डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 21
पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर कोलेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की इक्कीसवीं कड़ी – सम्पादक
159.
काॅंग्रेस को डा. आंबेडकर की चुनौती, हरिजन सवाल ही चुनाव का मुद्दा
सिख धर्म अपनाने के सवाल पर दलित वर्गों का विचार
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 30 नवम्बर, 1935)
नसिक, 28 नवम्बर।
‘नए संविधान के अन्तर्गत मताधिकार कम हो जाने के कारण वास्तविक सत्ता सवर्ण हिन्दुओं के हाथों में आ जायेगी। किन्तु वे सामाजिक सुधार के विरोधी हैं। समाज में प्रचलित प्रथाओं और रूढ़ियों को बदलने में उनकी जरा भी इच्छा नहीं होगी। मेरी शिकायत विशेष रूप से ऐसे ही लोगों के विरुद्ध है, सामाजिक सुधारों के खिलाफ नहीं है। कांग्रेस के उम्मीदवार भी अगर यह घोषणा कर दें कि अगर वे जीत गए तो अस्पृश्यता को मिटाने के लिए कानून बनायेंगे, तो वे चुनाव नहीं जीत पायेंगे। मैं काॅंग्रेस को चुनौती देता हूॅं कि वह इस घोषणा-पत्र पर चुनाव लड़कर दिखाए।’
उपर्युक्त कथन 26 अक्टूबर को नासिक के प्रगतिशील हिन्दुओं की बैठक में नियुक्त प्रतिनिधि मण्डल के साथ हुई डा. आंबेडकर की बातचीत का सार है।
अब नासिक के प्रगतिशील हिन्दुओं ने उस पूरी बातचीत का अधिकृत वक्तव्य जारी कर दिया है।
वक्तव्य के अनुसार मि.आर.जी.प्रधान, पूर्व एमएलसी के नेतृत्व में पाॅंच प्रगतिशील हिन्दुओं का यह प्रतिनिधि मण्डल 10 नवम्बर को डा. आंबेडकर से उनके आवास पर मिला था। यह बातचीत पूरे सौहार्दपूर्ण और दोस्ताना वातावरण में तीन घण्टे तक चली थी।
प्रगतिशील विचार
आरम्भ में, प्रतिनिधि मण्डल ने डा. आंबेडकर के समक्ष उन प्रस्तावों को रखा, जो श्री शंकराचार्य डा. कुर्तकोटी की अध्यक्षता में नासिक में सम्पन्न प्रगतिशील हिन्दू सम्मेलन में पारित किए थे। ये प्रस्ताव इस प्रकार हैं- (क) ‘सार्वजनिक मन्दिरों और तीर्थस्थानों में, जहाॅं सबसे ज्यादा विवाद है, वहाॅं तत्काल व्यावहारिक उपलब्धि के लिए जनता का विचार बदलने के लिए हर सम्भव प्रयास किए जायेंगे। (ख) उपर्युक्त के अलावा प्रचार, रचनात्मक कार्य और अन्य तरीकों से हरिजनों के लिए जनता के विचार को बदलने की हद तक व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों से निरन्तर और बेहिचक प्रयास किया जायेगा,तथा सार्वजनिक स्थानों, जैसे कुॅंओं, स्कूलों, धर्मशालाओं और होटलों में अस्पृश्यता को समाप्त करने के सभी प्रयास किए जायेंगे एवं उन इलाकों में, जहाॅं गैर-हरिजन हिन्दू निवास करते हैं, हरिजनों के रहने और बसने की आजादी देने तथा आम तौर पर अन्य सभी मामलों के सम्बन्ध में हिन्दू समाज से अस्पृश्यता के उन्मूलन के प्रयास किए जायेंगे।’
मि. प्रधान ने डा. आंबेडकर के प्रति सभी प्रतिनिधियों का गहरा सम्मान और प्रेम व्यक्त किया और घोषणा की कि वे डा. आंबेडकर के येवला-भाषण से उत्पन्न समस्या को उनके सहयोग और परामर्श से हल करने के इच्छुक हैं। मि. प्रधान ने कहा कि हम सब डा. आंबेडकर को उनके धर्म बदलने के इरादे से रोकना चाहते हैं। मि. प्रधान ने डा. आंबेडकर के प्रति श्री शंकराचार्य के गहरे स्नेह को भी व्यक्त किया।
स्मृति धर्म के आधार को मिटाएॅं
डा. आंबेडकर की माॅंग
तीन घण्टे चलने वाली इस बातचीत में, डा. आंबेडकर ने कहा, ‘धर्म का आध्यात्मिक आधार कुछ भी हो सकता है, परन्तु उसके धार्मिक सिद्धान्त, जिन पर नैतिक व्यवस्था और लोगों का सामाजिक आचरण निर्भर करता है, उस धर्म का प्रधान तत्व माना जाना चाहिए। हालांकि हिन्दूधर्म ‘परम ब्रह्म’ की धारणा पर आधारित है, पर हिन्दू समुदाय का सम्पूर्ण आचरण असमानता के उन सिद्धान्तों पर आधारित है, जिनकी स्थापना ‘मनुस्मृति’ में की गई है। कुछ लोग सोवते हैं कि धर्म समाज के लिए आवश्यक नहीं है। पर मैं इस विचार को नहीं मानता हूॅं। मैं जीवन और समाज के आचरण के लिए धर्म को आवश्यक मानता हूॅं। हिन्दू समाज व्यवस्था की जड़ में मनुस्मृति का धर्म है। ऐसी स्थिति में मुझे नहीं लगता कि मनुस्मृति के आधार को हटाए बिना हिन्दू समाज में असमानता को समाप्त करना और उसके स्थान पर बेहतर व्यवस्था लाना सम्भव होगा। हालाॅंकि मैं निराश नहीं हूॅं, हिन्दू समाज एक बेहतर बुनियाद पर पुनर्निर्माण करने में सक्षम है।
भावी संविधान में हरिजनों की स्थिति के बारे में उल्लेख करते हुए, डा. आंबेडकर ने कहा कि अस्पृश्यता निवारण और सामाजिक सुधार का उद्देश्य नए संविधान में कानून की सहायता से ही आगे बढ़ सकता है।
हिन्दूधर्म छोड़ने के सम्बन्ध में, डा. आंबेडकर ने घोषणा की, ‘व्यक्तिगत रूप से, मैंने धर्म-परिवर्तन का अपना मन बना लिया है। पर अभी मैं यह नहीं बता सकता कि कौन सा धर्म ग्रहण करुॅंगा। लेकिन धर्म-परिवर्तन करके मेरा इरादा कोई निजी लाभ प्राप्त करने का नहीं है।यह मेरा व्यक्तिगत प्रश्न नहीं है, मैं इसे सम्पूर्ण अछूत समुदाय तक, हर हाल में इस समुदाय के अधिक से अधिक लोगों तक ले जाना चाहता हूॅं। मैं यह नहीं चाहता कि कुछ लोग एक धर्म या पंथ अपनाकर और बाकी लोग कोई दूसरा धर्म अपनाकर इस मुद्दे पर अलग-अलग हो जायें। अपने समुदाय के हितों के दृष्टिकोण से, यह आवश्यक है कि वह एक संगठित, शक्तिशालीऔर जीवित समुदाय बने। मेरा इरादा धर्म-परिवर्तन के इस आन्दोलन को अखिल भारतीय आन्दोलन बनाने का है। यदि मेरा समुदाय मेरा अनुसरण नहीं करता है, तो फिर मैं अकेले ही अपना धर्म-परिवर्तन करुॅंगा। इसमें कम से कम चार या पाॅंच साल लग सकते हैं, और आप जो करना चाहते हैं, इस अवधि में कर सकते हैं। अन्तिम निर्णय लेने से पूर्व हम अवश्य ही इस बात पर विचार करेंगे कि आपके प्रयासों को कितनी सफलता मिलती है। मैं इस बात को स्वीकार करता हूॅं कि आपके सामने एक बड़ा कार्य है, जो आपको करना है। किन्तु यदि इस लम्बी अवधि में आपका कार्य पूरा नहीं हो सकता है, तो हम और लम्बे समय तक इन्तजार करने के लिए तैयार नहीं हैं।’
नयाधर्म
डा. कुर्तकोटी द्वारा दिए गए प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए, जो अछूतों के लिए समान स्थिति और समान स्तर वाले एक नए धर्म के निर्माण के सम्बन्ध में है, डा. आंबेडकर ने कहा, ‘मैं ऐसे किसी भी नए धर्म को आरम्भ करने की जिम्मेदारी नहीं लूॅंगा और न ही मैं उसे अपने समुदाय को अपनाने की सलाह दूॅंगा। यदि डा. कुर्तकोटी की यही इच्छा है, तो उन्हें नया धर्म बनाने दीजिए, और उसे ‘सछूतों’ (सवर्णों) में फैलने दीजिए। इसके बाद हम भी उस पर विचार करेंगे। मैं अभी नहीं बता सकता कि इसके स्थापित होने पर अछूत वर्ग क्या सोचेगा। इसके प्रति उनका रवैया इसकी संख्यात्मक ताकत पर निर्भर करेगा और इस बात पर कि वह अछूतों के उत्थान को कितना आगे बढ़ाता है। उसके बाद ही हम उसे अपनाने या न अपनाने पर उसी तरह विचार करेंगे, जिस तरह हम किसी अन्य धर्म को अपनाने या न अपनाने पर विचार करेंगे, किन्तु हम जिस धर्म को भी ग्रहण करेंगे, वह एक जीवित धर्म होगा।
‘बौद्धधर्म अपनाने के सम्बन्ध में हमारें सामने कुछ दिक्कतें हैं। मेरा विचार है कि वह धर्म ऐसा होना चाहिए कि अछूत समुदाय पूरी तरह एक ताकतवर समुदाय में बदल जाए। हमने आर्य समाज में शामिल होले का निश्चय नहीं किया है, परन्तु हम सिख धर्म अपनाने के सवाल पर विचार करेंगे।’
हरिजन सेवक संघ के प्रति हरिजनों के रवैए का उल्लेख करते हुए डा. आंबेडकर ने कहा, ‘हरिजन सेवक संघ से अस्पृश्यता निवारण का काम आगे बढ़ने की सम्भावना नहीं है। यह संघ काॅंग्रेस का ही एक शाखा है।’
डा. आंबेडकर ने अपनी बात को जारी रखते हुए आगे कहा, ‘लोकतन्त्र भारत के लिए उपयुक्त नहीं है और लोकप्रिय सरकार उसके लिए काम नहीं करेगी। भारत को कमाल पाशा या मुसोलिनी जैसा एक तानाशाह चाहिए। मैंने आशा की थी कि मि. गाॅंधी एक तानाशाह की जगह लेंगे, पर मुझे निराशा हुई। मेरी शिकायत यह नहीं है कि मि. गाॅंधी एक तानाशाह हैं, बल्कि मेरी शिकायत यह है कि वह तानाशाह नहीं हैं। मैं कमाल पाशा का बहुत आदर करता हूॅं, क्योंकि यही वह व्यक्ति है, जिसने टर्की को एक शक्तिशाली राष्ट्र में बदल दिया। अगर कहीं ऐसे लोग हैं, जिनकी धार्मिक भावनाओं प्रथाओं में हस्तक्षेप करना बेहद जाखिम भरा है, तो वे मुसलमान हैं। किन्तु कमाल पाशा ने इस कार्य को सफलता से किया। कमाल पाशा जैसे नेता के बिना भारत की मुक्ति नहीं होगी। किन्तु यहाॅं की परिस्थितियों में, सामाजिक और धार्मिक मामलों में ऐसे तानाशाह का मिलना असम्भव है, और इसलिए मैं भारत के भविष्य के बारे में निराश हूॅं।’
युवा पीढ़ी
युवा पीढ़ी और हरिजनों के रवैए का जिक्र करते हुए डा. आंबेडकर ने, कहा जाता है, यह घोषणा की, ‘मैं युवा पीढ़ी से उम्मीद नहीं करता हूॅं, जो ज्यादा आनन्द की तलाश में लालायित और आदर्शवाद से रहित प्रतीत होता है, और जिसमें आदर्शों, सिद्धान्तों तथा रानाडे, तिलक या गोखले जैसा बनने की भी सम्भावना नहीं दिखती है। यह बात मुझमें निराशा पैदा करती है।
‘संक्षेप में, अछूत समुदाय में पैदा होने के नाते मेरा पहला कर्तव्य इस समुदाय के हितों के लिए काम करना है, और भारत के लिए मेरा कर्तव्य पूरी तरह इसके बाद है। धर्म की जो मेरी अपनी अवधारणा है, उसके अनुसार मेरी धार्मिक भावनाएॅं मजबूत हैं। किन्तु हिन्दूधर्म में मेरी कोई आस्था नहीं है और मैं पाखण्ड से घृणा करता हूॅं। इसलिए मै।ने हिन्दूधर्म को छोड़ने का निश्चय किया है, पर अभी तुरन्त ऐसा करने का मेरा इरादा नहीं है, क्योंकि मैं अपने समुदाय को भी अपने साथ लेकर चलना चाहता हूॅं। आज ‘हरिजन’ सेना मार्च नहीं कर रही है, बल्कि वह उपयुक्त अवसर को देख और इंतजार कर रही है। इस दौरान, ‘सछूत’ (उच्च हिन्दू) आपके द्वारा बनाई गई योजनाओं पर अपने कार्यों को जारी रख सकते हैं।’
पिछली कड़ियाँ-
20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !
19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर
18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर
17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर
16. अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर
15. न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !
14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर
13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर
12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क
11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर
10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!
9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!
8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!
7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?
6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर
5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर
4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !
3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !
2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी
1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी
कँवल भारती : महत्वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्पणियों के लिए विख्यात। कई पुस्तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।