अनिल यादव
छुट्टी का दिन था. गुरुग्राम की बात है. एक पक्षी प्रेमी बसईताल में भटक रहा था. उसे अचानक दुर्लभ कृष्णग्रीव सारस दिखाई दे गया. उसने मोबाइल फोन से फोटो खींची. दोबारा खींचता कि वह उड़ गया. फोटो के साथ अजीब बात है कि हम जिन चीजों को देखने के सिवा और कुछ कर ही नहीं सकते, वह उन पर भी अधिकार का बोध कराती है. वह कुछ ऐसी ही मनःस्थिति में घर लौटकर, फोटो को कंप्यूटर पर बड़ा करके देखने लगा तो पहले हैरान हुआ फिर व्याकुल हो गया. मादा कृष्णग्रीव की बेसबाल के बैट से जरा कम लंबी चोंच के चारों ओर एक घेरा था. गौर से देखा तो यह एक प्लास्टिक की टूटी बोतल का वह संकरा हिस्सा था जहां ढक्कन लगाया जाता है. वह छल्ला उसकी भारी चोंच पर इस तरह जकड़ गया था कि बोलना तो दूर कुछ खा भी नहीं सकती थी. मौन मृत्यु का अभिशाप! बस कुछ दिन और, उसका मुंह नहीं खुलेगा और वह भूख प्यास से मर जाएगी. उसने फोटो दूसरे पक्षीप्रेमियों को भेजी. उन सबको कई साल पहले टीवी पर दिखी, बोरवेल के गड्ढे में गिरे एक बच्चे प्रिंस की छवियों और प्रार्थना करते देश की याद आईं. उन्होंने फोटो को पहले मीडिया और फिर दुर्लभ जीव-जन्तुओं की हिफाज़त के लिए तैनात जंगलात महकमे के अफसरों की ओर बढ़ा दिया.
यह उन दिनों की बात है जब देश की सारी मोटी, फूहड़ और भदेस समस्याएं खत्म हो चुकी थीं. पर्यावरण सबसे बड़ा मुद्दा था, लुप्त होती कलाओं, लोकगीतों, भाषाओं यहां तक कि दुर्लभ गालियों को भी बचाने की चिंता सर्वोपरि थी. उधर वह कृष्णग्रीव सारस दूसरे सारसों के पास गई. उन्होंने आश्चर्य से देखकर मजाक उड़ाया, अच्छा तो मनुष्यों की तरह झुलनी पहन कर आई हो. दूसरी प्रजाति के पक्षियों ने कहा, ये लोग विदेशी लगते हैं हम इनके पचड़े में क्यों पड़ें.
खबर देश में सबसे शक्तिशाली प्रधानजी और उनके सहायक अध्यक्षजी तक पहुंची. संयोग से ऐसा मुद्दा हाथ आ गया था जिसके जरिए धर्म औऱ जाति की घृणा के कारण एक दूसरे की हत्याएं करने वाले पिछड़े देश की छवि रातोंरात एक पक्षीवत्सल, पर्यावरण प्रेमी, आधुनिक राष्ट्र की बनाई जा सकती थी. कृष्णग्रीव की खोज के लिए जंगलात के अफसरों, पक्षी प्रेमियों और वन्यजीव विशेषज्ञों की टीमें बनाई गईं जिन्हें छल्ला निकालकर उसे जीवनदान देना था. गुरुग्राम के ताल तलैयों में पूछताछ और खोजबीन दोनों करते हुए बहुत से अजनबी लोग दूरबीनें लिए भटकने लगे.
प्रधान जी ने टेलीविजन पर भाषण दिया, आपके पास पंख हैं, उड़ने का हजारों वर्षों का अनुभव है, आकाश जितनी असीम और उन्मुक्त चेतना है लेकिन मुंह पर सत्तर सालों से एक खानदान द्वारा फेंकी गई जूठी बोतल का छल्ला जकड़ा हुआ है. हम आपको इससे मुक्ति दिलाकर स्वर देंगे, जीवन देंगे. उन्होंने ‘व्योमा’ नामक एक मोबाइल एप लांच किया जिससे कृष्णग्रीव सारस और दूसरे दुर्लभ पक्षियों को बचाने के प्रयासों की जानकारी प्राप्त की जा सकती थी.
एक अभिनेत्री को इस अभियान का ब्रांड अम्बेसडर नियुक्त किया गया जिसने अपने फैन्स से कहा, मैं हमेशा से उड़ना चाहती थी इसलिए पक्षियों से प्यार करती हूं. दिशाएं प्रधान जी द्वारा कृष्णग्रीव को बचाने के लिए प्रयासों से गूंजने लगीं.
कई दिन बीत गए गुरुग्राम के ताल में बहुत से सारसों के पंख दिखे, इनमें से जिनकी किस्मत खराब थी घरों के एकांत में पकाए गए, कुछ होटलों तक पहुंचे और अपने स्वाद के लिए व्यापक प्रशंसा पाने में सफल रहे लेकिन उस कृष्णग्रीव सारस का पता नहीं चला जिसकी चोंच में छल्ला फंसा हुआ था. निराशा और असंतोष बढ़ने लगा. विरोधी एकजुट होकर चिल्लाने लगे कि कृष्णग्रीव की चोंच प्लास्टिक ने नहीं प्रधान जी ने ही जकड़ ली है. अब उसका पता चलना असंभव है. अध्यक्ष जी ने प्रधान जी को चिंतित देखकर कहा, कहिए तो एक उपाय बताऊं. अनुमति पाकर उन्होंने कहा, पुलिस लगा दीजिए, “कोई भी पक्षी टेलीविजन पर आकर, आपको प्रणाम करते हुए कह देगा कि मेरी ही चोंच में छल्ला फंसा था जो अब निकाल दिया गया है!”
नई दिलफरेब कहानियों के आगे पुरानी भुला दी जाती हैं. इस मामले में भी यही हुआ. एक दिन उस पक्षीप्रेमी से मुलाकात हुई जिसने पहली फोटो खींची थी. उसने कहा, जनता सरकार से उतनी ही दूर है जितने दूर हमसे पक्षी या दूसरे जंगली जानवर हैं. उनकी फोटो खींचने के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता.