चुनाव चर्चा: राजनीतिक दलों पर हावी है चुनावी ज़रूरतें

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चंद्र प्रकाश झा 

 

भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा सारे क्रियाकलाप पर अगले आम चुनाव की जरूरतें हावी हो गई हैं। भाजपा का जम्मू -कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ( पीडीपी ) के साथ अपनी ही गठबंधन की सरकार को गिरा देना इसी को रेखांकित करता है। जम्मू -कश्मीर , बीजेपी की गठबंधन सरकारों का सबसे कमजोर चुनावी मोर्चा साबित हुआ। राज्य विधान सभा के नवम्बर -दिसंबर 2014 में हुए पिछले चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। तब भाजपा ने कुछ अप्रत्याशित रूप से पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी। पीडीपी नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। उनके निधन के बाद उनकी पुत्री , महबूबा मुफ़्ती 4 अप्रैल 2016 को मुख्यमंत्री बनीं। इससे पहले दोनों दलों के बीच कभी कोई गठबंधन नहीं रहा। दोनों ने सिर्फ सरकार बनाने के लिए चुनाव-पश्चात का गठबंधन किया जो अगले चुनाव से पहले ही टूट गया।

राष्ट्रपति की उदघोषणा से राज्य में 19 जून से गवर्नर रूल लागू है। सदन में 28 सीटों के साथ पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी है। विधान सभा की 89 सीटें हैं। मौजूदा विधानसभा अभी भंग नहीं की गई है . संविधान के ख़ास प्रावधानों के तहत इस राज्य में विधान सभा चुनाव छह बरस पर कराये जाते हैं। तत्काल स्पष्ट नहीं है कि नई विधान सभा के लिए चुनाव कब कराये जाएंगे। नए चुनाव , अगले लोक सभा चुनाव के साथ ही कराये जाने की संभावना के बारे में निश्चित रूप से अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। पिछले अंकों में हम चर्चा कर चुके हैं राज्य में लोकसभा की 1916 से रिक्त अनंत नाग सीट पर उपचुनाव सुरक्षा कारणों से अभी तक नहीं कराये गए हैं। अनंतनाग सीट 2016 में महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से दिए इस्तीफा के कारण रिक्त है। अनंतनाग , जम्मू कश्मीर की छह लोकसभा सीटों में शामिल है।

बहरहाल , भाजपा ने जम्मू -कश्मीर में जो अपनी ही गठबंधन सरकार गिरायी उसके गहरे चुनावी निहितार्थ लगते हैं। भाजपा प्रवक्ता राम माधव ने ऐसा करने के दो बड़े कारण बताए जो उनके शब्दों में “आतंकवाद को नियंत्रित करने में महबूबा मुफ़्ती सरकार की विफलता” और “जम्मू और लद्दाख की उपेक्षा” है। स्पष्ट है कि भाजपा , कश्मीर को चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है. कश्मीर का नया मुद्दा , अगला आम चुनाव जीतने में उसके काम आ सकता है। यह मुद्दा , अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पुराने मुद्दा की तरह चुनावी वैतरणी पार करने में काम आ सकता है। यह पूरे देश में मतदाताओं के साम्पदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है। जम्मू और लद्दाख की उपेक्षा को मुद्दा बनाकर कश्मीर में भी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तेज किया जा सकता है।

 

एनडीए में बिखराव

जम्मू -कश्मीर के बाहर भी भाजपा के गठबंधन टूट रहे हैं। मई 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस की सरकार बनी तो एनडीए में एक -एक कर 43 दल शामिल हो गए। इन 43 दलों में से कुछ पहले से एनडीए में थे। इस बार की चुनावी चर्चा में हम एनडीए की ताज़ा तस्वीर ढूंढने से पहले उन सभी 43 दलों के नाम ले लें तो बेहतर होगा।

वे दल थे : शिव सेना, शिरोमणि अकाली दल , लोक जन शक्ति पार्टी , अपना दल , तेलगु देशम पार्टी , जनता दल यूनाइटेड , भारतीय समाज पार्टी , जम्मू एंड कश्मीर पीपुल डेमोक्रेटिक फ्रंट , राष्ट्रीय लोक समता पार्टी , स्वाभिमानी पक्ष , महान दल , नागालैंड पीपुल्स पार्टी , पट्टाली मक्कल काची , ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस , सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट , रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया , बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट , मिजो नेशनल फ्रंट , राष्ट्रीय समाज पक्ष , कोनगुनडाउ मक्कल देसिया काची , शिव संग्राम , इंडिया जनानयगा काची , पुथिया निधि काची , जना सेना पार्टी , गोरखा मुक्ति मोर्चा , महाराष्ट्र वादी गोमांतक पार्टी , गोवा विकास पार्टी , ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन , इंडिजन्यस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा , मणिपुर पीपुल्स पार्टी , कमतपुर पीपुल्स पार्टी , जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस , हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा , केरला कांग्रेस ( थॉमस ) , भारत धर्म जन सेना , असम गण परिषद , मणिपुर डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट , प्रवासी निवासी पार्टी , प्रजा सोशलिस्ट पार्टी , केरला विकास कांग्रेस , जनाधीय पठाया राष्ट्रीय सभा , हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी , यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी ( मेघालय ), पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणांचल , जनाठीपथिया संरक्षण समित और देसिया मुरपोक्क द्रविड़ कड़गम ।

इनमें से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रा बाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी और पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस समेत कुछ दल एनडीए से अलग हो चुके है। महाराष्ट्र में शिव सेना अगला आम चुनाव अपने दम पर ही लड़ने की खुली घोषणा कर चुकी हैं। आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधान सभा के भी पिछले चुनाव 2014 में हुए थे। उनका अगला चुनाव , लोकसभा चुनाव के समय के करीब 2019 में ही निर्धारित है। कुछ और पार्टियों के एनडीए से देर -सबेर छिटकने की खबर है। हम पहले ही चर्चा कर चुके है कि भाजपा के मोर्चा का नाम बिहार के सिवा हर राज्य में अलग -अलग है। बिहार के बाहर एनडीए का अस्तित्व सिर्फ संसद में है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों की सत्ता में विभिन्न दलों के साथ भाजपा के दाखिल मोर्चा में किसी का नाम एनडीए नहीं है। गौरतलब बात यह है कि हाल में कोई भी नया दल एनडीए में शामिल नहीं हुआ है।

सबको मालूम है कि केंद्र में मोदी सरकार का पांच वर्ष का मौजूदा कार्यकाल पूरा होने को है। इसमें अब 10 माह ही बचे हैं। अगला आम चुनाव मई 2019 से पहले कभी भी हो सकते हैं।

 

राजस्थान – भाजपा में छिटकाव

यह भी ध्यान देने की बात है कि चुनाव की बेला में भाजपा से भी छिटकाव शुरू हो गया है। राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के दावेदार और छह बार भाजपा विधायक रहे घनश्याम तिवाड़ी हाल में पार्टी छोड़ कर ” भारत वाहिनी पार्टी ” की कमान संभाल ली है। उन्होंने पिछले चार साल से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ बग़ावत का स्वर उठा रखा था. उन्हीं के पुत्र अखिलेश तिवाड़ी ने भारत वाहिनी पार्टी की स्थापना की थी जिसे निर्वाचन आयोग ने 20 जून को पंजीकृत कर लिया है. घनश्याम तिवाड़ी ने घोषणा की है कि वह ख़ुद अपनी पुरानी सीट सांगानेर से चुनाव लड़ेंगे और उनकी नई पार्टी प्रदेश की सभी 200 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करेगी।गौरतलब है कि तिवाड़ी आरएसएस पृष्ठभूमि से ही हैं. उन्होंने भाजपा से इस्तीफ़ा देने पर खुल कर कहा , ” मैंने भाजपा को छोड़ा है, संघ को नहीं. संघ मेरी विचारधारा का आधार है. मैं इससे अलग कैसे हो सकता हूं. संघ से मेरा जुड़ाव पहले से भी अधिक मज़बूती के साथ रहेगा।” राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार घनश्याम तिवाड़ी का अलग पार्टी से चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह और भाजपा के लिए लाभकारी हो सकता है। खींवसर से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल ने कहा है कि वह घनश्याम तिवाड़ी की नई पार्टी से बातचीत करेंगे.

राजस्थान में अगले बरस निर्धारित आम चुनाव से पहले मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और मिजोरम के साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं. इन राज्यों में मौजूदा विधान सभाओं का कार्यकाल मिजोरम में इसी बरस 15 दिसंबर और अगले बरस मध्य प्रदेश में 07 जनवरी , छत्तीसगढ़ में 15 जनवरी और राजस्थान में 20 जनवरी को समाप्त होगा।

राजस्थान विधान सभा चुनाव के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने 11 उम्मीदवारों की पहली सूचीजारी कर दी हैं। इनमें दांतारामगढ से जुझारू किसान नेता एवं पूर्व विधायक कामरेड अमराराम प्रमुख हैं।

 

कांग्रेस – चुनाव तैयारी

इस बीच , कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आम चुनाव की तैयारी के तहत पार्टी की सांगठनिक जिम्मेदारियों में 22 जून को फेरबदल किया। लोकसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को महाराष्ट्र का प्रभारी नियुक्त किया गया है। साथ ही उन पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा और मिजोरम में स्क्रीनिंग कमेटी गठित की गई है जहां विधान सभा चुनाव भी होने हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं हरियाण की नेता कुमारी शैलजा को पार्टी की राजस्थान स्क्रीनिंग कमेटी की अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जे.डी। सलेम और महेंद्र जोशी को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का सचिव और शशिकांत शर्मा को संयुक्त सचिव नियुक्त किया है। मध्य प्रदेश में , जहां इसी साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं वरिष्ठ नेता कमलनाथ को पहले ही पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था। अब वहाँ स्क्रीनिंग कमेटी भी गठित कर दी गई है। ये स्क्रीनिंग कमेटियाँ पार्टी के चुनाव प्रत्याशियों की सूची तैयार करेगी।

 



(मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)