आज दो खबरें चर्चा करने लायक हैं। दोनों खबरें पश्चिम बंगाल और केरल में चुनाव से संबंधित हैं। दोनों राज्यों में भाजपा की दिलचस्पी, स्थिति तथा रणनीति के कारण खबरों की प्रस्तुति ध्यान देने योग्य है। बंगाल का मामला ज्यादा दिलचस्प और विवरण वाला है इसलिए पहले केरल की बात करता हूं। केंद्र सरकार के तहत काम करने वाले सीमा शुल्क विभाग (कस्टम्स) ने एक शपथपत्र में आरोप लगाया है कि केरल के मुख्यमंत्री पिनयारी विजयन के इशारे पर नकदी की तस्करी हुई। द हिन्दू ने आज इसे प्रमुखता से छापा है और चार कॉलम की लीड के बराबर में, टॉप पर तीन कॉलम में यह खबर है। इंट्रो में सत्तारूढ़ एलडीएफ (लेफ्ट डेमोक्रैटिक फ्रंट) का जवाब है, “शपथपत्र चुनाव से पहले सरकार की छवि खराब करने के लिए है”।
असल में, केरल में सोने की तस्करी का एक मामला कई महीने पहले सामने आया था। राज्य सरकार इसकी जांच कर रही थी। बाद में केंद्रीय एजेंसियों ने जांच शुरू की और अब पता चला है कि डिप्लोमैटिक चैनल से सोने की तस्करी की जांच के दौरान डॉलर की तस्करी का मामला सामने आया। हालांकि, जांच के दौरान ही खबर छपी थी कि जिस राजनयिक के सामान के रूप में सोना आया था वह देश छोड़कर भाग गया। अब ऐन चुनाव के समय इस आरोप के अपने मायने हैं। और इसमें कोई शक नहीं है कि बीच में मुख्यमंत्री को लपटने की कोशिशें चलती रहीं। दक्षिण भारत की यह खबर सभी अखबारों में पहले पन्ने पर हो यह जरूरी नहीं है पर आपके अखबार में कहां, कैसे है आप देखिए। अपने अखबार को जानिए।
मेरे पांच अखबारों में यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में लीड है, हिन्दुस्तान टाइम्स में अधपन्ने के बाद पहले पन्ने पर चार कॉलम में है। द टेलीग्राफ और टाइम्स ऑफ इंडिया में यह पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का शीर्षक है, कस्टम्स ने केरल के मुख्य मंत्री को सोने की तस्करी से जोड़ा; घटिया राजनीति : एलडीएफ। अखबार ने फ्लैग शीर्षक में बताया है, हाईकोर्ट में किए गए दावों से चुनाव वाले राज्यों में गर्मी आ गई। इस मुख्य शीर्षक के तहत दो खबरें हैं, कमिश्नर का शपथपत्र : स्वपना ने कहा कि विदेशी मुद्रा की तस्करी मुख्यमंत्री, (विधानसभा) अध्यक्ष के इशारे पर हुई …. उसे अपनी जान का डर है। इसके बराबर में बोल्ड शीर्षक है, स्वपना ने एनआईए के समक्ष ऐसा कोई दावा नहीं किया, एजेंसी ने मुख्यमंत्री के पूर्व सहायक पर भी आरोप नहीं लगाए।
यह इंडियन एक्सप्रेस की अपनी खबर है। यह सवाल हो सकता है कि इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मद्देनजर चुनाव के समय आरोपों को लीड बनाने का क्या मतलब? दूसरी तरफ, इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि आरोप हैं तो उसे नहीं छापने का क्या मतलब? अखबार का काम है पाठकों को सच्चाई बताना। और निश्चित रूप से यह संपादकीय स्वतंत्रता का मामला है। हिन्दुस्तान ने तो पहले पन्ने पर सिंगल इनवर्टेड कॉमा के तहत आरोप भर छापा है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा की राजनीतिक शैली ही मुकाबले में है। काफी हद तक उसे उसी अंदाज में जवाब मिला है और भाजपा की तरफ से मीडिया चैनल शुरू भी हो गए हैं। असल में हुआ यह है कि चुनाव से पहले होने वाले दलबदल के तहत पश्चिम बंगाल में भी कुछ लोगों दलबदल किए हैं। भाजपा का जोर और जो चुनाव प्रचार है सो है ही। दलबदल करने वालों में एक हैं, नंदीग्राम के विधायक सुवेन्दु अधिकारी ने दिसंबर में भाजपा में शामिल होने की घोषणा की। तृणमूल के टिकट पर नंदीग्राम से भारी मतों से उनकी जीत हुई थी।
दलबदल के बाद ममता बनर्जी ने कहा था कि कैसा रहे अगर मैं नंदी ग्राम से चुनाव लड़ूं? बेशक, यह दलबदल करने वाले सहयोगी को राजनीतिक पाठ पढ़ाना ही है। आमतौर पर ऐसे मामले में लोग दो जगह से चुनाव लड़ते हैं और अपनी जीत सुरक्षित रखते थे। खतरा भांप कर लोगों ने ममता बनर्जी को चुनौती देना शुरू कर दिया कि वे एक सीट से लड़कर दिखाएं। कल ममता बनर्जी ने पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा कर दी और खुद सिर्फ नंदीग्राम से लड़ने का एलान किया है। यही नहीं, अपनी पुरानी भबानीपुर सीट से भी उम्मीदवार की घोषणा भी कर दी है। तृणमूल के विरोधियों के लिए यह एक मुश्किल निर्णय है। और ऐसा वही करेगा जो इस सीट पर नहीं, पूरे राज्य में जीत के प्रति आश्वस्त हो। 18 जनवरी को ममता ने नंदीग्राम में कहा था, ‘मैं चुनाव में ज्यादा समय नहीं दे पाउंगी। मुझे 294 सीटों पर लड़ना है, इसलिए सारा काम आप लोगों को करना है; लेकिन उसके बाद सारा काम मैं करूंगी।” तब उन्होंने कहा था कि भबानीपुर से नहीं लड़ना, वहां के लोगों को बुरा लग सकता है। पर अंततः उन्होंने जो चुना वह आसान नहीं है।
चुनाव हारना-जीतना अलग बात है पर लड़ना इसे कहते हैं। जाहिर है यह जीतने वालों को खरीद लेने की राजनीति से अलग है। ऐसे में टीवी चैनल कल ही शुरू हो गए – “ममता ने छोड़ा घर, मोदी का डर” जबकि ममता बनर्जी ने सीधी चुनौती दी है या चुनौती स्वीकार की। अमित मालवीय ने पहले ट्वीट किया था, एक ही सीट से लड़ने की घोषणा करें और कर दिया तो ट्वीट किया, हार गईं। ऐसे में अखबारों की खबरों को समझना जरूरी है। आइए, देखें आज इस खबर को अखबारों ने कैसे छापा है।
द टेलीग्राफ में यह लीड है और ममता बनर्जी के ‘आसान चुनाव’ कहने तथा ‘खेलेंगे, लड़ेंगे, जीतेंगे के आधार पर शीर्षक है। इसमें कहा गया है कि ममता बनर्जी सिर्फ नंदीग्राम से लड़ेंगी और इसका मतलब है कि वे अपने गृह क्षेत्र भवानीपुर से नहीं लड़ रही हैं। गृहक्षेत्र से नहीं लड़ने के अलग-अलग मायने लगाए जा सकते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे वैसे ही छापा है जैसा मामला है। इस लीड खबर का शीर्षक है, दीदी ने भाजपा की चुनौती स्वीकार की, सिर्फ नन्दीग्राम से लड़ेंगी। इसी बात को इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसे कहा है, “28 विधायक बाहर, टीएमसी की सूची में 114 नए नाम, दीदी ने नंदीग्राम चुना”। हिन्दुस्तान टाइम्स में भी यह खबर लीड है। शीर्षक है, “दीदी एक ही सीट से लड़ेंगी : (सुवेन्दु) अधिकारी का गढ़ रहा है”। द हिन्दू में यह खबर लीड नहीं है पर पांच कॉलम का शीर्षक है, ममता नंदीग्राम से लड़ेंगी, 291 उम्मीदवारों की घोषणा की। इंट्रो है, “तृणमूल की सूची में 51 महिलाएं हैं, मुस्लिम उम्मीदवार कम हुए हैं”।
द टेलीग्राफ ने आज पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में एक खबर छापी है, “देश बंगाल पर नजर टिकाए है”। दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से कोलकाता गए एक किसान नेता, रजिन्दर सिंह दीप सिंह वाला ने गुरुवार को वहां एक रैली में कहा था। वे संयुक्त किसान मोर्चा के नेता है। यह पुरानी खबर है और आज किसी अखबार में शायद ही हो पर खबर तो खबर है। उन्होंने जो कहा वह यही कि बंगाल में भाजपा हार गई तो उसे मुंह छिपाने की जगह नहीं मिलेगी। इससे बंगाल चुनाव का महत्व पता चलता है और यही इस बात का सबूत है कि आगे चुनाव कितना दिलचस्प हो सकता हैं।
इसी तरह, केंद्र सरकार के मातहत काम कर रही दिल्ली पुलिस के खिलाफ आज टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर एक गंभीर टिप्पणी है। इसके मुताबिक, दिल्ली दंगे से संबंधित एक मामले में, चार्जशीट की सामग्री लीक होने से, विश्वास तोड़ने या चोरी का अपराध हुआ है। जब अदालत ने कार्रवाई नहीं की है तो यह बाहर कैसे चला गया। अगर यह मीडिया में आ गया तो यह साबित हो चुका है कि आपकी चीज किसी को दे दी गई। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने पुलिस आयुक्त से लीक के बारे में जानकारी देते हुए शपथपत्र दाखिल करने के लिए कहा है। अदालत ने दिल्ली पुलिस से कहा है कि चार्जशीट लीक के मामले में जिम्मेदारी तय की जाए। अदालत ने कहा है कि एक बार जब मीडिया में आ गया तो यह आरोप साबित हो चुका है। अब यह सिर्फ आरोप नहीं रहा। आपको पता लगाना है कि ऐसा किसने किया। अदालत के अनुसार अगर चार्जशीट की सामग्री किसी पुलिस अधिकारी ने लीक की है तो यह अधिकारों के दुरुपयोग का मामला है। देखिए यह खबर आपके अखबार में है?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।