आगे।

मैं पहले लिख चुका हूं कि एक जैसी दो खबरें हमेशा बराबर नहीं हो सकतीं। अखबारों में खबर को महत्व मिलना उस दिन की दूसरी खबरों पर निर्भर करता है। कोई खबर इतनी महत्वपूर्ण होती है कि उसके लिए दूसरी खबर छोड़ी जा सकती है और कभी दूसरी खबर इतनी महत्वपूर्ण हो सकती है कि उसके लिए पहली बड़ी खबर को कम महत्व मिले। लेकिन आदर्श स्थिति में अखबारों को चाहिए कि वे शीर्षक में पूरी बात बताएं। जैसे नड्डा वाली खबर के शीर्षक में एक्सप्रेस ने लिखा था, केंद्र ने रिपोर्ट मांगी और आज ममता बनर्जी की खबर के शीर्षक में है, चुनाव आयोग ने रिपोर्ट मांगी। वैसे तो यह सामान्य लग रहा है पर नड्डा के काफिले पर हमला हुआ था जो जांच पश्चिम बंगाल पुलिस को करनी थी, रिपोर्ट उसे मांगनी थी। मांगी थी, केंद्र सरकार ने तो खबर होगी ही। वैसे भी, मैं इंडियन एक्सप्रेस की खबर की बात इसलिए कर रहा हूं कि मुझे याद नहीं है कि यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स या टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर थी। आज ढूंढ़ा तो एक्सप्रेस में मिल भी गया।

केंद्र सरकार ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष पर हमले की रिपोर्ट मांगी थी वह कोई आम कार्रवाई नहीं थी। आम कार्रवाई अभी की है कि चुनाव आयोग ने रिपोर्ट मांगी है। ऐसे में सवाल उठता है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार ने ममला बनर्जी पर हमले के मामले में क्या किया? वे खुद उस राज्य की मुख्यमंत्री हैं। क्या उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है? जाहिर है, नहीं है, चुनाव चल रहे हैं, आदर्श आचार संहिता लागू है और कार्रवाई चुनाव आयोग को करनी है। प्रदेश के डीजीपी बदलने की खबर कल ही आई थी और कल ही हमला हो गया। यह सब चुनाव आयोग से संबंधित मामला है। भाजपा जब चुनाव लड़ रही है तो वह तृणमूल की तरह एक पार्टी है। और उसने कहा है कि यह सहानुभूति पाने की चाल है, तो निश्चत रूप से यह भी खबर है और एक्सप्रेस ने यह बात सिंगल कॉलम की फोटो के कैप्शन में कही है। इस तरह, पहली नजर में भले सब कुछ सामान्य और हर कोई अपनी जिम्मेदारी निभाता हुआ लगे पर अभी बहुत सारी बातें जानने की उत्सुकता रहती है।

मैं तो सीधे-सीधे तुलना पढ़ना चाहूंगा कि भाजपा अध्यक्ष के काफिले पर हमले पर केंद्र सरकार ने जो कार्रवाई की वह इस मामले में की या नहीं या क्या नहीं किया। हालांकि यह अंदर के पन्ने की खबर है पर कोई करे तो पढ़ने और जानने लायक होगी। 11 दिसंबर को ही इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने की एक अन्य खबर में बताया गया था कि दिल्ली में कुछ लोग जब आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर में घुस गए थे। तब उनकी पार्टी ने भाजपा पर आरोप लगाया था और पुलिस वालों ने छह लोगों को गिरफ्तार किया था। नड्डा पर पश्चिम बंगाल में हमला और दिल्ली में उपमुख्यमंत्री के घर में जबरन घुस जाना भी एक जैसा मामला है। खबर बिल्कुल बराबर में छपी भी थी पर क्या केंद्र सरकार की कार्रवाई दोनों मामलों में एक जैसी रही? फॉलोअप के लिए यह भी अच्छा विषय है। अंदर के पन्नों के लिए अभी भी हो सकता है। पर क्या कोई करेगा?

आज पांचों अखबारों की लीड अलग है। हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड है, क्वैड देश भारत में टीका का उत्पादन बढ़ाएंगे। इस खबर से यह बताने की कोशिश की गई है कि दुनिया भर को कोविड का टीका मुहैया कराने में भारत और चीन में प्रतियोगिता चल रही और क्वैड नेताओं के सम्मेलन में यह महत्वपूर्ण मुद्दा होगा। निजी तौर पर मैं नहीं मानता कि महामारी फैलने पर अपने देश के नागरिकों को सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के लिए छोड़ देने वाला देश उनमें से कइयों की पिटाई करने वाली सरकार या पुलिस के रहते ऐसी कोशिशों से किसी का भला होना है। फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया में आज एक खबर है जो बताती है कि एक्सपर्टन पैनल ने भारत बायोटेक के टीका, कोवैक्सिन पर से क्लिनिकल ट्रायल मोड का टैग हटाने की सिफारिश की है। इससे देश में इस टीके को मिल रही प्राथमिकता का पता चलता है।

नागरिकों को सुविधाएं नहीं और टीका जल्दी बनाने तथा बांटने का शौक कौन सा देशहित है, मैं नहीं समझ पा रहा हूं। कल कहीं पढ़ रहा था कि लॉकडाउन के दौरान थैलेसीमिया के मरीजों को कितनी परेशानी हुई। मुझे याद आया, उन दिनों अखबार बता रहे थे कि अखबारों से कोरोना नहीं फैलता और पीएम केयर्स बन चुका था। एक तरफ जीने-मरने का मामला और दूसरी ओर आपदा में अवसर। सब कुछ शांतिपूर्वक तालमेल में निकल गया। इसलिए ऐसी खबरों में मेरी दिलचस्पी बिल्कुल नहीं है। हो सकता है, मैं ऐसी खबरों पर चर्चा भी न करूं। अखबारों (मीडिया) का काम नागरिकों और जनता की ऐसी ही जरूरतों का ख्याल रखना है। सरकारी तंत्र की लापरवाही पर ध्यान खींचना है लेकिन यह काम अब सोशल मीडिया पर आम लोग कर रहे हैं और सरकार चाहती है कि यह सब उसके नियंत्रण में रहे।

आज इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक है, “मंत्रिमंडल ने बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 74% करने का मार्ग प्रशस्त किया”। एक तरफ सरकार ने दान, सेवा और सहयोग के मद में नागरिकों के लिए विदेशी धन प्राप्त करना मुश्किल कर रखा है दूसरी ओर विदेशी निवेश पर कोई नियंत्रण नहीं है। पैसे की मजबूरी हर कोई समझ सकता है और सरकार की प्राथमिकता का मतलब समझना भी मुश्किल नहीं है। अखबारों को देश की खराब आर्थिक स्थिति के बारे में बताना चाहिए पर एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड के अनुसार इससे पता चलता है कि सरकार मुश्किल सुधार करने के लिए दृढ़ संकल्प है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने के अधपन्ने पर लीड है, “दूरसंचार संरचना को चीन के खतरों से बचाने के लिए सरकार ने नियम बदले”। टाइम्स की पहले पन्ने की लीड का शीर्षक है, “बुजुर्गों के लिए अयोध्या के मंदिर की यात्रा मुफ्त होगी : मुख्यमंत्री”। यह दिल्ली की खबर है और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की है। दिल्ली के अखबारों के लिए यह निश्चित रूप से महत्वपूर्ण खबर है। द हिन्दू का शीर्षक है, तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री बनें। टीओआई में एक महत्वपूर्ण खबर, केंद्र सरकार के नए आईटी नियमों से संबंधित है और शीर्षक है, केरल हाईकोर्ट ने केंद्र को आईटी नियमों पर रोका। विधि क्षेत्र की खबरें देने वाले ऑनलाइन पोर्टल की चुनौती से संबंधित यह खबर भी बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन, क्या यह आपके अखबार में है।

द टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर ममता बनर्जी के घायल होने की खबर तो है ही, दो और खबरें हैं जो दिल्ली के दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। मुझे लगता है कि ममता बनर्जी पर हमले के कारण दूसरी खबरें महत्वपूर्ण हो गई हैं। भले ही हमला “कथित” है और टेलीग्राफ ने भी फ्लैग शीर्षक में कहा है, हमले का आरोप। मुझे लगता है कि चुनाव प्रचार के समय कोई नहीं चाहेगा कि लाचार होकर घर या अस्पताल में बैठे भले इससे सहानुभूति वोट मिलते हों। पर वह अलग मुद्दा है। टेलीग्राफ की दूसरी खबर से पता चलता है कि वहां एक रैली निकली जिसका नारा था, भाजपा को छोड़ किसी को वोट दें। कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें लोग ममता बनर्जी के समर्थक नहीं थे ना उन्हें वोट देने की अपील कर रहे थे। उनका कहना है कि भाजपा को वोट नहीं दिया जाए। किसे देना है वह देने वाला खुद तय करे। देश की राजनीति में ऐसी भी स्थिति है यह जानने वाली खबर तो है ही। देखिए टेलीग्राफ का मेट्रो पन्ना, कितना रंगा-रंग है। दे टेलीग्राफ में पहले पन्ने की तीसरी खबर है, भारत अब एक ‘चुनावी निरंकुश’ (देश)। यह खबर और इसके तथ्य भी आम नागरिकों के जानने लायक है। पर आपके अखबार ने बताया?


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।