डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 30
पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की तीसवीं कड़ी – सम्पादक
193.
लाठी चार्ज और गोली चली
आंबेडकर ने जाॅंच की माॅंग की
(दि फ्री प्रेस जर्नल, 9 नवम्बर 1938)
बम्बई, बृहस्पतिवार।
‘बम्बई के मजदूर वर्ग के नाम पर, कानून-व्यवस्था के नाम पर और प्रान्त में स्वच्छ प्रशासन के नाम पर मैं मा. मि. मुंशी के अधीन पुलिस विभाग द्वारा की हड़ताली प्रदर्शनकारियों पर किए गए अन्याय के मामले में एक निष्पक्ष और सार्वजनिक जाॅंच की माॅंग करता हूॅं। मैं पूरी तरह अनावश्यक फायरिंग और पुलिस द्वारा बार-बार लाठी चार्ज का प्रयोग किए जाने के विरुद्ध सार्वजनिक जाॅंच की माॅंग करता हूॅं,’ आज यह बात इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर ने प्रेस को दिए अपने वक्तव्य में कही है।
डा. आंबेडकर ने प्रश्न किया, ‘काॅंग्रेस सरकार को यह क्या हो गया है कि वह आतंक का सहारा लिए बिना एक दिन की हड़ताल भी बरदाश्त नहीं कर सकती।’
यहाॅं हर दिन हड़तालें हुई थीं, जो दिनों, हफ्तों और महीनों में खत्म हुई थीं। और इस पूरी अवधि में कोई लाठी चार्ज और फायरिंग नहीं हुई थी।’
‘आज काॅंग्रेस के राज में इतना खुला आतंकवाद है कि हम दमन के बगैर एक दिन की भी हड़ताल नहीं कर सकते।’
प्रेस
मुझे प्रेस के बारे में कहना है कि जब तक काॅंग्रेस को श्रमिकों की मदद की जरूरत थी, तब तक प्रेस उनकी स्वतन्त्रता और अधिकारों के लिए खड़ा था और उनके हितों का समर्थक था। परन्तु आज प्रेस झूठ, मिथ्या और तथ्यों में जोड़तोड़ कर सत्य का दमन करने का सहारा ले रहा है, इतना कि इसने एॅंग्लो-भारतीय प्रेस को भी शर्मसार कर दिया है।
‘हड़ताल की निंदा इस रूप में की गई है, जैसे वह एक ऐसा झगड़ा था, जिसमें श्रमिकों ने अपने नेताओं के आदेशों का उल्लंघन किया था। इसलिए, जो लोग हड़ताल पर गए थे, उन्हें डराया गया, धमकाया गया, आतंकित किया गया और हड़ताल खत्म करने के लिए मजबूर किया गया।’
लोग इन शब्दों को जानते हैं। किन्तु अभी तक ये उस प्रेस से आते थे, जिसे राष्ट्र-विरोधी माना जाता था। आज वे काॅंग्रेस और काॅंग्रेस-समर्थक प्रेस से आते हैं। यह एक त्रासदी है। यह एक कठोर वास्तविकता है, जिसका हमें सामना करना है।
‘मैं इन अखबारों से पूछता हूॅं, तुम्हारे सत्य और अहिंसा का क्या हुआ, तुम्हारे सामान्य शिष्टाचार को क्या हो गया?’
जहाॅं तक श्रमिकों की बात है, तो वे इससे या ऐसे किसी भी प्रचार से गुमराह नहीं हो सकते। वे टेªड विवाद बिल के खिलाफ एक विशाल विरोध-प्रदर्शन के साक्षी थे। उन्हें मालूम है कि कितनी शक्तिशाली और सफल रही है।’
काॅंग्रेस को चेतावनी
‘काॅंग्रेस सरकार और उसके नेता इस बात को अच्छी तरह याद कर लें कि श्रमिक वर्ग के लोगों को मारी गई हर लाठी और उन पर चलाई गई हर गोली की गूॅंज इस शहर में, इस प्रान्त में हफ्तों और आने वाले कई महीनों तक गूॅंजेगी।’
ये लाठी चार्ज और फायरिंग आने वाले नगरपालिका चुनावों के दौरान सैकड़ों मंचों और सैकड़ों सभाओं में बार-बार गूॅंजेगी। आज ऐसा लग रहा है कि इस लाठी चार्ज और फायरिंग की कीमत काॅंग्रेस को अपने नेताओं से सबसे ज्यादा चुकानी होगी।
‘हमारे अधिकार और हमारी आजादी पर जुल्म के इन आक्रोशों की आवाज इस प्रेसीडेंसी के कोने-कोने और गाॅंव-गाॅंव में सुनी जायेगी।
‘काॅंग्रेस सरकार सत्ता के नशे में दिखाई देती है। वे लोकतन्त्र के इस महान पाठ की उपेक्षा करते हुए प्रतीत होते हैं कि संसद और विधानसभाओं में एक ही घटना और एक ही गलत कदम विशाल बहुमत का सफाया कर देता है। किन्तु बम्बई के नगरपालिका चुनावों के दौरान उसे वह पाठ याद आ जायेगा, जब सरकार को फिर से मतदाताओं का सामना करना पड़ेगा।
‘मुझे जरा भी सन्देह नहीं है कि काॅंग्रेस इसके भीषण प्रभाव से अपना घर बचा पायेगी।’
194.
आंबेडकरवादी परास्त
हरिजनों का विश्वास गाॅंधी और काॅंग्रेस में
(दि बाम्बे क्राॅनिकल,14 नवम्बर 1938)
अहमदाबाद, 12 नवम्बर।
आज शाम बुलाई गई हरिजनों की एकसभा में महात्मा गाॅंधी और काॅंग्रेस में विश्वास व्यक्त करने और गाॅंधी तथा काॅंग्रेस पर डा.आंबेडकर प्रहार करने के लिए डा.आंबेडकर की निन्दा करने का अद्भुत जोश देखा गया।
इसी सभा में डा.आंबेडकर के भी कुछ अनुयायी मौजूद थे, जिन्होंने ‘डा.आंबेडकर जिन्दाबाद’ के नारे लगाए। इससे सभा में कुछ परेशानी पैदा हो गई। डा.आंबेडकर के अनुयायियों ने मंच पर पहुॅंचकर कार्यवाही में बाधा डालने का कोशिश की।
तुरन्त ही पुलिस ने वहाॅं पहुॅंचकर शान्ति बहाल की।
इसके बाद सभा में कोई और घटना नहीं घटी और महात्मा गाॅंधी तथा काॅंग्रेस में विश्वास व्यक्त करने का प्रस्ताव पास हो गया। -ए. पी.
195.
कामगारों के जुलूस के साथ
मिल क्षेत्र से श्मशान तक शवयात्रा
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 17 नवम्बर 1938)
3000 कार्यकर्ताओं के एक जुलूसके साथ बुद्धवार की रात, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के कार्यकर्ता भागोजी वाघमारे की शवयात्रा, जो एलफिंस्टन मिल के निकट पुलिस की फायरिंग में जख्मी होने के फलस्वरूप मंगलवार की रात जिसकी के.ई.एम. अस्पताल में मृत्यु हो गई थी, मिल क्षेत्र से आरम्भ हुई।
भागोजी वाघमारे का शव के.ई.एम. अस्पताल के शवगृह से सायं 5.30 पर उसके परिवार को सौंपा गया था और बाद में उसे कामगार मैदान ले जाया गया, जहाॅं भारी संख्या में कामगार एकत्र थे।
22 मजदूर संगठनों सहित बम्बई, कुर्ला और शोलापुर से गिरनी कामगार यूनियन्स, बी. बी. और जी. आई. पी. यूनियन्स,इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, बी. पी. टी. यू. सी., नेशनल फ्रन्ट, और अनेक मिलों के कामगारों ने दिवंगत साथी की स्मृति में अपनी पुष्पाॅंजलि अर्पित की।
इस अवसर पर डा.आंबेडकर और सर्वश्री जोगलेकर, निम्बकर, डाॅंगे, श्रीमति डाॅंगे तथा अनेक अन्य श्रमिक नेता उपस्थित थे।
शवयात्रा सायं 7 बजे आरम्भ हुई और धीरे-धीरे सुपारी बाग रोड, कुर्रे रोड, फर्गुसन रोड और हैंस रोड से होते हुए हैंस रोड श्मशान पहुॅंची।
जब शवयात्रा ने फर्गुसन रोड पर प्रवेश किया, तो वहाॅं अनेक चालों के कामगारों ने पुष्पाॅंजलि दी।
हर रोड पर, जहाॅं से जुलूस गुजरा, अधिकारियों के नियन्त्रण में पुलिस के दस्ते तैनात थे। इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के स्वयंसेवक भी जुलूस को अच्छी तरह से व्यवस्थित किए हुए थे।
अन्तिम संस्कार से पूर्व डा. आंबेडकर और सर्वश्री निम्बकर तथा बोखारी ने भाषण दिए।
वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भागोजी वाघमारे उस संघर्ष के दौरान मारे गए, जो अभी शुरु ही हुआ था और अब यह तब तक खत्म नहीं होगा, जब तक कि मजदूर अपना ‘राज’ स्थापित नहीं कर लेते है।
196.
हरिजन छात्रों की पहली सामाजिक सभा
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 13 दिसम्बर 1938)
बम्बई के दलित वर्ग छात्रों की पहली सामाजिक सभा पिछले शनिवार को डा. बी. आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में परेल के गोखले शिक्षा समिति के हाई स्कूल में हुई।
पिछली कड़ियाँ —
29. सिद्धांतों पर अडिग रहूँँगा, हम पद नहीं अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं-डॉ.आंबेडकर
28.डॉ.आंबेडकर का ग्रंथ रूढ़िवादी हिंदुओं में सनसनी फैलाएगा- सीआईडी रिपोर्ट
27. ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है ब्राह्मणवाद, हालाॅंकि वह इसका जनक है-डॉ.आंबेडकर
26. धर्मांतरण का आंदोलन ख़त्म नहीं होगा- डॉ.आंबेडकर
25. संविधान का पालन न करने पर ही गवर्नर दोषी- डॉ.आंबेडकर
24. ‘500 हरिजनों ने सिख धर्म अपनाया’
23. धर्म बदलने से दलितों को मिली सुविधाएँ ख़त्म नहीं होतीं-डॉ.आंबेडकर
22. डॉ.आंबेडकर ने स्त्रियों से कहा- पहले शर्मनाक पेशा छोड़ो, फिर हमारे साथ आओ !
21. मेरी शिकायत है कि गाँधी तानाशाह क्यों नहीं हैं, भारत को चाहिए कमाल पाशा-डॉ.आंबेडकर
20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !
19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर
18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर
17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर
16. अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर
15. न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !
14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर
13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर
12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क
11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर
10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!
9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!
8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!
7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?
6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर
5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर
4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !
3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !
2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी
1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी