फ़ैज़ाबाद का नाम अयोध्या हुआ तो अब अयोध्या नगर निगम क्षेत्र यानी पूर्व फ़ैज़ाबाद ज़िले में मांस-मदिरा पर रोक लगाने की माँग की जाने लगी है। पहले यह रोक सिर्फ़ अयोध्या नगर पालिका क्षेत्र में थी। सवाल है कि जिन राम जी के नाम पर यह सब हो रहा है, क्या उनकी अयोध्या में मांस और मदिरा वर्जित थी? कम से कम वाल्मीकि रामायण तो इसके उलट जवाब देती है। पढ़िए, हिंदी के चर्चित कवि बोधिसत्व की टिप्पणी-
क्या नाम के साथ खान-पान भी बदलेगा फैज़ाबाद उर्फ अयोध्या में?
बोधिसत्व
अभी तक की अयोध्या में मांस मदिरा की खरीदी और बेची पर पहले से रोक है। क्या फैजाबाद का नाम अयोध्या करने पर नये नगर और जनपद में शराब और मांस के क्रय विक्रय पर रोक लगेगी?
अयोध्या छोटा नगर या पुर या कस्बा था तो सीमित क्षेत्र में मांस और मदिरा की दूकानों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता था। लेकिन अब जबकि फैजाबाद जनपद ही अयोध्या हो गया है तो उस सनातनी पवित्रता का आदर कैसे बना रहेगा। जनपद के गांँव वाले क्षेत्रों में इस पर कैसे रोक लगेगी?
वैसे लोगों की सूचना के लिए अवतारी रामादि तो मांसाहारी थे। भरत भी मांस मदिरा का सेवन करते थे।
पौराणिक भीम का प्रिय आहार ही मांस था। केवल उनके भोजन में मांस का प्रबंधन करने के लिए दर्जनों शिकारी थे। उन्हीं शिकारियों ने दुर्योधन के व्यास सरोवर में छिपे होने की सूचना दी थी। जिसके बाद जांघ तोड़ अन्याय युद्ध किया था भीम ने।
दशरथ और राम की अयोध्या में मदिरा सेवन भी चलता था। अयोध्या में मदिरालय और उसकी साज सज्जा का बाल्मीकि रामायण में वृहद विवरण मिलता है। राम और अन्य रघुवंशी जो शिकार करते थे वह केवल लक्ष्यसंधान का अभ्यास न होता था। श्रवण कुमार केवल लक्ष्य परीक्षण के शिकार न थे। वह अपने हाथों अपने आहार के प्रबंध का गौरव प्रदर्शित करने का एक तरीका भी था।
सीता हरण के ठीक पहले मारीच को मारने के बाद राम एक और हिरन को मारते हैं और उसका मांस लेकर जन स्थान की ओर जल्दी-जल्दी चलने लगे। संदर्भ के लिए देखें बाल्मीकि रामायण :अरण्य कांड: चौवालीसवां सर्ग: मारीच वंचना : श्लोक 27 और 28…
वालि राम द्वारा घायल होने पर उनसे कहता है कि आप क्षत्रिय हैं पंचनख वाले पांच पशु ही आपके खाने योग्य हैं । पंचनख वाले बंदर का मांस तो आप के लिए वर्जित है। वाल्मीकि रामायण: किष्किन्धा काण्ड: सत्रहवां सर्ग: रामाधिक्षेप: श्लोक 33 से 39…
ऊपर मैंने राम के मांस भोग की बात की है। संदर्भ के लिए बाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड का बयालीसवां सर्ग राम सीता विहार देखा जा सकता है। वहाँ राम स्वयं सीता को नशीला मदिरा पिला रहे हैं जैसे शची को इंद्र पिलाया करते हैं-
सीतामादाय हस्तेन मधु मैरेयकं शुचि।।
पाययामास ककुस्त्थ: शचीमिव पुरंदर:।।18।।
और फिर उनके खाने के लिए सेवक अच्छी तरह पकाए गए मांस और भांति भांति के फल शीघ्र ले आते हैं-
मांसानि च सुमृष्टानि फलानि विविधानि च।।
रामास्याभ्यवहारार्थं किंकरास्तूर्तमाहरन्।। 19।।
एक रोचक बात यह भी है कि गीताप्रेस के अनुवाद में मांस की हिंदी राजोचित भोज्य पदार्थ दिया है। उक्त अध्याय का श्लोक 20 से 22 तक देखा जाए। वहाँ राम के रंगराग के और विवरण हैं।
श्रीराम खुद मांस खाएं अपनी पत्नी देवी सीता को भी खिलाएं और साथ में मदिरा भी पिलाएं यह रामराज्य में चलेगा । लेकिन रामभक्तों के राज्य में यह सब खान-पान अनर्थ है।
(यहाँ नई दिल्ली के संस्कृत साहित्य संस्थान द्वारा प्रकाशित वाल्मीकि रामायण का डॉ.गंगा सहाय शर्मा द्वार किया गया अनुवाद दिया जा रहा है, जिसमें मांस और मदिरा का स्पष्ट उल्लेख है न कि गीताप्रेस के अनुवाद की तरह इशारों में बात की गई है।)
राम के राज्य से यह आज का रामराज्य किस तरह भिन्न और जीवन विरोधी है इसका आकलन इसी से किया जा सकता है कि रामराज्य में खान-पान पर सरकारी रोक-टोक न थी। तब राज्य निष्ठा तय करने का आधार भोजन भजन भाषन न था बल्कि जनता राम के साथ अयोध्या छोड़ने के लिए उनके पीछे निकल गई थी।
प्रभाकर द्विवेदी जी के यात्रा ग्रंथ “पार उतरि कहँ जइहौं” में एक गीत पढ़ा था जिसका भाव था कि बिना राम की अयोध्या में न रहेंगे। हम सभी वन जाएंगे।
रघुबर संग जाब हम न अवध में रहबइ।
जौ मोरे रघुबर बन फल खैहयिं बोकिला बिनि खाब।।
जौ मोरे रघुबर भुइयाँ सोइहयिं हम दसना बनि जाब।।
जौ मोरे रघुबर भीजन लगिहयिं हम मड़ई बनि जाब।।
रघुबर संग जाब हम न अवध में रहबइ।
निश्चय ही राम ने प्रजा को उनके मनोनुकूल जीवन यापन की स्वायत्तता दी होगी, अन्यथा वह धोबी अपने विचार कैसे प्रकट करता? चूल्हे चौके और कौर की निगरानी वाले शासक कितने त्रासद सिद्ध हो सकते हैं यह आने वाले दिनों में और उजागर होगा!
बोधिसत्व, भिखारीरामपुर, भदोही
(कवि बोधिसत्व पौराणिक ग्रंथों के अनुवाद को लेकर की जा रही गड़बड़ियों पर काम कर रहे हैं। जल्दी ही मीडिया विजिल में विस्तार से छपेगा। )