आज द टेलीग्राफ की लीड सभी अखबारों से अलग है। मुख्य शीर्षक, “हिन्दू नव-संवत्सर ने सिर उठाया” चौंकाता है। इसका फ्लैग शीर्षक है, “भाजपा की शुभकामना ने बंगाल का एंजडा खोल दिया।” पश्चिम बंगाल जीतने के लिए भाजपा क्या कोशिशें कर रही है, उसे प्रचार देना भाजपा के खिलाफ होना नहीं है। ना ही उससे संबंधित खबरें या सूचना देना अखबारों के दायित्व से अलग कोई अपराध है कि डरा जाए। पर अखबार इतना सा काम भी नहीं कर रहे हैं। मैं नहीं जानता क्यों? कल मैंने लिखा था कि ममता बनर्जी के कहा, “बंगाल जीतने की डरावनी कोशिश” को लीड बनाने से डर गए अखबार। लेकिन आज तो डरने वाली कोई बात ही नहीं है।
अगर पश्चिम बंगाल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने अपने फेसबुक पेज के जरिए बंगाल में सभी लोगों को हिन्दू नववर्ष की बधाई दी है तो निश्चित रूप से यह खबर है। खासकर चुनाव के इस मौसम में। वैसे तो चुनाव के समय में हिन्दू नववर्ष पर बधाई देने से बचा जाना चाहिए पर भाजपा ऐसा कहां मानती है या नहीं मानती है – तो भी यह खबर है ही। पर दिल्ली के किसी अखबार में पहले पन्ने पर यह खबर नहीं छपी है। ‘द हिन्दू’ में खबर है कि ममता बनर्जी सीतलकुची में केंद्रीय सुरक्षा बलों की गोली से चार लोगों की मौत के चार दिन बाद वहां गईं और मार गए लोगों के परिवार वालों से मिलीं। उन्होंने परिवार वालों से वादा किया कि राज्य सरकार इस हत्याकांड की जांच करवाएगी।
मुझे लगता है कि यह भी बड़ी खबर है और द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। द टेलीग्राफ का शीर्षक है, “बच्चे की मां से दीदी का वादा।” आपको याद होगा पहले चुनाव के दौरान हिंसा के पीड़ितों के यहां सभी दल के लोग और उम्मीदवार जाते थे। उम्मीदवार नहीं जा पाए तो पार्टी की तरफ से सांत्वना आदि की बातें होती थी। पर अब मामला पूरी तरह बंट गया लगता है। अखबारों की खबरों से ऐसा लगता है कि एक पार्टी ही चुनाव लड़ और लड़ा दोनों रही है और बिना बोले भी वह ऐसी हिन्सा का जिम्मा अपने ऊपर ले लेती है। इस बार तो पार्टी के नेता को यही बात कहने के लिए प्रतिबंधित किया गया है।
माहौल बदलने की ही कोशिश में पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष ने बंगाल में लोगों को हिन्दू नववर्ष की बधाई दी जबकि बंगाल (बांग्लादेश में भी) में लोग पोइला बोइशाख मनाते हैं। इस बार हिन्दू नववर्ष की शुरुआत 13 अप्रैल को हुई और पोइला बोइशाख आज यानी 15 अप्रैल को है। किसी एक राज्य के चुनाव को आठ चरणों में घसीटने वाले चुनाव आयोग को सोचना चाहिए था कि चुनाव के बीच इन त्यौहारों के मौके पर क्या होगा। और क्यों नहीं इससे बचा जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि बंगाल का चुनाव पहली बार इतना लंबा हो रहा है और इस बीच मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है तो ऐसा अनूठा निर्णय यूं ही नहीं लिया गया होगा।
अखबारों को इसका कारण या प्रभावों की चर्चा करनी चाहिए थी पर कुछ खास नहीं हुआ। आज भी सभी अखबारों में लीड 10वीं और 12वीं की परीक्षा से संबंधित सरकारी निर्णय की खबर है जबकि पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के क्या दांव पेंच आजमा रही है वह सबकी दिलचस्पी का विषय है। न भी हो तो इससे अभी और भविष्य में प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। इसलिए, जब पहले से पता था कि 13 और 15 अप्रैल चुनाव लड़ने वाली पार्टी में से एक और पूरे राज्य के लिए खास महत्व रखते हैं तो इससे संबंधित सारी कार्रवाई बड़ी खबर है। वैसे भी, उत्सुकता तो रहती ही है।
फिर भी, केंद्र सरकार ने कल अचानक देश के कई परीक्षा बोर्डों में से एक की 10वीं की परीक्षा स्थगित करने और 12 वीं टालने का निर्णय कर दिया तो अखबारों ने सबसे आसान खबर को लीड बना दिया। वह भी तब जब 12वीं की परीक्षा की तारीखों की घोषणा की गई थी तब कोरोना के दूसरे लहर की आशंका थी और तारीख तय करते समय इन बातों का ख्याल रखा जाना चाहिए था। लेकिन अब उसपर कोई ध्यान नहीं देता है। आज भी, सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में (पहले पन्ने पर) लीड के साथ यह खबर है, “कुछ ही लोगों से सलाह की गई, स्कूल, अधिकारी नहीं समझ पा रहे हैं कि मार्च-अप्रैल का मौका चूक गए”।
बंगाल में अगर भाजपा हिन्दू नववर्ष की शुभकामना दे रही है तो यह इसलिए भी खबर है कि वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के अनुसार, “भारत में 14 नववर्ष हैं। ईसाई संवत अलग है और इस्लामिक संवत अलग। इसके अलावा तमिल नववर्ष भिन्न है। पंजाब एवं बंगाल के अन्य संवत हैं। आदिवासियों की भी दूसरी कालगणना है। इसके अलवा सनातनी हिंदू भी विक्रमी के अतिरिक्त कलि प्रारंभ वर्ष से भी गणना करते हैं। यह जो विक्रमी संवत है, यह भी एक छोटे से इलाक़े में ही माना जाता है। अलबत्ता अब यह विदेशी है, क्योंकि यह नेपाल का आधिकारिक संवत है और नेपाल कभी भारत का हिस्सा नहीं रहा। भारत सरकार जिन दो काल गणना को मान्यता देती है, वे ईसाई संवत और शक संवत हैं।” वैसे भी, अगर नवसंवत्सर अगर इतना ही महत्वपूर्ण है तो अपनी और बच्चों की जन्म तिथि इसी काल गणना के अनुसार मनाई जानी चाहिए। वरना साल में कितने नववर्ष और कितने जन्म दिन मनाएंगे।
दिलीप घोष की पोस्ट के बारे में टेलीग्राफ ने लिखा है, बंगाल में असल परिवर्तन लाने की प्रधानमंत्री की अपील का अंदाजा बंगाली नए वर्ष से पहले ही लग गया था। पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने पोइला बोइशाख से पहले ही हिन्दू नववर्ष यानी नव-संवत्सर की बधाई पोस्ट कर दी। अखबार ने लिखा है कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि बंगाली नववर्ष को एक धर्म से जोड़ दिया जा रहा है और हिन्दू नए वर्ष के रूप में पेश किया जा रहा है जबकि 500 साल से बंगाली पोइला बोइशाख मनाते रहे हैं और इसमें धर्म की कोई भूमिका नहीं होती है तथा बांग्लादेश में भी यह त्यौहार मनाया जाता है।
ऐसे मामलों में ही नहीं, जनता की जरूरतें बताने में भी अखबार नाकाम रहते हैं। कोरोना के विदशी टीकों पर विवाद की चर्चा कल आपने पढ़ी लेकिन टीके की कमी पर अब कोई खबर नहीं है। ऐसा लग रहा है जैसे विदेशी टीकों की अनुमति दे दी गई काम खत्म हो गया। दूसरी ओर, कोरोना के कारण देश भर में जो हालत है उसमें दवाइयां नहीं मिल रही हैं, छोटे शहरों में सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं और निजी अस्पताल कोरोना के मामले नहीं देख रहे हैं, टीके का इतना प्रचार रहा पर टीके कम हैं तो कोई खबर नहीं। द टेलीग्राफ में एक खबर है जो बताती है कि 15 करोड़ खुराक प्रतिमाह की आवश्यकता के लिहाज से मौजूदा उत्पादन क्षमता आधी रह जाएगी। ऐसे में उत्पादन क्षमता बढ़ाना जरूरी है। इसी तरह दवाइयों की कमी की कोई चर्चा नहीं। गुजरात भाजपा अध्यक्ष कैसे और क्यों दुर्लभ दवा बांट रहे हैं इसपर कोई जवाब नहीं। कुल मिलाकर, अखबारों ने नालायकी की हद कर रखी है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।