केजरीवाल जी, ऑटो चालकों से मास्क न पहनने पर दो हज़ार का जुर्माना न वसूलें- रवीश कुमार


हिन्दी प्रदेश धर्म के नशे में हैं। उनकी राजनीतिक और नागरिक चेतना मिट्टी में मिल चुकी है। मेरी एक थ्योरी है जिसके समझ में आने की डेडलाइन बीस साल बाद शुरू होती है। बीस साल बाद मेरी ये पंक्तियाँ स्कूलों में पढ़ाई जाएँगी। दीवारों पर लिखी होंगी। गुजरात को धर्म की राजनीति से क्या मिला, मैं गुजरात से पूछने वाला हूँ। गुजरात जाकर गुजरात के भाइयों और बहनों से आँख मिलाकर पूछूँगा कि धर्म की राजनीति से आपको क्या मिला? मरने से पहले एंबुलेंस मिला? मैं जानता हूँ जो लोग अस्पताल में अपनों को भर्ती नहीं करा पा रहे हैं वो भी मेरी बात नहीं समझ पाएंगे। फिर भी जनता को बताना ज़रूरी है।


रवीश कुमार रवीश कुमार
काॅलम Published On :


माननीय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
दिल्ली सरकार(उप राज्यपाल)

मैंने आज एक ह्रदय विदारक दृश्य देखा है। अपना सैंपल देकर निकल रहा था तो सड़क के किनारे एक वयस्क नागरिक खड़ा होकर रो रहा था। मैंने कार का शीशा नीचे किया और पूछा क्या बात है तो उसका जवाब था कि मास्क नाक के नीचे था। कोई सवारी नहीं थी लेकिन दो हज़ार फाइन ले लिया है। मेरी सारी कमाई चली गई। वह वयस्क नागरिक ऑटो चालक है। एक नागरिक की विवशता इस स्तर की हो जाए कम से कम आपके मुख्यमंत्री होते हुए नहीं होना चाहिए।

आटो चालक, रेहड़ी पटड़ी वाले क्या इतना कमाते हैं कि उनसे दो हज़ार का जुर्माना लिया जा रहा है? क्या इस देश में कोई गृह मंत्री अमित शाह को मास्क न पहनने पर जुर्माना लगा सकता है? अपनी सारी साख को मिट्टी में मिला देने वाला चुनाव आयोग के अधिकारी इसकी कल्पना से ही रात भर सोएंगे नहीं कि रवीश कुमार ने इतना मुश्किल टास्क क्यों दिया। वैसे उनके बच्चे पूछते तो होंगे कि डैड ईसी बन कर आप गृहमंत्री को फाइन नहीं कर पाए क्यों? उनके बच्चे बीस साल बाद इस दौर के आयोग पर जब रिसर्च पेपर पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि दिल्ली में एक अदद फ्लैट और झूठी शान के लिए उनके पिताओं ने आयोग की कुर्सी पर बैठ कर क्या किया था। एनिवे, माननीय मुख्यमंत्री केजरीवाल जी आप कृपया कर इस फैसले पर विचार करें। आपकी राजनीतिक सफलता में ओटो चालक का बड़ा योगदान रहा है।

मुझे पूरा भरोसा है कि आप मेरे इस आग्रह पर विचार करेंगे कि रेहड़ी -पटरी वालों और ऑटो चालक के लिए दो हज़ार जुर्माना की प्रथा समाप्त कर देंगे। अगर आपके पास ऐसा कोई अध्ययन है जिससे पता चलता हो कि मास्क न लगाने पर दो हज़ार जुर्माना लेने से मास्क पहनने का चलन बढ़ जाता है तो कृपया कर हम सभी से साझा करें। मुझे नहीं लगता कि कोरोना के फैलाव को रोकने में जुर्माने का कोई महत्व है। अगर बहुत ज़रूरी है तो एक ऑटो चालक पचास रुपये का जुर्माना देकर भी दिन भर याद करता रहेगा कि उससे ग़लती हो गई है।

मैंने एक ख़बर पढ़ी है। यूपी के मुख्यमंत्री ने फैसला किया है कि पहली बार मास्क न पहनने पर एक हज़ार का जुर्माना लगेगा। दूसरी बार पकड़े जाने पर दस हज़ार। मुख्यमंत्री ने ही आइसोलेशन के नियमों का पालन नहीं किया। अब कुछ करने के नाम पर दुनिया के सबसे गरीब प्रदेशों में एक उत्तर प्रदेश के नागरिकों से दस हज़ार का जुर्माना लिया जाएगा? मैं प्रधानमंत्री से कोई उम्मीद नहीं रखता। उनका मन अभी दीदी ओ दीदी बोलने में लगा हुआ है।कुछ लिख दूंगा तो सारे आई टी सेल वाले मेरे पीछे लग जाएंगे जैसे इस वक्त टेस्ट और इलाज की व्यवस्था करने से ज़्यादा ज़रूरी है कि रवीश कुमार को गाली दी जाए। कमाल है न राजनीति में गाली देने की आधिकारिक व्यवस्था का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री रैलियों में कहते हैं कि मुझे जितनी गाली देनी है दे लो। वे आलोचना और प्रश्नों को भी गाली कहने लगते हैं। एक बार आई टी सेल वालों से कहा होता कि सच के रास्तों पर चलो। किसी को गाली मत दो। आई टी सेल की क्या भूमिका है, मैं फिर से अमित शाह के बयान का ज़िक्र नहीं करना चाहता।

लखनऊ यूपी की राजनीति का केंद्र है। लखनऊ से जो ख़बरें आ रही हैं वह भयानक है। लखनऊ लाशों की गंध से भरा है। दस हज़ार जुर्माना लगाने से अच्छा होता कि यह बताया जाता कि दुनिया के कई देशों के बराबर यूपी में सरकार ने पिछले एक साल में कितने आर टी पीसीआर जांच केंद्र बनाए हैं? सरकार ने यह काम क्यों नहीं किया? जज अपनी पत्नी के लिए अस्पताल की व्यवस्था नहीं करा पा रहे हैं। यूपी के कानून मंत्री पद्म श्री और लखनऊ के इतिहासकार योगेश प्रवीण के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं करा पाए। ऐसा नहीं है कि दूसरी सरकारों के यहां व्यवस्था बहुत बेहतर है। मैं कांग्रेस सरकारों की भी बात कर रहा हूं। दिल्ली में भी निजी जांच केंद्र पांच पांच दिन बाद सैंपल लेने का टाइम दे रहे हैं। जहां सबसे अच्छी व्यवस्था थी वहां ये हाल है। जहां कोई व्यवस्था ही नहीं थी वहां क्या हाल होगा आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।
एक बार फिर आपसे आग्रह करता हूं कि आप गरीब नागरिक और दिहाड़ी कमाने वालों से दो हज़ार का जुर्माना न वसूलें। कोशिश कर देख सकते हैं कि क्या कोई दूसरा तरीका है कि मास्क न पहनने वालों को लगातार जागरुक किया जा सके। पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि फाइन से कुछ नहीं होता है। फिर भी आप एक बार विचार कर देखेंगे।

एक बात और। मैं चाहता हूं कि भारत का हर नागरिक मेरी इस बात को अपने घरों में लिख कर रख लें। आपसे भी चाहूंगा कि आप मेरी इस बात का प्रचार करें। अगर आपको सही लगता है तो।

हिन्दी प्रदेश धर्म के नशे में हैं। उनकी राजनीतिक और नागरिक चेतना मिट्टी में मिल चुकी है। मेरी एक थ्योरी है जिसके समझ में आने की डेडलाइन बीस साल बाद शुरू होती है। बीस साल बाद मेरी ये पंक्तियाँ स्कूलों में पढ़ाई जाएँगी। दीवारों पर लिखी होंगी। गुजरात को धर्म की राजनीति से क्या मिला, मैं गुजरात से पूछने वाला हूँ। गुजरात जाकर गुजरात के भाइयों और बहनों से आँख मिलाकर पूछूँगा कि धर्म की राजनीति से आपको क्या मिला? मरने से पहले एंबुलेंस मिला? मैं जानता हूँ जो लोग अस्पताल में अपनों को भर्ती नहीं करा पा रहे हैं वो भी मेरी बात नहीं समझ पाएंगे। फिर भी जनता को बताना ज़रूरी है।

“धर्म राजनीति का सत्यानाश कर देता है। जब राजनीति का सत्यनाश होता है तब सरकारें आवारा हो जाती हैं और नेता लोफर हो जाता है।जब भी राजनीति धर्म का इस्तमाल करती है सारे लोफर नेता बन जाते हैं। धर्म सरकारों को जवाबदेही से मुक्त कर देता है। जनता को भी उस सत्यानाश का सहयात्री बना देता है। इसलिए राजनीति में जब कोई नेता धर्म की बात करे, तो समझें कि उससे बड़ा फ्राड कोई नहीं है। जो नेता अस्पताल की बात करे वही नेता है। कम से कम उससे पूछा जा सकता है कि आपने सौ अस्पताल बनाने का वादा किया था कितने बने हैं। धर्म की बात करने वाले नेता से आप क्या पूछेंगे?”

गोदी मीडिया इन दिनों क्या कर रहा है, मैं तो देखता नहीं। जिस मीडिया को कोरोना के समय सरकारों पर चौकस निगाह रखनी थीं वो मीडिया जनता को धर्म की अफीम बेच रहा था। नेता का महिमामंडन कर रहा था। झूठ बेच रहा था। नागरिक डरा हुआ है। वह अब सवाल पूछने के लायक नहीं बचा है।

पुन आग्रह करता हूं कि हज़ारों रुपये जुर्माना की प्रथा खत्म करें। और इसे खत्म करने के लिए राजनीतिक मुद्दा बनाएं।

रवीश कुमार
दुनिया का पहला ज़ीरो टीआरपी एंकर


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