देश में कोरोना की जो हालत है उसमें आज सभी अखबारों में इससे संबंधित खबरें होनी चाहिए थी। पर किसी भी अखबार में मरने वालों और नए संक्रमितों की संख्या लीड के शीर्षक नहीं बताई गई है। टाइम्स ऑफ इंडिया में अधपन्ने के पीछे छपी खबर के अनुसार कल देश भर में 1340 लोगों की मौत हुई। यह एक दिन में कोविड से सबसे ज्यादा मौत का दिन था पर किसी अखबार में खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इसी खबर के अनुसार कल 2.34 लाख नए मामले मिले और दुनिया के चार संक्रमण में एक भारत में पर भारत के अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर है? मेरे पांच अखबारो में किसी में नहीं। आइए देखें आज यह खबर किस अखबार में कैसे है।
1.हिन्दुस्तान टाइम्स
“काले शुक्रवार को मौतें बढ़ने से 57% भारत पाबंदियों में” – मुख्य शीर्षक है। पाबंदियों और सख्तियों के बावजूद देश भर में रिकार्ड मामले सामने आए। इस खबर के साथ लगे चित्र और आंकड़ों के विवरण का शीर्षक है, “देश भर में कर्फ्यू फैले।” मौतों और नए मामलों की संख्या इसके बाद दी गई है। कहने की जरूरत नहीं है कि 1340 मौतें और 2,40,000 मौतें सबसे ज्यादा होने के बावजूद लीड नहीं है। हालांकि, हिन्दुस्तान ने तो इतना भी लिखा है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इन बातों को अंदर के पन्ने पर डाल दिया है।
2.टाइम्स ऑफ इंडिया
अधपन्ने पर पहली खबर है, “मौसम विभाग ने सामान्य मानसून की भविष्यवाणी की, लगातार तीसरे साल।” अखबार का मानना है कि अच्छी बारिश का अर्थव्यवस्था पर अच्छा असर पड़ेगा। शायद इसलिए महत्व दिया गया हो पर यह लगातार तीसरा साल है तो क्यों महत्वपूर्ण है, मैं नहीं समझ पाया।
मुख्य अखबार में दिल्ली की खबर लीड है। अस्पताल ने लिखा है कि 24 घंटे में 141 लोगों की मौत हुई जो अभी तक सबसे ज्यादा है। इस खबर का उपशीर्षक है, उपचार में देरी से कई मौतें। बेशक, इस खबर का शीर्षक इस प्रकार भी हो सकता था, “कोरोना से दिल्ली में 141 मरे, कई मौतें इलाज में देरी के कारण।”
3. इंडियन एक्सप्रेस
लीड के शीर्षक में यह सब है ही नहीं। यहां मुख्य शीर्षक है : “चिन्तावाले राज्य उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ फोकस में; कोवैक्सिन की आपूर्ति जल्दी ही दूनी की जाएगी।” आप समझ सकते हैं कि बाकी चीजें शीर्षक में क्यों नहीं हैं या इसे क्यों महत्व दिया गया है। इस खबर का इंट्रो है, “ऑकसीजन टैंकर की मुक्त आवाजाही सुनिश्चित करें : प्रधानमंत्री; गृहमंत्रालय ने मुख्य सचिवों को लिखा।” मुख्य खबर के साथ अखबार में एक तस्वीर है। इसका कैप्शन है, लखनऊ में लोग ऑक्सीजन खरीद रहे हैं। आपको याद होगा, कुछ साल पहले गोरखुपर के एक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से कई बच्चों की मौत हो गई थी। तब खरीद, आपूर्ति, भुगतान की व्यवस्था में गड़बड़ी की बात सामने आई थी। उसके बाद कुछ किया गया होता तो अब लखनऊ में यह स्थिति नहीं आती। पर किसे परवाह है।
4.द हिन्दू
लीड का शीर्षक है, “केंद्र ने उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ के लिए ज्यादा ऑक्सीजन, वेंटीलेटर का वादा किया।” इस खबर का इंट्रो है, मेडिकल ऑक्सीजन की अंतरराज्यीय आवाजाही की इजाजत दी जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि यह इंडियन एक्सप्रेस जैसी खबर है पर शीर्षक उसके मुकाबले स्पष्ट है।
5.द टेलीग्राफ
यह खबर सेकेंड लीड है। शीर्षक है, “वायरस की आग बढ़ रही है, कुंए खोदे जा रहे हैं।” कहने की जरूरत नहीं है कि ऊपर के सभी शीर्षक से यह बेहतर है और सबकी बात सबसे कम शब्दों में कही गई है। द टेलीग्राफ की मुख्य खबर का शीर्षक है, “बंगाल के एक किसान के सवालों का सामना करने के लिए भाजपा के एक नेता की जरूरत है।” यह शीर्षक भी अनूठा है और बिना कहे बहुत कुछ कहता है।
इन खबरों के अलावा, द हिन्दू में एक और खबर है जो किसी और अखबार में नहीं है। इस खबर के अनुसार गुजरात के अस्पतालों में भी ऑक्सीजन की कमी है। खबर के अनुसार छोटे शहरों में स्थिति और खराब है क्योंकि वायरस ग्रामीण क्षेत्रों में फैल गया है। इसके मद्देनजर बिहार उत्तर प्रदेश के गांवों की क्या हालत होगी। क्या आपने वहां के लिए किसी विशेष तैयारी, सुविधाएं न होंने या कम होने की खबर पढ़ी। कहने की जरूरत नहीं है कि नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल के छह साल पूरे होने के बाद अब गुजरात मॉडल दूसरे राज्यों में बढ़ रहा है। जलने वाली लाशों की संख्या आम लोगों को न मालूम हो उसके लिए उत्तर प्रदेश में टीन की वैसी ही दीवार बनाई गई जैसे ट्रम्प के गुजरात दौरे से पहले वहां बनाई गई थी। वहां तो समय था, ईंट गारे की बन गई यहां जल्दबाजी में टीन की बनाई गई लेकिन उसपर वायरल वीडियो से ज्यादा कुछ खबर नहीं थी।
इसी तरह, पश्चिम बंगाल में आज 45 सीटों के लिए पांचवें चरण का मतदान है और यह सबसे बड़ा चरण है। निश्चित रूप से यह एक महत्वपूर्ण खबर है। देश के एक राज्य का चुनाव जब महीने भर से ज्यादा चले, आठ चरण में हो तो पाठकों को यह जानना और बताना जरूरी है कि चुनाव या मतदान कितना महत्वपूर्ण है। खासकर कोरोना के इस माहौल में जब बीमारी के प्रभाव के कारण सभी चरणों के मतदान एक दिन कराने की मांग भी चल रही है। पूरी खबर ठीक से बताने में क्या हर्ज है और लोकतंत्र बचाए रखने के लिए सरकार या चुनाव आयोग जो कर रहे हैं वह ना तो कम महत्वपूर्ण है ना सरकार के खिलाफ है कि खबर छपने से सरकार नाराज हो जाएगी पर आज यह खबर बहुत सामान्य या मामूली ढंग से है। मुश्किल में पड़ा देश का एक राज्य अगर आठ चरण में चुनाव जैसी औपचारिकता पूरी करने के लिए मजबूर कर दिया गया है तो हर चरण महत्वपूर्ण है और उसे पार करने की कोशिश भी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि खबर जितनी महत्वपूर्ण है वैसे छपी है। आप अपने अखबार में देखिए।
इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का शीर्षक है, बाकी के चरणों को मिलाया नहीं जाएगा। चुनाव आयोग ने बंगाल में चुनाव प्रचार के दिन और समय कम किए। इस शीर्षक में बहुत सारी बातें आ गई हैं पर यह नहीं बताया गया है कि 45 सीटों का यह सबसे बड़ा चरण है। मुझे लगता है यह पश्चिम बंगाल में चुनाव कराने की देश की या चुनाव आयोग की क्षमता है और इसे रेखांकित किया जाना चाहिए कि इतनी ज्यादा सीटों पर चुनाव पांचवें चरण में हो रहा है और यह मुश्किल सवाल पहले हल करने के लिहाज से कैसा है? पर यह सब अखबारों में नहीं होता है। पाठकों को भूल–भुलैया में रखा जाता है और अच्छी–अच्छी खबरें दी जाती हैं। जैसे नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को मंजूरी लेकिन अभी वह अपील कर सकता है। मुझे नहीं समझ में आता है कि इस खबर में ऐसा क्या है कि लगभग हर अखबार में हर बार पहले पन्ने पर होती है, फोटो के साथ।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मशहूर अनुवादक हैं।