पहला पन्ना: बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराने के के.चु.आ के फ़ैसले पर रेंग गये अख़बार!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


आज का दिन निर्विवाद लीड का है। चुनाव आयोग ने कल कई राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा की और इसे सभी अखबारों में लीड होना ही था। आज है भी। मुझे यही देखना था कि बंगाल में चुनाव आठ चरण में होंगे इसे कौन कितनी प्रमुखता या विशेषता के साथ बताता है या कैसे बताता है। अखबार मेरे सामने हैं। द टेलीग्राफ को छोड़कर बाकी के चार अखबारों में यह सूचना बहुत ही सामान्य ढंग से है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव आठ चरणों में होंगे। असल में कल की घोषणा की सबसे खास बात यही है। वैसे भी, केंद्र सरकार के चाल-चरित्र ही नहीं, बजट में भी बंगाल चुनाव दिखता रहा है।

इसलिए पश्चिम बंगाल में आठ चरण में चुनाव कराने की घोषणा सामान्य नहीं है। यह सबसे बड़ी और अलग खबर है। इसे प्रमुखता से छापना चाहिए था। जब चुनाव आयोग ऐसा कर रहा है तो कुछ छिपा हुआ नहीं है और सही खबर देने में क्या बुराई हो सकती है या फिर किसी को क्यों बुरा लगना चाहिए या सही खबर देने में किसी को क्यों डरना चाहिए। पश्चिम बंगाल चुनाव आठ चरण में कराने का रिकार्ड बनेगा- यह शीर्षक क्यों नहीं होना चाहिए। खासकर तब जबकि बाकी सब में कुछ भी नया नहीं है। नया यह है कि तमिलनाडु के 234 सीटों पर जो सरकार और व्यवस्था एक चरण में चुनाव करा देगी वही व्यवस्था पश्चिम बंगाल के 294 सीटों पर आठ चरण में चुनाव कराएगी। एक देश, एक चुनाव के नारे या जरूरत में इस व्यवस्था की स्थिति जनता को कौन बताएगा? और नहीं बताना या छिपा लेना क्या देशद्रोह की मौजूदा परिभाषा में नहीं है?

अखबारों में इसका जवाब नहीं है। मीडिया पर जो आरोप लगता है आज वह दिख रहा है- एक बड़ी खबर दबा दी गई है। यह रेखांकित करने की बात इसलिए है कि सरकार और चुनाव आयोग को आठ चरण में चुनाव करवाने से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें पता है कि इसकी आलोचना मीडिया में नहीं होगी। और सरकार सोशल मीडिया पर जो शर्तें थोपना चाह रही है उससे हो सकता है कल को यह सब लिखना भी गैर कानूनी हो जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि यह केंद्र सरकार की रणनीति या चुनाव आयोग का समर्पण या फिर उसकी मजबूरी या नालायकी कुछ न भी हो तो सिर्फ सूचना के लिहाज से जो महत्वपूर्ण है और उसे महत्व नहीं देना अपना काम ठीक से नहीं करना तो है ही। इसलिए मीडिया की आलोचना अगर सोशल मीडिया पर हो सकती है तो सरकार को परवाह नहीं होनी चाहिए। लेकिन सोशल मीडिया कंपनियों को जो शर्तें बताई गई हैं वो आप जानते हैं। यही नहीं, राहुल गांधी उत्तर और दक्षिण भारत में अंतर बताएं तो लोगों को कितनी परेशानी होती है वह किसी से छिपा नहीं है पर अब चुनाव आयोग बिहार और बंगाल या बिहार और तमिलनाडु का अंतर बता रहा है तो लोगों को परेशानी क्यों नहीं है।

आइए, अब बताऊं किसने कैसे छापा है। बेशक, यह अखबार की नीतियों, पाठकों की पसंद और संपादकीय विवेक आदि पर भी निर्भर करता होगा लेकिन सभी अखबार सरकार के विरोध से बचें तो यह टू मच डेमोक्रेसी का सच ही है।

1- हिन्दुस्तान टाइम्स

पांच राज्यों में महत्वपूर्ण चुनाव चक्र 27 मार्च को शुरू होगा – मुख्य शीर्षक

नतीजे दो मई को; पश्चिम बंगाल में आठ चरण, असम में तीन, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी प्रत्येक में एक- इंट्रो। मुख्य खबर के साथ एक बॉक्स में राज्यों के नक्शे के साथ चुनाव संबंधी जानकारी है। इसका शीर्षक है, विधानसभा चुनाव आठ चरणों में। कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल का चुनाव आठ चरणों में कराने की विशेषता विशेष तौर पर नहीं बताई गई है। ऐसे जैसे यह सामान्य बात हो।

2- द हिन्दू

विधानसभा चुनाव की शुरुआत 27 मार्च को होगी – मुख्य शीर्षक

उपशीर्षक में तीन बिन्दु बुलेट के साथ हैं। पहला, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी में 6 अप्रैल को एक चरण में चुनाव होगा। दूसरा, पश्चिम बंगाल में 8 चरण में मतदान होंगे जो 27 मर्च से शुरू होकर 29 मार्च तक चलेगा। यहां भी बॉक्स में नक्शे के साथ चुनाव संबंधी जानकारियां हैं। इसका शीर्षक है, बैटल ऑफ बैलट्स।

3- दि इंडियन एक्सप्रेस

चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की – फ्लैग शीर्षक

बंगाल आठ चरणों में मतदान करेगा, असम तीन चरणों में; नतीजे दो मई को- मुख्य शीर्षक। क्या बंगाल के आठ चरणों के मुकाबले तमिलनाडु एक चरण में ज्यादा विरोधाभासी नहीं है? फिर यहां असम किसलिए? आप समझ सकते हैं कि असम भौगोलिक रूप से भले बड़ा है, सीटें 126 ही हैं और तीन चरण में चुनाव होंगे जबकि 234 सीट वाले तमिलनाडु में एक ही चरण में चुनाव होना है। इसलिए, मुझे लगता है कि एक्सप्रेस का शीर्षक बंगाल के आठ चरण को महत्व तो देता है पर एक चरण में चुनाव के विरोधाभास से बचाने के लिए तीन चरण वाले असम का नाम शीर्षक में है। हो सकता है कारण कुछ और हो पर मुझे पहली नजर में अटपटा लगता है और यह सही विरोधाभास तो नहीं ही है, अगर वही बताना हो।

4- टाइम्स ऑफ इंडिया

बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम में मतदान 27 मार्च – 29 अप्रैल, परिणाम 2 मई को – मुख्य शीर्षक।

टाइम्स ऑफ इंडिया की मुख्य खबर के साथ एक इंट्रो है, भाजपा की नजर दीदी की सरकार गिराने पर …. अखबार ने बॉक्स में चुनाव से संबंधित जो विवरण दिए हैं उसका शीर्षक है, बंगाल के लिए आठ चरण एक राष्ट्रीय रिकार्ड।

5- द टेलीग्राफ

बंगाल ड्रैगथन

अखबार में आज चुनाव की खबर लीड है और मुख्य शीर्षक पश्चिम बंगाल का चुनाव आठ चरण में कराए जाने पर ही केंद्रित है। एक लाइन का छोटा सा शीर्षक रखने की अपनी खास शैली को बनाए रखते हुए अखबार ने अंग्रेजी का एक नया शब्द गढ़ा है – ड्रैगेथन। यह अंग्रेजी के दो शब्दों – ड्रैग और मैराथन को मिलाकर बनाया गया है। ड्रैग मतलब होता है घसीटना और लंबी दौड़ को मैराथन कहते हैं। बंगाल में चुनाव को लंबे समय तक घसीटने की इस घोषणा को अखबार ने बंगाल ड्रैगथन कहा है। उपशीर्षक है, राज्य अलग दिखाई दे रहा है क्योंकि सबसे लंबा चुनाव होगा जो 27 मार्च से 29 अप्रैल तक चलेगा, मतगणना 2 मई को। इसके साथ अखबार ने प्रमुखता से बताया है कि किस राज्य में कितनी सीट है और कितने चरण में चुनाव होंगे। इसके साथ यह भी बताया गया है कि मतदान के दिन कौन से हैं। पश्चिम बंगाल में आठ दिन मतदान है तो असम में तीन दिन , तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में सिर्फ एक दिन 6 अप्रैल को और मतगणना 2 मई यानी इतवार को होगी।

शीर्षक में सारी बातें स्पष्ट न होने या उससे अलग संदेश जाने का बचाव कई तरह से किया जा सकता है। पर मेरा मकसद उन तथ्यों को सामने लाना है जिनकी चर्चा नहीं होती, जिन्हें प्रमुखता नहीं मिलती या जो नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। अगर यह अंतर या विविधता सामान्य है तो एक देश एक टैक्स, एक देश एक चुनाव जैसे नारे क्यों लगाए जाते हैं? इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि खबरों के शीर्षक और प्लेसमेंट में सरकार विरोधी या समर्थक होने से ज्यादा महत्व पाठकवर्ग को दिया जाना हो सकता है। यह अलग बात है कि पाठकों की पसंद इसी से तय होती है और यह रोना सिनेमा, कहानी, साहित्य, टेलीविजन सीरियल आदि आदि क्षेत्रों में भी है और बहुत पुराना है।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।